tag:blogger.com,1999:blog-90352456323116945352024-03-07T14:04:43.207+05:30अध्यात्म (Spiritualism)Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comBlogger229125tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-47627197523104199262012-11-09T16:03:00.000+05:302012-11-09T16:06:20.612+05:30चिंतन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.oshobuddhaquotes.com/wp-content/uploads/2010/06/F08031.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="211" src="http://www.oshobuddhaquotes.com/wp-content/uploads/2010/06/F08031.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">जीवन क्या है, मनुष्य इसे भी नहीं जानता
है। और जीवन को हम न जान सकें, तो मृत्यु को जानने की तो कोई संभावना ही
शेष नहीं रह जाती। जीवन ही अपरिचित और अज्ञात हो, तो मृत्यु परिचित और
ज्ञात नहीं हो सकती सच तो यह है कि चूंकि हमें जीवन का पता नहीं, इसलिए ही
मृत्यु घटित होती प्रतीत होती है। जो जीवन जानते हैं, उनके लिए मृत्यु एक
असंभव शब्द है, जो न कभी घटा, न घटता है, न घट सकता है। जगत में कुछ शब्द
बिलकुल झूठे हैं, उन शब्दों में कुछ भी सत्य नहीं है। उन्हीं शब्दों में
मृत्यु भी एक शब्द है, जो नितांत असत्य है। मृत्यु जैसी घटना कहीं भी नहीं
घटती। लेकिन हम लोग तो रोज मरते देखते हैं, चारों तरफ रोज मृत्यु घटती हुई
मालूम होती है। गांव-गांव में मरघट हैं। और ठीक से हम समझें तो ज्ञात होता
है कि जहां-जहां हम खड़े हैं, वहां-वहां न मालूम कितने मनुष्यों की अर्थी
जल चुकी है। जहां हम निवास बनाए हुए हैं, उस भूमि के सभी स्थल मरघट रह चुके
हैं। करोड़ों-करोड़ों लोग मरे हैं, रोज मर रहे हैं, अगर मैं कहूं कि
मृत्यु जैसा झूठा शब्द नहीं है मनुष्य की भाषा में, तो आश्चर्य होगा।<br />
<br />
एक फकीर तिब्बत में मारपा। उस फकीर के पास कोई गया और उसने कहा, अगर जीवन
के संबंध में पूछना हो, तो जरूर पूछो, क्योंकि जीवन का मुझे पता है। रही
मृत्यु, तो मृत्यु से आज तक कोई मिलना नहीं हुआ, मेरी कोई पहचान नहीं है।
मृत्यु के संबंध में पूछना हो, तो उनसे पूछो जो मरे हुए हैं या मर चुके
हैं। मैं तो जीवन हूं, मैं जीवन के संबंध में बोल सकता हूं, बता सकता हूं।
मृत्यु से मेरा कोई परिचय नहीं।<br />
<br />
यह बात वैसी ही है जैसी आपने सुनी होगी कि एक बार अंधकार ने भगवान से जाकर
प्रार्थना की थी कि यह सूरज तुम्हारा, मेरे पीछे बहुत बुरी तरह से पड़ा हुआ
है। मैं बहुत थक गया हूं। सुबह से मेरा पीछा होता है और सांझ मुश्किल से
मुझे छोड़ा जाता है। मेरा कसूर क्या है ? कैसी दुश्मनी है यह ? यह सूरज
क्यों मुझे सताने के लिए मेरे पीछे दिन-रात दौड़ता रहता है ? और रात भर में
मैं दिनभर की थकान से विश्राम नहीं कर पाता हूं कि फिर सुबह सूरज द्वार पर
आकर खड़ा हो जाता है। फिर भागो ! फिर बचो। यह अनंत काल से चल रहा है। अब
मेरे धैर्य की सीमा आ गई और मैं प्रार्थना करता हूं, इस सूरज को समझा दें।<br />
<br />
सुनते ही भगवान ने सूरज को बुलाया और कहा कि तुम अंधेरे के पीछे क्यों पड़े
रहते हो ? क्या बिगाड़ा है अंधेरे ने तुम्हारा ? क्या है शत्रुता ? क्या
है शिकायत ? सूरज कहने लगा, अंधेरा ! अनंत काल हो गया मुझे विश्व का
परिभ्रमण करते हुए, लेकिन अब तक अंधेरे से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई।
अंधेरे को मैं जानता ही नहीं। कहां है अंधेरा ? आप उसे मेरे सामने बुला
दें, तो मैं क्षमा भी मांग लूं और आगे के लिए पहचान लूं कि वह कौन है ताकि
उसके प्रति कोई भूल न हो सके।<br />
<br />
इस बात को हुए भी अनंत काल हो गए। भगवान की फाइल में यह बात वहीं की वहीं
पड़ी है। अब तक अंधेरे को सूरज के सामने नहीं बुला सके हैं। नहीं बुला
सकेंगे। यह मामला हल नहीं होने का है। सूरज के सामने अंधकार कैसे बुलाया जा
सकता है ? अंधकार की कोई सत्ता ही नहीं है, कोई एग्झिस्टेंस नहीं है।
अंधकार की कोई पॉजिटिव, कोई विधायक स्थिति नहीं है। अंधकार तो सिर्फ प्रकाश
के अभाव का नाम है। वह तो प्रकाश की गैर मौजूदगी है। वह तो एबसेंस है, वह
तो अनुपस्थिति है। तो सूरज के सामने ही सूरज की अनुपस्थित को कैसे बुलाया
जा सकता है ?<br />
<br />
नहीं ! अंधकार को सूरज के सामने नहीं लाया जा सकता है। सूरज तो बहुत बड़ा
है, एक छोटे से दीये के सामने भी अंधकार को लाना मुश्किल है। दीये के
प्रकाश के घेरे में अंधकार का प्रवेश मुश्किल है। दीये के सामने मुठभेड़
मुश्किल है। प्रकाश है जहां, वहां अंधकार कैसे आ सकता है ! जीवन है जहां,
वहां मृत्यु कैसे आ सकती है ! या तो जीवन है ही नहीं, और या फिर मृत्यु
नहीं है। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।<br />
<br />
हम जीवित हैं, लेकिन हमें पता नहीं कि जीवन क्या है। इस अज्ञान के कारण ही
हमें ज्ञात होता है कि मृत्यु भी घटती है। मृत्यु एक अज्ञान है। जीवन का
अज्ञान ही मृत्यु की घटना बन जाती है। काश ! उस समय जीवन से परिचित हो सकें
जो भीतर है, तो उसके परिचय की एक किरण भी सदा-सदा के लिए इस अज्ञान को
तोड़ देती है कि मैं मर सकता हूं, या कभी मरा हूं, या कभी मर जाऊंगा। लेकिन
उस प्रकाश को हम जानते नहीं है जो हम हैं, और उस अंधकार से हम भयभीत होते
हैं जो हम नहीं है। उस प्रकाश से परिचित नहीं हो पाते जो हमारा प्राण है,
जो हमारा जीवन है जो हमारी सत्ता है; और उस अंधकार से हम भयभीत होते हैं,
जो हम नहीं हैं।<br />
<br />
मनुष्य मृत्यु नहीं है, मनुष्य अमृत है। लेकिन हम अमृत की ओर आंख नहीं
उठाते है। हम जीवन की तरफ, जीवन की दिशा में कोई खोज ही नहीं करते हैं, एक
कदम भी नहीं उठाते हैं। जीवन से रह जाते हैं अपरिचित और इसलिए मृत्यु से
भयभीत प्रतीत होते हैं। इसीलिए प्रश्न जीवन और मृत्यु का नहीं है, प्रश्न
है सिर्फ जीवन का।<br />
<br />
मुझे कहा गया है कि मैं जीवन और मृत्यु के संबंध में बोलूं। यह असंम्भव है
बात। प्रश्न तो है सिर्फ जीवन का और मृत्यु जैसी कोई चीज ही नहीं है। जीवन
ज्ञात होता है, तो जीवन रह जाता है। और जीवन ज्ञात नहीं होता, तो सिर्फ
मृत्यु रह जाती है। जीवन और मृत्यु दोनों एक साथ कभी भी समस्या की तरह खड़े
नहीं होते। यह तो हमें पता ही है कि हम जीवन हैं, तो फिर मृत्यु नहीं है।
और या हमें पता नहीं है कि हम जीवन हैं, तो फिर मृत्यु ही है, जीवन नहीं
है। ये दोनों बातें एक साथ मौजूद नहीं होती हैं, नहीं हो सकती हैं। लेकिन
हम सारे लोग मृत्यु से भयभीत हैं। मृत्यु का भय बताता है कि हम जीवन से
अपरिचित हैं। मृत्यु के भय का एक ही अर्थ है—जीवन से अपरिचय। और जीवन हमारे
भीतर प्रतिपल प्रवाहित हो रहा है—श्वास-श्वास में, कण-कण में, चारों ओर,
भीतर-बाहर सब तरफ जीवन है और उससे ही हम अपरिचित हैं। इसका एक ही अर्थ हो
सकता है कि आदमी किसी गहरी नींद में है। नींद में ही हो सकती है यह संभावना
कि जो हम हैं, उससे भी अपरिचित हैं। इसका एक ही अर्थ हो सकता है कि आदमी
किसी गहरी मूर्च्छा में है। इसका एक ही अर्थ हो सकता है कि आदमी के प्राणों
की पूरी शक्ति सचेतन नहीं है अचेतन है, अनकांशस है, बेहोश है।<br />
<br />
एक आदमी सोया हो तो उसे फिर कुछ भी पता नहीं रह जाता कि मैं कौन हूँ ? कहाँ
से हूं ? नींद के अंधकार में सब डूब जाता है और उसे कुछ पता नहीं रह जाता
है कि मैं हूं भी या नहीं हूं ? नींद का पता भी उसे तब चलता है, जब वह
जागता है। तब उसे पता चलता है कि मैं सोया था, नींद में तो इसका पता ही
नहीं चलता कि मैं सोया हूं। जब नहीं सोया था, तब पता चलता था कि मैं सोने
जा रहा हूं। जब तक जागा हुआ था, तब तक पता था कि मैं अभी जागा हुआ हूं,
सोया हुआ नहीं हूं। जैसे ही सो गया। उसे यह पता नहीं चलता कि मैं सो गया
हूं। क्योंकि अगर पता चलता रहे कि मैं सो गया हूं, तो उसका यह अर्थ है कि
आदमी जागा हुआ है। सोया हुआ नहीं है। नींद चली जाती है तब पता चलता है कि
मैं सोया था। लेकिन नींद में पता नहीं चलता कि मैं हूं भी या नहीं हूं।
जरूर मनुष्य को कुछ भी पता नहीं चलता कि मैं हूं या नहीं हूं, या क्या हूं।<br />
इसका एक ही अर्थ हो सकता है कि कोई बहुत गहरी आध्यात्मिक नींद, कोई
स्प्रिचुअल हिप्नोटिक स्लीप, कोई आध्यात्मिक सम्मोहन की तंद्रा मनुष्य को
घेरे हुए है। इसीलिए उसे जीवन का पता नहीं चलता कि जीवन क्या है।<br />
<br />
नहीं, लेकिन हम इनकार करेंगे। हम कहेंगे, कैसी आप बात करते हैं ? हमें पूरी
तरह पता है कि जीवन क्या है। हम जीते हैं, चलते हैं, उठते हैं, बैठते हैं,
सोते हैं।<br />
<br />
एक शराबी भी चलता है, उठता है, बैठता है, श्वास लेता है, आंख खोलता है, बात
करता है। एक पागल भी उठता है, बैठता है, सोता है, श्वास लेता है, बात करता
है, जीता है। लेकिन न तो शराबी होश में कहा जा सकता है और न पागल सचेतन
है, यह कहा जा सकता है।<br />
<br />
एक सम्राट की सवारी निकलती थी एक रास्ते पर। एक आदमी चौराहे पर खड़ा होकर
पत्थर फेंकने लगा और अपशब्द बोलने लगा और गालियां बकने लगा। सम्राट की बड़ी
शोभायात्रा थी उस आदमी को तत्काल सैनिकों ने पकड़ लिया और कारागृह में डाल
दिया। लेकिन जब वह गालियां बकता था और अपशब्द बोलता था, तो सम्राट हंस रहा
था। उसके सैनिक हैरान हुए, उसके वजीरों ने कहा, आप हंसते क्यों हैं ? उस
सम्राट ने कहा, जहां तक मैं समझता हूं, उस आदमी को पता नहीं है कि वह क्या
कर रहा है। जहां तक मैं समझता हूं, वह आदमी नशे में है। खैर, कल सुबह उसे
मेरे समाने ले आएं। कल सुबह वह आदमी सम्राट के सामने लाकर खड़ा कर दिया
गया। सम्राट उससे पूछने लगा, कल तुम मुझे गालियां देते थे, अपशब्द बोलते
थे, क्या था कारण उसका ? उस आदमी ने कहा, मैं ! मैं और अपशब्द बोलता था !
नहीं महाराज, मैं नहीं रहा होऊंगा इसलिए अपशब्द बोले गए होंगे। मैं शराब
में था, मैं बेहोश था, मुझे कुछ पता नहीं कि मैंने क्या बोला, मैं नहीं था।<br />
<br />
हम भी नहीं हैं। नींद में हम चल रहे हैं, बात कर रहे हैं, प्रेम कर रहे है,
घृणा कर रहे हैं, युद्ध कर रहे हैं। अगर कोई दूर के तारे से देख मनुष्य
जाति को तो वह यह समझेगा कि सारी मनुष्य-जाति इस भांति व्यवहार कर रही है
जिस तरह नींद में, बेहोशी में कोई व्यवहार करता हो।<br />
तीन हजार वर्षों में मनुष्य-जाति ने पंद्रह हजार युद्ध किए हैं। यह जागे
हुए मनुष्य का लक्षण नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी कथा, चिंता
की, दुख की, पीड़ा की कथा है। आनंद का एक क्षण भी उपलब्ध नहीं होता। आनंद
का एक कण भी नहीं मिलता है जीवन में। खबर भी नहीं मिलती कि आनंद क्या है।
जीवन बीत जाता है और आनंद की झलक भी नहीं मिलती। यह आदमी होश में नहीं कहा
जा सकता है। दुख, चिंता, पीड़ा, उदासी और पागलपन—सारे जन्म से लेकर मृत्यु
तक की कथा है।<br />
<br />
लेकिन शायद हमें पता ही नहीं, क्योंकि हमारे चारों तरफ भी हमारे जैसे सोए
हुए लोग हैं। और कभी अगर एकाध जागा हुआ आदमी पैदा हो जाता है, तो हम सोए
हुए लोगों को इतना क्रोध आता है उस जागे हुए आदमी पर कि हम बहुत जल्दी ही
उस आदमी की हत्या भी कर देते हैं। हम ज्यादा देर उसे बर्दाश्त नहीं करते।<br />
<br />
पुस्तक ''मैं मृत्यु सिखाता हूँ '' से </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
</span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.oshoquotes.net/wp-content/uploads/2009/12/F0678.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="220" src="http://www.oshoquotes.net/wp-content/uploads/2009/12/F0678.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">थोडा रुको और विचार करो।<br />
तुम मार्ग पाना चाहते हो, या तुम्हारे मन में ऊंची स्थिति प्राप्त करने,
ऊंचे चढ़ने और एक विशाल भविष्य निर्माण करने के स्वप्न हैं, सावधान !<br />
मार्ग के लिए ही मार्ग को प्राप्त करना है—तुम्हारे ही चरण उस पर चलेंगे, इसलिए नहीं।<br />
<br />
अपने भीतर लौटकर मार्ग की शोध करो।<br />
बाह्य जीवन में हिम्मत से आगे बढ़कर मार्ग की शोध करो।<br />
<br />
जो मनुष्य साधना-पथ में प्रविष्ठ होना चाहता है,<br />
उसको अपने समस्त स्वभाव को बुद्धिमत्ता के साथ उपयोग में लाना चाहिए।<br />
प्रत्येक मनुष्य पूर्णरूपेण स्वयं अपना मार्ग, अपना सत्य, और अपना जीवन है।<br />
और इस प्रकार उस मार्ग को ढूंढ़ो। उस मार्ग को जीवन और अस्तित्व के नियमों,
प्रकृति के नियमों एवं पराप्राकृतिक नियमों के अध्ययन के द्वारा ढूंढ़े।<br />
ज्यों-ज्यों तुम उसकी उपासना और उसका निरीक्षण करते जाओगे,<br />
उसका प्रकाश स्थिर गति से बढ़ता जाएगा।<br />
तब तुम्हें पता चलेगा कि तुमने मार्ग का प्रारंभिक छोर पा लिया है। और जब मार्ग का अंतिम छोर पा लोगे,<br />
तो उसका प्रकाश एकाएक अनंत प्रकाश का रूप धारण कर लेगा।<br />
उस भीतर के दृश्य से न भयभीत होओ और न आश्चर्य करो। उस धीमें प्रकाश पर अपनी दृष्टि रखो। तब वह प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ेगा<br />
<br />
लेकिन अपने भीतर के अंधकार से सहायता लो और समझो कि जिन्होंने प्रकाश देखा ही नहीं है,<br />
वे कितने असहाय हैं और उनकी आत्मा कितने गहन अंधकार में है !<br />
तेरहवां सूत्र ‘मार्ग की शोध करो। थोड़ा रुको और विचार करो। तुम मार्ग पाना
चाहते हो, या तुम्हारे मन में ऊंची स्थिति प्राप्त करने, ऊंचे चढ़ने और एक
विशाल भविष्य निर्माण करने के स्वप्न हैं। सावधान ! मार्ग के लिए ही मार्ग
को प्राप्त करना है—तुम्हारे ही चरण उस पर चलेंगे, इसलिए नहीं।’<br />
<br />
इस सूत्र में बहुत सी बातें समझने जैसी हैं। पहली बात, मार्ग मिला हुआ नहीं
है। उसकी खोज करनी है। यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति इस भ्रांति में है कि
मार्ग मिला हुआ है। और सारी दुनिया में धर्म को नष्ट करने में अगर किसी बात
ने सबसे ज्यादा सहायता पहुंचाई है, तो वह इस भ्रांति में है कि वह मार्ग
मिला हुआ है।<br />
<br />
जन्म के साथ मार्ग नहीं मिलता, लेकिन सभी धर्मों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है
कि जन्म के साथ वे धर्म भी आपको दे देते हैं ! माँ के दूध के साथ धर्म भी
दे दिया जाता है ! बच्चा जब होता है अबोध, और कुछ न चिंता होती है, न कोई
मनन होता है, न कोई समझ होती है, तभी गहरे अचेतन में हम मार्ग को डाल देते
हैं ! मां-बाप अपने मार्ग को डाल देते हैं ! उनका भी वह मार्ग नहीं है ! वह
भी उनके मां-बाप ने उनमें डाल दिया है। तो आप हिंदू की तरह पैदा होते हैं,
मुसलमान की तरह, जैन की तरह, ईसाई की तरह। आप जन्म के साथ किसी मार्ग से
जुड़ जाते हैं, जोड़ दिए जाते हैं।<br />
कोई व्यक्ति न हिंदू पैदा होता है, न मुसलमान। न हो सकता है। हिंदू घर में
पैदा हो सकता है, लेकिन हिंदू कोई भी पैदा नहीं हो सकता। मुसलमान घर में
पैदा हो सकता है, लेकिन मुसलमान पैदा नहीं हो सकता। आदमी पैदा हो सकता है,
जब उसके पास कोई धर्म, कोई मार्ग नहीं होता है। मार्ग-मां-बाप, परिवार,
समाज, जाति, बच्चे के ऊपर थोप देते हैं। और वे थोपने में जल्दी करते हैं,
क्योंकि अगर बच्चे होश में आ जाए, तो वह थोपने में बाधा डालेगा। इसलिए
बेहोशी में थोपा जाता है।<br />
<br />
सभी धर्म बच्चों की गर्दन पकड़ने में बड़ी जल्दी करते हैं। जरा सी देर—और
भूल हो जाएगी। और एक बार बच्चा अगर अचेतन की अवस्था से चेतन में आ गया, होश
सम्हाल लिया, तो फिर आप धर्म को थोप ही न पाएंगे। फिर तो बच्चा अपनी ही
खोज करेगा। और हो सकता है कि हिंदू के घर को लगे कि ईसाई मार्ग उसके लिए
है। और ईसाई घर के बच्चे को लगे कि हिन्दू मार्ग उसके लिए है। बड़ी
अस्तव्यस्तता हो जाएगी। वैसी अस्तव्यस्तता न हो जाए, मेरा बेटा मेरे धर्म
को छोड़ कर न चला जाए, तो अचेतन में हम अपराध करते हैं, हम बच्चे की गर्दन
को जकड़ देते हैं संस्कारों से। मनुष्य ने अब तक जो बड़े से बड़े पाप किए
हैं, उनमें से यह सबसे बड़ा पाप है।<br />
<br />
इसे मैं क्यों सबसे बड़ा पाप कहता हूँ ? क्योंकि इसका यह अर्थ हुआ कि हमने
बच्चे को एक झूठा धर्म दे दिया है, जो उसका चुनाव नहीं है। और धर्म कुछ ऐसी
बात है कि जब तक आप न चुनें, तब तक सार्थक नहीं होगा। जब आप ही चुनते हैं,
अपने प्राणों की खोज से, पीड़ा से, प्यास से, तो आप ही धार्मिक होते हैं।
यह दूसरों का दिया हुआ धर्म ऊपर-ऊपर रह जाता है। और इसके कारण आपकी अपनी
खोज में बाधा पड़ती है।<br />
<br />
इसलिए देखें, जब बुद्ध जीवित होते हैं, या महावीर होते हैं, या मोहम्मद
जीवित होते हैं, या ईसा—तो उस सम जो धर्म का प्रकाश होता है और जो लोग उनके
पास आते हैं, उनके जीवन में जैसी क्रांति घटित होती है, फिर बाद में वह
गति मद्धिम होती चली जाती है। क्योंकि बुद्ध के पास जो लोग आकर दीक्षित
होते हैं, वह उनका खुद का चुनाव है कि वे बौद्ध हो रहे हैं। सोच-विचार से,
अनुभव से, साधना से, उन्हें लगा है कि बुद्ध का मार्ग ठीक है, तो वे बुद्ध
के पीछे आ रहे हैं। यह उनका निजी चुनाव है, यह उनका अपना समर्पण है। यह
प्रतिबद्दता किसी और ने नहीं दी है, उन्होंने खुद ली है। तब मजा और ही है।
तब वे अपने पूरे जीवन को दांव पर लगा देते हैं। क्योंकि जो उन्हें ठीक लगता
है, उस पर जीवन दांव पर लगाया जा सकता है। लेकिन उनके बच्चे पैदायशी बौद्ध
होंगे। उनका चुनाव नहीं होगा। उन्होंने खुद निर्णय न लिया होगा। उन्होंने
सोचा भी न होगा। बौद्ध धर्म उनकी छाती पर बिठा दिया जाएगा।<br />
<br />
ध्यान रहे, जो आप अपनी मर्जी से चुनते हैं, अगर नर्क भी चुनें अपनी मर्जी
से तो वह स्वर्ग होगा। और अगर स्वर्ग भी जबरदस्ती आपके ऊपर रख दिया जाए तो
वह नर्क हो जाएगा। जबर्दस्ती में नर्क है। अगर ऊपर से कोई चीज थोप दी जाए,
तो वह आनंद भी अगर हो, तो भी दुख हो जाएगा। थोपने में दुख हो जाता है। और
जो चीज थोपी जाती है, वह कारागृह बन जाती है।<br />
तो न तो आज जमीन पर हिंदू है, न मुसलमान, न बौद्ध। आज कैदी हैं। कोई हिंदू
कैदखाने में है, कोई मुसलमान कैदखाने में है, कोई जैन कैदखाने में है।
कैदखाना इसलिए कहता हूं कि आपने कभी सोचा ही नहीं कि आपको जैन होना है, कि
हिंदू होना है, कि मुसलमान होना है। आपने चुना नहीं है। यह आपकी गुलामी है।
लेकिन गुलामी इतनी सूक्ष्म है कि कि आपको पता नहीं चलता, क्योंकि आपके होश
में नहीं डाली गई है। जब आप बेहोश थे, तब यह गुलामी, यह जंजीर आपके हाथ
में पहना दी गई। जब आपको होश आया तो आपने जंजीर अपने हाथ में ही पाई। और
इसे जंजीर भी नहीं कहा जाता है। इसे आपके मां-बाप ने, परिवार ने, समाज ने
समझाया है कि आभूषण है ! आप इसको सम्हालते हैं, कोई तोड़ न दे। यह आभूषण है
और बड़ा कीमती है, आप इसके लिए जान लगा देंगे।<br />
<br />
एक बड़े मजे की घटना घटती है। अगर हिंदू धर्म पर खतरा हो तो आप अपनी जान
लगा सकते हैं। आप हिंदू धर्म, मुसलमान या ईसाई, किसी भी धर्म के लिए मर
सकते हैं, लेकिन जी नहीं सकते। अगर आपसे कहा जाए कि जीवन हिंदू की तरह जीओ,
जीने को राजी नहीं हैं। लेकिन अगर झगड़ा-फसाद हो तो आप मरने के लिए राजी
हैं ! वह आदमी हिंदू धर्म के लिए मरने को राजी है, जो हिंदू धर्म के लिए
जीने के लिए कभी राजी नहीं था ! क्या मामला है ?<br />
कहीं कोई रोग हैं, कहीं कोई बीमारी है। जीने के लिए हमारी कोई उत्सुक्ता
नहीं है। मार-काट के लिए हम उत्सुक हो जाते हैं। क्योंकि जैसे ही कोई हमारे
धर्म पर हमला करता है, हमें होश ही नहीं रह जाता। वह हमारा बेहोश हिस्सा
है, जिस पर हमला किया जा रहा है।<br />
<br />
इसलिए जब भी हिंदू-मुसलमान लड़ते हैं, तो आप यह मत समझना कि वे होश में लड़
रहे हैं। वे तो बेहोशी में लड़ रहे है। बेहोशी में वे हिंदू-मुसलमान हैं,
होश में नहीं है। इसलिए कोई भी उनके अचेतन मन को चोट कर दे, तो बस पागल हो
जाएंगे। न हिंदू लड़ते हैं, न मुसलमान लड़ते हैं—पागल लड़ते हैं। कोई हिंदू
मार्का पागल है। कोई मुसलमान मार्का पागल है। या मार्कों का फर्क हैं,
लेकिन पागल है।<br />
और आपके भीतर धर्म उस समय डाला जाता है, जब तर्क की कोई क्षमता नहीं होती।<br />
इसलिए मैं कहता हूं कि यह सबसे बड़ा पाप है। और जब तक यह पाप बंद नहीं
होता, जब तक हम प्रत्येक व्यक्ति को अपने मार्ग की खोज की स्वतंत्रता नहीं
देते, तब तक दुनिया धार्मिक नहीं हो सकेगी। क्योंकि धार्मिक होने के लिए
स्वयं का निर्णय चाहिए।<br />
<br />पुस्तक ''साधना सूत्र आत्मा का कमल'' से </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://health.virtualpune.com/images/osho-four.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://health.virtualpune.com/images/osho-four.jpg" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">जीवन के गणित के बहुत अदभुत सूत्र हैं।
पहली अत्यंत रहस्य की बात तो यह है कि जो निकट है वह दिखाई नहीं पड़ता, जो
और भी निकट है, उसका पता भी नहीं चलता। और मैं जो स्वयं हूं उसका तो स्मरण
भी नहीं आता। जो दूर है वह दिखाई पड़ता है। जो और दूर है और साफ दिखाई
पड़ता है। जो बहुत दूर है वह निमंत्रण भी देता है, बुलाता भी है, पुकारता
भी है।<br />
<br />
सूरज बुला रहा, चांद बुला रहा है आदमी को, तारे बुला रहें । जगत की सीमाएं
बुला रही हैं, एवरेस्ट की चोटियां बुलाती हैं, प्रशांत महासागर की गहराइयां
बुलाती हैं। लेकिन आदमी के भीतर जो है वहां की कोई पुकार सुनाई नहीं
पड़ती।<br />
<br />
मैंने सुना है, सागर की मछलियां एक-दूसरे से पूछती हैं, सागर कहां है ?
सागर में ही वे पैदा होती हैं, सागर में ही जीती हैं और सागर में ही मिट
जाती हैं। लेकिन वे मछलियां पूछती हैं कि सागर कहां है ? वे आपस में विवाद
भी करती हैं कि सागर कहां है ? मछलियों में ऐसी कथाएं भी हैं कि उनके
किन्हीं पुरखों ने कभी सागर को देखा था। मछलियों में ऐसे महात्मा हो चुके
हैं जिनकी स्मृतियां रह गई हैं, जिन्होंने सागर का अनुभव किया था। और बाकी
मछलियां सागर में ही जीती हैं, सागर में ही रहती हैं, सागर में ही मरती
हैं। और उन पुरखों की याद करती हैं जिन्होंने सागर का दर्शन किया था।<br />
<br />
मैंने सुना है, सूरज की किरणें आपस में पूछती हैं दूसरी किरणों से—सच में
प्रकाश को देखा है ? सुनते ही कहीं प्रकाश है और सुनते हैं कहीं सूरज है !
लेकिन कहां है ? कुछ पता नहीं। और किरणों में भी कथाएं हैं उनके पुरखों की,
जिन्होंने सूरज को देखा था, और प्रकाश को अनुभव किया था। धन्य थे वे लोग,
धन्य थीं वे किरणें, जिन्होंने प्रकाश को अनुभव किया और अभागी हैं वे
किरणें जो विचार कर रही हैं, और दुखी हैं, और पीड़ित हैं, और परेशान हैं।<br />
<br />
मछलियों की बात समझ में आ जाती है कि बड़ी पागल हैं। और किरणों की बात भी
समझ में आ जाती है कि बड़ी पागल हैं, लेकिन आदमी की बात आदमी को समझ में
नहीं आती कि हम भी बड़े पागल हैं। ईश्वर में ही उठना है, उसमें ही विलीन हो
जाना है। और हम खोजते हैं और पूछते हैं ईश्वर कहां है ? और हम उन पुरखों
को याद करते हैं जिन्होंने ईश्वर का दर्शन किया। और हम उन लोगों की
मूर्तियां बना कर मंदिरों में स्थापित किए हैं जिन्होंने ईश्वर को जाना।
फिर मछलियों पर हंसना ठीक नहीं है। फिर मछलियों पर व्यंग्य करना ठीक नहीं
है। फिर मछलियां भी ठीक ही पूछती हैं कि सागर कहां है ?<br />
<br />
स्वाभाविक ही है, मछलियों को सागर का पता न चलता हो। क्योंकि जिससे हम कभी
बिछुड़ते ही नहीं उसका पता ही नहीं चलता। अगर कोई आदमी जन्म से ही स्वस्थ
हो मरने तक तो उसे स्वास्थ्य का कभी भी पता नहीं चलेगा। स्वास्थ्य का पता
चलने के लिए बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि बीमार होना जरूरी है। स्वास्थ्य
से टूटें, अलग हो जाएं, तो ही स्वास्थ्य का पता चलता है।<br />
<br />
और मैंने तो सुना है, और भगवान न करे कि वह बात आपके संबंध में भी सच हो।
मैंने सुना है कि बहुत से लोग जब मरते हैं तभी उनको पता चलता है कि वे जीते
थे। क्योंकि जब तक मरें नहीं तब तक जीवन का कैसे पता चल सकता है। जीवन के
गणित का पहला रहस्यपूर्ण सूत्र यह है कि यहां जो सबसे ज्यादा निकट है वह
दिखाई नहीं पड़ता। यहां जो उपलब्ध ही है उसका पता ही नहीं चलता। जो दूर है
उसकी खोज चलती है। जो नहीं मिला है उसके लिए हम तड़फते और भागते हैं। और जो
मिला ही हुआ है उसे भूल जाते हैं क्योंकि उसे याद करने का मौका ही नहीं
आता है।<br />
<br />
परमात्मा का अर्थ, प्रभु का अर्थ है वह जिससे हम आते हैं और जिसमें हम चले
जाते हैं। कोई नास्तिक भी ऐसे प्रभु को इनकार नहीं कर सकता, क्योंकि
निश्चित ही हम कहीं से आते हैं और कहीं चले जाते हैं। सागर पर लहर उठती है,
और फिर वापस सागर में खो जाती है। तो लहर जहां से आती है और जहां खो जाती
है वह भी तो होगा ही; और जब लहर नहीं थी तब भी था और जब लहर थी तब भी था और
जब लहर नहीं रह जाएगी तब भी होगा। तभी तो लहर उससे उठ सकती है और उसी में
खो सकती है। नास्तिक भी यही कह सकते हैं कि जहां से हम आते हैं वहीं हम खो
जाते हैं। और कहीं खोएंगे भी कैसे। लहर सागर से उठेगी तो सागर में ही तो
विलीन होगी। और तूफान और आंधियां हवाओं में उठेंगी तो हवाओं में ही तो बिखर
जाएंगी। और वृक्ष मिट्टी से पैदा होंगे,फूल खिलेंगे तो फिर बिखरेंगे कहां ?
खोएंगे कहां ? वापस मिट्टी में गिरेंगे और सो जाएंगे।<br />
<br />
जीवन का दूसरा सूत्र आपको कहना चाहता हूं–जीवन के गणित का–वह यह है कि जहां
से हम आते हैं, वहीं हम वापस लौट जाते हैं। उसके क्या नाम दें, जहां से हम
आते हैं और जहां हम वापस लौटे जाते हैं ? कोई नाम काम चलाने के लिए दे
देना जरूरी है। उसी को प्रभु कहूंगा, जहां से हम आते हैं और जहां हम लौट
जाते हैं। इसलिए मेरे प्रभु से किसी का भी झगड़ा नहीं हो सकता इस जमीन पर। न
कभी हुआ है, न हो सकता है। क्योंकि प्रभु से मैं इतना ही मतलब ले रहा
हूं–दि ओरिजिनल सोर्स, वह जो मूल आधार है। कहीं से तो हम आते ही होंगे। यह
सवाल नहीं है कि कहां से ? कहीं से हम आते ही होंगे और कहीं हम खो जाते
होंगे। और जहां से आना होता है, वहीं खोना होता है। क्योंकि जिससे हम उठते
हैं, उसी में बिखर सकते हैं। हम और कहीं बिखर नहीं सकते। असल में जीवन
जिससे हमने पाया है उसी को लौटा देना पड़ता है।<br />
<br />
प्रभु मैं उसको कहूंगा, इन आने वाले दिनों में उसकी व्याख्या कर लेनी ठीक
है, अन्यथा पता नहीं आप प्रभु से क्या सोचें। उसकी व्याख्या कर लेनी ठीक
है। प्रभु मैं उसको कहूंगा, वह जो मूल आधार है, मूल-स्रोत है। जहां से सब
निकलता है और जहां सब खो जाता है। ऐसा प्रभु का कोई व्यक्तित्व नहीं हो
सकता, कोई आकृति, कोई रूप, कोई आकार नहीं हो सकता। क्योंकि जिससे सब आकार
निकलते हों उसका खुद का आकार नहीं हो सकता है। अगर उसका भी अपना आकार हो तो
उससे फिर दूसरे आकार न निकल सकेंगे।<br />
<br />
आदमी से आदमी पैदा होता है, क्योंकि आदमी का एक आकार है। और आम के बीज से
आम पैदा होता है, क्योंकि आम की बीज एक आकार है। पक्षियों से पक्षी पैदा
होते हैं। सब चीजें अपने आकार से पैदा होती हैं। लेकिन ईश्वर से सब पैदा
होता है इसलिए ईश्वर का कोई आकार नहीं हो सकता। वह आदमी के आकार का नहीं हो
सकता है।<br />
<br />
यह आदमी की ज्यादती है, अन्याय है कि अपने आकार में उसने भगवान की
मूर्तियां बना रखी हैं। यह आदमी का अहंकार है कि उसने भगवान को भी अपनी
शक्ल में बनाकर रख दिया है। यह आदमी का दंभ है कि वह सोचता है भगवान भी
होगा तो उसे आदमी जैसा ही होना चाहिए। फिर आदमी भी बहुत तरह के हैं, इसलिए
बहुत तरह के भगवान हैं। चीनियों के भगवान के गाल की हड्डी निकली हुई होगी,
नाक चपटी होगी। चीनी सोच ही नहीं सकते, भगवान की नाक और चपटी न हो। और
नीग्रो के भगवान के ओंठ बड़े चौड़े होंगे और बाल घुंघराले होंगे और शक्ल
काली होगी। नीग्रो सोच ही नहीं सकता कि गोरा भी भगवान हो सकता है। गोरा और
भगवान ? गोरा शैतान हो सकता है। गोरा भगवान कैसे हो सकता है ?<br />
बहुत तरह के लोग हैं इसलिए बहुत तरह की शक्लों में भगवान का निर्माण कर लिया है। <br />
<br />
<br />
पुस्तक ''जीवन ही है प्रभु'' से</span></span></div>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<div class="separator" style="clear: both;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.oshoquotes.net/wp-content/uploads/2011/08/Osho-on-Witnessing-technique.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="http://www.oshoquotes.net/wp-content/uploads/2011/08/Osho-on-Witnessing-technique.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"> कहा है कबीर ने कि कभी हाथ से काग़ज़ और स्याही छुई नहीं-‘मसी कागद छुओ न हाथ।’<br />
ऐसा अपढ़ आदमी, जिसे दस्तख़त करने भी नहीं आते, इसने परमात्मा के परम ज्ञान
को पा लिया-बड़ा भरोसा बढ़ता है। तब इस दुनिया में अगर तुम वंचित हो तो
अपने ही कारण वंचित हो, परिस्थिति को दोष मत देना। जब भी परिस्थितियों को
दोष देने का मन में भाव उठे, कबीर का ध्यान करना। कम-से-कम मां-बाप का तो
तुम्हें पता है, घर-द्वार तो है, सड़क पर तो पैदा नहीं हुए। हस्ताक्षर तो
कर ही लेते हो। थोड़ी-बहुत शिक्षा हुई, हिसाब-हिसाब कर लेते हो। वेद कुरान
गीता भी थोड़ी पढ़ी है। न सही बहुत पंडित, छोटे-मोटे पंडित तो तुम भी हो,
तो जब भी मन होने लगे परिस्थिति को दोष देने का, कि पहुंच गए होंगे बुद्ध,
सारी सुविधा थी उन्हें, मैं कैसे पहुंचूं, तब कबीर का ध्यान करना। बुद्ध के
कारण जो असंतुलन पैदा हो जाता है कि लगता है हम न पहुंच सकेंगे-कबीर तराजू
के पलड़े को जगह पर ले आते हैं। बुद्ध से ज़्यादा कारगर हैं कबीर। बुद्ध
थोड़े-से लोगों के काम के हो सकते हैं। कबीर राजपथ हैं। बुद्ध का मार्ग
बड़ा संकीर्ण है; उसमें थोड़े ही लोग पा सकेंगे, पहुंच सकेंगे।<br />
<br />
बुद्ध की भाषा भी उन्हीं की है-चुने हुए लोगों की। एक-एक शब्द बहुमूल्य है;
लेकिन एक-एक शब्द सूक्ष्म है। कबीर की भाषा सबकी भाषा है-वे पढ़े-लिखे
आदमी की भाषा है। अगर तुम कबीर को न समझ पाए, तो तुम कुछ भी न समझ पाओगे।
कबीर को समझ लिया, तो कुछ समझने को बचता नहीं। और तुम कबीर को जितना
समझोगे, उतना ही तुम पाओगे कि बुद्धत्व का कोई भी संबंध परिस्थिति से नहीं।
बुद्धत्व तुम्हारी भीतर की अभीप्सा पर निर्भर है-और कहीं भी घट सकता है;
झोपड़े में, महल में, बाज़ार में, हिमालय पर; पढ़ी लिखी बुद्धि में,
गैर-पढ़ी लिखी बुद्धि में; गरीब को, अमीर को; अपढ़ को; कोई परिस्थिति का
संबंध नहीं है।<br />
<br />
ये जो वचन इस समाधि शिविर में हम कबीर के लेने जा रहे हैं, इनका शीर्षक
है:‘सुनो भाई साधो’। और कबीर अपने हर वचन में हम कबीर को लेने जा रहे हैं,
इनका शीर्षक है: ‘सुनो भाई साधो’। और कबीर अपने हर वचन में कहीं-न-कहीं
साधु को ही संबोधित करते हैं। इस संबोधन को थोड़ा समझ लें, फिर हम उनके
वचनों में उतरने की कोशिश करें।<br />
मनुष्य तीन तरह से पूछ सकता है। एक कुतूहल होता है-बच्चों जैसा। पूछने के
लिए पूछ लिया, कोई ज़रूरत न थी, कोई प्यास, भी न थी, कोई प्रयोजन भी न था।
ऐसे ही मन की खुजली थी। उठ गया प्रश्न, पूछ लिया। उत्तर मिले तो ठीक दुबारा
पूछने का भी खयाल नहीं आता-छोटे बच्चे जैसा पूछते हैं। रास्तें से गुज़र
रहे हैं, पूछते हैं, यह क्या है ? वृक्ष क्या हैं ? हरे क्यों हैं ? सूरज
सुबह क्यों निकलता है, रात को क्यों नहीं निकलता ?<br />
<br />
अगर तुमने उत्तर नहीं दिया तो कोई उत्तर सुनने के लिए उनकी प्रतीक्षा नहीं
है। जब तुम उत्तर दे रहे हो, तब तक वे दूसरे प्रश्न पूछने चले गए। तुम
उत्तर भी न दो, तो भी कुछ ज़ोर न डालेंगे कि उत्तर दो। तुम दो या न दो, यह
असंगत है, प्रसंग के बाहर है। बच्चा पूछने के लिए पूछ रहा है। बच्चा केवल
बुद्धि का अभ्यास कर रहा है; जैसा पहली दफ़े बच्चा चलता है, तो बार-बार
चलने की कोशिश करता है-कहीं पहुंचने के लिए नहीं, क्योंकि अभी बच्चे की
क्या मंजिल है ! अभी तो चलने में ही मज़ा लेता है। अभी तो पैर चला लेता है
इससे ही बड़ा प्रसन्न मंजिल है ! अभी तो चलने में ही मज़ा लेता है। अभी तो
पैर चला लेता है, इससे ही बड़ा प्रसन्न होता है; नाचता है कि मैं भी चलने
लगा। अभी चलने का कोई संबंध मंज़िल से नहीं है, अभी चलना अपने-आप में ही
अभ्यास है। ऐसे ही बच्चा जब बोलने लगता है तो सिर्फ़ बोलने के लिए बोलता
है। अभ्यास करता है। उसके बोलने में कोई अर्थ नहीं है। पूछना जब सीख लेता
है, तो पूछने के लिए पूछता है। पूछने में कोई प्रश्न नहीं है, सिर्फ कुतूहल
है। से पूछते हैं। मिले उत्तर ठीक, न मिले उत्तर ठीक। और कोई भी उत्तर
मिले, उनके जीवन में उस उत्तर से कोई फर्क न होगा। तुम ईश्वर को मानते रहो,
तो तुम वैसे ही जिओगे; तुम ईश्वर को न मानो, तो भी तुम वैसे ही जिओगे।<br />
<br />
यह बड़ी हैरानी की बात है कि नास्तिक और आस्तिक के जीवन में कोई फ़र्क नहीं
होता। तुम जीवन को देख के बता सकते हो कि यह आदमी आस्तित्व है या नास्तिक
है। नहीं, तुम्हें पूछना पड़ता है कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक ! आस्तिक और
नास्तिक के व्यवहार में रत्तीभर का कोई फ़र्क नहीं होता। वैसा ही बेईमान
यह, वैसा ही दूसरा। वे सब चचेरे-मौसेरे भाई हैं। कोई अंतर नहीं है। इस
ईश्वर को मानता है, एक ईश्वर को नहीं मानता है। इतनी बड़ी मान्यता और जीवन
में रत्ती-भर भी छाया नहीं लाती ! कहीं कोई रेखा नहीं खिंचती ! दुकानदारी
में वह उतना ही बेईमान है जितना दूसरा; बोलने में उतना ही झूठा है जितना
दूसरा। न इसका भरोसा किया जा सकता है न उसका। क्या जीवन में कोई अंतर नहीं
आता आस्था से ? तो आस्था दो कौड़ी की है। तो आस्था कुतूहल से पैदा हुई
होगी; वह बचकानी है। ऐसी बचकानी आस्था को छोड़ देना चाहिए।<br />
<br />
सबसे सतह पर कुतूहल है।<br />
दूसरे, थोड़ी गहराई बढ़े, तो जिज्ञासा पैदा होती है। जिज्ञासा सिर्फ़ पूछने
के लिए नहीं है-उत्तर की तलाश है; लेकिन तलाश बौद्धिक है, आत्मिक नहीं है।
तलाश विचार की है, जीवन की नहीं है। जिज्ञासा से भरा हुआ आदमी, निश्चित ही
उत्सुक है, और चाहता है कि उत्तर मिले; लेकिन उत्तर बुद्धि में संजो लिया
जाएगा, स्मृति का अंग बनेगा, जानकारी बढ़ेगी ज्ञान बढ़ेगा-आचारण नहीं, जीवन
नहीं। उस आदमी को बदलेगा नहीं। वह आदमी वैसा ही रहेगा-ज़्यादा जानकार हो
जाएगा।<br />
जिज्ञासा पैदा होती है बुद्धि से।<br />
<br />
फिर एक तीसरा तल है, जिसको मुमुक्षा कहा है। मुमुक्षा का अर्थ है; जिज्ञासा
सिर्फ़ बुद्धि की नहीं है, जीवन की है। इसलिए नहीं पूछ रहे हैं कि थोड़ा
और जान लें; इसलिए पूछ रहे है कि जीवन दांव पर लगा है। इसलिए पूछ रहे हैं
कि उत्तर पर निर्भर होगा कि हम कहां जाएं, क्या करें, कैसे जिएं। एक प्यासा
आदमी पूछता है, पानी कहां है ? यह कोई जिज्ञासा नहीं है। मरुस्थल में तुम
पड़े हो, प्यास जगती है और तुम पूछते हो, पानी कहां है ? उस क्षण तुम्हारा
रोआं-रोआं पूछता है, बुद्धि नहीं पूछती। उस क्षण तुम यह नहीं जानना चाहते
कि पानी की वैज्ञानिक परिभाषा क्या है। उस समय कोई तुमसे कहे कि पानी-पानी
क्या लगा रखा है, ‘एच टू ओ’ विज्ञान का उपयोग करो, फार्मूला ज़ाहिर है कि
उद्जन, एक मात्रा ऑक्सीजन-‘एच टू ओ’। लेकिन जो आदमी प्यासा है, उसे इससे
कोई फर्क नहीं पड़ता कि पानी कैसे बनता है। यह सवाल नहीं है, पानी क्या है,
यह भी सवाल नहीं है। यह कोई जिज्ञासा नहीं है पानी के संबंध में जानकारी
बढ़ाने के लिए। जानकारी बढ़ाने के लिए यहां जीवन दांव पर लगा है; अगर पानी
नहीं मिलता घड़ी-भर और तो मृत्यु होगी। पानी पर ही जीवन निर्भर है। मृत्यु
और जीवन का सवाल है।<br />
<br />
मुमुझा का अर्थ है: जिज्ञासा केंद्र पर पहुंच गई। अब हमारे लिए यह सवाल ऐसा
नहीं है कि ईश्वर है या नहीं, पूछ लिया बच्चों-जैसा या पूछ लिया
दार्शनिकों-जैसा एक बुद्धिगत सवाल, बुद्धिगत उत्तर देखने में लग गए,
शास्त्रों में गए। जिसको प्यास लगी है, वह शास्त्रों में नहीं खोजेगा कि
पानी का स्वरूप क्या है ! जिसको प्यास लगी है, वह सरोवर चाहता है जिसको
प्यास लगी है, वह ऐसा ज्ञानी चाहता है, जिसको पी के वह अपनी प्यास को बुझा
ले। ज्ञान नहीं चाहता, ज्ञानी को चाहता है।<br />
मुमुक्ष गुरु को खोजता है। जिज्ञासु शास्त्र को खोजता है। कुतूहली किसी से भी पूछ लेता है।<br />
कबीर उसको साधु कहते हैं, जो मुमुक्षु है। इसलिए उनका हर वचन इस बात को
ध्यान में रख के कहा गया है: ‘सुनो भाई साधो’! साधु का मतलब है, जो साधना
के लिए उत्सुक है; जो साधक है। साधु का अर्थ है: जो अपने को बदलने के लिए,
शुभ करने के लिए, सत्य करने के लिए आतुर है-जो साधु होने को उत्सुक है।<br />
<br />
‘साधु’ शब्द बड़ा अद्भुत है। विकृत हो गया बहुत उपयोग से। साधु का अर्थ है :
सीधा-सादा, सरल-सहज। ‘साधु’ शब्द की बड़ी भाव-भंगिमाएं हैं। और सीधा-सादा,
सरल-सहज-वही साधना है।<br />
इसलिए कबीर कहते हैं: साधो, सहज समाधि भली ! सहज हो रहो, सरल हो जाओ।<br />
थोड़ा समझ लेना ज़रूरी है। क्योंकि हम बहुत से लोगों को जानते हैं, जो सरल
होने की चेष्टा में ही बड़े जटिल हो गए हैं; सरल होने की ही चेष्टा में चले
थे, और उलझ गए हैं।<br />
<br />
मेरे एक मित्र हैं। लोग उन्हें साधु कहते हैं। मैं उन्हें असाधु कहता हूं,
क्योंकि वे सीधे-सादे ज़रा भी नहीं हैं। अगर सुबह उन्हें दूध दो, तो वे
पहले पूछते हैं कि गाय का है कि भैंस, का ! क्योंकि भैंस का दूध वे नहीं
पीते। शुद्ध हिंदू हैं; गाय का ही पीते हैं। और गाय का ही नहीं पीते, सफ़ेद
गाय का पीते हैं। किसी शास्त्र से उन्होंने खोज लिया है कि सफेद गाय का
दूध शुद्घतम होता है। वह भी कुछ घड़ी पहले लगा हो तो पीते हैं। क्योंकि
इतनी घड़ी देर तक दूध रह जाए, तो उसमें विकृति का समावेश हो जाता है। कुछ
घड़ी पहले का तैयार घी ही लेते हैं; क्योंकि इतनी देर ज़्यादा रह जाए तो
शास्त्रों में उल्लेख है कि घी विकृत हो जाता है। इस तरह का पानी पीते हैं
कि जो भी भर के लाए, वह गीले वस्त्र पहने हुए भर के लाए, ताकि बिलकुल शुद्ध
हो। क्योंकि सूखे वस्त्रों का क्या भरोसा, किसी ने छुए हों, धोबी धोके
लाया हो, लाण्ड्री में गए हों-तो ठीक नहीं। वहीं कुएं पर स्नान करो, वस्त्र
पहने हुए, ताकि वस्त्र भी धुल जाएं, तुम भी धुल जाओ, फिर पानी भर के ले
आओ। ब्राह्मण ने भोजन बनाया हो तो ही लेते हैं। यह सब चेष्टा में वे चौबीस
घंटे व्यस्त हैं, चौबीस घंटे में उन्हें भगवान के लिए एक क्षण बचता नहीं,
भोजन सारा समय ले लेता है। निकले थे सरल होने, वे इतने जटिल हो गए हैं कि
बड़ी कठिनाई है। जीना ही मुश्किल हो गया है। और जिसके घर में पहुँच जाएं,
वह भी प्रार्थना करने लगता है परमात्मा से-उसने कभी प्रार्थना न की हो
भला-कि कब इनसे छुटकारा हो।<br />
<br />
अगर साधु आपके घर रुक जाए तो आप एक ही प्रार्थना करते हैं कि अब ये जल्दी
जाएं, क्योंकि तीन बजे रात वे उठ आते हैं। और वे नहीं उठते, पूरे घर को उठा
देते हैं। क्योंकि ऐसा शुभ कार्य ब्रह्ममुहूर्त में उठने का, वे खुद तो
करते ही हैं, लेकिन इतने ज़ोर से ओंकार का पाठ करते हैं कि आप सो नहीं
सकते। और आप उनसे यह भी नहीं कह सकते कि आप ग़लत कर रहे हैं, क्योंकि कुछ
ग़लत भी नहीं कह रहे हैं। ब्रह्ममुहूर्त में ओंकार की ध्वनि कर रहे हैं। तो
एक उपकार ही कर रहे हैं आपके ऊपर !<br />
सरलता की खोज में निकला हुआ आदमी भी जटिल हो जाता है। कहीं कुछ भूल हो रही है। सरलता को समझा नहीं गया।<br />
<br />पुस्तक ''गुरु गोविन्द दोऊ खड़े'' से
</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.oshoworld.com/onlinemag/jan12/img/Osho_on_the_Net/Osho.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="http://www.oshoworld.com/onlinemag/jan12/img/Osho_on_the_Net/Osho.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
<br />
नदी के किनारे रात के अंधेरे में, अपने साथी और सेवक मरदाना के साथ वे नदी
तट पर बैठे थे। अचानक उन्होंने वस्त्र उतार दिए। बिना कुछ कहे वे नदी में
उतर गए। मरदाना पूछता भी रहा, क्या करते हैं ? रात ठंडी है। अंधेरी है !
दूर नदी में वे चले गए। मरदाना पीछे-पीछे गया। नानक ने डुबकी लगाई। मरदाना
सोचता था कि क्षण-दो क्षण में बाहर आ जाएंगे। फिर वे बाहर नहीं आए।<br />
दस-पांच मिनट तो मरदाना ने राह देखी, फिर वह खोजने लग गया कि वे कहां खो
गए। फिर वह चिल्लाने लगा। फिर वह किनारे-किनारे दौड़ने लगा कि कहां हो ?
बोलो, आवाज दो ! ऐसा उसे लगा कि उसे नदी की लहर-लहर से एक आवाज आने लगी,
धीरज रखो, धीरज रखो। पर नानक की कोई खबर नहीं। वह भागा गांव गया, आधी रात
लोगों को जगा दिया। भीड़ इकट्ठी हो गई।<br />
<br />
नानक को सभी लोग प्यार करते थे। सभी को नानक में दिखाई पड़ती थी कुछ होने
की संभावना। नानक की मौजूदगी में सभी को सुंगध प्रतीत होती थी। फूल अभी
खिला नहीं था, पर कली भी तो गंध देती है। सारा गांव रोने लगा, भीड़ इकट्ठी
हो गई। सारी नदी तलाश डाली। इस कोने से उस कोने लोग भागने-दौड़ने लगे।
लेकिन कोई पता न चला।<br />
तीन दिन बीत गए। लोगों ने मान ही लिया कि नानक को कोई जानवर खा गया। डूब
गए, बह गए, किसी खाई-खड्डु में उलझ गए। मान ही लिया कि मर गए। रोना-पीटना
हो गया। घर के लोगों ने भी समझ लिया कि अब लौटने का कोई उपाय न रहा।<br />
और तीसरे दिन रात अचानक नानक नदी से प्रकट हो गए। जब वे नदी से प्रकट हुए तो जपुजी उनका पहला वचन है। यह घोषणा उन्होंने की।<br />
कहानी ऐसी है-कहता हूं, कहानी। कहानी का मतलब होता है, जो सच भी है, और सच
नहीं भी। सच इसलिए है कि वह खबर देती है सचाई की; और सच इसलिए नहीं है कि
वह कहानी है और प्रतीकों में खबर देती है। और जितनी गहरी बात कहनी हो, उतनी
ही प्रतीकों की खोज करनी पड़ती है।<br />
<br />
नानक जब तीन दिन के लिए खो गए नदी में तो कहानी है कि वे प्रकट हुए
परमात्मा के द्वार में। ईश्वर का उन्हें अनुभव हुआ। जाना आंखों के सामने
प्यारे को, जिसके लिए पुकारते थे। जिसके लिए गीत गाते थे, जो उनके हृदय की
धड़कन-धड़कन में प्यास बना था। उसे सामने पाया। तृप्त हुए। और परमात्मा ने
कहा, अब तू जा। और जो मैंने तुझे दिया है, वह लोगों को बांट। जपुजी उनकी
पहली भेंट है परमात्मा से लौट कर।<br />
यह कहानी है। इसके प्रतीकों को समझ लें। एक, कि जब तक तुम न खो जाओ, जब तक
तुम न मर जाओ तब तक परमात्मा से कोई साक्षात्कार न होगा। नदी में खोओ कि
पहाड़ में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन तुम नहीं बचने चाहिए। तुम्हारा
खो जाना ही उसका होना है। तुम जब तक हो तभी तक वह न हो पाएगा। तुम ही
अड़चन हो। तुम ही दीवाल हो। यह जो नदी में खो जाने की कहानी है।<br />
<br />
तुम्हें भी खो जाना पड़ेगा। तुम्हें भी डूब जाना पड़ेगा। तीन दिन लगते हैं।
इसलिए तो हम, जब आदमी मर जाता है, तो तीसरा मनाते हैं, तीसरा हम इसलिए
मनाते हैं कि मरने की घटना पूरी होने में तीन दिन लग जाते हैं। उतना समय
जरूरी है। अहंकार मरता है, एकदम से नहीं। कम से कम समय तीन दिन लेता है।
इसलिए कहानी में तीन दिन हैं, कि नानक तीन दिन नदी में खोए रहे। अहंकार
पूरा गल गया, मर गया। और पास-पड़ोस, मित्रों, प्रियजनों, परिवार के लोगों
को तो अहंकार ही दिखाई पड़ता है, तुम्हारी आत्मा तो दिखाई पड़ती नहीं,
इसलिए उन्होंने तो समझा कि नानक मर गए।<br />
जब भी कोई संन्यासी होता है, घर के लोग समझ लेते हैं, मर गया। जब भी कोई
उसकी खोज में जाता है, घर के लोग मान लेते हैं, खत्म हुआ। क्योंकि अब यह
वही तो न रहा। टूट गई पुरानी श्रृंखला। अतीत मिटा, अब नया हुआ। बीच में तीन
दिन की खाई है। इसलिए तीन दिन का प्रतीक है। तीन दिन बाद नानक लौट आए।<br />
जो भी खोता है वह लौट आता है, लेकिन नया हो कर लौटता है। जो भी जाता है उस
मार्ग पर, वापस आता है। लेकिन जा रहा था तब प्यासा था, आता है तब दानी हो
कर आता है। जाता था तब भिखारी था, आता है तब सम्राट हो कर आता है। जो भी
परमात्मा में लीन होता है, जाते समय भिक्षापात्र होता है, लौटते समय
अपरंपार संपदा होती है बांटने को।<br />
जपुजी पहली भेंट है।<br />
<br />
परमात्मा के सामने प्रकट होना, प्यारे को पा लेना, इन्हें तुम बिलकुल
प्रतीक को, भाषागत रूप से सच मत समझ लेना। क्योंकि कहीं कोई परमात्मा बैठा
हुआ नहीं है, जिसके सामने तुम प्रकट हो जाओगे। लेकिन कहना हो बात, तो और
कुछ कहने का उपाय भी नहीं है। जब तुम मिटते हो तो जो आंख के सामने होता है
वही परमात्मा है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है; परमात्मा निराकार शक्ति
है।<br />
तुम उसके सामने कैसे हो सकोगे ? जहां तुम देखोगे, वहीं वह है। जो तुम
देखोगे, वही वह है। जिस दिन आंख खुलेगी, सभी वह है। बस तुम मिट जाओ, आंख
खुल जाए।<br />
अहंकार तुम्हारी आंख में पडी हुई कंकड़ी है। उसके हटते ही परमात्मा प्रकट
हो जाता है। परमात्मा प्रकट ही था, तुम मौजूद न थे। नानक मिटे, परमात्मा
प्रकट हो गया। जैसे ही परमात्मा प्रकट हो जाता है, तुम भी परमात्मा हो गए।
क्योंकि उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।<br />
नानक लौटे; परमात्मा हो कर लौटे। फिर उन्होंने जो भी कहा है, एक-एक शब्द
बहुमूल्य है। फिर उस एक-एक शब्द को हम कोई भी कीमत दें तो भी कीमत छोटी
पड़ेगी। फिर एक-एक शब्द वेद वचन हैं।<br />
<br />
अब हम जपुजी को समझने की कोशिश करें।<br />
इक ओंकार सतिनाम<br />
करता पुरखु निरभउ निरवैर।<br />
अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरु प्रसादि।।<br />
‘वह एक है, ओंकार स्वरूप है, सत नाम है, कर्ता पुरुष है, भय से रहित है,
वैरे से रहित है, कालातीत-मूर्ति है, अयोनि है, स्वयंभू है, गुरु की कृपा
से प्राप्त होता है।’<br />
एक है-इक ओंकार सतिनाम।<br />
जो भी हमें दिखाई पड़ता है वह अनेक है। जहां भी तुम देखते हो, भेद दिखाई
पड़ता है। जहां तुम्हारी आंख पड़ती है, अनेक दिखाई पड़ता है। सागर के
किनारे जाते हो, लहरें दिखाई पड़ती हैं। सागर दिखाई नहीं पड़ता। हालांकि
सागर ही है। लहरें तो ऊपर-ऊपर हैं।<br />
<br />
पर जो ऊपर-ऊपर है वही दिखाई पड़ता है, क्योंकि ऊपर की ही आंख हमारे पास है।
भीतर को देखने के लिए तो भीतर की आंख चाहिए। जैसी होगी आंख, वैसा ही होगा
दर्शन। आंख से गहरा तो दर्शन नहीं हो सकता। तुम्हारे पास आंख ही ऊपर की है।
तो लहरों को देख कर लौट आओगे। और लोगों से कहोगे कि सागर हो आया। सागर में
जाने का यह ढंग नहीं है। किनारे से तो दिखाई पड़ेंगी लहरें। सागर में हो
तो डूबना ही पड़े। इसलिए तो कहानी है कि नानक नदी में डूब गए। लहरों में
नहीं है वह, नदी में है। लहरों में नहीं है, सागर में है। ऊपर-ऊपर तो लहरें
होंगी। तट से तुम देख कर लौट आओगे, तो तुम जो खबर दोगे वह गलत होगी। तुम
कहोगे कि सागर हो आया। सागर तक तुम गए नहीं। तट पर तो सागर नहीं है, वहां
से तो लहरें दिखाई पड़ सकती हैं। लहरों का जोड़ भी सागर नहीं है। जोड़ से
भी ज्यादा है सागर। और जो मौलिक भेद है वह यह है कि लहर अभी है, क्षण भर
बाद नहीं होगी, क्षण भर पहले नहीं थी।<br />
जो बनता है और मिट जाता है, वह सपना है। जो आता है और चला जाता है, वह सपना
है। लहरें सपना हैं, सागर सच है। अनेक लहरें हैं, एक सागर है। हमें अनेक
दिखाई पड़ता है। और जब तक एक न दिखाई पड़ जाए, तब तक हम भटकते रहेंगे।
क्योंकि एक ही सच है।<br />
इक ओंकार सतिनाम।<br />
और नानक कहते हैं कि उस एक का जो नाम है, वही ओंकार है। और सब नाम तो आदमी
के दिए हैं। राम कहो, कृष्ण कहो, अल्लाह कहो, ये नाम आदमी के दिए हैं। ये
हमने बनाए हैं। सांकेतिक हैं। लेकिन एक उसका नाम है जो हमने नहीं दिया; वह
ओंकार है। वह ॐ है।<br />
<br />
क्यों ओंकार उसका नाम है ? क्योंकि जब सब शब्द खो जाते हैं और चित्त शून्य
हो जाता है और जब लहरें पीछे छूट जाती हैं और सागर में आदमी लीन हो जाता है
तब भी ओंकार की धुन सुनाई पड़ती रहती है। वह हमारी की हुई धुन नहीं है। वह
अस्तित्व की धुन है। वह अस्तित्व की ही लय है। अस्तित्व के होने का ढंग
ओंकार है। वह किसी आदमी का दिया हुआ नाम नहीं है। इसलिए ॐ का कोई भी अर्थ
नहीं होता ॐ कोई शब्द नहीं है। ॐ ध्वनि है और ध्वनि भी अनूठी है। कोई उसका
स्रोत नहीं हैं। कोई उसे पैदा नहीं करता। अस्तित्व के होने में ही छिपी है।
अस्तित्व के होने की ध्वनि है।<br />
जैसे कि जलप्रपात है; तुम उसके पास बैठो तो प्रपात की एक ध्वनि है। लेकिन
वह ध्वनि पानी और चट्टान की टक्कर से पैदा होती है। नदी के पास बैठो, कल-कल
का नाद होता है। लेकिन वह कल-कल का नाद नदी और तट की टक्कर से होता है।
हवा का झोंका निकलता है, वृक्ष से सरसराहट होती है। लेकिन वह सरसराहट हवा
और वृक्ष की टक्कर से होती है। हम बोलते हैं, संगीतज्ञ गीत गाता है, वीणा
का कोई तार छेड़ता है, लेकिन सभी चीज संघर्ष से पैदा होती है। संघर्ष के
लिए दो जरूरी हैं। तार चाहिए वीणा का, हाथ चाहिए छेड़नेवाला। जितनी
ध्वनियां द्वैत से पैदा होती हैं, वे उसके नाम नहीं हैं। उसका नाम तो वही
है, जब सब द्वैत खो जाता है, फिर भी एक ध्वनि गूंजती रहती है।<br />
<br />
इस संबंध में कुछ बातें समझ लेनी जरूरी है। विज्ञान कहता है कि सारे
अस्तित्व को अगर हम तोड़ते चले जाएं, और गहराई में विश्लेषण करें, तो अंत
में हमें विद्युत-ऊर्जा, इलेक्ट्रीसिटी मिलती है। इसलिए जो आखिरी खोज है
विज्ञान की, वह इलेक्ट्रान है, विद्युतकण। सारा अस्तित्व विद्युत से बना
है। अगर हम विज्ञान से पूछें कि ध्वनि किससे बनी है ? तो विज्ञान कहता है,
वह भी विद्युत से बनी है। ध्वनि भी विद्युत का एक आकार है एक रूप है। लेकिन
मूल विद्युत है।<br />
इस संबंध में समस्त ज्ञानियों की विज्ञान से सहमति है, थोड़े से भेद के
साथ। वह भेद बड़ा नहीं, वह भेद भाषा का है। समस्त ज्ञानियों ने पाया कि
अस्तित्व बना है ध्वनि से और ध्वनि का ही एक रूप विद्युत है। विज्ञान कहता
है, विद्युत का एक रूप ध्वनि है; और धर्म कहता है कि विद्युत ध्वनि का एक
रूप है। इतना ही फासला है। मगर यह फासला ऐसा ही दिखाई पड़ता है जैसे ग्लास
आधा भरा हो; कोई कहे आधा भरा है, कोई कहे आधा खाली है।<br />
<br />
विज्ञान की पहुंच का द्वार अलग है। विज्ञान ने पदार्थ को तोड़-तोड़ कर
विद्युत को खोजा है। ज्ञानियों की पहुंच का मार्ग अलग है। उन्होंने अपने को
जोड़-जोड़ कर-तोड़ कर नहीं; अपने को जोड़-जोड़ कर अखंड को पाया है और इस
अखंड में एक ध्वनि पाई है। जब कोई व्यक्ति समाधिस्थ हो जाता है तो ओंकार की
ध्वनि गूंजती है। वह अपने भीतर उसे गूंजते पाता है। अपने बाहर गूंजते पाता
है। सब, सारे लोक उससे व्याप्त मालूम होते हैं।<br />
<br />
<br />
पुस्तक ''एक ओंकार सतनाम'' से </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/-wl8f01GrIms/TtrQ_v7L1RI/AAAAAAAAE2o/qqQfHwmUhMg/s1600/osho-photos-famous-quotes.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="http://4.bp.blogspot.com/-wl8f01GrIms/TtrQ_v7L1RI/AAAAAAAAE2o/qqQfHwmUhMg/s320/osho-photos-famous-quotes.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">प्रेम और ध्यान-दो शब्द जिसने ठीक से
समझ लिए, उसे धर्मों के सारे पथ समझ में आ गए। दो ही मार्ग हैं। एक है
प्रेम का, हृदय का। एक मार्ग है ध्यान का, बुद्धि का। ध्यान के मार्ग पर
बुद्धि को शुद्ध करना है- इतना शुद्ध कि बुद्धि शेष ही न रह जाए। प्रेम के
मार्ग पर हृदय को शुद्ध करना है- इतना शुद्ध कि हृदय खो जाए। दोनों ही
मार्ग से शून्य उपलब्धि करनी है, मिटना है। कोई विचार को काट-काटकर मिटेगा;
कोई वासना को काट-काटकर मिटेगा।<br />
प्रेम है वासना से मुक्ति। ध्यान है विचार से मुक्ति। दोनों ही तुम्हें मिटा देंगे; और जहाँ तुम नहीं हो, वहीं परमात्मा है।<br />
ध्यानी ने परमात्मा के लिए अपने शब्द गढ़े हैं-सत्य, मोक्ष निर्वाण; प्रेमी
ने अपने शब्द गढ़े हैं। परमात्मा प्रेमी का शब्द है। सत्य ध्यानी का शब्द
है। पर भेद शब्दों का है। इशारा एक ही तरफ है। जब तक दो हैं, तब तक संसार
है; जैसे ही एक बचा, संसार खो गया।<br />
शेख फरीद प्रेम के पथिक हैं, और जैसा प्रेम का गीत फरीद ने गाया है वैसा
किसी ने नहीं गाया। कबीर भी प्रेम की बात करते हैं लेकिन ध्यान की बात को
बिल्कुल भूल नहीं जाते। नानक भी प्रेम की बात करते हैं, लेकिन वह ध्यान से
मिश्रित है। फरीद ने शुद्ध प्रेम के गीत गाए है; ध्यान की बात ही नहीं की
है; प्रेम में ही ध्यान जाना है। इसलिए प्रेम की इतनी शुद्ध कहानी कहीं और न
मिलेगी। फरीद खालिस प्रेम हैं। प्रेम को समझ लिया तो फरीद को समझ लिया।
फरीद को समझ लिया तो प्रेम को समझ लिया।<br />
प्रेम के संबंध में कुछ बातें मार्गसूचक होंगी, उन्हें पहले ध्यान में ले
लें। पहली बातः जिसे तुम प्रेम कहते हो, फरीद उसे प्रेम नहीं कहते तुम्हारा
प्रेम तो प्रेम का धोखा है। वह प्रेम है नहीं, सिर्फ प्रेम की नकल है,
नकली सिक्का है; और इसलिए तो उस प्रेम से सिवाय दुःख के तुमने कुछ और नहीं
जाना है।<br />
कल ही फ्रांस से आई एक संन्यासिनी इसे रात पूछती थी कि प्रेम में बड़ा दुःख
है, आप क्या कहते हैं ? जिस प्रेम को तुमने जाना है, उसमें बड़ा दुःख है
इसमें कोई शक नहीं। लेकिन वह प्रेम के कारण नहीं है वह तुम्हारे कारण है।
तुम ऐसे पात्र हो कि अमृत विष हो जाता है। तुम अपात्र हो इसलिए प्रेम भी
विषाक्त हो जाता है। फिर उसे तुम प्रेम कहोगे तो फरीद को समझना बहुत
मुश्किल हो जाएगा; क्योंकि फरीद तो प्रेम के आनंद की बातें करेंगा; प्रेम
का नृत्य और प्रेम की समाधि और प्रेम में ही परमात्मा को पाएगा। और तुमने
तो प्रेम में सिर्फ दुःख ही जाना है; चिंता, कलह, संघर्ष ही जाना है। प्रेम
में तुमने एक तरह की विकृत रुग्ण दशा ही जानी है। प्रेम को तुमने नर्क की
तरह जाना है। तुम्हारे प्रेम की बात ही नहीं हो रही है।<br />
जिस प्रेम की फरीद बात कर रहा है, वह तो तभी पैदा होता है, जब तुम मिट जाते
हो। तुम्हारी कब्र पर उगता है फूल, उस प्रेम का। तुम्हारी राख से पैदा
होता है, वह प्रेम। तुम्हारा प्रेम तो अहंकार की सजावट है। तुम प्रेम में
दूसरे को वस्तु बना डालते हो। तुम्हारे प्रेम की चेष्टा में दूसरों की
मालकियत है। तुम चाहते हो, तुम जिसे प्रेम करो, वह तुम्हारी मुट्ठी में बंद
हो, तुम मालिक हो जाओ। दूसरा भी यही चाहता है। तुम्हारे प्रेम के नाम पर
मालकियत का संघर्ष चलता है।<br />
जिस प्रेम की फरीद बात कर रहा है, वह ऐसा प्रेम है, जहाँ तुम दूसरे को अपनी
मलकियत दे देते हो, जहाँ तुम स्वेच्छा से समर्पित हो जाते हो, जहाँ तुम
कहते हो : तेरी मर्जी। संघर्ष का तो कोई सवाल नहीं है।<br />
निश्चित ही ऐसा प्रेम दो व्यक्तियों के बीच नहीं हो सकता। ऐसा प्रेम दो सम
स्थिति में खड़ी हुई चेतनाओं के बीच नहीं हो सकता, ऐसे प्रेम की छोटी–मोटी
झलक शायद गुरु के पास मिले; पूरी झलक तो परमात्मा के पास ही मेलेगी। ऐसा
प्रेम पति-पत्नी का नहीं हो सकता, मित्र-मित्र का नहीं हो सकता। दूसरा जब
तुम्हारे ही जैसा है तो तुम कैसे अपने को समर्पित कर पाओगे ? संदेह पकड़ेगा
मन को। हजार भय पकड़ेंगे मन को। यह दूसरे पर भरोसा हो नहीं सकता कि सब
छोड़ दो, कि कह सको कि तेरी मर्जी मेरी मर्जी है। इसकी मर्जी में बहुत
भूल-चूक दिखाई पड़ेगी। यह तो भटकाव हो जाएगा। यह तो अपने हाथ से आँखें फोड़
लेना होगा। ऐसे ही अँधेरा क्या कम है, आँखें फोड़कर तो और मुश्किल हो
जाएगी। यह तो अपने हाथ में जो छोटा-मोटा दीया है बुद्धि का, वह भी बुझा
देना हो जाएगा। यह तो निर्बुद्धि में उतरना होगा। यह संभव नहीं है।<br />
मनुष्य और मनुष्य के बीच प्रेम सीमित ही होगा तुम छोड़ोगे भी तो सशर्त
छोड़ोगे। तुम अगर थोड़ी दूसरे को मालकियत भी दोगे तो भी पूरी न दोगे, थोड़ा
बचा लोगे-लौटने का उपाय रहे; अगर कल वापस लौटना पडे, समर्पण को इनकार करना
पड़े तो तुम लौट सको; ऐसा न हो कि लौटने की जगह न रह जाए। सीढ़ी को मिटा न
दोगे, लगाए रखोगे।<br />
साधारण प्रेम बेशर्त नहीं हो सकता। अनकंडिशनल नहीं हो सकता। और प्रेम जब तक
बेशर्त न हो, प्रेम नहीं होता। तुमने ऊपर कोई, जिसे देखकर तुम्हें आकाश के
बादलों का स्मरण आए, जिसकी तरफ तुम्हें आँखें उठानी हों तो जैसे सूरज की
तरफ कोई आँख उठाए, जिसके बीच और तुम्हारे बीच एक बड़ा फासला हो, एक अलंघ्य
खाई हो, जिससे तुम्हें परमात्मा की थोड़ी-सी प्रतीति मिले-उसको ही हमने
गुरु कहा है।<br />
गुरु पूरब की अनूठी खोज है। पश्चिम इस रस से वंचित ही रह गया है; उसे गुरु
का कोई पता नहीं है। वह आयाम जाना ही नहीं पश्चिम ने। पश्चिम को दो मित्रों
का पता है, शिक्षक-विद्यार्थी का पता है, पति-पत्नी का पता है,
प्रेमी-प्रेयसी का पता है; लेकिन फरीद जिसकी बात करेगा-गुरू और शिष्य-उसका
कोई पता नहीं है।<br />
गुरू और शिष्य का अर्थ है, कोई ऐसा व्यक्ति, जिसके भीतर से तुम्हें
परमात्मा की झलक मिली, जिसके भीतर तुमने आकाश देखा, जिसकी खिड़की से तुमने
विराट् में झाँका। उसकी खिड़की छोटी हो-खिड़की को बड़े होने की कोई जरूरत
भी नहीं है, लेकिन खिड़की से जो झाँका, वह आकाश था। तब समर्पण हो सकता है।
तब तुम पूरा अपने को छोड़ सकते हो।<br />
धर्म की तलाश मूलतः गुरू की तलाश है, क्योंकि तुम धर्म को और कहाँ देख
पाओगे ? और तुम जहाँ जाओगे, अपने ही जैसा व्यक्ति पाओगे। तो अगर तुम्हारे
जीवन से ऊपर आँखें उठती हों जिसे देखकर तुममें दूर के सपने, आकांक्षा,
अभीप्सा भर जाती हो, जिसे देखकर तुम्हें आकाश का बुलावा मिलता हो, निमंत्रण
मिलता हो-और इसकी कोई फ्रिक मत करना कि दुनिया उसके संबंध में क्या कहती
है, यह सवाल नहीं है-तुम्हें अगर इस खिड़की से कुछ दर्शन नहीं हुआ हो तो
ऐसे व्यक्ति के पास समर्पण की कला सीख लेना। उसके पास तुम्हें पहले पाठ
मिलेगें, प्राथमिक मिलेंगे-अपने को छोड़ने के। वे ही पाठ परमात्मा के पास
काम आएँगे।<br />
गुरु आखिरी नहीं है गुरू तो मार्ग है। अंततः तो गुरू हट जाएगा, खिड़की भी
हट जाएगी-आकाश ही रह जाएगा। जो खिड़की आग्रह करे, हटे न, वह तो आकाश और
तुम्हारे बीच बाधा हो जाएगी; वह तो सेतु न होगी, विघ्न हो जाएगा।<br />
जिस प्रेम की फरीद बात कर रहे हैं, उसकी झलक तुम्हें कभी गुरू के पास
मिलेगी। तुम मुझसे पूछोगे कि हम कैसे गुरु को पहचानें ? मैं तुमसे कहूँगा :
जहाँ तुम्हें ऐसी झलक मिल जाए। उसके अतिरिक्त कोई कसौटी नहीं है। गुरु की
परिभाषा यह है कि जहाँ तुम्हें विराट् की थोड़ी-सी भी झलक मिल जाए, जिस
बूँद में तुम्हें सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस बीज में तुम्हें
संभावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई पड़ें। फिर ध्यान मत देना कि दुनिया क्या
कहती है, क्योंकि दुनिया का कोई सवाल नहीं है। जहाँ तुम खड़े हो, वहाँ से
हो सकता है, किसी खि़ड़की से आकाश दिखाई पड़ता हो, जहाँ दूसरे खड़े हों,
वहा से उस खिड़की के द्वारा आकाश न पड़ता हो। यह भी हो सकता है कि तुम्हारे
बगल में खड़ा हुआ व्यक्ति खिड़की की तरफ पीठ करके खडा़ हो, और उसे आकाश न
दिखाई पड़े। यह भी हो सकता है कि किन्हीं क्षणों में तुम्हें आकाश दिखाई
पड़े और किन्हीं क्षणों में तुम्हें भी आकाश दिखाई न पडे। क्योंकि जब तुम
ऊँचाई पर रहोगे और तुम्हारी आँखें आँसुओं से भारी होंगी, पीड़ा दुःख से दबी
होंगी-तब खिड़की भी क्या करेगी ? अगर आँखें ही धूमिल हों तो खिड़की आकाश न
दिखा सकेगी : खिड़की खुली रहेगी, तुम्हारे लिए बंद हो जाएगी तुम्हें भी
आकाश तभी दिखाई पड़ेगा जब आँखे खुली हों और भीतर होश हो। आँख भी खुली हो और
भीतर बेहोशी हो तो खिड़की व्यर्थ हो जाएगी।<br />
तो ध्यान रखना, जिसको तुमने गुरू जाना है, वह तुम्हें भी चौबीसों घंटे गुरू
नहीं मालूम होगा। कभी-कभी, किन्हीं ऊँचाइयों के क्षण में, किन्हीं
गहराईयों के मौके पर, कभी तुम्हारी आँख, तुम्हारे बोध की खिड़की का तालमेल
हो जाएगा, और आकाश की झलक आएगी। वही झलक रूपांतकारी है। तुम उस झलक पर
भरोसा रखना। तुम अपनी ऊँचाई पर भरोसा रखना।<br />
<br />
तुमने कभी ख्याल किया ?-जहाँ भी माँग आती है, वहीं तुम छोटे हो जाते हो;
जहाँ माँग नहीं होती, सिर्फ दान होता है, वहाँ तुम भी विराट् होते हो। जब
तुम्हारे मन में कोई माँगने का भाव ही नहीं उठता, तब तुममें और परमात्मा
में क्या फासला है ? इसलिए तो बुद्धपुरुषों ने निर्वासना को सूत्र माना; कि
जब तुम्हारी कोई वासना न होगी, तब परमात्मा तुममे अवतरित हो जाएगा।<br />
परमात्मा तुममें छिपा ही है, केवल वासनाओं के बादल में घिरा है। सूरज मिट
नहीं गया है, सिर्फ बादलों में घिरा है। वासना के बादल हट जाएँगे : तुम
पाओगे, सूरज सदा से मौजूद था।<br />
गुरू के पास प्रेम का पहला पाठ सीखना, बेशर्त होना सीखना, झुकना और अपने को
मिटाना सीखना। माँगना मत। मन बहुत माँग किए चला जाएगा, क्योंकि मन की
पुरानी आदत है। मन भिखमंगा है। सम्राट का मन भी भिखमंगा है; वह भी माँगता
है।<br />
<br />
आत्मा सम्राट् है, वह माँगती नहीं। जिस दिन तुम प्रेम में इस भाँति अपने को
डालते हो कि कोई माँग की रेखा भी नहीं होती, उसी क्षण तुम सम्राट हो जाते
हो। प्रेम तुम्हें सम्राट् बना देता है। प्रेम के बिना तुम भिखारी हो। वही
तुम्हारा दुःख है।<br />
दूसरी बात जब फरीद प्रेम की बात करता है तो प्रेम से उसका अर्थ है-प्रेम का
विचार नहीं, प्रेम का भाव। और दोनों में बड़ा फर्क है। तुम जब प्रेम करते
हो, तब तुम सोचते हो कि तुम प्रेम करते हो। यह हृदय का सीधा संबंध नहीं
होता, उसमें बीच में बुद्धि खड़ी होती है।<br />
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हमारा किसी से प्रेम हो गया है। मैं
कहता हूँ-ठीक से कहो, सोचकर कहो। वे थोड़े चिंतित हो जाते हैं। वे कहते
हैं, हम सोचते है कि प्रेम हो गया है; पक्का नहीं, हुआ कि नहीं, लेकिन
विचार आता है कि प्रेम हो गया है।<br />
<br />
प्रेम का कोई विचार आवश्यक है ? तुम्हारे पैर में काँटा गड़ता है तो
तुम्हारा बोध सीधा होता है कि पैर में पीड़ा हो रही है। ऐसा थोड़े ही तुम
कहते हो कि हम सोचते हैं कि शायद पैर में पीड़ा हो रही है। सोच-विचार को
छेद देता है, काँटा आर-पार निकल जाता है। जब तुम आनंदित होते हो तो क्या
तुम सोचते हो कि तुम आनंदित हो रहे हो, या कि तुम सिर्फ आनंदित होते हो ?
जब तुम दुःखी होते हो तब सोचते हो-कोई प्रियजन चल बसा, छोड़ दी देह, मरघट
पर विदा कर<br />
<br />
आए-जब तुम रोते हो तब तुम सोचते हो कि दुःखी हो रहे हो, या कि दुःखी होते
हो ? दोनों में फर्क है। अगर सोचते हो कि दुःखी हो रहे हो तो दुखी हो ही
नहीं रहे, शायद दिखावा होगा। समाज के लिए आँसू भी गिराने पड़ते हैं। दूसरों
को दिखाने के लिए हँसना भी पड़ता है, प्रसन्न भी होना पड़ता है; लेकिन
तुम्हारे भीतर कुछ भी नहीं हो रहा है। लेकिन जब तुम्हारे भीतर दुःख हो रहा
है तो विचार बीच में माध्यम नहीं होता यह सीधा होता है।<br />
<br />
पुस्तक ''बोलै शेख फरीद'' से</span></span></div>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<div class="separator" style="clear: both;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.asia-pictures.net/spiritual_journey/images/osho/Osho%20in%20the%20Himalayas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="243" src="http://www.asia-pictures.net/spiritual_journey/images/osho/Osho%20in%20the%20Himalayas.jpg" width="320" /></a></span></span></div>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br />
<br />
ध्यान, बुद्धि या मन की कोई चीज नहीं है, वह तो बुद्धि के पार की कोई चीज
है। और इसके लिये पहला कदम है, इसके प्रति खेलप्रिय होना, विनोदी होना। यदि
तुम उसके साथ खेलपूर्ण हो, तो बुद्धि (मन) तुम्हारे ध्यान को नष्ट नहीं कर
सकती। अन्यथा यह एक दूसरी अहंकार-यात्रा में परिवर्तित हो जायेगी। यह
तुम्हें बहुत गंभीर बना देगी। तुम सोचने लगोगे कि मैं एक महान ध्यानी हूँ।
यही हजारों कथित संतों नैतिकतावादियों और कट्टर धार्मिकों के साथ हुआ है,
ये लोग महज अहंकार के खेल सूक्ष्म अहंकार के खेल ही खेल ही खेल रहे हैं।<br />
<br />
इसलिये मैं प्रारम्भ ही से इसकी जड़ें काट देना चाहता हूँ। इसके बारे में
विनोदप्रिय या खेलपूर्ण बने रहो। यह एक गीत है जिसे गाना है। एक नृत्य है
जिसे नाचना है। इसे एक मजाक की तरह लो। यदि तुम ध्यान के बारे में खेलपूर्ण
हो सके तो तुम यह देखकर हैरान हो जाओगे कि ध्यान में दिन दूनी रात चौगुनी
प्रगति होगी। केवल तुम किसी लक्ष्य पाने के पीछे नहीं भाग रहे तुम केवल
शांत बैठे हुए उसका उस क्षण आनंद ले रहे हो। शांत होकर बैठने का कृत्य ही
उन क्षणों में आनंदित होना है। ऐसा नहीं, कि तुम किसी यौगिक शक्ति, सिद्धि
या चमत्कार की चाह कर रहे हो। यह सभी बकवास है, यह सभी पुरानी व्यर्थ की
बातें हैं। वही पुराना खेल, नये शब्दों और एक नये धरातल पर खेला जा रहा है ।
जीवन को अपने-आपमें एक गहरे मजाक की तरह लेना चाहिये-और तभी अचानक तुम
तनावरहित हो जाओगे, क्योंकि यहाँ कुछ ऐसा ही नहीं, जिसके बारे में
तनावपूर्ण हुआ जाये। और इसी विश्रामपूर्ण दशा में तुम्हारे अंदर कुछ
परिवर्तन एक मौलिक परिवर्तन एक रूपातन्तरण होने लगता है। जीवन की छोटी-छोटी
बातों के नये अर्थ तथा महत्त्व प्रकट होने शुरू हो जाते हैं। तब फिर कोई
भी चीज छोटी नहीं लगती, हर चीज एक नई गंध और नई आभा लिये दिखना शुरू हो
जाती है, तब हर कहीं एक दिव्यता का अहसास होने लगता है। फिर कोई न तो ईसाई,
न हिन्दू और न मुसलमान बना रहता है। वह स्वाभाविक रूप से जीवन के प्रेमी
बन जाता है। वह केवल एक ही चीज सीखता है कि जीवन में कैसे आनंदित हुआ जाये।<br />
<br />
<br />
पुस्तक ''ध्यान क्या है'' से </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_aZRjksIab7o4E-RxqdtGHfh3qRwt5Z4bcpttcVmMyyr63JuuDn1rc6rc5q-WyNv3urbhWuSQ7mU51SQtF-TkIKgBHF7CYj3hoW6h0MTKrNN8RMXqeaxTB8flsiKcy0IHkEfjnsbPI5jY/s1600/OSHO.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_aZRjksIab7o4E-RxqdtGHfh3qRwt5Z4bcpttcVmMyyr63JuuDn1rc6rc5q-WyNv3urbhWuSQ7mU51SQtF-TkIKgBHF7CYj3hoW6h0MTKrNN8RMXqeaxTB8flsiKcy0IHkEfjnsbPI5jY/s320/OSHO.jpg" width="174" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">आज मैं अहिंसा पर आपसे बात करूँगा। पांच
महाव्रत नाकारात्मक हैं, अहिंसा भी। असल में साधना नाकारात्मक ही हो सकती
है, निगेटिव ही हो सकती है, उपलब्धि पॉजिटिव होगी, विधायक होगी। जो मिलेगा
वह वस्तुतः होगा और जो हमें खोना है। वहीं खोना है जो वस्तुतः नहीं है।<br />
<br />
अंधकार खोना है, प्रकाश पाना है। अत्सय खोना है सत्य पाना है, इससे एक बात
और खयाल में लेना जरूरी है कि नकारात्मक शब्द इस बात की खबर देते है कि
अहिंसा हमारा स्वाभाव है, उसे पाया जा सकता, वह है ही। हिंसा पायी गयी है।
वह हमारा स्वभाव नहीं है। वह अर्जित है, एचीव्ड। हिंसक बनने के लिए हमें
कुछ करना पड़ा है। हिंसा हमारी उपलब्धि है। हमने उसे खोजा है, हमने उसे
निर्मित किया है। अहिंसा हमारी उपलब्धि नहीं हो सकती। सिर्फ हिंसा न हो
जाये तो जो शेष बचेगा वह अहिंसा होगी।<br />
<br />
इसलिए साधना नकारात्मक है। वह जो हमने पा लिया है और जो पाने योग्य नहीं
है, उसे खो देना है। जैसे कोई आदमी स्वभाव से हिंसक नहीं है, हो नहीं सकता।
क्योंकि कोई भी दुख को चाह नहीं सकता और हिंसा सिवाय दुख के कहीं भी नहीं
ले जाती। हिंसा एक्सीडेंट है, चाह नहीं है। वह हमारे जीवन की धारा नहीं है।
इसलिए जो हिंसक है वह भी चौबीस घंटे हिंसक नहीं हो सकता। अहिंसक चौबीस
घंटे अहिंसक हो सकता है। हिंसक चौबीस घेटे हिंसक नहीं हो सकता। उसे भी किसी
वर्तुल के भीतर अहिंसक ही होना पड़ता है। असल में, अगर वह हिंसा भी करता
है तो किन्ही के साथ अहिंसक हो सके, इसीलिए करता है। कोई आदमी चौबीस घंटे
चोर नहीं हो सकता। और अगर कोई चोरी भी करता है तो इसलिए कि कुछ समय वह बिना
चोरी के हो सके। चोर का लक्ष्य भी अचोरी करना है, और हिंसक का लक्ष्य भी
अहिंसा है। और इसीलिए ये सारे शब्द नकारात्मक हैं।<br />
<br />
धर्म की भाषा में दो शब्द विधायक हैं, बाकी सब शब्द नाकारात्मक हैं। उन
दोनों को मैंने चर्चा से छोड़ दिया है। एक ‘सत्य’ शब्द विधायक है, पॉजिटिव
है; और एक ‘ब्रह्मचर्य’ शब्द विधायक है, पॉजिटिव है।<br />
यह भी प्राथमिक रूप से खयाल में ले लेना जरूरी है कि जो पांच शब्द मैंने
चुने हैं, जिन्हें मैं पंच महाव्रत कह रहा हूं, वे नकारात्मक हैं। जब वे
पांचो छूट जायेंगे तो जो भीतर उपलब्ध होगा सत्य, और जो बाहर होगा
ब्रह्मचर्य।<br />
सत्य आत्मा बन जायेगी इन पाँच के छूट जाने पर और ब्रह्यचर्य आचरण बन जायेगा
इन पांच के छूटने पर। वे दो विधायक शब्द हैं। सत्य का अर्थ है, जिसे हम
भीतर जानेंगे। और ब्रह्मचर्य का अर्थ है, जिसे हम बाहर से जीयेंगे।
ब्रह्मचर्य का अर्थ है, जो ईश्वर जैसा हो जाये। ईश्वर जैसा आचरण। ईश्वर
जैसा आचरण उसी का हो सकता है, जो ईश्वर जैसा हो जाये। सत्य का अर्थ
है-ईश्वर जैसे हो जाना। सत्य का अर्थ है- ब्रह्म। और ईश्वर जैसा हो गया
उसकी जो चर्या होगी, वह ब्रह्मचर्य होगी। वह ब्रह्म जैसा आचरण होगा। ये दो
शब्द धर्म की भाषा में विधायक है, पॉजिटिव हैं; बाकी पूरे धर्म की भाषा
नकारात्मक है। इन पांच दिनों में इन पांच नकार पर विचार करना है। आज पहले
नकार पर-अहिंसा ।<br />
<br />
अगर ठीक से समझें तो अहिंसा पर कोई विचार नहीं हो सकता है, सिर्फ हिंसा पर
विचार हो सकता है और हिंसा के न होने पर विचार हो सकता है। ध्यान रहे
अहिंसा का मतलब सिर्फ इतना ही है- हिंसा का न होना, हिंसा की एबसेन्स,
अनुपस्थिति-हिंसा का अभाव।<br />
<br />
इसे ऐसा समझें। अगर किसी चिकित्सक को पूछें कि स्वास्थ्य की परिभाषा क्या
है ? कैसे आप डेफिनीशन करते है स्वास्थ्य की ? तो दुनिया में स्वास्थ्य के
बहुत से विज्ञान विकसित हुए हैं, लेकिन कोई भी स्वास्थ्य की परिभाषा नहीं
करता। अगर आप पूछें कि विकसित हुए हैं, लेकिन कोई भी स्वास्थ्य की परिभाषा
नहीं करता। अगर आप पूछें कि स्वास्थ्य की परिभाषा क्या है तो चिकित्सक
कहेगा: जहां बीमारी न हो। लेकिन यह बीमारी की बात हुई, यह स्वास्थ्य की बात
न हुई। यह बीमारी का न होना हुआ। बीमारी की परिभाषा हो सकती है, डेफिनीशन
हो सकती है कि बीमारी क्या है ? लेकिन परिभषा नहीं हो सकती- स्वास्थ्य क्या
है। इतना ज्यादा से ज्यादा हम कह सकते हैं कि जब कोई बीमार नहीं है तो वह
स्वस्थ है।<br />
<br />
धर्म परम स्वास्थ्य है ! इसलिए धर्म की कोई परिभाषा नहीं हो सकती। सब
परिभाषा अधर्म की है। इन पांच दिनों हम धर्म पर विचार नहीं करेंगे। अधर्म
पर विचार करेंगे।<br />
विचार से, बोध से, अधर्म छूट जाये तो जो निर्विकार में शेष रह जाता है, उसी
का नाम धर्म की है। इसलिए जहां-जहां धर्म पर चर्चा होती है, वहां व्यर्थ
होती है ! चर्चा सिर्फ अधर्म की ही हो सकती है। चर्चा धर्म की हो नहीं
सकती। चर्चा बीमारी की हो सकती है, चर्चा स्वास्थ्य की नहीं हो सकती।
स्वास्थ्य को जाना जा सकता है स्वास्थ्य को जीया जा सकता है धर्म में हुआ
जा सकता है, धर्म की चर्चा नहीं हो सकती। इसलिए धर्मशास्त्र वस्तुतः अधर्म
की चर्चा करते हैं। धर्म की कोई चर्चा नहीं करता।<br />
<br />
पहले अधर्म की चर्चा हम करें- हिंसा। और जो-जो हिंसक हैं, उनके लिए यह पहला
व्रत है। यह समझने जैसा मामला है कि आज हम जो विचार करेंगे वह यह मान कर
करेंगे कि हम हिंसक है। इसके अतिरिक्त उस चर्चा का कोई अर्थ नहीं है। ऐसे
भी हम हिंसक है। हमारे हिंसक होने में भेद हो सकते हैं। और हिंसा की इतनी
पर्तें हैं। ऐसे भी हम हिंसक हैं। हमारे हिंसक होने में भेद हो सकते हैं।
और हिंसा की इतनी पर्तें हैं, और इतनी सूक्ष्मताएं हैं, कि कई बार ऐसा भी
हो सकता है कि जिसे हम हिंसा कह रहे हैं और समझ रहे हैं। वह हिंसा का बहुत
सूक्ष्म रूप हो सकता हो। जिंदगी बहुत जटिल है।<br />
उदाहरण के लिए गांधी की अहिंसा को मैं हिंसा का सूक्ष्म रूप कहता हूं और
कृष्ण की हिंसा को अहिंसा का स्थूल रूप कहता हूं। उसकी हम चर्चा करेंगे तो
खयाल में आ सकेगा। हिंसक को ही बिचार करना जरूरी है अहिंसा पर। इसलिए यह भी
प्रासंगिक है समझ लेना, कि दुनिया में अहिंसकों की जमात से आया।<br />
<br />
जैनों के चौबीस तीर्थंकर क्षत्रिय थे। वह जमात हिंसको की थी। उनमें एक भी
ब्राह्मण नहीं था। इनमें एक भी वैश्य नहीं था। बुद्ध क्षत्रिय थे। दुनिया
में अहिंसा का विचार हिंसको की जमात से आया है। दुनिया में अहिंसा का खयाल,
जहां हिंसा घनी थी, सघन थी, वहां पैदा हुआ है।<br />
असल में हिंसकों को ही सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा है अहिंसा के संबंध
में। जो चौबीस घंटे हिंसा में रत थे, उन्हीं को यह दिखाई पड़ा है कि हमारी
बहुत अंतर-आत्मा नहीं है, असल में हाथ में तलवार हो, क्षत्रिय का मन हो, तो
बहुत देर न लगेगी यह देखने में कि हिंसा हमारी पीड़ा है, दुख है। वह हमारा
जीवन नहीं है। वह हमारा आनंद नहीं है।<br />
आज का व्रत हिंसकों के लिए है। यद्यपि जो अपने को अहिंसक समझते हैं वे आज
के व्रत पर विचार करते हुए मिलेंगे ! मैं तो मान कर चलूंगा कि हम हिंसक
इकट्ठे हुए हैं। और जब मैं हिंसा के बहुत रूपों की आप से बात करूंगा तो आप
समझ पायेंगे कि आप किस रूप के हिंसक हैं। और हिंसक और अहिंसक होने की पहली
शर्त है, अपनी हिंसा को ठीक-ठाक जगह पर पहचान लेना। क्योंकि जो व्यक्ति
हिंसा को ठीक से पहचान ले, वह हिंसक नहीं रह सकता है। हिंसक रहने की तरकीब,
टेकनीक एक ही है कि हम अपनी हिंसा को अहिंसा के वस्त्र पहन लेती है। वह
धोखा पैदा होता है।<br />
सुनी है मैंने एक कथा, सीरियन पैदा होता है ।<br />
<br />
सौन्दर्य और कुरूप की देवियों को जब परमात्मा ने बनाया और वे पृथ्वी पर
उतरीं, तो धूल-धवांस से भर गए होंगे उनके वस्त्र, तो एक झील के किनारे
वस्त्र रख कर स्नान करने झील में गईं। स्वभावतः सौंदर्य की देवी को पता भी
नहीं न था कि उसके वस्त्र बदले जा सकते हैं। असल में सौंदर्य को अपने
वस्त्रों का पता ही नहीं होता है। सौंदर्य को अपनी देह का भी पता नहीं होता
है। सिर्फ कुरूपता को देह का बोध होता है, सिर्फ कुरुपता को वस्त्रों की
चिंता होती है। क्योंकि वस्त्रों और देह की व्यवस्था से अपने को छिपाने के
उपाय करती है। सौंदर्य की देवी झील में स्नान करते निकल गई, और कुरुपता की
देवी को मौका मिला; वह बाहर आई, उसने सौंदर्य की देवी के कपड़े पहने और
चलती बनी। जब सौंदर्य की देवी बाहर आई तो बहुत हैरान हुई। उसके वस्त्र तो
नहीं थे। वह नग्न खड़ी थी गाँव के लोग जागने शुरू हो गये और राह चलने लगी
थी। और कुरुपता की देवी उसके वस्त्र लेकर भाग गई थी तो मजबूरी में उसे
कुरुपता के वस्त्र पहन लेने पड़े। और कथा कहती है कि तब से वह कुरूपता की
देवी का पीछा कर रही है और खोज रही है; लेकिन अब तक मिलना नहीं हो पाया।
कुरुपता अब भी सौंदर्य के वस्त्र पहने हुए है और सौंदर्य की देवी अभी भी
मजबूरी में कुरूपता के वस्त्र ओढ़े हुए है।<br />
<br />
असल में असत्य को जब भी खड़ा होना हो तो उसे सत्य का चेहरा उधार लेना पड़ता
है ! असत्य को भी खड़ा होना पड़ता हो तो उसे सत्य का ढंग अंगाकार करना
पड़ता है। हिंसा को भी खड़े होने के लिए अहिंसा बनाना पड़ता है। इसलिए
अहिंसा की दिशा में जो पहली बात जरूरी है, वह यह है कि हिंसा का चेहरा
पहचान लेने जरूरी हैं। खास कर उसके अहिंसक चेहरे, नान-वायलेंट फेसेज़ पहचान
लेना बहुत जरूरी है। हिंसा, सीधा धोखा किसी को भी नहीं दे सकती। दुनिया
में कोई भी पाप, सीधा धोखा देने में असमर्थ है। पाप को भी पुण्य की आड़ में
ही धोखा देना पड़ता है तो पुण्य के गुण-गौरव की कथा है। इससे पता चलता है
कि पाप भी अगर जीतता है तो पुण्य का चेहरा लगा कर जीतता है। जीतता सदा
पुण्य ही है। चाहे पाप के ऊपर चेहरा बन कर जीतता हो और चाहे खुद को
अंतरात्मा बन कर जीतता हो। पाप कभी जीतता नहीं। पाप अपने में हारा हुआ है !
हिंसा जीत नहीं सकती। लेकिन दुनिया से हिंसा मिटती नहीं, क्योंकि हमने
हिंसा के बहुत से अहिंसक चेहरे खोज निकाले हैं। पहले हिंसा के चेहरों को
समझने की कोशिश करें।<br />
<br />
हिंसा का सबसे पहला रूप, सबसे पहली डायमेंशन, उसका पहला आयाम है, वह बहुत
गहरा है, वहीं से पकड़े। सबसे पहली हिंसा, दूसरे हैः दूसरे को दूसरा मानने
से शुरु होती हैः टू कन्सीव द अदर, एज द अदर। जैसे ही मैं कहता हूं आप
दूसरे हैं, मैं आपके प्रति हिंसक हो गया। असल में दूसरे के प्रति अहिंसक
होना असंभव है। सिर्फ अपने प्रति ही अहिंसक हो ही नहीं सकते। होने की बात
ही नहीं उठती, क्योंकि दूसरे को दूसरा स्वीकार कर लेने में ही हिंसा शुरू
हो। बहुत सूक्ष्म है, बहुत गहरी है।<br />
<br />
सार्त्र का वचन है- द अदर इज हेल, वह जो दूसरा है वह नरक है। सार्त्र के इस
वचन से मैं थोड़ी दूर तक राजी हूं। उसकी समझ गहरी है। वह ठीक कह रहा है
दूसरा नरक है। लेकिन उसकी समझ अधूरी भी है। दूसरा नरक नहीं है, दूसरे को
दूसरा समझने में नरक है ।<br />
<br />
पुस्तक "ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया'' से </span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /> </span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.messagefrommasters.com/Life_of_Masters/Osho/osho_discourses_teachings.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://www.messagefrommasters.com/Life_of_Masters/Osho/osho_discourses_teachings.jpg" /></a></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;">आभार - pustak.org </span></span>
</div>
<div style="text-align: center;">
</div>
</div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-36822182142068837122012-11-09T15:23:00.002+05:302012-11-09T15:37:26.553+05:30Osho words<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.oshoteachings.com/wp-content/uploads/osho-meditation-music-free-download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://www.oshoteachings.com/wp-content/uploads/osho-meditation-music-free-download.jpg" width="292" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><span style="color: #134f5c;"></span></span><br /></div>
<div style="text-align: center;">
<div class="separator" style="clear: both;">
<a href="http://www.oshoviha.org/images/osho240.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br /></a></div>
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><u>Osho Quotes <br />
</u><br />
<br />
A real religion gives you fearlessness: let that be the criterion. If religion <br />
gives you fear, then it is not really religion.<br />
<br />
<br />
Unless religion is personal, unless religion is not abstract but
real, deep in your roots, deep in your guts, unless it is like blood and
bone and marrow, it is futile, it is of no use. It is the religion of
the philosophers not the religion of the sages.<br />
<br />
<br />
The real religion is not imitation of anybody else, it is a search to find out your own authentic self, who you are.<br />
<br />
<br />
Real religion is always a process of unguilting; false religions are
always a process of guilting. They try to make you more and more
guilty: anger is there, lust is there, sex is there, greed is there,
attachment is there, hate is there, love is there — and everything is
condemned. You become guilty, you start feeling wrong; you are wrong,
you start feeling condemned, you start hating yourself. If you start
hating yourself you will never be able to find God, because He is hiding
in you.<br />
<br />
<br />
Whatsoever you ask is really irrelevant. I will answer the same
because I have got only one answer. But that one answer is like a master
key; it opens all doors. It is not concerned with any particular lock —
any lock and the key opens it. Religion has only one answer and that
answer is meditation. And meditation means how to empty yourself.<br />
<br />
<br />
Be happy! and meditation will follow. Be happy, and religion will
follow. Happiness is a basic condition. People become religious only
when they are unhappy — then their religion is pseudo. Try to understand
why you are unhappy.<br />
<br />
<br />
All people who are creative are close to religion. Religion is the
greatest creativity because it is an effort to give birth to yourself,
to become a father and mother to yourself, to be born again, to be
reborn through meditation, through awareness. Poetry is good, painting
is good — but when you give birth to your own consciousness, there is no
comparison. Then you have given birth to the ultimate poetry, the
ultimate music, the ultimate dance. This is the dimension of creativity.
On the rung of creativity, religion is the last. It is the greatest
art, the ultimate art — that’s why I call it ‘the ultimate alchemy’.<br />
<br />
<br />
Meditation or religion is a totally different world: it is relaxation, it is let-go.<br />
<br />
<br />
The whole work of religion, of meditation is to make you aware of all that is mind and dis-identify yourself with it.<br />
<br />
<br />
Life exists without rules; games cannot exist without rules. So real
religion is always without rules; only false religion has rules,
because false religion is a game.<br />
<br />
</span></span><br /><span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.oshoviha.org/images/osho240.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://www.oshoviha.org/images/osho240.jpg" /></a> </span></span><br />
<span style="color: #134f5c;"><span style="font-size: x-large;"> In the West theology has overpowered religion. When theology
overpowers religion, then religion is nothing but philosophy. And the
philosophy is also not very philosophic — because philosophy can exist
only through doubt, and theology bases itself on faith. So it is
impotent philosophy, not even philosophy in the real sense. Religion is
not based on belief or faith: religion is based on awe, religion is
based on wonder. Religion is based on the mysterious that is your
surround. To feel it, to be aware of it, to see it, open your eyes and
drop the dust of the ages. Clean your mirror! and see what beauty
surrounds you, what tremendous grandeur goes on knocking at your doors.
Why are you sitting with closed eyes? Why are you sitting with such long
faces? Why can’t you dance? and why can’t you laugh?<br />
<br />
<br />
I don’t want you to drop your personality forever; I simply want you
to be capable of putting it off when it is not needed. This is the
whole art of real religion: to teach you how to put the mind off and how
to put it on.<br />
<br />
<br />
The very courageous, the really strong people, the really
adventurous, become attracted towards paths of self-realization or paths
of self-transformation. Religion is the greatest adventure there is.
Going to Everest is nothing, going to the moon also is nothing; going to
the highest peak of your being is the real task. Because in the first
place, we are not even aware that the peak exists. In the first place,
we are so unconscious that we don’t know what we are doing. We don’t
know what we are doing with our lives.<br />
<br />
A real religion is always of meditation.<br />
<br />
<br />
What type of foolishness has settled in the human heart? When the
flower is there, you avoid; and when only the emptiness is left, then
you worship. You are afraid of real religion. That’s why you become a
Hindu, a Muslim, a Christian. This is a trick of the mind, a deception.
This is a way to avoid religion, because religion will transform you.
Religion will destroy you as you are, and religion will give a new birth
to you. Something unknown will come into existence through religion and
you are afraid of that — of dying. of being reborn. So you belong to
old traditions.<br />
<br />
What to renounce? For what reason should you fast? Celebrate and
dance! A real religion is celebration; a false religion is renunciation.<br />
<br />
A religion is alive in the heart, it has nothing to do with temples
and churches. If you are moved, if a rhythm arises in you, if you start
dancing seeing Krishna or his statue, suddenly the flute on his lips is
no longer just a symbol to you, it has become a real dance. You can
listen to his tune, you can hear his tune.<br />
<br />
Real religion consists of becoming utterly silent, unconditioned,
unhypnotized. It is going beyond mind, beyond ideology; it is going
beyond scripture and beyond knowledge. It is simply falling into your
own interiority, becoming utterly silent, not knowing a thing, and
functioning from that state of not knowing, from that innocence. When
you function out of innocence, your actions have a beauty of their own.
That’s what virtue is — AES DHAMMO SANANTANO.</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://ajaytao2010.files.wordpress.com/2010/06/osho-dhara-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="204" src="http://ajaytao2010.files.wordpress.com/2010/06/osho-dhara-1.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
</div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-43830189199499417542012-10-31T23:24:00.002+05:302012-11-09T16:08:52.055+05:30Meditation<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table style="color: #134f5c;"><tbody>
<tr><td align="left" bgcolor="#ffffff" valign="top" width="542"><div align="left">
<table border="0" cellpadding="0" cellspacing="0" style="width: 620px;"><tbody>
<tr><td><table bgcolor="#ffffff" border="0" cellpadding="0" cellspacing="0"><tbody>
<tr><td align="center" style="margin-left: 1px; margin-right: 1px;" width="618"><div align="left" style="margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="font-family: Verdana; font-size: x-large;"><span style="color: #134f5c;">One
thing has to be remembered about meditation; it is a long
journey and there is no shortcut. Anyone who says there is a shortcut is
befooling you.</span><br style="color: #134f5c;" /><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;"> It is a long journey because the change is very
deep and is achieved after many lives - many lives of routine habits,
thinking, desiring. And the mind structure; that you have to drop
through meditation. In fact it is almost impossible - but it happens.</span><br style="color: #134f5c;" /><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">A
man becoming a meditator is the greatest responsibility in the world.
It is not easy. It cannot be instant. So from the beginning never start
expecting too much and then you will never be frustrated. You will
always be happy because things will grow very slowly.</span><br style="color: #134f5c;" /><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">Meditation
is not a seasonal flower which within six weeks is there. It is a very
very big tree. It needs time to spread its roots.</span></span></div>
</td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 1px; margin-right: 1px;" width="618"><div align="left" style="color: #134f5c; margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<br /></div>
<div align="left" style="margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="color: #134f5c; font-family: Verdana; font-size: x-large;"><br />
</span><span style="font-family: Verdana; font-size: x-large;"><i style="color: #134f5c;">"Meditation
is a single lesson of awareness, of no-thought, of spontaneity, of
being total in your action, alert, aware. It is not a technique, it is a
knack. Either you get it or you don't."</i><span style="color: #134f5c;"> - Osho</span><br /> </span></div>
<div align="left" style="color: #134f5c; margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="font-family: Verdana; font-size: x-large;"><br />
Ultimately, meditation is an experience which is not easily
described, like the taste of cheese -- you have to
try it to find out. But for sure anyone interested in meditation will
find something in what Osho has to say about this topic that "clicks"
for them, just like a "knack" -- including his insistence that he can be
helpful to you, but ultimately each individual has to create his path
by walking it.</span> </div>
<div align="left" style="margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div align="left" style="margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div align="left" style="margin-left: 10px; margin-right: 10px;">
<span style="font-family: Verdana; font-size: x-large;"><br />
<br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
</span></span><span style="color: #134f5c; font-family: Verdana; font-size: x-large;">MEDITATION</span><span style="font-family: Verdana; font-size: x-large;"><span style="color: #134f5c;">
is not concentration. In concentration there is a self concentrating
and there is an object being concentrated upon. There is duality. In
meditation there is nobody inside and nothing outside. It is not
concentration . There is no division between the in and the out. The in
goes on flowing into the out, the out goes on flowing into the in. The
demarcation, the boundary, the border, no longer exists. The in is out,
the out is in; it is a no-dual consciousness.</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
Concentration is a dual consciousness; that's why
concentration creates tiredness; that's why when you concentrate you
feel exhausted. And you cannot concentrate for twenty-four hours, you
will have to take holidays to rest. Concentration can never become your
nature. Meditation does not tire, meditation does not exahaust you.
Meditation can become a twenty-four hour thing - day in, day out, year
in, year out. It can become eternity. It is relaxation itself.</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
Concentration is an act, a willed act. Meditation is a state
of no will, a state of inaction. It is relaxation. One has simply
dropped into one's own being, and that being is the same as the being of
All. In Concentration the mind functions out of a conclusion: you are
doing something. Concentration comes out of the past. In meditation
there is no conclusion behind it. You are not doing anything in
particular, you are simply being. It has no past to it, it is pure of
all future, It what Lao Tzu has called wei-wu-wei, action through
inaction. It is what Zen masters have been saying: Sitting silently
doing nothing, the spring comes and the grass grows by itself.
Remember, 'by itself - nothing is being done. You are not pulling the
grass upwards; the spring comes and the grass grows by itself. That
state - when you allow life to go on its own way. When you don't want to
give any control to it, when you are not manipulating, when you are not
enforcing any discipline on it - that state of pure undisciplined
spontaneity, is what meditation is.</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
Meditation is in the present, pure present. Meditation is
immediacy. You cannot meditate, you can be in meditation. You cannot be
in concentration, but you can concentrate. Concentration is human,
meditation is divine.</span></span><br />
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
</div>
</td></tr>
<tr><td align="center" style="color: #134f5c; margin-left: 1px; margin-right: 1px;" width="618"><span style="font-size: x-large;"> Source- www.oshoworld.com</span></td><td align="center" style="margin-left: 1px; margin-right: 1px;" width="618"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 30px; margin-right: 5px;"><br /></td></tr>
<tr><td align="center" style="margin-left: 1px; margin-right: 1px;" width="618"><br /></td></tr>
</tbody></table>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
</td></tr>
<tr><td align="left" bgcolor="#ffffff" valign="top"><br /></td><td align="left" bgcolor="#ffffff" valign="top" width="542"><br /></td></tr>
<tr><td align="left" colspan="2" valign="top" width="744"><br /></td></tr>
</tbody></table>
<br /></div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-36085067349389587092012-09-09T14:21:00.000+05:302012-09-09T14:21:05.936+05:30इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.mramaravindar.org/images/img1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="213" src="http://www.mramaravindar.org/images/img1.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPHoA-iWrno2tEb26_Ul47sa1gya9l_qR8ZTdCbImhRucMaoXNnq9LiAeA2AeMbpoV07oIFgvvfWIREVDdcQBVlE9e_jz-Ii0UMPNzdBlKY7JA-DutRit-UDMa5k6lF_cJo80eUEYCaGnE/s1600/Copy+of+Good+Group.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPHoA-iWrno2tEb26_Ul47sa1gya9l_qR8ZTdCbImhRucMaoXNnq9LiAeA2AeMbpoV07oIFgvvfWIREVDdcQBVlE9e_jz-Ii0UMPNzdBlKY7JA-DutRit-UDMa5k6lF_cJo80eUEYCaGnE/s320/Copy+of+Good+Group.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.thehindubusinessline.com/multimedia/dynamic/00775/BL08_MAHA-SENIOR_775493f.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://www.thehindubusinessline.com/multimedia/dynamic/00775/BL08_MAHA-SENIOR_775493f.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.tribuneindia.com/2008/20080511/spectrum/society1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://www.tribuneindia.com/2008/20080511/spectrum/society1.jpg" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNVbyvr-__RM_Ud3VtRNucHCvvA0sf0ZaAG0pwsF-0dLqyv_zZSEVhbIFZiXGIpGntye1-GgwbwE6D7ryi_fESY0EeYNGbvuAwlIqU364iyKnBn85lc63Ei_56LEXe2pH-g0QIGkMWGQY/s1600/SM92845.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="206" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNVbyvr-__RM_Ud3VtRNucHCvvA0sf0ZaAG0pwsF-0dLqyv_zZSEVhbIFZiXGIpGntye1-GgwbwE6D7ryi_fESY0EeYNGbvuAwlIqU364iyKnBn85lc63Ei_56LEXe2pH-g0QIGkMWGQY/s320/SM92845.jpeg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.livemint.com/images/70F1AD25-E066-4B39-8D33-654F3C0AFD35ArtVPF.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://www.livemint.com/images/70F1AD25-E066-4B39-8D33-654F3C0AFD35ArtVPF.gif" /></a></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे <br />
कितने वृक्ष बढ़ते देखे कितने पत्ते गिरते देखे<br />
सावन कई सुहाने देखे और कई सावन बिन सावन देखे<br />
कई भोर की अंगडाई कई अंधियारे घनेरे देखे<br /><br />
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
हालातों के जंगल में हौसलों की डगर बनायीं</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
तिनके तिनके जोडके सुखों की थोड़ी छाँव पायी<br />
जाल विपत्ति का बिछाए रहा बहेलिया कभी<br />
जा जा कर अपने लोगों को फसते धीरे धीरे देखे<br /><br />
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
रैन वक़्त की बीत रही रैन वक़्त की बता रही</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
कानों को हौले हौले नए वक़्त की आहट आ रही<br />
जीवन जब तक तब तक होठों पे रहे मुस्कराहट<br />
इसी जज्बे से ऐसे कितने जिंदादिली से जीते देखे<br /><br />
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे</span>
<br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.speakbindas.com/wp-content/uploads/2011/09/Mavtar-Vrudhashram-Male-members.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="198" src="http://www.speakbindas.com/wp-content/uploads/2011/09/Mavtar-Vrudhashram-Male-members.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
</div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-64772835368975597042012-08-14T00:08:00.001+05:302012-08-15T00:05:22.574+05:30सामाजिक चेतना 4 : आतंकवाद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><b><br /><span id="6_TRN_a">आतंकवाद देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिए एक अभिशाप
बन चुका है और इससे आम जनमानस कितना त्रस्त है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से
लग सकता है की आज देश का नागरिक जब टी.व् खोलता है तो न्यूज़ चैनल लगते
समय उसे इस बात का हमेशा अंदेशा रहता है की कहीं उसके अपने ही या अन्य शहर
में कोई विस्फोट न हुआ हो </span>।<span id="6_TRN_a"> <br />
आतंकवाद दो तरह का होता है एक जो देश से बाहर से देश में आता है और एक जो देश के अन्दर ही पनपता है </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
एक जिसमे आतंकवादी देश में बम फोड़ते हैं निर्दोष लोगों को जान से मार
डालते हैं बाहरी आतंक का नाम देना चाहूँगा और एक जिसमे जनता के रक्षक ही
जनता को दहशत देते हैं </span>।<span id="6_TRN_a"> <br />
कभी जात-पात के नाम पे कभी धर्म मज़हब के नाम पे राजनीति करके सैकड़ों हज़ारों लोगों को सिर्फ वोट बैंक के लिए आपस में ही लड़ा देते हैं </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
इसी तरह से और भी देश के अन्दर आतंक फैलाने वाली गतिविधियाँ जो देश के ही
महत्वपूर्ण व ज़िम्मेदार लोगों द्वारा होती हैं अंदुरीनी आतंक कहलाता है
जिसका एक और उदाहरण है नक्सलवाद </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
जनता के लिए दोनों ही तरह के आतंकवाद से उबरना आवश्यक है लेकिन इससे भी
बढ़के जनता के लिए आवश्यक है भय से लड़ने के लिए आवाज़ उठाना न की भय को आतंक
को दहशतगर्दी को जीवन का एक अंग समझ के स्वीकार कर लेना </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
इसका सूक्ष्म परिणाम ये भी होता है की जनता स्वयं भी इस आतंक में उलझ सी
जाती है और जाने अनजाने भय को आतंक को बढाने लगती है बढ़ावा देने लगती है </span>।<span id="6_TRN_a"> <br />
<br />
आतंक को समाप्त तभी किया जा सकता है जब की आतंक से आतंकित न हुआ जाए इसलिए
सूक्ष्म स्तर से ही आतंक को समाप्त करना चाहिए अथार्त मन को भय से मुक्त
रखना चाहिए क्यूंकि एक भय मुक्त व्यक्ति कभी भी भय पूर्ण वातावरण का समर्थन
नहीं करता </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
<br />
निश्चित तौर पर देश में बाहर से आने वाले आतंक को बहुत ही गंभीर रूप से
लेना चाहिए और प्राथमिकता सबसे पहले इस बाहर से आने वाले आतंक के खात्मे की
रहने चाहिए क्यूंकि ये देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा भी है लेकिन साथ
ही साथ ये जान लेना चाहिए की बाहर से आने वाले आतंक का सफाया करने के लिए
ये बहुत ज़रूरी है की देश के अन्दर का भी आतंक ख़त्म हो </span>।<span id="6_TRN_a"> <br />
<br />
ये उसी तरह से है की जैसे एक आदमी को बुखार और सर दर्द दोनों है लेकिन
सिर्फ सर दर्द की दवाई लेने से उसका पूर्ण उपचार नहीं हो सकेगा पूर्ण उपचार
के लिए आवश्यक है की वो साथ में बुखार की भी दवाई ले </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
<br />
निश्चित तौर से देश में बाहर से आने वाले आतंक की समाप्ति से जनता को फौरी
तौर पे कुछ रहत मिलेगी लेकिन उसे असली राहत तभी मिलेगी जब देश में अन्दर से
होने वाले आतंक भी ख़त्म होगा </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
ये बात अलग है की एकाएक दोनों ही ख़त्म नहीं होंगे इसलिए इनके लिए लम्बी और कारगर योजनाओं के साथ लगातार क्रियान्वन ज़रूरी है </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
आतंकवाद एक ऐसा रोग है जो कम होते होते ही </span>ख़त्म <span id="6_TRN_a">होगा </span>।<br /><span id="6_TRN_a">
<br />
देश में बाहर से होने वाला आतंक आज देश के लिए सर दर्द बना हुआ है और इसके
लिए हालाँकि सरकारें कदम उठाती हैं लेकिन शायद वो उतना कारगर और पर्याप्त
नहीं है </span>।</b></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><b>
</b></span>
<br />
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><b>हम जानते हैं की देश 28 राज्य और 8 केंद्रशाषित प्रदेश हैं ।</b> </span><br />
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">भारत बहुत समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। भारत के काश्मीर, नागालैंड, पंजाब, असम, बिहार आदि विशेषरूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं. </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं उनमें जम्मू-कश्मीर, मुंबई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और सात बहन राज्य (उत्तर पूर्व के सात राज्य) (स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में) शामिल हैं. </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित थे.] अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन का कहना था कि देश में 800 से अधिक आतंकवादी गुट सक्रिय हैं।</span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> कहीं देश के कई राज्यों में हुए आतंकवादी के बारें में पढ़ा उसका उल्लेख करना चाहूँगा ।</span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">प्रमुख आतंकवादी घटनाओं का कालक्रम<br /><br />भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले का घटनाक्रम (उलटे क्रम में) इस प्रकार है-<br /><br />मुम्बई, १३ जून, २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.<br /><br />फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे. एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया.<br /><br />मुंबई, 26 नवंबर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए. भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए. हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई.<br /><br />असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।<br /><br />इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।<br /><br />मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।<br /><br />मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।<br /><br />नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।<br /><br />नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।<br /><br />अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।<br /><br />बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।<br /><br />जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।<br /><br />रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।<br /><br />अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।<br /><br />हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल।<br /><br />हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।<br /><br />फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 66 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।<br /><br />मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 30 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।<br /><br />मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।<br /><br />वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 20 लोगों की मौत।<br /><br />अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 62 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।<br />पश्चिमी भारत<br />मुंबई<br /><br />मुंबई ज्यादातर आतंकवादी संगठनों का सबसे पसंदीदा लक्ष्य रहा है, मुख्य रूप से कश्मीर की अलगाववादी ताकतों का. पिछले कुछ वर्षों में जिन हमलों की शृंखलाओं को अंजाम दिया गया उनमें जुलाई 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोट और बिल्कुल हाल में 26 नवम्बर 2008 को हुए अभूतपूर्व हमले शामिल हैं जहां दो मुख्य होटलों और दक्षिण मुंबई में स्थित एक इमारत पर कब्जा कर लिया गया था.<br /><br />मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में शामिल हैं:<br /><br /> 12 मार्च 1993 - १९९३ बंबई का बमकांड<br /> 6 दिसंबर 2002 - घाटकोपर में एक बस में बम विस्फोट कर 2 लोगों की हत्या<br /> 27 जनवरी 2003 - विले पार्ले में एक साइकिल पर बम फटने से 1 व्यक्ति की मौत<br /> 14 मार्च 2003 - मुलुंड में एक ट्रेन में बम फटने से 10 लोग मारे गये<br /> 28 जुलाई 2003 - घाटकोपर में एक बस में बम विस्फोट कर 4 की हत्या<br /> 25 अगस्त 2003 - झवेरी बाजार और गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास कारों में रखे दो बमों के फटने से 50 लोग मारे गये<br /> 11 जुलाई 2006 - ट्रेनों में सात शृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में 209 की मौत हुई<br /> 26 नवम्बर 2008 से 29 नवम्बर 2008 - २६ नवंबर २००८ मुंबई में श्रेणीबद्ध गोलीबारी</span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />जम्मू-कश्मीर<br /> </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद<br /><br />जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह में अब तक दस हजार से अधिक लोगों की जानें गयी हैं.[तथ्य वांछित] कश्मीर में उग्रवाद विभिन्न रूपों में मौजूद है. वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए. 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई. </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> भारत द्वारा पाकिस्तान के इंटर इंटेलिजेंस सर्विसेज द्वारा जम्मू और कश्मीर में लड़ने के लिए मुज़ाहिद्दीन का समर्थन करने और प्रशिक्षण देने के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है. </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जम्मू और कश्मीर विधानसभा (भारतीय द्वारा नियंत्रित) में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां लगभग 3,400 ऐसे मामले थे जो लापता थे और संघर्ष के कारण यथा जुलाई 2009 तक 47000 लोग मारे गए. बहरहाल, पाकिस्तान और भारत के बीच शांति प्रक्रिया तेजी से बढ़ने के क्रम में राज्य में उग्रवाद से संबंधित मौतों की संख्या में थोड़ी कमी हुई है. </span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />नयी दिल्ली<br /><br /><br />भारत की राजधानी नयी दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को तीन विस्फोट किये गये जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए और कम से कम 200 अन्य लोग घायल हो गए. विस्फोटों में 2005 में भारत में विस्फोटों से घातक हमलों में मारे गये लोगों की संख्या सर्वाधिक रही.उसके बाद 13 सितम्बर 2008 को 5 बम विस्फोट किये गये.</span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">भारतीय संसद पर हमला<br /><br />१३ दिसंबर २००१ को आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया जिसमें ४५ मिनट तक गोलीबारी होती रही जिसमें ९ पुलिसकर्मी और संसद कर्मचारी मारे गए| सभी पांच आतंकवादी भी सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए और उनकी पहचान पाकिस्तानी नागरिकों के रूप में की गयी| हमला भारतीय समयानुसार सुबह ११:४० के आसपास हुआ जिसके कुछ ही मिनटों बाद संसद के दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया|<br /><br />उत्तर प्रदेश<br />वाराणसी बम धमाके<br /><br />वाराणसी में 7 मार्च 2006 को शृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए. रिपोर्ट के अनुसार इसमें पंद्रह लोग मारे गये और कम से कम 101 अन्य घायल हो गये. हमलों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि ये बम विस्फोट वाराणसी में इस घटना से पहले फरवरी 2006 में लश्कर- ए-तैय्यबा के एजेंट की गिरफ्तारी की जवाबी कार्रवाई के तौर पर किया गया.<br /><br />5 अप्रैल 2006 को भारतीय पुलिस ने छह इस्लामी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया जिसमें एक मौलवी भी शामिल है, जिसने बम विस्फोट की योजना बनाने में मदद पहुंचायी. माना जाता है कि मौलवी बांग्लादेश में प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी गुट हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी का एक कमांडर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस से जुड़ा हुआ है.</span></h2>
<h2 style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">पूर्वोत्तर भारत<br /><br /><br />पूर्वोत्तर भारत में 7 राज्य शामिल हैं (जिन्हें सात बहनों के नाम से भी जाना जाता है) आसाम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड. इन राज्यों और केन्द्र सरकार तथा इस राज्य के मूल निवासी आदिवासियों और भारत के अन्य भागों से यहां आये प्रवासी लोगों के बीच तनाव होते रहते हैं.<br /><br />राज्यों ने नयी दिल्ली पर आरोप लगाया है कि वह उनसे सम्बंधित मुद्दों की अनदेखी कर रही है. इस भावना के कारण इन राज्यों के निवासियों में शासन में अपनी भागीदारी अधिक रखने की मांग उठने लगी है. मणिपुर और नगालैंड के बीच क्षेत्रीय विवाद विवाद कायम है.<br /><br />पूर्वोत्तर, खासकर आसाम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों में विद्रोही गतिविधियों और क्षेत्रीय आंदोलनों में वृद्धि हुई है. इनमें से अधिकांश संगठनों ने स्वतंत्र राज्य का दर्जा या क्षेत्रीय स्वायत्तता और संप्रभुता में वृद्धि की मांग की है.<br /><br />उत्तर पूर्वी क्षेत्र में तनाव खत्म करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर को उठाने के ठोस प्रयास कर रही हैं. हालांकि, आतंकवाद भारत के इस क्षेत्र में अब भी मौजूद है, जिसे बाहरी स्रोतों से समर्थन प्राप्त है.<br />नगालैंड<br /><br />और शायद पहली बार सबसे महत्वपूर्ण उग्रवाद 1950 के दशक के में नगालैंड में प्रारम्भ में शुरू हुआ और उस पर अन्ततः 1980 के दशक की शुरूआत में दमन और सह-स्थापना के मिश्रण प्रयासों से काबू पा लिया गया. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड, इसाक मुइवा (NSCN-IM), ने एक स्वतंत्र नगालैंड की मांग है और इस क्षेत्र में भारतीय सेना के ठिकानों पर कई हमले किए. सरकारी अधिकारियों के अनुसार 1992 से 2000 के बीच 599 नागरिकों, 235 सुरक्षाबलों और 862 आतंकवादियों ने अपनी जान गंवाई है.<br /><br />14 जून 2001 को भारत सरकार और NSCN-IM के बीच एक संघर्ष-विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गये, जिसे नगालैंड में व्यापक स्वीकृति और समर्थन प्राप्त हुआ. नगा नेशनल काउंसिल-फेडरल (NNC-F) और नेशनल काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (NSCN-K) जैसे आतंकवादी संगठनों ने भी विकास का स्वागत किया.<br /><br />कुछ पड़ोसी राज्यों, खासकर मणिपुर ने संघर्ष विराम पर गंभीर चिंता जतायी. उन्हें डर था कि कहीं NSCN अपने राज्य में आतंकवादी गतिविधियों को न जारी रखे और नयी दिल्ली से युद्धविराम समझौते को रद्द करते हुए और सैन्य कार्रवाई का नवीकरण न कर दे. संघर्ष-विराम के बावजूद NSCN ने अपने विद्रोह को जारी रखा[तथ्य वांछित].<br />असम<br /><br />नगालैंड के बाद असम क्षेत्र का सबसे अधिक अस्थिर राज्य है. 1979 के प्रारम्भ में असम के स्थानीय लोगों ने मांग की कि उन अवैध आप्रवासियों को चिह्नित किया जाये और वापस भेज दिया जाये जो बांग्लादेश से असम आये थे. अखिल असम छात्र संघ के नेतृत्व में सत्याग्रह, बहिष्कार, धरना और गिरफ्तारी देकर अंहिसक ढंग से अपना आंदोलन शुरू किया गया.<br /><br />जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे उन पर पुलिस कार्रवाई हुई. 1983 में एक चुनाव हुआ जिसका आंदोलन के नेताओं ने विरोध किया. चुनाव में व्यापक हिंसा हुई. आंदोलन अंतत: आंदोलन के नेताओं के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद समाप्त हुआ (जिसे असम समझौता कहते हैं) जो केन्द्र सरकार के साथ 15 अगस्त, 1985 को हुआ.<br /><br />इस समझौते के प्रावधानों के अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति जिसने राज्य में अवैध रूप से जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच प्रवेश किया है उसे रहने की अनुमति है लेकिन दस साल बाद उसे बेदखल होना पड़ेगा, जबकि जिन लोगों ने 1971 के बाद राज्य में प्रवेश किया है उन्हें निष्कासन झेलना पड़ेगा. नवम्बर 1985 में भारतीय नागरिकता कानून में संशोधन कर चुनाव में मतदान के अधिकार को छोड़कर शेष सभी नागरिकता अधिकार 10 वर्ष के लिए उन लोगों को दिये गये जिन्होंने 1961 से 1971 के बीच असम में प्रवेश किया था.<br /><br />नयी दिल्ली ने भी राज्य में बोडो को विशेष प्रशासन स्वायत्तता दी. हालांकि, बोडो समुदाय के लोगों ने एक अलग बोडोलैंड की मांग की जिसके कारण बंगालियों, बोडो और भारतीय सेना के बीच संघर्ष छिड़ गया परिणामस्वरूप सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गये.<br /><br />कई संगठन हैं जो असम की स्वतंत्रता की वकालत कर रहे हैं. जिनमें से सबसे प्रमुख ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम) है. 1971 में स्थापित ULFA के दो मुख्य लक्ष्य हैं असम की स्वतंत्रता और समाजवादी सरकार की स्थापना.<br /><br />ULFA ने 1971 में भारतीय सेना और असैनिकों को लक्ष्य करके क्षेत्र में कई आतंकवादी हमले किए हैं. इस समूह ने राजनैतिक विरोधियों की हत्या, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों पर हमले किये हैं, रेल पटरियों को उड़ाया है और अन्य बुनियादी सुविधाओं की स्थापनाओं पर हमले किये हैं. माना जाता है कि ULFA के नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) , माओवादियों और नक्सलियों के साथ मजबूत संबंध हैं.<br /><br />यह भी विश्वास किया जाता है वे अपने ज्यादातर अभियानों को भूटान राज्य से संचालित करते हैं. ULFA के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने 1986 में समूह को गैरकानूनी और असम को एक अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया. नयी दिल्ली के दबाव में भूटान ने अपने क्षेत्र से ULFA उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया.<br /> भारतीय सेना ने ULFA के भावी हमलों को विफल करने के उद्देश्य से कई सफल अभियान चलाया है लेकिन ULFA क्षेत्र में सक्रिय बना हुआ है. 2004 में ULFA ने असम में एक पब्लिक स्कूल को निशाना बनाया जिसमें 19 बच्चे और 5 वयस्क लोग मारे गए.<br /><br />असम पूर्वोत्तर में एकमात्र राज्य है, जहां आतंकवाद अभी भी एक प्रमुख मुद्दा है. भारतीय सेना अन्य क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को खत्म करने में कामयाब हो गयी थी लेकिन आतंकवादियों से निपटने के लिए कथित रूप से कठोर तरीके का इस्तेमाल करने के लिए मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचना की गयी.<br /><br />18 सितम्बर 2005 को एक सिपाही जिरीबाम, मणिपुर में मणिपुर-असम सीमा के निकट उल्फा के सदस्यों के हाथों मारा गया.<br />त्रिपुरा<br /><br />त्रिपुरा में 1990 के दशक में आतंकवादी गतिविधियों में काफी उथल पुथल देखी गयी. नयी दिल्ली ने विद्रोहियों को अपने क्षेत्र से विद्रोही कार्यकलापों के संचालन के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के लिए बंगलादेश को दोषी ठहराया. त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के नियंत्रण के अधीन इस क्षेत्र में नयी दिल्ली, त्रिपुरा राज्य सरकार और परिषद के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता के बाद वृद्धि की गयी. सरकार ने उसके बाद आंदोलन पर नियंत्रण कर लिया है, हालांकि कुछ विद्रोही गुट अभी भी सक्रिय हैं.<br />मणिपुर<br /><br />मणिपुर में आतंकवादियों ने एक संगठन स्थापित किया है जिसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी कहते हैं. उनका मुख्य लक्ष्य बर्मा की जनजातियों मेइती लोगों को एकजुट करना और स्वतंत्र राज्य मणिपुर की स्थापना करना है. हालांकि माना जाता है कि आंदोलन 1990 के दशक के मध्य में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा भीषण संघर्ष के बाद दबा दिया गया.<br /><br />18 सितम्बर 2005 को छह अलगाववादी विद्रोहियों छुरछंदपुर जिले में झूमी रिवोल्यूशनरी आर्मी और झूमी क्रांतिकारी मोर्चा के बीच संघर्ष में मारे गए.<br /><br />कंगली यावोल कन्ना लूप (KYKL) क्षेत्रीय संगठन के AK-56 राइफल्स से लैस विद्रोहियों ने 20 सितम्बर 2005 को मणिपुर की राजधानी इंफाल से 22 मील दूर दक्षिण पश्चिम के नारिआंग गांव में 14 भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया और मार डाला. भारत सरकार के एक प्रवक्ता के अनुसार "अज्ञात विद्रोहियों ने स्वचालित हथियारों से हमला कर सड़क पर गश्त कर रहे सेना के गोरखा राइफल्स के आठ जवानों को मौके पर ही मार डाला.<br />मिज़ोरम<br /><br />मिजो नेशनल फ्रंट आजादी प्राप्त करने के लिए भारतीय सेना से 2 दशकों से अधिक अवधि से लड़ाई लड़ रहा है. अन्य पड़ोसी राज्यों की तरह यहां भी उग्रवाद पर सेना ने काबू पा लिया.<br />दक्षिण भारत<br />कर्नाटक<br /><br />कर्नाटक ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थानों और भारत के आईटी हब (सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र), बेंगलुरू होने के बावजूद आतंकवाद से काफी कम प्रभावित है. हालांकि, पश्चिमी घाट में हाल में नक्सली गतिविधि बढ़ रही है. इसके अलावा कुछ हमले हुए हैं जिनमें 28 दिसम्बर 2005 को IISc पर हमला और बेंगलुरू में 26 जुलाई 2008 को हुए सीरियल बम विस्फोट प्रमुख हैं.<br />आंध्र प्रदेश<br /><br />आंध्र प्रदेश आतंकवाद से प्रभावित कुछ दक्षिणी राज्यों में से एक है, हालांकि यह एक अलग तरह का और बहुत छोटे पैमाने पर है. आंध्र प्रदेश में आतंकवाद पीपुल्स वार ग्रुप या PWG की उपज है जो नक्सलाइट के नाम से जाना जाता है.<br /><br />'PWG' भारत में दो दशक से अधिक अविध से सक्रिय है उसके ज्यादातर अभियान आंध्र प्रदेश के तेलंगाना में चलाये जाते हैं. यह दल उड़ीसा और बिहार में भी सक्रिय है. कश्मीरी आतंकवादियों और ULFA के विपरीत PWG एक माओवादी आतंकवादी संगठन है और साम्यवाद इसके प्राथमिक लक्ष्यों में से एक है.<br /><br />चुनाव में व्यापक समर्थन पाने में नाकाम रहने के कारण वे अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं. समूह साम्यवाद के नाम पर भारतीय पुलिस, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अन्य प्रभावशाली संस्थानों को अपना निशाना बनाता है. PWG ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को अपना निशाना बनाया है, जिसमें आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या करने का प्रयास भी शामिल है.<br /><br />कथित तौर पर इन सशस्त्र आतंकवादियों की संख्या 800 से 1000 है और इनका नेपाल के माओवादियों और श्रीलंका के LTTE (लिट्टे) के साथ घनिष्ठ संबंध माना जाता है. भारत सरकार के अनुसार औसतन 60 से अधिक नागरिक, 60 नक्सली विद्रोही और एक दर्जन पुलिसकर्मी हर साल PWG के नेतृत्व वाले उग्रवाद में मारे जाते हैं.इसके बड़े आतंकवादी हमलों में 25 अगस्त 2007 को हैदराबाद में हुआ हमला प्रमुख है.<br />तमिलनाडु<br /><br />तमिलनाडु में LTTE लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने तक सक्रिय रहा. LTTE ने तमिलनाडु राज्य में वेलुपिल्लई प्रभाकरन, तमिलसेल्वन और ईलम के अन्य सदस्यों के नेतृत्व में कई वक्तव्य दिये.<br />तमिलनाडु को मुस्लिम कट्टरपंथी आतंकवादी द्वारा किये गये हमलों का भी सामना करना पड़ता है. <br /><br />जैसा की मैंने भी कहा आतंक को मिटाने के लिए सबसे आवश्यक है है कारगर रणनीति और उसका क्रियान्वन इसके ही साथ इसे एकजुटता और प्राथमिकता से लेते हुए अनुशाषित तरह से चलना होगा ।<br />इसमें दीर्घ प्रयास और सोच की ज़रूरत तो है ही साथ ही हमे भयमुक्त वातावरण समाज में भी बनाना होगा ताकि जनता पूरी मानसिक दृढ़ता से इस गंभीर समस्या से लड़ सके ।</span></h2>
<h2>
</h2>
</div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-83276573835820273982012-08-12T00:04:00.001+05:302012-08-12T00:04:51.116+05:30सामाजिक चेतना 3 : भ्रष्टाचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">भ्रष्टाचार आज देश की सबसे बड़ी समस्या है और कई बड़ी समस्याएं जैसे
आतंकवाद,मंहगाई,अशिक्षा,अपराध आदि में इसी भ्रष्टाचार का ही सबसे अधिक
योगदान है । <br />
<br />
<br />
यदि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आयें तो हम पायेंगे की हमारे आस पास के माहौल
में भ्रस्टाचार इस प्रकार लिप्त है की शायद 24 घंटों में हम इसका सामना
किसी न किसी रूप से करते ही रहते हैं <br />
एक आम आदमी अपनी कार या बाइक से निकलता है तो हेलमेट लगाने के बावजूद उसे
ये डर रहता है की कोई ट्रैफिक वाला उसे रोकके उगाही न करे । <br />
एक आदमी राशन कार्ड लेके जाता है तो राशन वाले से उसे पर्याप्त सामान ही नहीं मिल पाता ।<br />
एक आम आदमी अपने घर में बैठा रहता है तो भी उसे अराजक तत्वों द्वारा दिन दहाड़े लूटे जाने का भय रहता है ।<br />
एक आम आदमी कई बार लूटे जाने पर जिस पुलिस के पास जाता है उसे मालूम ही
नहीं रहता है की अपराधी से एक हिस्सा उन पुलिस वालों को भी मिलता है यानी
उसके साथ जो चोरी हुई उसमे पुलिस की शय थी और एक तरह से पुलिस भी शामिल थी ।<br />
एक आम आदमी जब अपने ऊपर किसी गुंडे द्वारा अत्याचार की रिपोर्ट लिखाने जब
पुलिस स्टेशन जाता है तो कई बार तो उसे ही अपराधी जैसा सुलूक सहना पड़ता है
या फिर उससे भी पैसे मांगे जाते हैं ।<br />
एक आम आदमी जब पढ़ाई पूरी कर लेता है तो उसे पता चलता है की सरकार ने रोज़गार का कोई प्रबंध नहीं रखा है? <br />
एक किसान फसल पैदा करके भी कई बार भूखा सो जाता है क्यूँ ?<br />
एक आम आदमी जब मंहगाई बढती हुई देखता है तो वो किसके आगे अपना दुखड़ा रोये
?आज उसने दो वक़्त की जगह एक वक़्त खाना शुरू कर दिया लेकिन <br />
क्या ये एक वक़्त का भोजन भी सरकार उससे छीन लेगी ?<br />
क्या हमे मालूम है कई शहरों में एक आम आदमी को घर की कहना बनाने की गैस 45
दिन में मिलती है और कई बार तो उसे ब्लैक में खरीदनी पड़ती है ।<br />
एक आम आदमी जब आचे नंबर पाके किसी नौकरी में इंटरवीव को जाता है तो भी
योग्य होने के बावजूद वो नौकरी किसी ऐसे व्यक्ति को दे दी जाती है जिसने
घूस खिलाया हो ।<br />
<br />
इस तरह से और भी बारीकी से हम देखेंगे तो पता चलेगा की ये सिर्फ भ्रष्टाचार
का मुद्दा ही इतना व्यापक है और आम आदमी इसमें जकड़ा हुआ है की जो बाकी
मुद्दे अथार्त समस्याएं हैं जो की पिछली पोस्ट में लिखी गयीं थी उनके बीच
में इस आम आदमी की क्या दशा है । <br />
ये आम आदमी को हम थोड़ी राहत भ्रष्टाचार को कम करके दे सकते हैं और इसके लिए
अपने अपने क्षेत्र में हमे दिल से इमानदार रहना है,रहना होगा और इमानदारी
का आदर करना चाहिए क्यूंकि हम भी आम जनमानस का ही हिस्सा हैं । <br />
<br />
आईये अब चलते चलते थोडा बड़े लेवल के उस भ्रष्टाचार का भी अवलोकन कर लें
जिसमे जो घोटाले का पैसा है वो उसी नीचे लेवल के आदमी का है जिसे हम आम
आदमी कहते हैं ये जनता की ही खून पसीने की कमाई थी जिसे हडपा गया और जिसके
कारण एक आम आदमी को इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है<br />
कि वो दो जून के निवाले को तरस गया है ।<br />
कहीं मैंने पढ़ा और मुझे ये बहुत ज़रूरी लगा तो शेयर कर रहा हूँ । <br />
<br />
</span><div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">आजादी के बाद से लेकर अब तक प्रमुख घोटोले- </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- जीप घोटाला (1948) वी.के. कृष्णा मेनन (आजाद) भारत का पहला घोटाला।के सचिव फंसे)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- मुद्रा मैस घोटाला (1956) टीटी कृष्णामाचारी व हरिदास मुद्रा (फिरोज गांधी ने किया खुला</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- सायकल आयात इंपोर्टस घोटाला (1951) एस.ए. वेंकटरमन। (वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय सा] फंसे वित्त मंत्री)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- 1956 बीएचयू फंड घोटाला] आजाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- तेजा लोन (1960)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- कैंरों घोटाला (1963) प्रताप सिंह कैंरों (पंजाब)। (आजाद भारत में मुख्यमंत्री पद के दुरूपयोग का पहला मामला)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- पटनायक घोटाला (1965) बीजू पटनायक।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-
नागरवाला कांड (1971) इंदिरा गांधी (दिल्ली के पार्लियामेन्ट स्ट्रीट
स्थित स्टेट बैंक शाखा मे लाखों रूपये मांगने का मामला इसमे इंदिरा गांधी
का नाम भी उछला)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- मारूति घोटाला (1974) इंदिरा गांधी संजय गांधी।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- कुओ आइल डील (1976) इंदिरा गांधी संजय गांधी (आईओसी ने ह्यंगकांग की फर्जी कम्पनी के साथ डील की] बड़े स्तर पर घूस का लेनदेन)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- अंतुले ट्रस्ट (1981) एआर अंतुले।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- बोफोर्स घोटाला (1987) राजीव गांधी।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- बिटुमेन घोटाला तांसी भूमि घेटाला सेंट किट्स घोटाला (1989) वी.पी. सिंह</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>पशुपालन मामला (1990)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>- अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम चुरहट लॉटरी स्कैम एयरबस स्कैंडल (1990)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज घोटाला (1992) हर्षद मेहता।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-इंडियन बैंक घोटाला (1992)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>सिक्योरिटी स्कैम (1992)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-जैन हवाला डायरी कांड (1993)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-हवाला कांड (1993) कई राजनीतिज्ञ</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-चीनी आयात (1994)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-बैंगलोर-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर (1995)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>जेएमएम सांसद घूसकांड (1995)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-जुता घोटाला (1995) जूता व्यापारियों ने फर्जी सोसायटी बनाकर सरकार को चूना लगाया।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-टेलीकॉम घोटाला (1996) सुखराम।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-चारा घोटाला (1996) लालू यादव।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-यूरिया घोटाला (1996) पीवी प्रभाकर राव।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-संचार घोटाला (1996) लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-ताबूत घोटाला (1996)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-मैच फिक्सिंग (2000)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-यूटीआई घोटाला केतन पारेख कांड (2001)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-बराक मिसाइल डील] तहलका स्कैंडल (2001)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-होम ट्रेड घोटाला (2002)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-ताज गलियारा मामले (2003) मायावती</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2003)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>अब्दुल करीम तेलगी – स्टॉम्प घोटाला।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-तेल के लिए अनाज कार्यक्रम घोटाला (2005) ] नटवर सिंह</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2008) सत्यम घोटाला (2008)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-मधुकोड़ा मामला (2008)</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-स्पेक्ट्रम घोटाला (2009) द्रमुक परिवार।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-झारखंड डकैती] हवाला लेनदेन (2009) मधु कोड़ा।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-आदर्श सोसायटी मामला (2010)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-कॉमनवेल्थ घोटाला (2010)।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-2जी स्पेक्ट्रम घोटाला।</strong> </span></div>
<div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;">- <b>विदेश में दबा लगभग 400 लाख करोड़ का काला धन </b><strong><br /></strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c; padding-left: 30px;">
<span style="font-size: x-large;"><strong>-हसन अली – विदेशी बैंको में काला धन।</strong></span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> -<b>वर्तमान यूपीऐ सरकार द्वारा कम से कम 2 लाख करोड़ का कोयला घोटाला </b></span>
</div>
<b><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span></b><div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">यहाँ ये बात गौर तलब है कि इनमे से कई कि अभी तक जांच ही नहीं शुरू
हुई,कई में साक्ष्य का अभाव बताके मामले को लटका दिया गया है और कई में </span><span style="font-size: x-large;">दोषी पाए जाने पर भी उन्हें दण्डित तक नहीं किया गया है ।</span></div>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
</span><br /></div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-4776770175614594982012-08-09T23:30:00.001+05:302012-08-11T22:30:27.404+05:30सामाजिक चेतना 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">आजकल देश में टीम अन्ना और बाबा रामदेव जी द्वारा उठाये गए मुद्दों से
ज्यादा इन दोनों शक्सियत और इनके विरोधभासों पर बात हो रही है । <br />
मुझे इस बात में कोई सार नज़र नहीं आता की मुद्दों से ज्यादा हम मुद्दे उठाने वालों पर ही बात प्रारंभ कर दें ।<br />
ऐसा क्यूँ किया जाता है ?<br />
कौन लोग ऐसा करते हैं ?<br />
आखिर सरकार या अन्य राजनीतिक पार्टियाँ देश को अपने कार्यकाल का १० प्रतिशत भी क्यूँ नहीं दे पातीं ?<br />
आखिर मुद्दों पर ध्यान देने से मीडिया भी क्यूँ बचता है ?<br /><br />
इन सब बातों में हमारे अथार्त जनता के पड़ने का मतलब यही हुआ की हम भी मुद्दों से भटक रहे हैं ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
जन लोकपाल और काला धन दोनों ही मुद्दों पर सरकार को न सिर्फ सकारात्मक रुख
अपनाना चाहिए बल्कि देश की जनता की आवाज़ को आदर देते हुए व्यापक ज़रूरी कदम
भी उठाने चाहिए।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
निश्चित रूप से उपरोक्त दो मुद्दे सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों में से है
क्यूंकि ये ऐसी समस्याएं हैं जिनसे आज जनमानस सबसे अधिक त्रस्त है ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
लेकिन इसके साथ साथ ये भी बहुत महत्वपूर्ण है की बाकी समस्यायों को भी हम ध्यान में रखें ।<br /><br />
आज जो गंभीर समस्याएं देश के सामने खड़ी हैं वो विभिन्न प्रकार की हैं व उनके भी अलग अलग विभाग हैं । मोटे तौर पर वे समस्याएं हैं </span>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
भ्रष्टाचार</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
घोटालेबाजी<br />
सरकार द्वारा </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">भ्रष्टाचार की </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">जांच न कराना <br />
आतंकवाद<br />
मंहगाई <br />
अशिक्षा <br />
बेरोज़गारी <br />
गरीबी <br />
लघु उद्योगों का पतन<br />
बाल-मजदूरी</span><br />
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">वैश्यावृत्ति</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"> <br />
गुंडा-गर्दी <br />
भुकमरी <br />
तानाशाही <br />
बाढ़ <br />
सूखा <br />
नक्सलवाद <br />
जातिवाद <br />
क्षेत्रवाद<br />
नस्लवाद <br />
चोरी/डकैती</span><br />
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">बलात्कार </span><br /><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
क़त्ल <br />
अपहरण<br />
हिंसा<br />
धर्मवाद </span><br />
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">जनसँख्या <br />
प्रवासी समस्या <br />
नकली नोट <br />
भाषा की समस्या (राष्ट्रीय भाषा की उपेक्षा व अंग्रेजी का आधिपत्य) <br />
पर्यावरण की समस्याएं <br />
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था <br />
चुनाव सम्बन्धी समस्याएं (मत पहचान पत्र आदि )<br />
जनता में डर व्याप्त होना <br />
जनता तक सरकारी योजानाओं की जानकारी न पहुंचना <br />
संसद द्वारा ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा न किया जाना <br />
संसद द्वारा ज़रूरी विधेयक/बिल पारित न करना <br />
नेताओं का जनता की तरफ संवेदनशील रुख न होना <br />
मीडिया का भी व्यापारीकरण होना <br />
सरकार द्वारा मीडिया के काम में दखल <br />
मीडिया द्वारा अपना कार्य सही तरह से न निभाना <br /><br />
ये ऐसे मुद्दे हैं जिनसे आज देश व समाज चौतरफा घिरा हुआ है और इनसे निपटने का कोई सार्थक कदम सरकार द्वारा नहीं उठाया गया है ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
इनमे से कई समस्याएं इस सरकार से भी पहले से हैं यानी बीसों सालों से लेकिन ये मुद्दे ऐसे ही बने हुए हैं । इसमें सबसे बड़ा कारण देश की जनता में जागरूकता और एकजुटता की कमी मुझे लगती है जिसके कारण भ्रष्ट लोग सत्ता पाते हैं व मनमानी करते हैं । <br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;"></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"></span></div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-81445288247102914152012-08-04T17:17:00.000+05:302012-08-04T17:54:46.311+05:30सामाजिक चेतना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">देश की व समाज की समस्याएं एक ही हैं यानी हमारे देश की जनता की समस्या ही
हमारे समाज की समस्या है लेकिन जो देश की </span>
<span style="font-size: x-large;">समस्याएँ हैं</span> <span style="font-size: x-large;">उनमे कुछ नितांत देश हित
से जुडी हुई हैं हालाँकि वो भी अपरोक्ष रूप से समाज की ही समस्याएं हैं <span class="st">।</span><br />
इन मुद्दों को,इन सामाजिक समस्याओं को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है इनके
प्रति जागरूक होने से ही ये धीरे धीरे समाधान की तरफ अग्रसर होंगी <span class="st">।</span><br /><br />
तो एक विभाग है मुद्दों का जो देश की अस्मिता,रक्षा से सम्बंधित है और एक
विभाग है जो पूर्णतया सामाजिक मुद्दों पर आधारित है इन्हें समझना होगा और
इन्हें ऐसे समझना होगा अथार्त इस दृष्टिकोणसे समझना होगा की इनके
समाधान की तरफ भी बढ़ना होगा </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
इसके साथ साथ जिसके द्वारा इन मुद्दों का निदान होना है यानी सरकार उसकी दशा व दिशा भी समझनी होगी </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
यानी एक चार्ट बनके उभर रहा है या ये कहें की प्रारूप जिसमे हम देखेंगे की </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
<b><br />
देश के मुद्दे क्या हैं ?<br />
सरकार की प्राथमिकता क्या है ?<br />
विपक्ष व अन्य दलों की क्या सोच है?<br />
सरकार की मुद्दों के प्रति क्या सोच है,कितनी गंभीरता है ?</b>
<br />
अब इसके साथ साथ टाइम फैक्टर यानी <b>समय चक्र</b> को भी ध्यान में रखना है अथार्त ये रीविव ये समीक्षा एक निश्चित समय पर होनी आवश्यक है की<br /><br />
<b>कौन कौन से मुद्दों में कितना सुधार आया है ?<br />
कौन कौन से मुद्दे समाप्त हुए हैं?<br />
कौन से नए मुद्दे और आ गए हैं ?<br />
और इन मुद्दों को हल करने की दिशा में सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग का कितना व कैसे योगदान रहा ?<br />
और क्या अच्छा हो सकता था ?वे क्या कारण रहें जिनकी वजह से मुद्दों में हीलाहवाली रही अथार्त वो समाधान को उपलब्ध नहीं हो पाए ? </b></span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><b><br />
</b> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जिससे ये सुनिश्चित हो की <b>मुद्दे समाधान की दिशा</b> में ठीक जा रहे हैं ?<br /><br /><br /><br />
ये ऊपरी खाका खींचा है मैंने, बिलकुल ऊपरी जिसके आधार पर अब इस श्रृंखला को आगे बढ़ाऊंगा?</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे हिसाब से सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग,समाज सुधारकों आदि जितने भी ऐसे कारक हैं </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
जिनकी वजह से ये मुद्दे हल हो सकते हैं उनमे भी सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि सबसे अधिक दायित्व व सामर्थ्य
सरकार के पास ही होता है <span class="st">।</span><br /><br /><br />
आज देश की हालत क्या है ?</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
सरकार कैसे चल रही है ?<br />
सरकार की प्राथमिकता क्या दिखाई दे रही है ?<br />
अपने सत्ता काल में सरकार ने मुद्दों को हल करने के लिए क्या भूमिका निभायी या मुद्दे किस दशा में रहे ?<br /><br />
ये सारी बातें आम जनता से छुपी नही हैं क्यूंकि जैसा की कल सेवानिवृत जनरल
वी के सिंह ने कहा की देश में 1975 जैसे हालात हो गए हैं और जैसे उस समय
जयप्रकाश जी ने मुहीम चलाई थी वैसे ही आन्दोलन,आक्रोश,चेतना,धैर्य व सूझबूझ
व उससे भी ऊपर आपसी एकता की आवश्यकता है इस भ्रष्ट तंत्र से देश को बचाने
के लिए </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
यानी मुद्दों से बड़ा मुद्दा जो इस समय देश के सामने है वो है मुद्दों को
और बिगड़ने से बचाना वो भी उनसे जिन्हें इन्हें सुलझाना था </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
यानी रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं और ये तस्वीर है इस समय की </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
परन्तु इसके साथ एक सवाल और जुड़ा हुआ है और वो ये की इस सत्तारूढ़ दल के
बाद जो भी सत्ता में आएगा उससे भी हमे बहुत अपेक्षा नहीं कर सकते या यूँ
कहे की वो भी ऐसे ही निकलें तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए क्यूंकि पिछले 60
सालों से यानी आज़ादी के बाद से हम देख रहे हैं की देश की समस्याएं कितनी
बढ़ी और कितनी घटीं </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
ऐसी स्थिति में आम नागरिक मायूस होता है और उसे ये लगता है की वो जिसे भी
वोट देगा वो ही गद्दार निकलेगा,चोर निकलेगा,समाज के मुद्दों का तो जैसे
कचरे के डिब्बे में कूड़ा डाला जाता है वैसा ही हाल होगा <span class="st">।</span><br /><br />
ऐसी स्थिति में टीम अन्ना या ऐसे लोग जो साफ़ छवि वाले हैं इनका राजनीति में
आने की घोषणा करना एक बहुत ही स्वस्थ सन्देश है न सिर्फ देश के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
क्यूंकि इनके आने से निस्संदेह राजनीति में जो गन्दगी है कम होगी और बाकी दलों के नेता कुछ तो जनता का भला करने का सोचेंगे <span class="st">।</span><br /><br />
लेकिन मुझे हंसी आती है ऐसे लोगों और नेताओं पर जो टीम अन्ना के मैदान में आने पर उनका मनोबल तोड़ने में लग गए हैं </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
इनका तो समझ में आता है क्यूंकि इनका हित नहीं होने वाला अच्छे लोगों के
राजनीति में आने से परन्तु आश्चर्य और दुखद ऐसे लोगों की बातें सुनकर होता है जो बुद्धिजीवी वर्ग,मीडिया वर्ग से व समाज सुधारक वर्ग से हैं और वे भी टीम अन्ना को हतोत्साहित करने में लग गए <span class="st">।</span></span> <span style="font-size: x-large;"><br /><br />
निस्संदेह ये लोग नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं और देश को सबसे ज्यादा खतरा भ्रष्ट नेताओं के साथ </span><span style="font-size: x-large;">ऐसे ही लोगों से है </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
इन गद्दारों की वजह से ही देश आज़ाद होके भी गुलाम की तरह है ये आस्तीन में
छुपे हुए वो सांप हैं जिन्हें सिर्फ धन,बल,सम्पदा व सामर्थ्य से मतलब है
क्यूंकि इसके अलावा इन्हें किसी बात से मतलब नहीं होता <span class="st">।</span><br /><br /><br />
भ्रष्ट नेताओं को बार बार जितवाने में ऐसे ही दूषित व गद्दार सोच वालों का सबसे बड़ा योगदान होता है </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
इसके साथ- साथ मैं ये भी कहूँगा की अच्छे लोगों के राजनीति में आने से एक
बड़ा वर्ग खासकर देश का युवा वर्ग जो वोट</span><span style="font-size: x-large;"> डालने नही जाता अब जाएगा </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br /><br />
एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है </span>
<span style="font-size: x-large;"><b>इलेक्शन कार्ड यानी मत पहचान पत्र</b> का <span class="st">।</span><br /><br />
मेरा मानना है ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए चुनावों से पहले की </span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
1. सभी मत का अधिकार रखने वाले लोगों के पास मत पहचान पत्र हो </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">2. और जब वे मत देने जाएँ तो लिस्ट में उनका नाम हो <span class="st">।</span></span>
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-9310959382076467012012-08-02T00:51:00.002+05:302012-08-04T17:00:26.325+05:30बेशरम सरकार - संवेदनहीनता,नपुंसकता या नंगापन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />
टीम अन्ना के अनशन का आँठवा दिन और सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br />
<br />
ये कैसी सरकार जो एक तरफ इतने डर में है की राज्यों की बिजली ही कटवा दे रही है और एक तरफ<br />
इतनी संवेदनशीलता नहीं जुटा पा रही है की देश हित के लिए अनशन पर बैठने
वाले लोगों को सम्मान दे सके उनका हालचाल ले सके उनसे संवाद स्थापित कर
सके </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br /><br />
ये देश की बदकिस्मती है की ऐसी सरकार देश ने पायी है जो पकडे गए
आतंकवादियों को तो सुरक्षा प्रदान करती है और रामलीला मैदान पर सो रहे
निहत्थे लोगों पर पुलिस बल का प्रयोग करवाती है </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> <br />
ये कैसी सरकार है जो घोटाले पर घोटाले कर रही है और घोटाले करने वाले मंत्रियों को और बड़े पद दे रही है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> <br />
सत्ता विपक्ष भी मूक बने हुई है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br />
मीडिया अनशन की खबर दिखाए न दिखाए इसी विचार में है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br />
पत्रकारिता भी सवालों के घेरे में हैं और सिर्फ इस अनशन से ही नहीं बहुत
दिनों से क्यूंकि चाहे हम टीवी पर देखें या अखबार पढ़ें कहीं भी कोई खबर
जल्दी ऐसी नहीं दिखाई पड़ती जो तथ्यों को दिखाने के साथ उनका सही आंकलन करे
परिणाम की राह दिखाए </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> <br />
उससे भी बड़े दुःख की बात ये है की अधिकांशतः पत्रकारिता ग़लत
तथ्यों,व्यर्थ मुद्दों और निरर्थक तर्कों तक सिमट के रह गयी है क्यूंकि सच्चाई से ज्यादा प्राथमिकता यहाँ भी धन,मान,बल,सामर्थ्य ही हो गया है शायद </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br />
आज न्यूज़ टीवी चैनेल्स जैसे जनता के साथ भद्दा मज़ाक करते हैं क्यूंकि ये
खुद तो कारपोरेट हाउस द्वारा संचालित होते है,सरकार से डरे रहते <br />
हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> बस एक व्यवसाय की भांति समाचार दिखाते हैं,<span id="6_TRN_cg">चर्चा करते <span id="6_TRN_ci">हैं </span></span> इनका <span id="6_TRN_ao"><span id="6_TRN_ck">रुझान टी</span><span id="6_TRN_ap"><span id="6_TRN_cl"></span> आर पी पर ज्यादा होता है और खबर बस इस तरह बताएँगे,दिखाएँगे जिससे इनकी दाल रोटी पर संकट न आये </span></span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br /><span id="6_TRN_ao"><span id="6_TRN_ap">
<br />
<br />
खैर दोषी तो सरकार ही है क्यूंकि भ्रष्टाचार वहीँ सबसे ज्यादा हो रहा है और
इसीलिए न तो सरकार भ्रष्टाचार के किसी आन्दोलन में दिलचस्पी लेती है न ही मीडिया को पूरी तरह स्वतंत्र से अपना काम करने देती है </span></span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br /><span id="6_TRN_ao"><span id="6_TRN_ap">
<span id="6_TRN_b6"><span id="6_TRN_ba"><br />
<br />
परन्तु ऐसा कब तक चलेगा ?<br />
क्या भारत सरकार स्वयं भी गुलाम या गुलामी पसंद हो चुकी है ?<br />
क्या सरकार सिर्फ घोटाले <span id="6_TRN_ex">करने के लिए ही रह गयी है?<br />
क्या <span id="6_TRN_f8">लोकतंत्र बहाल रखने में सरकार स्वयं ही एक रुकावट बन जाती है? <br />
क्या देश के झंडे के प्रति नेताओं में सम्मान नहीं रह गया ?<br />
क्या देश हित में बात करना भी एक गुनाह सा हो गया है ?<br />
क्या समाज हित में बात करने वालों को प्रताड़ना और सजा मिलनी चाहिए ?<br />
क्या राजनीति का मतलब सिर्फ पैसे बनाना रह गया है ?<br />
क्या ऐसे नेताओं के अन्दर भगवान् का भी खौफ ख़त्म हो गया है ?<br />
क्या सरकार ये नहीं मानती की वो जनता की वजह से है और जनता के प्रति जवाबदेह है ?<br />
क्या इस तरह से किसी बड़े आन्दोलन को रोकके सरकार लोकतंत्र का हित कर रही है ?<br />
क्या समाज में नैतिक मूल्यों के पतन के प्रति सरकार भी ज़िम्मेदार नहीं है ?<br />
क्या राजनीति में साफ़ सुथरे व्यक्तित्व को हरगिज़ नहीं आना चाहिए ?<br />
क्या जनलोकपाल के आने से भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं कसेगी ?<br />
क्या कोई मंत्री ऐसा हुआ है जो अपने पूरे घोटाले की रकम या काला धन अपने जीवन में उपयोग कर पाया ?<br />
क्या समाज को देश व समाज के हित से जुड़े आंदोलनों में बढ़ चढ़ के भाग नहीं लेना चाहिए ? <br />
</span> क्या एक इनकम टैक्स जोइंट कमिश्नर(अरविन्द केजरीवाल) अपने पद से इस्तीफा देके समाज सुधार आन्दोलन पैसे के लिए करने उतरेगा ?<br />
क्या ऐसे देशभक्तों के प्रति देश व समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?<br />
क्या देश व समाज सुधार आन्दोलन से पूरा देश साथ नहीं आता ?<br />
क्या ऐसे आन्दोलन में भी राजनीति होनी चाहिए ?<br />
क्या ऐसे आन्दोलन के नाकाम होने से लोकतंत्र के ऊपर प्रश्नचिन्ह नहीं लगता ?</span></span></span></span></span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-66096760694609471462012-07-30T00:38:00.001+05:302012-08-01T14:06:05.073+05:30जनलोकपाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.ndtv.com/news/annaAug%2015_story.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/stories/arvind-kejriwal_350_072512103219.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="205" src="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/stories/arvind-kejriwal_350_072512103219.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<span id="6_TRN_6m"><br /></span><span id="6_TRN_6m">
</span><a href="http://www.ndtv.com/news/annaAug%2015_story.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://www.ndtv.com/news/annaAug%2015_story.jpg" /></a><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m">आज देश में,<span id="6_TRN_6q">समाज में भ्रष्टाचार का दीमक बहुत अन्दर तक घुस चुका है व खोखला कर चुका है </span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q">
यही नहीं आज समाज में नैतिकता का मूल्य काफी कम हो चुका है इतना की जो सच बोलता है,<span id="6_TRN_7m">सच
की पैरवी करता है उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है </span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m">सरकार द्वारा
काली कमाई ,काले कारनामो का दौर चालु है जहाँ अन्ना जी व अरविन्द जी
जैसे देशभक्तों व समाजसुधारकों के लिए सिर्फ <span id="6_TRN_8o">एक जवाब है की अपनी ही जांच कराओ </span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><br />
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_8o">ये संवेदनहीनता और बेशर्मी की हद है</span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_8o">
पहले भी अन्ना जब अनशन में बैठे तो झूठा आश्वासन देके उन्हें धोखा दिया गया
</span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_8o">
परन्तु <span id="6_TRN_8y"><span id="6_TRN_8z">सच्चाई के साथ आज भी कई लोग हैं और सच्चाई तो सच्चाई है सूरज की तरह है </span></span></span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_8o"><span id="6_TRN_8y"><span id="6_TRN_8z">
क्यूंकि ये उजाला है जिसके रहते झूठ रुपी अँधेरा नहीं रह सकता </span></span></span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_8o"><span id="6_TRN_8y"><span id="6_TRN_8z">
<br />
चंद पंक्तियाँ ऐसे लोगों के लिए जो निस्वार्थ भाव से व निर्भीक भाव से जीते
हैं और समाज को भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर खड़ा रहने को सदा आवाहन करते
हैं </span></span></span></span></span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><span id="6_TRN_6m"><span id="6_TRN_6q"><span id="6_TRN_7m"><span id="6_TRN_81"><br />
<br />
<br />
</span></span></span></span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">भ्रष्ट तंत्र अब नहीं सहेंगे <br />
भ्रष्ट के आगे नहीं झुकेंगे<br />
जनता हैं हम लोकतंत्र ये<br />
जिसे सही हम उसे चुनेंगे<br /><br />
गोली की बौछार चलाओ</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
या तोपों में उड़ा हमे दो <br />
राष्ट्र हित में कहने की भी <br />
चाहे जितनी सजा हमे दो <br /><br />
घोटालेबाजी नहीं सहेंगे</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
भ्रष्टों की हम नहीं सुनेंगे <br />
जनता है हम लोकतंत्र ये <br />
जिसे सही हम उसे चुनेंगे <br /><br /><br />
लगा रहे हैं कालिख देखो </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
नेता जी अपने ही देश को <br />
काली कमाई कर कर के अब <br />
छुपा रहे हैं काले धन को <br /><br />
गर सच्चाई नहीं सुनेंगे </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
लोकपाल गर नहीं लायेंगे<br />
फिर पछताना चाहेंगे भी<br />
पर पछता वो नहीं सकेंगे<br /><br />
जनता हैं हम लोकतंत्र ये </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
जिसे सही हम उसे चुनेंगे<br /><br />
धन्य हैं अन्ना धन्य हैं अरविन्द</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
जिनकी बदौलत है देश ये हिंद<br />
देश के लिए प्राण दे रहे ये <br />
रक्षा करना इनकी गोविन्द<br /><br />
ऐसे लोगों से है रौशन </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
सच्चाई का सारा गुलशन<br />
उजियारे का भान कराते<br />
कितने पावन इनके जीवन <br /><br />
भ्रष्टाचार नहीं सहेंगे</span>
<span style="font-size: x-large;"></span><br />
<span style="font-size: x-large;">भ्रष्टाचारी नहीं </span><span style="font-size: x-large;">सहेंगे</span><span style="font-size: x-large;"><br />
घोटालों की जांच करेंगे <br />
जनता हैं हम लोकतंत्र ये <br />
जिसे सही हम उसे चुनेंगे </span></div>
<br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/stories/anna-hazare_350_1_072912063513.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="205" src="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/stories/anna-hazare_350_1_072912063513.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/Photo_gallery/anna-hazare_040711101854.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="209" src="http://media2.intoday.in/indiatoday/images/Photo_gallery/anna-hazare_040711101854.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicBjObaQzuqRH3oT3IAklU64Bg-2C3WAuXOGJS9UfiU5ttcyVAtKTk7Ckf7mTVGZLLoPmapRcAjhrPDDPv3KOmxGORijO8n0CQHmMUt-SKjaXU6L3ieMeBgzJvjSYSBMqpxRR-6sTnm5U/s1600/ANNA+HAZARE+AUGUST+18+2011+DTN+NEWS.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicBjObaQzuqRH3oT3IAklU64Bg-2C3WAuXOGJS9UfiU5ttcyVAtKTk7Ckf7mTVGZLLoPmapRcAjhrPDDPv3KOmxGORijO8n0CQHmMUt-SKjaXU6L3ieMeBgzJvjSYSBMqpxRR-6sTnm5U/s320/ANNA+HAZARE+AUGUST+18+2011+DTN+NEWS.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://www.deccanchronicle.com/sites/default/files/imagecache/article_horizontal/article-images/Anna%20Hazare_27.jpg.crop_display.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="236" src="http://www.deccanchronicle.com/sites/default/files/imagecache/article_horizontal/article-images/Anna%20Hazare_27.jpg.crop_display.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6aLjGTZnU0zsT-JzIhmii2N-Oqr9neSrXPjD5GuA590PdBN3EWLg4X04dks7lYrdJZ_wVXmsQUclCw7876ALdgYE6AZ5YNeg3WxxH6m1mERvOSgGtztdBVo8gjeTT2Ilk9BC9HpI3/s1600/anna-hazare-support-scrap.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="%20%20chttps://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6aLjGTZnU0zsT-JzIhmii2N-Oqr9neSrXPjD5GuA590PdBN3EWLg4X04dks7lYrdJZ_wVXmsQUclCw7876ALdgYE6AZ5YNeg3WxxH6m1mERvOSgGtztdBVo8gjeTT2Ilk9BC9HpI3/s1600/anna-hazare-support-scrap.jpg" /></a></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-34660612344734942332012-07-26T11:06:00.000+05:302012-07-26T14:23:51.367+05:30ध्यानयोग 10<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान योग की पिछली पोस्ट जो की सांख्य द्वारा ध्यान पर आधारित थी(<a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2012/07/9.html" target="_blank">ध्यानयोग 9</a>) पर योग द्वारा ध्यान पर अगली पोस्ट के लिए कहा गया था </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">थोडा योग शब्द को और स्पष्ट कर दूँ की इसका अर्थ होता है जोड़ना अथार्त जीव
को शिव की प्राप्ति अथार्त आत्मा का परमात्मा,परमात्म तत्व से साक्षात्कार </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">यहाँ फिर ये प्रश्न आ जाता है की फिर साँख्य द्वारा ध्यान में भी तो जीव
परमात्मा को ही,परमात्म तत्व से ही जुड़ता है फिर दुबारा योग कहने की क्या
आवश्यकता ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">यानी साँख्य ध्यान व योग ध्यान में शाब्दिक व मौलिक अंतर क्या है ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">इस पर फिर से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की दोनों साधन वस्तुतः परमात्म
प्राप्ति के लिए हैं अंतर सिर्फ करण का है करण अथार्त ज्ञानेन्द्रियाँ व
कर्मेन्द्रियाँ </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">एक करण निरपेक्ष है और एक करण सापेक्ष है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">करण निरपेक्ष जिसमे करण की आवश्यकता नहीं यानी सांख्य द्वारा ध्यान में हम मात्र श्रवण द्वारा ध्यान को उपलब्ध हो जाते हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दूसरा करण सापेक्ष यानी योग द्वारा जिसमे हम अपने कर्मेन्द्रियों व
ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग करके ध्यान को और फिर समाधि को उपलब्ध होते हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दोनों साधनाओं में मूल अंतर सिर्फ ये है की सांख्य में हम अपने ज्ञान को और
वैराग्य को इतना बढ़ा लेते हैं की फिर स्वयं ही ध्यान रूप हो जाते हैं और
योग में हम धीरे धीरे व संयम से अपनी इन्द्रियों को और मन,बुद्धि को साधते
हुए व प्राणों को निश्चित आसनों द्वारा आयाम देते हुए ध्यान को प्राप्त
होते हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">एक बार बहुत गौर करने की है और वो ये की दोनों ही साधनाओं में करण का उपयोग
भले कम ज्यादा मगर होता ही है परन्तु ध्यान तक पहुँचते पहुँचते दोनों ही
साधनाएं करण निरपेक्ष हो जाती हैं यानी वहां किसी भी करण चाहे
कर्मेन्द्रियाँ हों,ज्ञानेन्द्रियाँ हों,मन,बुद्धि,चित्त व अहंकार
(अंतःकरण) हों इनमे से कुछ भी नहीं रह जाता </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम जानते हैंआष्टागिक योग के आठ चरण हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">यम नियम आसन प्राणयाम प्रत्याहार ध्यान धारणा समाधि </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">इनके बारें में विस्तार से लिखा गया है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2011/10/blog-post_16.html" target="_blank">योग के अंग यम तथा नियम</a> </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2011/12/blog-post_06.html" target="_blank">प्राणायाम </a> </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2012/01/blog-post_20.html" target="_blank"> प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि </a> </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">गंभीरता से समझने वाली बात ये है की ध्यान को हम जितना तनाव पूर्ण ढंग से लेंगे ये उतना ही कठिन हो जायेगा </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">वास्तव में ध्यान से आसान कुछ भी नहीं है और इसका इतना आसान होना ही इसे मुश्किल बना देता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जैसे किसी बड़े से कहें हम की बच्चे की भाँति हो जाएँ तो ये आसान होते हुए
भी कठिन हो जाता है क्यूंकि बच्चे जैसा होने के लिए हममे वैसा ही
सरलपन,मासूमियत,भोलापन होना चाहिए जो की देखा जाए तो बहुत आसान है किन्तु
हमने स्वयं को राग द्वेष में इतना बाँध दिया है की हम कभी सोच भी नहीं पाते
की बचपन में हम कैसे थे </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम सभी बचपन में इतने सरल थे की कभी ये सोच भी नहीं पाते थे की बचपन के इलावा भी कुछ दुनिया होती है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">धन,पद,प्रतिष्ठा,मान,सम्मान से दूर,छल,प्रपंच की अंधाधुंध दौड़ और किसी भी
प्रकार स्वयं को आगे रखने से बिलकुल अलग और अनोखा जहाँ होता है बचपन का और
बस यही स्थितियाँ चाहिए होती हैं ध्यान के लिए</span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">तो ध्यान में हमे बिना तनाव के और ये सोच के जाना होता है की मैं कुछ करने नहीं जा रहा हूँ </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान में वो सबकुछ छोड़ना होता है जो भी हम पकडे हुए हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान में वो सब कुछ छोड़ना होता है जो भी हम सीखे हुए हैं,पढ़े हुए हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />
खाली स्लेट की भाँती होके ही ध्यान में व्यक्ति जा सकता है वहां कुछ भी लिखा हुआ अवरोध उत्पन्न कर देगा </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"></span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान में हमे बिलकुल खाली हाथ जाना होता है,जो भी हमे संसार से मिला है वो
सब छोड़कर हमे ध्यान में जाना होता है सांसारिक बुद्धि लेके आज तक कोई
भी ध्यान को उपलब्ध नहीं हो सका है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">या ये कहें तो और उपयुक्त होगा की सांसारिक बुद्धि से परे हो जाना ही ध्यान है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान परमात्म तत्व के साक्षात्कार का,परमात्मा को जाने का पहला द्वार है
और उस द्वार तक हम तभी पहुँच सकते हैं जब सहज रहें और सांसारिक बुद्धि से
परे हो जाना ही सहजता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जैसे ही हम बिना दिखावे के होते हैं,सहज होते हैं</span><span style="font-size: x-large;"> ध्यान में प्रवेश कर जाते हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-26825978746306834832012-07-22T17:51:00.001+05:302012-07-30T00:40:39.835+05:30अध्यात्म<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">अभी कुछ दिन हुए एक कविता या यूँ कहिये एक ग़ज़ल लिखी और फिर सोचा उसे यहाँ भी शेयर करूँ </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। कभी कभी कुछ चीज़ें ऐसी हो जाती हैं ऐसी लिख जाती हैं की उसे जब तक हम ठीक से न पढ़ें ठीक से न जाने,उसे अमल में नहीं ला सकते </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
और ऐसी चीज़ें जो संसार की नहीं संसार वाले के लिए होती हैं ज़रूरी हैं की समझी जाएँ </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। भगवान् से सम्बंधित हम कुछ भी करें,कहें वो मैं मानता हूँ उसकी उपासना ही है,बंदगी ही है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
एक शेर लिख रहा हूँ <br />
प्रभु की बंदगी से फुर्सत न मिले यही चाहत है <br />
हम जानते हैं बाग़-ए-दुनिया में काग़ज़ के फूल खिलते हैं <br />
</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
ये जो संसार हम देख रहे हैं ये जिस संसार में हम रहते हैं क्या हम कभी ये
महसूस करते हैं की हम हमेशा संसार में संसार की ही बात करते रहते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। <br />
ओब्विअस सी बात है की संसार में हम हैं तो संसार की ही बात करेंगे लेकिन
फिर आप मेरा मतलब नहीं समझ पाए या ये कहूँ तो ज्यादा उचित होगा की मैं नहीं
समझा पाया </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
हमे संसार के साथ संसार वाले के लिए भी थोडा समय निकालना चाहिए यानी उस
परमात्मा,परमेश्वर,अल्लाह,गाड,ओंकार के लिए वैसी ही शिद्दत रखनी चाहिए जैसी
हम इस विनाशशील दुनिया के लिए निकालते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
प्रभु की कृपा ही माननी चाहिए की जो हम किसी भी तरह उससे जुड़ते हैं,उसे याद करते हैं,उससे बात करते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
ये बहुत ध्यान में रखने वाली बात है की हमे मालूम नहीं चलता लेकिन अधिकतर
लोग अधिकतर अपना बेस्ट इस दुनिया के लिए रखते हैं,इस दुनिया से
धन,मान,पद,प्रतिष्ठा आदि पाने के लिए परन्तु सच्चाई ये है की ये कुछ भी
हमारे काम नहीं आने वाले,क्यूंकि संसार से एक न एक दिन साथ सभी का छूट जाने
वाला है परन्तु भगवान् से कभी नहीं छूटेगा </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
एक परमेश्वर ही है जो जीव के साथ जन्म से पहले भी था और मृत्यु के बाद भी
रहेगा और ये अवश्यम्भावी है की जीव उसे जीवन में भी अपने साथ माने क्यूंकि
जीवन में भी वो हमारे साथ ही है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
लेकिन हम सांसारिक राग द्वेष में ऐसा फंसते हैं की इसे ही सबकुछ मान लेते
हैं क्यूंकि हम शरीर को ही स्वयं का स्वरुप माने बैठे हैं और दूसरे शरीर जो
हमारी तरह ही मांस,हड्डी,मज्जा,मेद, मल,मूत्र से भरे हैं और नष्ट हो जाने
वाले हैं उनमे आसक्त होके अपने अमूल्य जीवन को उनसे मिलने वाली
प्रशंसा,अप्रशंसा में समाप्त कर देते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। इन्फेक्ट अधिकतर लोग तो अपने जीवन को इसी का उद्देश्य मान लेते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
धन्य हैं खुसरो,तुलसी,सूर,रविदास,कबीर,तुकाराम,मीरा,नामदेव जैसे संत कवि
जिन्होंने अँधेरे में जाते समाज को उजाले का पथ बताया,उजाले का पथ दिखाया </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। ये कविता भी प्रभु को सुमिरते हुए ही लिखी गयी है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
सूफी कवियों या भक्त कवियों के साथ समस्या ये होती है की वो संसार से बात
करते हुए भी परमात्मा से ही बात करते हैं और संसार उन्हें समझ नहीं
पाता,उनकी बातों को कई बार ग़लत ढंग से ले लेता है लेकिन इससे उन्हें कुछ भी
फर्क नहीं पड़ता क्यूंकि वो तो इसमें भी परमात्मा ही देखते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
</span></span><span style="font-size: x-large;">प्रभु की कृपा पर मैं नाचीज़ इतना ही कहना चाहूँगा,किसी शायर ने क्या बात कही है :<br /><br />
जब तक बिका न था कोई पूछता न था </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
तुने मुझे खरीदकर अनमोल कर दिया</span>
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
</span></span><span style="color: black; font-size: x-large;"><span class="st"><span style="color: #134f5c;">ग़ज़ल में शायर ने प्रभु प्रेम में डूबते हुए कहा है</span> <br />
</span></span><span style="color: black; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
</span></span><span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #134f5c;">जिंदा है जो ज़िन्दगी में वोही सच्चा है </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
मर मर कर जीना कहीं जीना होता है </span><br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई और हर मज़हब बराबर </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
हर धर्म है लहर और आदमी सफीना है </span><br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
नहीं मानता मैं डर से होने वाली इबादत को </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
जब से यारी है हमारा खुदा से याराना है </span> <br />
<br />
<br />
<span style="color: #134f5c;">वो और होंगे जो फ़क़त किताबों में उसे ढूंढे </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
हमने जब भी पुकारा परवरदिगार को आना है </span><br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
प्रभु की दुनिया में अहम् नहीं,नहीं हसरतें चलतीं </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
उसका दरबार तो खुद को मिटाके ही मिलता है </span><br style="color: #134f5c;" />
<br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
पहले शेर में ही शायर ने अपने अंदाज़ स्पष्ट कर दिए अथार्त ग़ज़ल के मकसद को
पूरी तरह खोल के रख दिया की ज़िन्दगी क्या है और ज़िन्दगी वोही है जिसमे
जिंदादिली है और जिंदादिली बहुत बड़ा शब्द है,गहरा शब्द है मेरे हिसाब से</span> </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<span style="font-size: x-large;"><span style="font-family: Arial;">जिंदादिली का अर्थ है की हम अपने साथ साथ अपने आस-पास के वातावरण को कितना </span>जिंदादिल रखते हैं</span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">और
जो जिंदादिल है वोही सच्चा है बाकी शायर के मुताबिक़ जो जिंदादिल नहीं हैं
वो जीवन के असली सलीके से महरूम रह गए अथार्त उन्हें अभी जीवन को समझना
होगा,जीना समझना होगा </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> <br />
<br />
</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई और हर मज़हब बराबर <br />
हर धर्म है लहर और आदमी सफीना है <br /><br />
इस दूसरे शेर में शायर ने साफ़ साफ़ कहना चाहा है की साधन को साधना समझने की भूल न समझ लेना </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इस मुग़ालते में अच्छे अच्छे अपनी साधना पथ से च्युत हो जाते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
मतलब क्या है कहने का ? मतलब ये है की मंदिर में घंटा बजाने से,नमाज़ पढने
से,गिरजाघर जाने से,शबद गुनगुनाने से ही साधना पूर्ण नहीं हो जाती </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
उसे समझना होगा यानी जैसा हम पवित्र जगहों पर करते हैं अथार्त स्वयं को
पवित्र रखते हैं वैसा ही हमे अपने दिल के मंदिर,अपने ज़हन के मस्जिद,अपने मन
के चर्च,और अपने ह्रदय के गुरुद्वारे को भी पवित्र रखना होगा और इस जगत को
भी प्रभुमय सोचना होगा,मानना होगा और सबके साथ सद्भाव रखना होगा </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इसके साथ साथ शायर ने इस बात की ओर इशारा किया है की हमे अपने धर्म के साथ
साथ दूसरे धर्मों की भी इज्ज़त करनी चाहिए वरना इसका मतलब यही है की हम
अपने धर्म की भी दिल से इज्ज़त नहीं करते </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
इसे समझिये की जैसे हम अपने दोस्त के घर से निकलें और उसके भाई को उल्टा
सीधा कहें तो इसका मतलब यही हुआ की हम अपने दोस्त की भी इज्ज़त नहीं करते </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
यानी हम मंदिर से निकले और मस्जिद से निकलने वाले को हेय दृष्टी से देखने
लगे या हम मस्जिद से नमाज़ पढके निकल रहे हैं और किसी मंदिर से निकलने वाले
को देखते ही उससे मुंह मोड़ लेते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">तो हमारी साधना का क्या अर्थ हुआ ? यानी ऐसा ही अगर गिरजाघर से निकलने वाला और गुरुद्वारे से निकलने वाला करे तो उनके वहां जाना न जाना बराबर ही हुआ </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
हम अपने प्रभु के एक नाम की उपासना करके निकले और दूसरे नाम की निंदा करने
लगे तो हम जहाँ थे वहीँ रहे यानी हमारे धार्मिक होने और न होने में कोई
फर्क नहीं है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
यही शायर कह रहा है की सभी बराबर हैं और सभी धर्म बराबर हैं क्यूंकि धर्म
तो लहर है मात्र जो नाव को समुन्दर से मिलाती है और आदमी ही तो कश्ती है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
<br />
तीसरे शेर <br />
</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">नहीं मानता मैं डर से होने वाली इबादत को <br />
जब से यारी है हमारा खुदा से याराना है <br /><br />
में शायर ने साफगोई से कहा है की भगवान् से डरके ही इबादत नहीं की जाती
यहाँ उसका अर्थ ऐसे डर से है जो भगवान् से दूरी बढाता है,भगवान् को बहुत
बड़ा बताता है इतना की भगवान् के करीब जाने को रोकता है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
शायर का कहना है की प्रभु ने ये दुनिया इंसानों को उससे दूर रहने के लिए
नहीं बनायी बल्कि उससे प्रेम करने के लिए बनायी है क्यूंकि तभी तो उसने
दोस्ती भी बनायी है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। यहाँ भक्त ने भगवान् से सख्य भक्ति में रूचि दिखाई है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">वो और होंगे जो फ़क़त किताबों में उसे ढूंढे <br />
हमने जब भी पुकारा परवरदिगार को आना है <br /><br />
इस शेर में शायर ने कहा है की भगवान्,अल्लाह,गोंड,ओंकार को सिर्फ शास्त्रों
में,गीता,रामायण,कुरआन,बाईबल,गुरुवाणी में ढूँढने वाले उसे नहीं पा सकते </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इसे ध्यान से समझें यदि कोई गूंगा है और वो आपको कुछ बताना चाहे तो क्या आप समझ लेंगे </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
यदि किसी गूंगे ने खूब अच्छी मिठाई खायी है और वो उसका रस समझाना चाहे तो एक तो वो कैसे समझा सकेगा और दूसरा आप कैसे समझ सकेंगे </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"><br />
परमात्मा,परमेश्वर शब्दातीत है यानी शब्दों से परे जो मानसिक जगत है वहां
ध्यान द्वारा पहुँचने पर ईश्वर का,ईश्वर तत्व का अनुभव होता है और जैसे ही
हम उसे व्यक्त करने लगते हैं वैसे ही उसे शब्दों के दायरे में ले आते हैं
और वैसे ही वो अवर्णनीय हो जाता है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। जो शब्दों से परे है,ऊपर है उसे शब्दों द्वारा व्यक्त कैसे कर सकते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">इसे ही कबीर ने गूंगे का गुड कहा है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">हमने जब भी पुकारा परवरदिगार
को आना है ये कहने का अभिप्राय कवि का यही है की ध्यान में प्रभु के डूबे
नहीं की प्रभु का आभास होने लगता है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
<br />
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
प्रभु की दुनिया में अहम् नहीं,नहीं हसरतें चलतीं <br />
उसका दरबार तो खुद को मिटाके ही मिलता है <br />
<br />
इस शेर पर बस इतना ही कहना चाहूँगा जो कबीर दास जी ने कहा था <br />
<br />
जब मैं था तब हरी नाही अब हरी है मैं नाय <br />
प्रेम गली अति सांकरी जेमे दो न समय <br />
<br />
भगवान् बिना मांगे ही भक्तों को सबकुछ दे देते हैं इसलिए उनसे कुछ मांगने का मतलब उनकी कृपा में दोष देखना है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"> और परमेश्वर को आज तक जिसने भी पाया है स्वयं को मिटाके ही,समर्पण से ही,स्वयं के अहम् को उसे सौंप के ही </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> <br />
<br />
<br />
आज मैं कुछ सूफी कलाम पेश करना चाहूँगा एक तो हज़रत अमीर खुसरो के द्वारा लिखी गयी है और दूसरे के रचनाकार है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">भक्त सूरदास जी । बेहद गहरे अर्थ लिए हुए कलाम हैं जिन्हें संसार से हटके सोचने पर ही समझा जा सकता है,आनंद लिया जा सकता है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। आनंद लें !</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="color: black; font-size: x-large;"><br />
<br />
</span><span style="font-size: x-large;">छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके<br />
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके<br />
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके<br />
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ<br />
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके<br />
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा<br />
अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके<br />
खुसरो निजाम के बल बल जाए<br />
मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके<br />
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />English
Translation</span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br />
You've taken away my looks, my identity, by just a glance.<br />
By making me drink the wine of love-potion,<br />
You've intoxicated me by just a glance;<br />
My fair, delicate wrists with green bangles in them,<br />
Have been held tightly by you with just a glance.<br />
I give my life to you, Oh my cloth-dyer,<br />
You've dyed me in yourself, by just a glance.<br />
I give my whole life to you Oh, Nijam,<br />
You've made me your bride, by just a glance.</span><br />
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br />
<span style="font-size: x-large;"><a href="http://www.youtube.com/watch?v=GWKR5CsRZ8Y&feature=related" target="_blank">http://www.youtube.com/watch?v=GWKR5CsRZ8Y&feature=related</a></span>
</div>
<div class="separator" style="clear: both; color: #134f5c; text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; color: #134f5c; text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.youtube.com/embed/nlhtGJwZkMY?feature=player_embedded' frameborder='0'></iframe></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; color: #134f5c; text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; color: #134f5c; text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; color: #134f5c; text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><object class="BLOGGER-youtube-video" classid="clsid:D27CDB6E-AE6D-11cf-96B8-444553540000" codebase="http://download.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=6,0,40,0" data-thumbnail-src="http://2.gvt0.com/vi/Nsq_jEEOzuY/0.jpg" height="266" width="320"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/Nsq_jEEOzuY&fs=1&source=uds" /><param name="bgcolor" value="#FFFFFF" /><param name="allowFullScreen" value="true" /><embed width="320" height="266" src="http://www.youtube.com/v/Nsq_jEEOzuY&fs=1&source=uds" type="application/x-shockwave-flash" allowfullscreen="true"></embed></object></span></div>
<br />
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
</div>
<div class="poem" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।<br />
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ॥<br />
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।<br />
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ॥<br />
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।<br />
जब मिलि गए तब एक-वरन ह्वै, सुरसरि नाम परौ॥<br />
तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।<br />
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />
भक्त और भगवान् के बीच कितना मधुर संबंध दर्शाया है इस पद के माध्यम से
सूरदास जी ने। यह सर्वविदित है कि पूर्णता केवल ईश्वर को प्राप्त है।
अपूर्णता के कारण मनुष्य से त्रुटि स्वाभाविक है। इसलिये सूरदास ने भगवान्
से अवगुण समाप्त करने नहीं बल्कि इसे हृदय में न धरने की प्रार्थना की है।
सूरदासजी कहते हैं - मेरे स्वामी! मेरे दुर्गुणों पर ध्यान मत दीजिये! आपका
नाम समदर्शी है, उस नाम के कारण ही मेरा उद्धार कीजिये। एक लोहा पूजा में
रखा जाता है (तलवार की पूजा होती है) और एक लोहा (छुरी) कसाई के घर पड़ा
रहता है, किंतु (समदर्शी) पारस इस भेद को नहीं जानता, वह तो दोनों को ही
अपना स्पर्श होने पर सच्चा सोना बना देता है। एक नदी कहलाती है और एक नाला,
जिसमें गंदा पानी भरा है, किंतु जब दोनों गङ्गाजी में मिल जाते हैं, तब
उनका एक-सा रूप होकर गङ्गा नाम पड़ जाता है। इसी प्रकार सूरदासजी कहते हैं-
यह शरीर माया (माया का कार्य) और जीव ब्रह्म (ब्रह्म का अंश) कहा जाता है,
किंतु माया के साथ तादात्म्य हो जाने के कारण वह (ब्रह्मरूप जीव) बिगड़
गया (अपने स्वरूप से च्युत हो गया।) अब या तो आप इनको पृथक् कर दीजिये (जीव
की अहंता-ममता मिटाकर उसे मुक्त कर दीजिये), नहीं तो आपकी (पतितों का
उद्धार करने की) प्रतिज्ञा टली (मिटी) जाती है।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.youtube.com/embed/Sz8UJ4Z4SQI?feature=player_embedded' frameborder='0'></iframe></div>
<br />
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-68309908519757095532012-07-19T17:39:00.005+05:302012-08-19T17:15:55.975+05:30चिंतन 3<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">टी.वी पर राजेश खन्ना जी के देहावसान के में देख सुन रहा था । भगवान उनकी आत्मा को शांति और सद्गति प्रदान करे ।</span><br />
<span style="font-size: x-large;">मौत को लेके अभी कुछ ख्याल उभरे तो कुछ लिखा सोचा उसे यहाँ भी शेयर करूँ ।</span><br />
<br />
<span style="font-size: x-large;"> </span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मौत कभी होती नहीं ज़िन्दगी कभी जाती नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ज़िन्दगी है एक लहर और लहर कभी खोती नहीं </span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">आती जाती हवाएं कहती हैं यही बातें </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">आते जाते मौसम यही हमको सुनाते </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br />
<span style="font-size: x-large;">ज़िन्दगी में कभी कुछ भी बीतता नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">बीता हुआ कुछ भी ज़िन्दगी रखती नहीं </span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मौत कभी होती नहीं ज़िन्दगी कभी जाती नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मरने का शब्द ही झूठा है और ग़लत है </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी की होती मतलब है </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br />
<span style="font-size: x-large;">खिज़ा का रंग बहार पर कभी चढ़ता नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ज़िन्दगी कभी धुंधलापन ढोती नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मौत कभी होती नहीं ज़िन्दगी कभी जाती नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जीवन यात्रा में जिस्म ऐसा है जैसे </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दिन और रात के लिए आसमान जैसे </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br />
<span style="font-size: x-large;">नदी का पानी कभी भी सड़ता नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">जीवन यात्रा कभी कहीं थमती नहीं </span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मौत कभी होती नहीं ज़िन्दगी कभी जाती नहीं </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #073763;">
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />
हम मौत को लेके जानते नहीं की क्या क्या सोचते हैं </span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
जी हाँ, मैं फिर से दोहरा रहा हूँ की हममें से अधिकतर लोग ऐसे हैं जिन्हें
ये नहीं मालूम की वो मौत को लेके क्या सोचते हैं कुछ बहुत डरे रहते
हैं,कुछ मौत पर बात ही नहीं करना चाहते?<br />
कुछ तो मौत के बारें में सोच भी नहीं पाते </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। यहाँ तक की जब आसपास का कोई मरता है तो उन्हें एकबारगी झटका सा </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"> <br />
लगता है और फिर वो अपनी उसी मूर्छित दुनिया में लौट जाते हैं जहाँ मौत को सभी भूले रहते हैं </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
लेकिन ये तो ऊपरी बात हो गयी अंदरूनी बात थोड़ी और है और उसे समझने की ज़रूरत
है तब जाके हमे पता चलता है की हम कितने सघन मूर्छा की दुनिया में रहते
हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
बात ये है की हम दूसरे के मौत पर जब आंसू बहाते हैं या दुखित होते हैं तो
हम उस समय इस बात से भी दुखित रहते हैं की हम स्वयं भी कभी न कभी मरेंगे </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
अपने जीवन की भाग दौड़ में हम इस सत्य को भूल जाते हैं की हमे मरना होगा और
जब कोई मरता है तो हमे झटका लगता है की अरे ये क्या ?थोडा सा विवेक जाग्रत
होता है,मन कहता है नहीं सिर्फ जानवरों की तरह जीना कोई जीना नहीं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। नहीं सिर्फ धन मान रिश्ते-नाते दोस्त पद-प्रतिष्ठा के लिए </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">ये जीवन नहीं मिला </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
लेकिन वाह री बुद्धि वाह री किस्मत भला हम दिमाग पर दिल की क्यूँ चलने दें
परिणामतः हम फिर उसी जंगल में चले जाते हैं और पशुवत जीवन जीने लगते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">परन्तु प्रश्न ये भी है की हम मौत को मौत मान क्यूँ लेते हैं ? मौत सत्य नहीं है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">सत्यता चेतन तत्व है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। सत्य तो जीवन है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
प्रस्तुत कविता में कवि यही कहना चाह रहा है की जीवन कभी ख़त्म ही नहीं होता फिर मौत कैसे और किसकी ?<br />
जिसे हम मौत कहते हैं वो तो मात्र एक पड़ाव है उस यात्री का जिसे अब अपने सफ़र का दूसरा मुकाम तय करना है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इसके बाद जीवन को लहर बताया गया और कह रहा है की लहर अगर स्वयं को नष्ट हुआ
मान ले तो ये उसका अज्ञान है क्यूंकि वो तो वस्तुतः समुद्र से ही है और
इसलिए लहर कभी ख़त्म नहीं होती,कभी नहीं खोती</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। वो सदैव समुद्र में विद्यमान है अथार्त आत्मा हमेशा ही परमात्मा में विद्यमान है,सदैव </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">अमर है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
फिर आखिरी में जो कहा गया की नदी का पानी कभी सड़ता नहीं,कविता का यही सार तत्व है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
सरोवर का पानी मरता है,सड़ता है क्यूंकि वो ठहरा हुआ है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। हमे मालुम नहीं चल पाता लेकिन 90 %<br />
व्यक्ति इसलिए दुखी होता है क्यूंकि वो सरोवर बन गया </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
उसे ये मालूम ही नहीं चल पाता की वो नदी है,कभी सड़ नहीं सकता लेकिन अपने
को सरोवर मानके वो स्वयं को दुर्गन्ध में डाल देता है अथार्त स्वयं को दुःख
में डाल देता है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
इसे गौर से समझिये की जो बीत गया है वो बह चुका है उसे पकड़ना ही नासमझी है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
नदी कभी किसी मैदान से अच्छे से बहती है,कहीं पर पथ ऐसा दुर्गम होता है की
वो टेड़ी मेडी होके बहती है लेकिन यदि वो अपने को इस उतार चढ़ाव,इस सुख दुःख
के साथ बाँध ले तो फिर नदी न रह जाएगी </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
सरोवर हो जायेगी,सड़ने लगेगी इसी तरह हमे भी ज़िन्दगी के साथ बहना होता है
उसी में सच्चा आनंद है परन्तु हमारी पकड़ हमे कमज़ोर बनाती है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
बीता हुआ कल बीता हुआ वर्तमान है और वो बीत चुका है उसे पकड़ना ही हमारे
दुःख का कारण है और यही नहीं हमे जीवन के सार तत्व तक न पहुँचने देने की
सबसे बड़ी रुकावटों में ये भी एक कारण निहित है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
असल में बीता हुआ समय ही मरता है उसमे बीते सारे लम्हे मरते हैं और हम अपनी
चेतनता को,अपने जीवन की चेतनता को अपने बीते हुए जीवन वो अच्छा हो खराब हो
परन्तु जड़ता से जोड़ के देखते हैं </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
ये एक बहुत बड़ा कारण है हमारे जीवन में हमे मौत से डर लगने का,मौत के आगे झुकने का,जीवन के मधुर,अलौकिक,अमर संगीत से वंचित होने का </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
अब ध्यान दीजिये यही बात भविष्य के साथ भी लागू हो सकती है यदि हम वैसे ही
प्रभात की अपेक्षा जैसा आज था कल के सूरज से भी करें तो फिर से ग़लत हो
जायेंगे,फिर से सरोवर का,सड़ने वाले पानी बीज बोने लगेंगे </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
जो आज सुबह बीती बढ़िया थी लेकिन कल भी वैसी रहे तो इसका मतलब हमने प्रकृति को सिमित कर डाला </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।
प्रकृति से अच्छी कला,सोच और प्रकृति से अच्छा कार्य कोई कर ही नहीं सकता
और प्रकृति हमेशा ही बीते हुए से अच्छा ही करती है वो अलग बात है हम समझ न
पायें </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इसलिए यदि हम उसके कृत्य का आनंद नहीं ले सकते तो हमे उसके कृत्य पर दुखी भी नहीं होना चाहिए </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
इस बात के अलावा ये भी समझना आवश्यक है की हम जैसा अपने भूतकाल को लेते
हैं हम वैसा ही अपने भविष्यकाल के बारें में सोचने लगते हैं यानी यदि हम
भूतकाल से दुःख महसूस करते हैं तो हम वैसा ही अपने <span id="6_TRN_u5">भविष्यकाल में भी पायेंगे </span></span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
<br />
इसके साथ साथ हम भूतकाल और भविष्यकाल में बंधे रहने के कारण अपने वर्तमान
को जी ही नहीं पाते और वर्तमान में जीना ही जीना है,नदी को नदी की तरह ही
बहना चाहिए क्यूंकि वोही सहजता है वो हो नदी को प्रकृति की देन है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><br />
</span></span></div>
</div>
Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-54734473223395772332012-07-15T17:48:00.001+05:302012-07-20T11:35:11.813+05:30चिंतन 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">अभी नेट पर आया था ब्लॉग पर लिखने जा ही रहा था की याद आया की गुवाहाटी में बीस लोगों द्वारा एक घिनौना कुकृत्य किया गया है <span class="st">।<br />
मैंने इस पर कभी एक कविता लिखी थी </span><span class="st">। </span> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> <a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2011/11/blog-post_13.html" target="_blank">//poetry-kavita.blogspot.in/2011/11/blog-post_13.html</a><span class="st"><br />
आज चिंतन के प्रसंग को बढाने से पहले इस काण्ड पर कुछ चिंतन प्रकट करना चाहता हूँ </span><span class="st">। तीन बात कहूँगा </span><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><br />
पहली बात </span><span class="st"><br />
सबसे पहले मैं ऐसे लोगों की भर्त्सना करना चाहूँगा जो सिर्फ ध्यान पाने के
लिए ऐसे मुद्दों पर हाथ साफ़ करते हैं उनका इसके पीछे के दर्द से कुछ लेना
देना नहीं होता </span><span class="st">।<br />
उन्हें सिर्फ इस बहाने अपनी वाह वाही और की वो बहुत संवेदनशील हैं ये दिखाना होता है </span><span class="st">।
ऐसे लोग चाहे मीडिया से जुड़े हों,ब्लॉग से जुड़े,किसी अच्छे पद पर हों या
प्रतिष्ठित हों हों लेकिन यदि वो मात्र किसी स्वार्थ हेतु अथवा दिखावे के
लिए ऐसे मुद्दों </span><span class="st">को उछालते हैं तो वो भी उन्ही बीस आदमियों की तरह हैं जो इस कुकृत्य में शामिल थे </span><span class="st">।<br />
<br />
दूसरी बात <br />
</span><span class="st">ऐसा क्यूँ होता की जब एक्सिडेंट हो जाता है तभी उस चौराहे पर सिपाही खड़ा किया जाता </span>है यानि हम पहले से ही सावधान क्यूँ नहीं होते <span class="st">। ऐसा क्यूँ होता है जब आग लग जाती है नुक्सान उठा लिया जाता है तभी आग बुझाने वाला यंत्र रखा जाता है ?<br />
आखिर ऐसी जगहों पर सिपाही या सेकुरिटी वाले तैनात क्यूँ नहीं थे?<br />
<br />
तीसरी बात <br />
<br />
ये सबसे अहम् है बहुत गौर से पढने और समझने वाली बात है और वो ये है की
हममे से अधिकतर लोग आज भी और अभी भी उन्ही 20 जानवरों जैसा जीवन जीते हैं
जो उस लड़की के साथ हैवान हुए </span><span class="st">। हमारे अन्दर कैसा जानवर छुपा है या तो हम जानते नहीं या तो हम मानते नहीं </span><span class="st">। लेकिन इससे सच्चाई नहीं बदल जाती और डंके की चोट पर मैं कहता हूँ की हममे से लगभग </span><span class="st">75% चाहे वो मेल हों या फीमेल ऐसी ही जानवरों जैसी प्रवृत्ति रखते हैं और यही नहीं रोज़ हम ऐसे ही कृत्य करते हैं कर रहे हैं </span><span class="st">। जी हाँ, हम लोग रोज़ ऐसे ही बलात्कार कर </span><span class="st">
रहे हैं अंतर सिर्फ इतना है की गुवाहाटी में जो हुआ वो शारीरिक हिंसा थी
(हालाँकि वो भी मानसिक हिंसा से उपजी ) और हम मानसिक हिंसा करते हैं ऐसी ही
घृणित </span><span class="st">।</span><span class="st">हम माने या न माने लेकिन </span><span class="st">इस सत्य को हम झुठला नहीं सकते </span><span class="st">। वो जो भीड़ देख रही थी इस कुकृत्य को वो कोई और नहीं थी हम ही लोग थे अंतर सिर्फ चेहरे का ही तो था </span><span class="st">।<br />
<br />
</span><span class="st">पेश है कुछ सवाल यदि ज़रा भी हिम्मत हो तो इन प्रश्नों की सच्चाई को तौलियेगा </span><span class="st">।<br />
<br />
1 . क्या हम मानसिक हिंसा नहीं करते ? <br />
</span><span class="st">2 . </span><span class="st">क्या हम स्वयं मानसिक रूप से दूसरों की इज्ज़त तार तार करने में नहीं लगे रहते ?<br />
</span><span class="st">3 . जैसे उस लड़की को २० लोगों ने घेर कर अपने
जानवर होने का सबूत दे दिया क्या हम भी दूसरों को नीचा दिखाने के लिए अपने
दोस्तों किए साथ ऐसी घटिया साजिशें नहीं रचते और क्या इस तरह से किसी की
इज्ज़त तार तार नहीं करते ?<br />
4 . क्या हमारे समाज में जब कोई सही मुद्दे पर आवाज़ उठाता है तो क्या हम
चुप नहीं लगा जाते तो फिर क्या हम उस घृणित भीड़ से अलग हैं जो किसी अबला
की इज्ज़त तार तार होते देखती रही ?<br />
5. क्या हम ऐसे लोगों को शरीफ लोगों से ज्यादा नहीं अपनाते जो आपराधिक
वृत्ति के होते हैं और इस तरह से क्या स्वयं हम हिंसक सोच के नहीं हैं ? <br />
6. क्या हम मात्र अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए उन नेताओं जैसे नहीं हो जाते जिन्होंने ऐसे न जाने कितने केस दबा दिए ?<br />
7. क्या हम अपने झूठे अहम् को बढाने के लिए किसी अनजान के वजूद के साथ नहीं
खेल जाते यानि जैसा उन बीस लोगों ने किया क्या उसी तरह हम अपने थोड़े से
स्वार्थ को (धन,यश,मान ) पाने के लिए ग़लत काम के लिए हामी नहीं भरते ?<br />
8. क्या हम अपनी ग़लतियों के लिए क्षमा मांगते हैं ? क्या हम ऐसी मानसिक हिंसाएँ करना बंद करते हैं ?<br />
9. क्या हम वस्तुवादिता के गुलाम नहीं हैं ? क्या हम वासना के गुलाम नहीं हैं ?<br />
क्या हम दूसरों को उनकी धन,संपत्ति और शारीरिक दृष्टि से नहीं तौलते ?<br />
10. क्या हम कभी ये निश्चय करते हैं की हम अपनी मानसिक हिंसा घटाएंगे ?<br />
11. क्या हम अपने निश्चय पर अटल रह पाते हैं ? <br />
१२. हममे से कितने लोग अपना स्वरुप शरीर मानते हैं ?<br />
१३. हममे से कितने लोग अपना स्वरुप आत्मा जानते हैं ?<br />
१४. क्या समाज में सारी ग़लत बात सिर्फ स्वयं को शरीर मानने से नहीं होतीं ?<br />
१५. क्या स्वयं को आत्मा समझने के बाद हम स्वयं ही आसुरी गुणों के अपेक्षा दैवीय गुणों की तरफ नहीं बढ़ते ?<br />
१६. हममे से कितने प्रतिशत लोग सांसारिक दिखावे की ज़िन्दगी जीते हैं और
कितने ऐसे हैं जो परमात्मा से कुछ नहीं छुपाते अथार्त भगवान् को साक्षी
मानके जीते हैं ?<br />
<br />
अब पुनः चिंतन की पिछली कड़ी पर आता हूँ और वहीँ से शुरू करता हूँ जो मैं कहना चाहता था </span><span class="st">।<br />
<br />
हमने चिंतन से सम्बंधित कुछ मूलभूत प्रश्नों पर गौर किया था </span><span class="st">। मैंने एक बात कही थी की हम एक बार में एक ही बात सोच सकते हैं मैं फिर अनुरोध करूँगा की और गौर से समझें </span><span class="st">। यानि की हमे भले लगे की हमारे मन में कई विचार चल रहे हैं लेकिन सच्चाई ये होती है की हम एक ही विचार को सोच रहे होते हैं </span><span class="st">।<br />
मतलब हम देखते हैं की आपराधिक लोग जल्दी क्यूँ नहीं सुधर पाते उसका कारण
सिर्फ इतना है की वो अपने चित्त की दूसरी दिशा की तरफ जा नहीं सकते या ये
कहें की जा नहीं पाते </span><span class="st">। उसी तरह से उनके ऊपर जो
सामान्य सोच वाले लोग हैं यानि की जो आम जनता है वो पढ़ाई-लिखाई,नौकरी,बच्चे
और उनकी शादी इसी को जीवन की इति समझे है और वो भी सोच के और आयामों के
बारें में सोच नहीं पाती </span><span class="st">। आम जनता येही सोचती </span>की उसका स्वरुप शरीर है और मरने से पहले उसे इस शरीर को विभिन्न तरह से सुख पहुचाना है <span class="st">। मगर मैं ये कहना चाहूँगा की अध्यात्म की तरफ सोचने का हौसला हम क्यूँ नहीं जुटा पाते ?<br />
आखिर हमे ऐसा क्यूँ लगता है की परमात्मा कोई पाने की चीज़ है ? हम क्यूँ
नहीं मान पाते की परमेश्वर हमे मिला ही हुआ है,हमे बस उसे अनुभूत करना है </span><span class="st">।<br />
<br />
</span><span class="st">एक कहानी सुनिए <br />
<br />
दो दोस्त थे दोनों अलग अलग सामुद्रिक यात्रा पर निकले </span><span class="st">। पहले दोस्त जब निकला तो सफ़र के दौरान एक तूफ़ान में पानी का जहाज़ फंस गया और फिर पानी में उभरी चट्टान </span>से टकराके छिन्न भिन्न हो गया <span class="st">। वो व्यक्ति किसी तरह बच गया एक टापू पर </span>आ गया वहां उसने देखा की कोई भी नहीं है <span class="st">। उसने वापस लौटने की आशा छोड़ दी और वहीँ पर एक झोपडी बना कर रहने लगा </span><span class="st">। इस तरह से उसने अपना जीवन वहीँ गुज़ार दिया </span><span class="st">।<br />
<br />
जो दूसरा दोस्त था वो भी दूसरी सामुद्रिक यात्रा पर निकला था </span><span class="st">।
उसके साथ भी वही हुआ उसका जहाज़ टूट गया सभी यात्री बिखर गए और वो स्वयं
किसी लकड़ी के बड़े तख्ते को पकडे हुए एक निर्जन वीरान द्वीप से आ लगा </span><span class="st">। परन्तु उसने सोचा की यदि वो यहाँ आ पड़ा है तो निकल भी सकता है </span><span class="st">। उसने तुरंत ही किसी तरह से एक झंडा बनाया और एक पेड़ के ऊपर जाके बाँध दिया </span><span class="st">।
नित्य वो रोज़ जाके उस झंडे को हिलाता था और कोशिश करता था की यदि कोई
जहाज़ निकले आस पास से तो उसके झंडे को देख ले और ऐसा ही हुआ कुछ हफ़्तों के
बाद एक जहाज़ उस द्वीप के </span>पास से गुज़रा और उसका झंडा देखके रुक गया <span class="st">। और इस तरह से वो दूसरा दोस्त वापस अपने गाँव लौट गया </span><span class="st">।<br />
<br />
सार क्या है कहानी का की परमात्मा भी हमारे इतने ही पास है जितना वो पानी का जहाज़ उस निर्जन,वीरान द्वीप के पास </span><span class="st">।
हम मगर उसे आवाज़ नहीं लगाते यहाँ तो कुछ हफ़्तों के बाद वो पानी का जहाज़
गुज़रा परन्तु वास्तव में तो परमात्मा सदा ही हमारे पास से गुज़र रहा है </span><span class="st">। परन्तु क्या हम उसे आवाज़ लगाते हैं ? हम तो उसकी दिशा में सोच भी नहीं पाते हैं </span><span class="st">। हम उस पहले व्यक्ति की तरह ज़िन्दगी बिता देते हैं जो ये मान बैठता है की इस टापू से वो निकल नहीं पायेगा </span><span class="st">। <br />
इसलिए ये आवश्यक है की हम क्या सोच रहे हैं इसका भान हमे अवश्य रहे </span><span class="st">। अपने दिन का,अपने जीवन का सारा समय तो पशु भी अपने कार्य में लगा देता है परन्तु इंसान और उसमे बहुत फर्क है </span><span class="st">। बुनियादी बात यही है की सांसारिक सोच के साथ साथ हमें पारमार्थिक सोच के प्रति भी सचेत रहना चाहिए,जागरूक रहना चाहिए </span><span class="st">।</span><span class="st">
भूले से भी हमे अपने आध्यात्मिक सिद्धांत अपने जीवन के सिद्धांतों से अलग
नहीं समझना चाहिए क्यूंकि इस तरह से हम अपने समय और उसकी सदुपयोगिता को
व्यर्थ करते हैं </span><span class="st">। आप माने या न माने लेकिन दिखावे की वजह को प्राथमिकता देने की वजह से हम बिना दिखावे की जो असली चीज़ रहती है उससे चूक जाते हैं </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st"><br />
एक चुटकुला सुनिए <br />
<br />
एक आदमी था गोलूमल उसके घर उसका मित्र भोलूमल आया </span><span class="st">।<br />
भोलूमल ने देखा की गोलूमल हाथ बंद कर कर के उसकी तरफ खाली फेंक रहा है </span><span class="st">।<br />
<br />
भोलूमल : यार! ये क्या कर रहा है तू ?<br />
<br />
गोलूमल : अरे यार ! बिजली नहीं आ रही न !!<br />
<br />
भोलूमल : वो तो ठीक है लेकिन तू ये क्या कर रहा है !<br />
<br />
गोलूमल : अरे ! तुझे गर्मी न लगे इसलिए तुझ पर हवा फेंक रहा हूँ </span><span class="st">।<br />
<br />
भोलूमल : तो क्या तेरे यहाँ हाथ वाला पंखा नहीं है ?</span><span class="st"><br />
</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;">गोलूमल </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"><span class="st" style="color: #134f5c;">: तो क्या तुझे मेरी हाथ से फेंकी हवा नहीं लग रही है ?<br />
<br />
भोलूमल : नहीं नहीं भाई ! ऐसी बात नहीं है,ठीक है, अच्छी हवा लग रही है !! <br />
<br />
हमे ये तय करना होगा की हम इनमे से कौन हैं ? कहीं परिस्थितियों के अनुसार हम दोनों ही तो समय समय पर नहीं हो जाते </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
लेकिन हर सूरत में ये बात दीगर है की हम बेसिरपैर की बातों को भी
प्राथमिकता देते हैं दिखावे के लिए इसलिए सांसारिक हवा जो हाथ वाली है खा
लेते हैं लेकिन आध्यात्मिक हवा जिसके लिए हमे थोडा आगे बढ़के हाथ का पंखा ही
तो उठाना था उसके लिए प्रयास नहीं करते </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। क्यूँ ? क्यूंकि वो हमारे मित्र को अच्छा नहीं लगेगा </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। क्यूंकि सत्संग को तो अधिकतर हम बुढापे का विषय मानते हैं इसलिए उसपर चर्चा स्वेच्छा से कभी करना ही नहीं चाहते </span><span class="st"><span style="color: #134f5c;">।</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c;">चिंतन सकारात्मक सही अर्थों में तभी मानना चाहिए जब थोडा ही सही लेकिन उसमे
परमात्म तत्व का ज़िक्र भी आ जाए,थोडा ही सही उसमे वैराग्य की झलक भी हो </span></span><span class="st" style="color: #134f5c;">। </span><span class="st" style="color: #134f5c;"> <br />
<br />
वहीँ एक भक्त की आवाज़ क्या होगी जिसने इतना भी मान लिया की प्रभु उसके साथ है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;">ज़िन्दगी के उजालें क्या ?ज़िन्दगी के अन्धेरें क्या <br />
हमे कुछ भी मालूम नहीं जबसे तुझे सोचा है <br />
<br />
अब तक मिट रहा था मैं ज़माने के लिए मेरे मालिक <br />
अब मिट रहा हूँ मैं खुदको तुझसे मिलाने के लिए <br />
<br />
<br />
पहले शेर में भगवान् के प्रति अनन्यभाव है की प्रभु भक्तों को सब चीज़
स्वयं ही उपलब्ध करा देते हैं,भक्तों को तो सिर्फ उनकी ही चाहना रखनी चाहिए
</span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
दूसरा शेर गहरा है वो कहता है की 'मैंपन'</span><span class="st" style="color: #134f5c;"> ही रुकावट है परमात्मप्राप्ति के लिए और इस मैंपन को मिटाके ही साधक साध्य से अथार्त परमात्मा से मिलता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
<br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;"></span><span class="st" style="color: #134f5c;"><br />
</span></span><span class="st"><br />
</span><span class="st">
</span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-68225026917426272752012-07-11T16:54:00.003+05:302012-07-20T11:23:25.785+05:30चिंतन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारे चिंतन का हम पर बहुत प्रभाव पड़ता है ये कह सकते हैं की हम आज जो भी हैं अपने चिंतन की वजह से और कल जो भी होंगे उसका आधार हमारा आज का चिंतन है </span><span style="font-size: x-large;">। </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">चिंतन सदैव एक ही दिशा में हो सकता है यदि हम खराब चिंतन कर रहे हैं तो इसका मतलब यही नहीं की हम स्वयं का कल खराब कर रहे हैं बल्कि इसका और गहरा अर्थ ये हुआ की हम अच्छे चिंतन से वंचित होते जा रहे हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">अधिकांशतः हम सांसारिक चिंतन ही कर पाते हैं या ये कहें की सांसारिक चिंतन से ही फुर्सत नहीं मिलती फिर आध्यात्मिक चिंतन शब्द कौन सी बला है इससे सर्वथा हम महरूम ही रह जाते हैं चिंतन की तो बात ही नहीं उठ पाती </span><span style="font-size: x-large;">। </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">सांसारिक चिंतन में हम क्या सोचते हैं यदि हम इसको साफगोई से समझें और इमानदारी से माने तो हमे पता चलेगा हम अपना अहित ही सोचते हैं,अहित की करते हैं कभी जाने कभी अनजाने </span><span style="font-size: x-large;">। </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मैंने इस श्रृंखला को इसलिए शुरू किया की अधिकतर हमे पता ही नहीं चल पाता की हम कितने अधिक अँधेरे में हो सकते हैं,कितनी ग़लत दिशा में हो सकते हैं इसका हमे अंदाजा तक नहीं मिल पाता,इसका हमे अंदाजा तक नहीं लग पाता </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम अभी कितने उजालें में हैं ये हमारे बीते हुए कल की सुबहों की ताजगी भरी सोचों पर निर्भर है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">और हम जो दुखित होते हैं वो हमारे कल में सोची गयी ग़लत सोच की वजह से है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">मेरी आम सोच पर ही ज्यादा लिखने की कोशिश रहेगी </span><span style="font-size: x-large;">। </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">कुछ अतिमहत्वपूर्ण प्रश्न हमारी सोच,हमारे नज़रिए के परिपेक्ष्य में - </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">क्या सोचते हैं हम ? </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारे जीवन के उद्देश्यों का आधार क्या है ?</span><span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारी सोच का आधार क्या है ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम स्वतंत्रता पसंद हैं या परतंत्रता ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">एक एक शब्द को बहुत ध्यान से समझना होगा </span><span style="font-size: x-large;">। एक एक शब्द पर बहुत ध्यान देना होगा और उससे ज्यादा इस बात पर की बात कितनी सच है और सही दिशा क्या है ? कैसे सही दिशा पायें ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">तो पहला प्रश्न की क्या सोचते हैं हम ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">यदि हमारी सोच का खाका खींचा जाए तो हम देखेंगे की हमारी सोच हमारे आस पास रहने वाले लोगों के अधीन हैं </span><span style="font-size: x-large;">। ये कैसी सोच है ? ये ऐसी सोच है जिसे विचार जगत में आम सोच से देखा जाता है यानि अधिकतर लोग आस पास के लोगों,दोस्तों,रिश्ते-नातों के प्रति राग-द्वेष में ही अपने जीवन की असली शक्ति अथार्त विचार शक्ति निकाल देते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> ये राग-द्वेष क्या है? अथार्त कुछ लोगों के प्रति हम अच्छा भाव रखते हैं और कुछ के प्रति अच्छा नहीं तो पहला भाव राग और दूसरा द्वेष में आया </span><span style="font-size: x-large;">। यानी हमारा दिन का अधिकतर ग्राफ इसी राग-द्वेष के ग्राफ में सिमट के रह जाता है और हम जान ही नहीं पाते की विचार के नक़्शे में जहाँ विचार की असली परिधि शुरू होती है हम अपने तथाकथित राग-द्वेष के ग्राफ को लेके कहीं किनारे उलटी दिशा में पड़े होते हैं,बढ़ रहे होते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दूसरा प्रश्न </span><span style="font-size: x-large;"> </span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारे जीवन के उद्देश्यों का आधार क्या है ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारे जीवन के उद्देश्य कई बार तो तो जो बचपन से ही हमारे मन में भर दिया जाता है वोही बनने हम निकल पड़ते हैं या फिर यदि सयाने होने पर हमे चुनना होता है तो हम अधिकतर दूसरे को देखके या दूसरों को देखके ही बनाते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">तीसरा प्रश्न </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हमारी सोच का आधार क्या है ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">इसका उत्तर हम आम जनता के लिए आम सोच ही पायेंगे यानि जैसा सोच का आधार (संस्कार रूप में ) हमे मिला है थोड़ा हम उसे बढाते हैं और थोडा हम अपने को होशियार समझके अपनी समझ से उसी होशियार दुनिया से लेते हैं जिसकी सोच आम है </span><span style="font-size: x-large;">। इसे समझना होगा ये प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है,सबसे महत्त्वपूर्ण है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">एक चुटकुला सुनिए :</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">एक आदमी दूसरे से : क्यूँ भाई सुना है तुमने बड़ी आलीशान कार खरीदी है ? </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दूसरा : हाँ यार ! खरीदी तो है क्या करता बगल वाले ने खरीदी तो मुझे भी खरीदना पड़ा ? बड़ा अकड़ रहा था खरीद के !!</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">पहला आदमी : अरे चलो ठीक है भाई अब मिठाई विठाई तो कुछ खिलाओ </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">दूसरा : खिलाऊंगा यार, अभी कुछ पैसे देना पेट्रोल भराना है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम दिखावे में ज़िन्दगी बिता रहे हैं और इस तरह से बिता रहे हैं की दिखावा ही हमे ज़िन्दगी लगने लगता है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम दिखावे को ही ज़िन्दगी मानने लगते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">चौथा प्रश्न </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">हम स्वतंत्रता पसंद हैं या परतंत्रता ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ये प्रश्न हमारे विचारों के अन्तःरूप को प्रकट करता है </span><span style="font-size: x-large;">। हम कितने कायर हैं,बुजदिल हैं अथवा बहादुर है ये हमारे दूसरों को सम्मान देने और अपमान देने पर निर्भर करता है </span><span style="font-size: x-large;">। एक कायर सोच का सदैव दूसरे को डराने में यकीन होगा और बहादुर सोच वाला दूसरे को बढाने में विश्वास रखेगा </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">चोर को सब चोर ही नज़र आयेंगे,जेल के कैदी ही दिखाई पड़ेंगे और जो चोरी नहीं करता</span><span style="font-size: x-large;"></span><span style="font-size: x-large;"> वो सबको अपने जैसा ही देखेगा </span><span style="font-size: x-large;">। हमारी सोच की संकीड़ता या विस्तारता ही रिफ्लेक्ट करती है की हम दूसरों को बढ़ते हुए देखना पसंद करते हैं या ये हमसे सहा नहीं जाता </span><span style="font-size: x-large;">। हम अन्दर कितने अधिक सुख से भरे हैं या विषाद से ये इस बात से पता चलता है की हम समाज में क्या दे रहे हैं </span><span style="font-size: x-large;">। हम कितने सकारात्मक और नकारात्मक है ये हमारे स्वयं के आस पास के माहौल में स्वयं के किये बर्ताव से ही पता चलता है </span><span style="font-size: x-large;">। आम सोच स्वतंत्रता पसंद है या परतंत्रता तो इसमें कोई दो राय नहीं की परतंत्रता पसंद है </span><span style="font-size: x-large;">। क्यूंकि बड़े स्तर से देखें हम तो पाएंगे की पिछले 5000 सालों में 25000 युद्ध हो चुके हैं ये बात कैसी सोच का प्रतिनिधित्व करने वाले समाज को बताती है </span><span style="font-size: x-large;">। आज भी लगभग सभी देश परमाणु बमों से स्वयं को सुसज्जित करना चाहते हैं और शान्ति पर बात करने वाले कितने देश हैं उनके बारें में हम कहाँ सुन पाते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">क्या हमने कभी सोचा है की काल तत्व से </span><span style="font-size: x-large;">अथार्त समय से कोई नहीं जीत सका </span><span style="font-size: x-large;">। क्या हमने सोचा है की जहाँ हम अभी इमारतें देखते हैं कोई लाख साल पहले वहां खंडहर व पहाड़ थे और फिर वोही होंगे परन्तु फिर भी हम ऐसे जीते हैं जैसे हमारी मृत्यु होगी ही नहीं तभी तो हम बेफिक्र होके ग़लत दिशा में सोचते हैं और ज़िन्दगी से कुछ नहीं सीखते हैं,आध्यात्मिक ज्ञान को महत्व नहीं देते </span><span style="font-size: x-large;">। </span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: small;"> </span> </div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<span style="font-size: small;"> </span> </div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-21416538061413522482012-07-09T17:04:00.001+05:302012-07-20T11:44:27.242+05:30ध्यानयोग 9<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">आध्यात्मिक <span style="font-size: x-large;">पथ </span>पर झुकाव और जुड़ाव के बाद मैं अधिक समय नेट को नहीं दे पाता कारण समय की कमी के अलावा स्वयं का संसार से ज्यादा जुड़ाव न चाहना है । संसार से ज्यादा जुड़ाव से अभिप्राय यही है की सत्संग को पसंद तो बहुत लोग करते हैं लेकिन उस पर चर्चा बहुत कम किया जाता है ।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">सत्संग के बगैर गया सारा वक़्त मेरा मानना है कूड़े के सामान है निरर्थक है और सत्संग में गया सारा समय एक ऊर्जा है,एक चैतन्यता है एक दीप है जो उर को अथार्त ह्रदय को सदा ज्ञान से प्रकाशमान रखता है ।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> मैं दोष भी नहीं देता की समाज में सत्संग अधिक क्यूँ नहीं होता क्यूंकि गीता में ही भगवान् ने बताया है की समस्त मानव जाति अधिकतर रजोगुण से ही प्रभावित रहती है । सतोगुणी लोग हमेशा से ही समाज में कम रहे है क्यूंकि वो अनासक्त होते हैं,आडम्बरहीन होते हैं ।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">रजोगुण का आधार ही आसक्ति और कामना है और कामना की पूर्ती में हिंसा (मानसिक) पनपेगी ही और अशांत वातावरण में तुरीयातीत अवस्था पर बात हो ये विचार ही हास्यास्पद है ।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">तुरीयातीत अवस्था पर लिखी जाने वाली पोस्ट्स पर मौन ही टिप्पड़ी हो सकता है इसलिए मैंने कमेंट्स का ऑप्शन नहीं रखा और कोई वजह नहीं है ।<br />
कुछ समय ही मैं ब्लॉग्गिंग जगत में काफी एक्टिव रहा जिसके फलस्वरूप कई
ब्लोग्स पर गया और अब नहीं जा पाने पर भी कुछ ब्लोग्गेर्स ने इसे ग़लत नहीं
लिया है क्यूंकि <br />
इनकी सोच का आधार गुणवत्ता है टिप्पड़ी नहीं ।<br />
कुछ सरल लोगों ने अपने उद्गार भेजे हैं जिनमे से एक कमेन्ट आदरणीय श्री अशोक जी का है :</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<table __gwtcellbasedwidgetimpldispatchingblur="true" __gwtcellbasedwidgetimpldispatchingfocus="true" cellspacing="0" class="GCQQAT3BNR blogg-commenttable" style="color: #134f5c;"><tbody>
<tr __gwt_row="1" __gwt_subrow="0" class="GCQQAT3BGR GCQQAT3BIR GCQQAT3BNQ GCQQAT3BAR"><td align="center" class="GCQQAT3BFQ GCQQAT3BHR GCQQAT3BIQ GCQQAT3BJR GCQQAT3BOQ GCQQAT3BBR" valign="top"><div __gwt_cell="cell-gwt-uid-260" style="outline-style: none;">
<input checked="checked" tabindex="-1" type="checkbox" /></div>
</td><td align="left" class="GCQQAT3BFQ GCQQAT3BHR GCQQAT3BJR GCQQAT3BOQ GCQQAT3BPQ GCQQAT3BBR" valign="top"><div __gwt_cell="cell-gwt-uid-261" style="outline-style: none;" tabindex="0">
<div class="GCQQAT3BBB">
आप की पोस्टें ज्ञान बड़ाने के लिए हैं
हम जैसों की टिप्पणी पाने के लिए नही
शुभकामनाएँ! on <a href="http://poetry-kavita.blogspot.com/2012/06/8.html?showComment=1340527717813#c161340451532557051" target="_blank">ध्यानयोग 8</a></div>
<div class="blogg-visible-on-select">
<a href="http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=9035245632311694535" kind="remove">Remove content</a> | <a href="http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=9035245632311694535" kind="delete">Delete</a> | <a href="http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=9035245632311694535" kind="spam">Spam</a></div>
</div>
</td><td align="center" class="GCQQAT3BFQ GCQQAT3BHR GCQQAT3BJR GCQQAT3BOQ GCQQAT3BBR" valign="top"><div __gwt_cell="cell-gwt-uid-262" style="outline-style: none;">
<a href="http://www.blogger.com/profile/17024308581575034257">यादें....ashok saluja .</a></div>
</td><td align="center" class="GCQQAT3BFQ GCQQAT3BHR GCQQAT3BJR GCQQAT3BCR GCQQAT3BOQ GCQQAT3BBR" valign="top"><div __gwt_cell="cell-gwt-uid-263" style="outline-style: none;">
on 6/24/12</div>
</td></tr>
</tbody></table>
<span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
मैं उनका आभार प्रकट करना चाहता हूँ की वो सतत पोस्ट्स को पढ़ते रहते हैं ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
मैं उनसे बहुत छोटा हूँ और यही कहूँगा की आप गुणी,अनुभवी और सत्संगप्रिय लोगों से ही परोक्ष,अपरोक्ष रूप से सीखता रहता हूँ । <br />
मैं ह्रदय से उनलोगों का भी शुक्रिया करना चाहता हूँ जो इस कलिकाल में जहाँ
इंसान विवेक को महत्व नहीं दे पाता निरंतर पोस्ट्स को पढ़ते रहे हैं और
आशा है लाभान्वित होते रहे हैं ।<br />
कोई भी प्रश्न ध्यान के सम्बन्ध में प्रबुद्ध पाठकों को यदि है या आये और वो पूछना चाहें तो मुझे मेल कर सकते हैं ।<br />
कुछ लोगों ने एनानीमस बनके कमेंट्स भेजे हैं उनमे एक प्रश्न भी आया है की ध्यान क्यूँ किया जाए ?<br />
मैं अनुरोध करूँगा की हो सके तो वैलिड आई-डी से आये या अपना नाम ज़रूर लिखें । इससे आप और सहजता से सहज प्रश्न कर सकेंगे ।<br />
मेरी कोशिश इन पोस्ट्स के माध्यम से यही है की इस तरह विस्तार से बढूँ की
बिना प्रश्न के ही ज्यादा से ज्यादा समाधान लिख दूँ इसीलिए स्वयं भी समय
समय पर ध्यान सम्बन्धी प्रश्न उठाकर समाधान लिखता रहा हूँ ।<br /><br />
पुनः प्रसंग पर चलते हैं और ध्यान क्यूँ किया जाए इस प्रश्न पर मैं इतना ही कहूँगा की इसी श्रंखला की शुरूआती पोस्ट्स देखें ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
बाकी एक वाक्य में उत्तर यही है की हम अपने सहज स्वरुप को ध्यान द्वारा ही
जान सकते हैं,उसमे ध्यान द्वारा ही स्थित हो सकते हैं,ध्यान ही हमारा सहज
स्वरुप है ।<br /><br /><br />
विचारशून्यता,कामनाशून्यता की परिणीति ध्यान है अथार्त विचारशून्यता प्रारंभिक सीढ़ी है,पहला चरण है और दूसरा चरण है कामनाशून्यता ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
यदि हम अनुभव करें अथार्त सोचें तो पायेंगे की विचारशून्यता मतलब निर्विचार
चेतना और इस अवस्था के द्वारा अपने आप ही हमारे मन की शुद्धि होने लगती
हैं <br />
कलुषित विचार जाने लगते हैं और निर्मलता आने लगती है परन्तु कामना अथार्त
विभिन्न सांसारिक इच्छाएं सूक्ष्म स्तर पर विद्यमान रहती है और वो चित्त को
स्थिर नहीं रहने देतीं ।<br />
मैं कहूँगा इसकी चिंता छोड़कर आगे तीसरे चरण पर बढ़ जाना चाहिए जो की है अहंकारशून्यता ।<br />
व्यक्ति अहंकारशून्य होकर ही सही अर्थों में कामनाशून्य हो पाता है ।
अहंकार अथार्त मैं-पन यही आधार है हमारे चित्त का और जब मैं ही न रहा तो हम
सोचेंगे क्या ?<br />
व्यक्ति की इच्छाएं उसके वजूद से हैं लेकिन यदि उसने अपने वजूद ही खो
डाला,मिटा दिया यानी जब आधार ही न रहा तो इच्छाओं की इमारत किस पर खड़ी होगी
?<br />
नहीं,नहीं खड़ी हो सकेगी ।<br />
यानी हमे ध्यान में बिना भय के अपने आप को खो देना है,मिटा डालना है,परमात्मा में अपनी आत्मा को बिना किसी संदेह के डुबो देना है । <br />
हमे ये समझना होगा की हम लहर हैं और परमात्मा समुद्र और लहर का वजूद वैसे
भी समुद्र के बिना कुछ भी नहीं और अभी हम समुद्र से अलग हैं, अपने आपको
समुद्र से अलग समझते हैं जबकि अलग बिलकुल नहीं हैं ।<br />
जैसे बारिश की बूँदें धरती पर गिरें और सोचें की वो आसमान से पृथक हैं तो ऐसा बिलकुल नहीं क्यूंकि तत्वतः आसमान और पृथ्वी एक हैं ।<br />
जैसे सूर्य की छाया पानी पर पड़े और वो छाया अपने को सूर्य से अलग मान ले तो उसके अलग मानने से ये सच नहीं हो जाएगा ।<br />
जैसे अलग अलग घरों में जाने वाली बिजली को हम अलग अलग मान लें लेकिन ऐसा है
तो नहीं क्यूंकि मूल स्रोत तो विद्युत का एक ही है,विद्युत ही बल्ब आदि के
माध्यम से प्रकाश देती है उसी तरह समस्त जीव परमात्मा के द्वारा ही
संचालित हैं और परमात्मा ही उनमे चेतन तत्त्व है वस्तुतः जीव शब्द है ही
नहीं,आत्मा ही परमात्मा है,परमात्मा के सिवाय कुछ भी नहीं है ।<br /><br />
जब तत्त्व से हम ये समझ लेते हैं फिर ये भी समझ जाते हैं की स्वयं को
परमात्मा से अलग मानने के कारण ही आत्मा का अलग वजूद हुआ जिसे अहंकार कहते
हैं और फिर मन बुद्धि के खेल में पड़कर हम अपने अहंकार को और पुष्ट करते
रहें । वो भी उस मैं-पन का पोषण करते हैं हम जो तत्वतः विद्यमान ही नहीं है
।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
तो स्वयं के इस मैं-पन को हम ध्यान द्वारा ही समाप्त कर सकते हैं । स्वयं की खोज है ध्यान और स्वयं को खोना है समाधि ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
इसमें कुछ भी जल्दी करने की आवश्यकता नहीं है इसे तत्व से समझना ज़रूरी है इसे अनुभव करना पड़ेगा और उसके लिए ध्यान में उतरना पड़ेगा ।<br />
ध्यान कुछ और नहीं स्वयं को खो जाना ही है,स्वयं को मिटा डालना ही है,जीते
हुए मृत्यु का अनुभव करना ही है क्यूंकि तब जाकर ही हम वास्तविक जीवन में
प्रवेश कर पाते हैं ।<br /><br />
आज मैं सांख्य की इस पोस्ट पर ध्यान के लिए कुछ निर्देश कहूँगा क्यूंकि अब
इसका समय आ गया है इसके बाद वाली पोस्ट पर योग द्वारा ध्यान की उपलब्धि का
प्रयास करूँगा ।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
अभी केवल सांख्य अथार्त श्रवण के द्वारा हम ध्यान को उपलब्ध हो रहे हैं ।<br /><br /><br /><br />
सबसे पहले अपनी आँखें बंद कर लें और 10-15 गहरी सांस ले लें और जो भी विचार
आ रहे हैं उनपर ध्यान न दें । स्वयं को आपने ये दस मिनट दिए हैं ऐसा सोचें
।</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br />
सोचें की बहुत संसार को सोच लिया संसार में आसक्त हो लिए,संसार में सुख
ढूंढ लिया आगे भी ढूंढते रहेंगे लेकिन अभी ये वक़्त मैं अपने आपको दे रहा
हूँ और पूरी इमानदारी और तन्मयता से दे रहा हूँ । मुझे सोचना है तो अपनी
चेतना को, चेतना जो निर्विचार है । मैं कोई कामना अभी नहीं कर सकता क्यूंकि
ये दस मिनट मैंने अपने आपको दिए हैं और मेरा स्वरुप कामनारहित है,सिवाय
परमात्मा के संसार की कोई भी कामना मुझे सुख पहुंचा ही नहीं सकती । लेकिन
मैंने ऐसा कभी सोचा ही नहीं और अपने मन को ही अपना स्वरुप मानकर मैं
इच्छाओं का गुलाम हो गया और लाखों,करोड़ों जन्म निकाल दिए झूठे सुख को ढूढने
में और हर जन्म में कुछ नहीं पाया लेकिन हर जन्म में फिर सांसारिक सुख को
ही लक्ष्य बनाया । मुझे रास्ता मालुम नहीं था क्यूंकि मैंने खोजा ही नहीं ।
लेकिन अब मैं असली घर आ गया हूँ,स्वयं का स्वरुप आत्मा है जान चुका हूँ ।
आत्मा जो की परमात्मा का अंश है,आत्मा जो की शाश्वत है,अजन्मा और सनातन है
। आत्मा हूँ जो स्वभाव से ही सम है,शांत है,निर्विकार है जिसमे राग-द्वेष
उत्पन्न ही नहीं हो सकते । मेरा मैं-पन भी मुझसे छूट रहा है,मुझे अपने इस
मैं-पन को भूल जाना होगा क्यूंकि इसे छोड़ने के बाद ही वो दरवाज़ा खुलेगा
जिसके दूसरी तरफ परमात्मा है । मुझे सबकुछ देने वाला मेरा परमात्मा कितना
कृपालु है और अब स्वयं का भान भी करा रहा है,अब स्वयं को भी दे रहा है ।
मैं कितना कृतघ्न की परमात्मा से परमात्मा को छोड़कर विनाशशील पदार्थ ही
मांगता रहा कितनी छुद्रता है मुझमे और ऐसा मैं कितने जन्मों से कर रहा हूँ
नहीं अब मुझे कृतज्ञता प्रकट करनी है और स्वयं को परमात्मा के चरणों में
समर्पित कर देना है । अब परमात्मा से परमात्मा को भी नहीं मागुंगा क्यूंकि
वो तो हमेशा ही मेरे साथ था,मेरे साथ है । हे प्रभु तुमसे करुणा भी करुणा
पाती है मैं तुममे समां रहा हूँ ये आत्मा अब परमात्मामय हो रही है ।<br />
अब ये नदी समुद्र में मिल रही है,मिल गयी है मिल चुकी है । <br />
कुछ समय तक अपने को परमात्मा में डूब जाने दें ।<br /><br />
धीरे धीरे आँख खोलें और अभी के किये अनुभव को अनुभव करें । आपका मन एक अलग ही उल्लास से भर उठेगा ।</span><span style="color: #134f5c;"> </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /><br />
ॐ शान्ति: ! ॐ शान्ति: ! ॐ शान्ति: !</span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><br /></span><span style="color: #134f5c;">
</span><span style="font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">
</span></span></div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-14604401036646398852012-06-24T14:12:00.003+05:302012-07-20T11:37:44.684+05:30ध्यानयोग 8<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />
ध्यान में एक तो हम योग द्वारा बढ़ते हैं जिसमे हम प्राणायाम करते हुए
प्राणों को व्यवस्थित रखते हुए चित्त को निरुद्ध करते हैं और फिर धीरे धीरे
समाधि में प्रवेश करते हैं <span class="st">। </span></span><span style="font-size: x-large;">जिसे महर्षि पतंजलि जी ने आष्टांगयोग में समाहित किया है । </span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">
समाधि में भी पहले हम निर्विचार समाधि को प्राप्त होते हैं और उसके बाद पूर्ण निर्विचार या कामनाशून्य समाधि </span><span class="st">। </span><br /><span class="st">दूसरा ध्यान में हम सीधे ज्ञानयोग अथवा सांख्य के माध्यम से सतत विवेक की प्रधानता द्वारा कामनाशून्य अवस्था को प्राप्त करते हैं </span><span class="st">।<br />
तीसरा हम सांख्य और योग दोनों का समन्वय करते हुए पूर्णकामनाशून्य अवस्था
को जिसे तुरीयातीत,भावातीत,गुणातीत,मायातीत,बुद्धत्व,जीवन्मुक्त आदि कहते
हैं </span><span class="st">।<br />
जैसे राजा जनक अष्टावक्र जी मात्र श्रवण करके ही इस अवस्था को उपलब्ध हो गए </span>।<br /><span class="st">अधिकतर व्यक्ति तीसरे मार्ग का अनुसरण करता है क्यूँकी
सांख्य और योग दोनों के द्वारा आगे बढ़ने से व्यक्ति स्वाभाविक ही अपने मूल
स्वभाव को आत्म स्थिति को प्राप्त हो जाता है </span><span class="st">।<br />
यहाँ मेरा ये सब कहने से अभिप्राय क्या है क्यूंकि इसे तो पिछली पोस्ट में वर्णित किया गया है</span><span class="st">।
यहाँ मैं ये कहना चाहता हूँ की इस सब का उद्देश्य क्या है ? ध्यानयोग में
अपनी आत्मिक अवस्था,स्वरूप अवस्था ही पाना तो कठिन है और वो ही आवश्यक भी
है इसीलिए हम आचार्यों,गुणीजनों,शास्त्रों की बातों का अनुसरण करते हुए,श्रद्धा रखते
हुए इसे करते हैं </span><span class="st">। ये हम इसीलिए करते हैं की हमे
मालूम होता है की ध्यानयोग के द्वारा ही हमे सच्चा आनंद मिल सकता
है,ध्यानयोग के द्वारा ही व्यक्ति स्वयं में स्थित हो सकता है </span><span class="st">।<br />
<br />
समाधि से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है,मोक्ष प्राप्त कर सकता है </span><span class="st">।</span><span class="st"></span><span class="st"></span><span class="st">
बस यहीं सबसे ज्यादा समझने वाली बात है एक तो मोक्ष की कामना लेते हुए
ध्यान को करना ही अपने आप में एक कामना है क्यूंकि समाधि तभी घटेगी जब हम
अधैर्य से काम न लें,कुछ भी कामना न करें </span><span class="st">।<br />
परन्तु मैं इसके आगे की बात करना चाहता हूँ वो ये की मोक्ष मिलने पर भी मोक्ष नहीं लेना चाहिए </span><span class="st">। इसे समझना होगा क्यूँ</span>की
फिर प्रश्न यही उठेगा की ये सारा तामझाम तो हमने मोक्ष पाने के लिए ही
किया था और मैं यही कहना चाहता हूँ की मैंने कभी भी मोक्ष शब्द पिछली
पोस्ट्स में नहीं लिखा <span class="st">।<br />
मोक्ष है क्या? इसे समझना ज़रूरी है </span><span class="st">।</span><br /><span class="st"><br />
</span></span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">संसार आवागमन, जन्म-मरण और
नश्वरता का केंद्र हैं। इस अविद्याकृत प्रपंच से मुक्ति पाना ही <b>मोक्ष</b>
है।</span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
यानी व्यक्ति जीवन मरण के आवागमन अथार्त बार बार जन्मने मरने से छूट जाता है और ब्रह्म में ही लीन हो जाता है,मुक्त हो जाता है । <br /><br />
ये मुक्ति छः प्रकार की कही गयी है :</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
(1)साष्ट्रि, (ऐश्वर्य)<br />
(2)सालोक्य (लोक की प्राप्ति)<br />
(3) सारूप्य (ब्रह्मस्वरूप)<br />
(4)सामीप्य, (ब्रह्म के पास)<br />
(5) साम्य (ब्रह्म जैसी
समानता)<br />
(6) लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।<br />
<br />
निश्चित रूप से व्यक्ति का ये ध्येय होना चाहिए और अधिकतर इसे ही ध्येय बनाते हैं </span><span style="font-size: x-large;">। <br />
यहाँ व्यक्ति के विचार पर निर्भर करता है की वो अखंडरस को चुने या अनंतरस को । मोक्ष है अखंडरस और भक्ति है अनंतरस । <br />
समाधि के द्वारा सिर्फ मोक्ष ही प्राप्त नहीं होता,समाधि के द्वारा सिर्फ मोक्ष का प्राप्त होना हम मान लेते हैं । <br />
भागवत अथवा राम कथा के दौरान मुझे ज्यादा समय नहीं मिल पाता इस पर बोलने को
क्यूंकि ध्यान पर बोलने के लिए सिर्फ ध्यान का ही प्रकरण होना चाहिए <br />
लेकिन मैं चाहता हूँ की इसे अधिक से अधिक लोग समझें । क्यूंकि ध्यान
द्वारा समाधि प्राप्त करके हम जो अद्वैत का अनुभव करते हैं उसे हम अपनी
भक्ति में भी लगा सकते हैं <br />
फिर उसका आनंद कुछ और होता है । क्यूंकि रामायण में आया है 'ग्यानिही
प्रभुहि बिसेषी पियारा' अथार्त चारों प्रकार के भक्तों में ग्यानी भक्त
जिसे तत्वज्ञान होता है प्रभु को सबसे अधिक प्रिय होता है ।<br />
ध्यान का उद्देश्य मेरा मानना है प्रभु का प्रेम प्राप्त करना । उपर्युक्त
मुक्ति मिलना अलग बात है लेकिन माँगना अलग बात है अथार्त वो भी प्रभु ही
देते हैं क्यूँ क्यूंकि व्यक्ति उन मुक्तियों को प्राप्त करने लायक हो </span> <span style="font-size: x-large;">चुका
होता है लेकिन जो भगवान् जल्दी नहीं देते अथार्त उनमे परम
प्रेम </span><span style="font-size: x-large;">क्यूंकि हम निष्काम भक्त जल्दी नहीं बन पाते</span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"> मैं इसे अथार्त निष्काम भक्ति को आखिरी प्रकार की मुक्ति ही कहूँगा जिसमे
साधक चाहता हैं प्रभु मैं भले बार बार जनम लूँ परन्तु आपका प्रेम मुझसे न
छूटे,आपका भजन मुझसे न छूटे और जिसे प्रभु मांगने पर ही देते हैं ।<br />
जब साधक इस भाव से ध्यानयोग में जाता है फिर वो स्वयं ही कामना शून्य रहता
है और बहुत जल्दी समाधि में जाता है । ऐसा साधक समाधि से मिलने वाली
सिद्धियों के प्रति आसक्त नहीं होता क्यूंकि उसे मालूम रहता है की इस तरह
से वो अपने साधन पथ से </span><span style="font-size: x-large;">च्युत </span><span style="font-size: x-large;">हो जाएगा । </span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-82870539602507342592012-06-15T12:32:00.003+05:302012-07-20T11:38:40.496+05:30ध्यानयोग 7<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;"><span style="color: #134f5c;">ध्यान को हमने अभी तक सिर्फ इस परिद्रश्य में समझा है की आखें बंद करके हम बैठ जाएँ और मन को कहीं एकाग्र करें </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। ध्यान एक आध्यात्मिक शब्द है जिसका अर्थ है स्वयं से रूबरू होना,स्वयं से वार्तालाप करना </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
अपने स्वयं के उस स्तर पर पहुंचना जहाँ ये साफ़ हो जाता है की इस शरीर में
भी परमात्मा का वास है और उस अनुभूति में पहुँचने का एक माध्यम है ध्यान </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;"> ध्यान का अर्थ है परमशान्ति की राह में रखा जाने वाला सबसे सही कदम </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।</span><span class="st" style="color: #134f5c;">जहाँ हमारा मन खो जाए,जहाँ हम अपने मन से पार निकल जाएँ </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं की जहाँ हम स्वयं को समझें,स्वयं से बात करें बिना अपने मन की सहायता से,बिना अपने मन को साथ </span><span class="st" style="color: #134f5c;"><br />
लिये हुए </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। हमने स्वयं को अभी तक ऐसा रखा है की हम जो भी चीज़ करते हैं संसारी करते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। हमे ऐसे संस्कार मिले जहाँ हमे सांसारिक मान,प्रतिष्ठा <br />
के लिए ही तैयार किया गया </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। हमारी विद्धा पेट भरने के इलावा कुछ नहीं है और हमारा ज्ञान भी वैसा ही है अथार्त संसारी है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
अपने आप ही हम संसारी चीज़ों को ही महत्व देते हैं और संसारी बात ही देख
पाते हैं और सोच पाते हैं,परिणामतः जीवन हमारा ऐसे ही गुज़र जाता है और <br />
कई बार तो संसार से जाते हुए भी हम ये ही भ्रान्ति पाले रखते हैं की हमने
सबकुछ ठीक किया और अपने मन के हिसाब से ठीक ही सुख भोग लिया,अच्छा आनंदमय
जीवन जिया और जो थोड़े बहुत दुःख भी मिले वो शायद इसलिए की सुखों को भोगने
के लिए दुखों को भोगना ही होता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
लेकिन क्या ये सही है ?<br />
क्या ऐसा जीवन उत्तम है ?<br />
क्या जीवन में हमे आत्मा,परमात्मा आदि के बारें में सोचना चाहिए ?<br />
क्या जीवन विनाशशील वस्तुओं के संग्रह के अलावा कुछ भी नहीं ?<br />
क्या सांसारिक सुख जो हम धन,मान आदि से प्राप्त करते हैं या जो हमे रिश्ते-नातों,दोस्तों से मिलते हैं वे वास्तविक सुख होते हैं ?<br />
क्या सांसारिक सुख को प्राप्त करना ही व्यक्ति का उद्देश्य होता है ?<br />
क्या सांसारिक सुख सदैव के लिए हैं ?<br />
<br />
हम इसका उत्तर येही पायेंगे की नहीं सांसारिक सुख से व्यक्ति को सच्चा
आनंद नहीं मिल सकता बल्कि सांसारिक हर सुख से अंत में व्यक्ति को सिर्फ
दुःख ही मिलता है ये एक परम सत्य है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।</span><br style="color: #134f5c;" />
<span class="st" style="color: #134f5c;"><br />
फिर प्रश्न उठता है की यदि अध्यात्म में अथार्त परमात्मा प्राप्ति में ही सच्चा आनंद निहित है तो <br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;"><br />
क्या परमात्मा के बारें में भी हमे जीवन के उतरार्ध में ही सोचना चाहिए ?<br />
<br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;">पिछली पोस्ट में भी मैंने इसका ज़िक्र किया था की हम जब चेत जाएँ हमे उसी वक़्त परमशान्ति की राह में चल पड़ना चाहिए </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
आदर्श अवस्था हमारी जवानी है जब हम शक्ति से भरे होते हैं हमे तभी
अध्यात्म की अपनी यात्रा शुरू कर देनी चाहिए क्यूंकि बुढापे में जब हमारे
अन्दर शक्ति नहीं रहेगी हम प्रभु को क्या सोच पायेंगे </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। हमारी प्रज्ञा भी दूषित रहती है थकी रहती है क्यूंकि उसपर इसी जीवन के राग-द्वेष के घने संस्कार पर चुके होते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
हमारे हाथ में ताकत नहीं तो हम क्या माला जपेंगे,हमारे पैरों में शक्ति
नहीं तो हम क्या मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारे,गिरिजाघर आदि जा सकेंगे </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
यानी एक तो शक्ति नहीं रहती दूसरी भक्ति नहीं रहती अथार्त सहज रूप से हमारी भावना भी नहीं रहती </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
इसलिए हमे जवानी से ही अपने सांसारिक जीवन के साथ आध्यात्मिक ज्ञान अर्जन करना शुरू कर देना चाहिए </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
ये जो ज्ञान शब्द है इसका अर्थ हम अधिकतर वो लगा लेते हैं जो की स्मृति का अर्थ होता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
स्मृति का अर्थ है शाब्दिक ज्ञान अथार्त दूसरे का जाना हुआ परन्तु ज्ञान का अर्थ है अपना जाना हुआ,स्वयं का अनुभव </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
इसलिए </span><span class="st" style="color: #134f5c;">मात्र शब्दों संग्रह नहीं करना चाहिए क्यूंकि वो तो एक निर्जीव मशीन भी कर सकती है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;">उन्हें पढना नहीं है उन्हें समझना है क्यूंकि बिना अनुभव किये हुए शब्दों को जानना ज्ञान नहीं है वो तो स्मृति है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
तो ध्यान ही सबकुछ है यहाँ तक की जो हम बेध्यान से भी इस जगत को देखते हैं
वो भी ध्यान में ही डूबा हुआ है यहाँ तक की स्वयं का हमारा स्वरुप हमारे
सांसारिक कार्य करते हुए भी ध्यान में ही है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
अंतर सिर्फ यही है की हमे पता नहीं चल पाता और हमारे ये पता न चल पाना ही
हमे निरंतर दुखों में भटकाए हुए हैं चौरासी लाख योनियों की यात्रा कराये
हुए है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।</span><span class="st" style="color: #134f5c;"> जब हमे इस बात का पता चलने लगता है हम ध्यान को उपलब्ध होने लगते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। <br />
</span><span class="st" style="color: #134f5c;"><br />
जीवन में हम देखते हैं हमे अवगुण सिखाने वाले हमारे पूरे जीवन काल में 80 %
लोग मिलते हैं कई बार तो दोस्त दोस्त को ही ग़लत आदत सिखाते हैं लेकिन उसे
सही बात,गुणदायक बात नहीं बताते </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। उस पर भी हमे कोई अच्छी बात बताता है तो हम उसकी गंभीरता को नहीं समझते </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
उसमे भी कोई यदि आध्यात्मिक ज्ञान की बात करता है तो अधिकांशतः हम उसे उतनी गंभीरता से नहीं लेते उसे प्राथमिकता नहीं देते </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
आध्यात्मिक ज्ञान के विषय में हर जगह,हर शास्त्र में ये विशेष जोर देके कहा
गया की इसे बहुत ही घनिष्ठ को बताना चाहिए,इसे अधिकारी को ही बताना चाहिए
अनाधिकारी को कभी नहीं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। इसकी अहमियत तो ऐसी है की
यही कोई जाग्रत व्यक्ति,अनुभवी व्यक्ति इस पर कुछ बोलता है तो उसके शब्द
एक नए शास्त्र की रचना करने लगते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। उसका प्रत्येक शब्द उसकी आत्मा से निकला हुआ होता है और हर शब्द ज्ञान का पुंज होता है बहुत सजोके रखने लायक होता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
आध्यात्मिक ज्ञान हर धर्म,हर मज़हब में सबसे ऊपर माना गया है और आध्यात्मिक ज्ञान हर धर्म हर मज़हब का एक ही है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
आध्यात्मिक ज्ञान पर यदि हम कुछ भी कभी भी सुने हमे सच्चे दिल से ये मानना
चाहिए की हमने कुछ अच्छे करम किये जिससे परमात्मा प्रभु ने वो ज्ञान हमे
किसी माध्यम से सुनवाया जो स्वयं उस परमेश्वर का ही है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। आध्यात्मिक ज्ञान की उपेक्षा </span><span style="color: #134f5c;">व्यक्ति
में पाप का संचार करती है,आध्यात्मिक ज्ञान की निंदा व्यक्ति के पुण्यों
को क्षीण करती है और आध्यात्मिक ज्ञान को मन लगाके सुनने से व्यक्ति पर
परमात्मा खुश होने लगता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
क्यूंकि आध्यात्मिक मार्ग ही एकमात्र मार्ग है परमात्मा प्राप्ति का और ध्यान से अधिक महत्त्वपूर्ण इसमें कुछ भी नहीं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
हम जो भजन,प्राथना भी करते हैं वो भी ध्यान का ही एक रूप है क्यूंकि उसमे भी हम अपने मन,बुद्धि से ऊपर उठ चुके होते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
हम जानते हैं ध्यानयोग को सांख्य व योग दोनों से ही कर सकते हैं और अलग अलग भी </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
सांख्य में व्यक्ति को किसी आसन,प्राणायाम की ज़रूरत नहीं रहती उसे बस अपने
विवेक को,प्रज्ञा को ,समझ को ही महत्व देना होता है और जाग्रत करना होता
है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।</span><span class="st" style="color: #134f5c;"> </span><br style="color: #134f5c;" />
<span class="st" style="color: #134f5c;">पिछली पोस्ट में मैंने सांख्य का ज़िक्र किया था ये पूरी पोस्ट सांख्य की ही है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। पिछली पोस्ट में मैंने सांख्य का ज़िक्र करते समय होश का ज़िक्र किया था उसे समझना अत्यंत आवश्यक है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
हम अभी जो जीवन जी रहे हैं वो मूर्छित अवस्था में जी रहे हैं अथार्त हमे
मालूम नहीं चलता कब हममे विकार(काम,क्रोध,लोभ,हिंसा) आ जाते हैं और
परिणामतः हमे दुःख ही मिलता है,हम राग-द्वेष में ही जीवन व्यतीत कर देते
हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। होश का अर्थ है की हम ऐसी अवस्था में पहुँच
जाएँ जहाँ जैसे ही हमारे में कोई विकार उठे हम उसे पकड़ सकें,हम ये जान सकें
की हाँ अभी मुझमे क्रोध उठा,अभी मुझमे लोभ उठा और ऐसी स्थिति में व्यक्ति
इन विकारों से बंधता नहीं और परिणामतः वो सम(आनंद का धाम) ही रहता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। और इस स्थिति में व्यक्ति तभी पहुँच सकता है जब उसका चित्त निरुद्ध हो,मन तथा बुद्धि से पार हो </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
दूसरा सांख्य में ये बहुत आवश्यक है की हम भूत,भविष्य की जगह वर्तमान को महत्त्व दे अथार्त अहंकार और लोभ से बचें </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
अहंकार हमे भूत काल की तरफ ले जाता है की हमने ये किया ये पाया और लोभ हमे
भविष्य में फ़साये रखता है की ये करना है वो करना है परिणामतः व्यक्ति
वर्तमान को हमेशा भूला रहता है </span><span class="st" style="color: #134f5c;">। हम हमेशा बहुत जल्दी में रहते हैं, एक काम किया नहीं की दूसरा उठा लेते हैं </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।
एक विचार पूरा हुआ नहीं की दूसरे में लग जाते हैं और बस इसी भागदौड़ में
पूरी ज़िन्दगी बिता देते हैं और हमे ये मालूम ही नहीं चल पाता की ज़िन्दगी
का नाम तो रुकना था,ठहरना था वर्तमान को महसूस करना वर्तमान का ही आनंद
लेना था </span><span class="st" style="color: #134f5c;">।<br />
<br />
व्यक्ति को विचारशून्यता और कामनाशून्यता </span><span style="color: #134f5c;">ये दो मंत्र समझने चाहिए स्वयं को वर्तमान में स्थित होने के लिए </span><span class="st"><span style="color: #134f5c;">।</span> </span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-17710938249060447852012-06-11T14:52:00.004+05:302012-07-20T11:39:08.500+05:30ध्यानयोग 6<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">अधिकांशतः व्यक्ति </span><span style="font-size: x-large;">ज्ञान के अभाव में </span><span style="font-size: x-large;">अपना जीवन गुज़ार देता है <span class="st">। <br />
जीवन में हर तरह का अभाव मिटाया जा सकता है और हर तरह का अभाव(</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">सिवाय आध्यात्मिक ज्ञान के</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">) </span><span class="st">निष्प्रभावी होता है</span><span class="st"> अथार्त उसका व्यक्ति के स्वरुप आत्मा से कोई लेना देना नहीं होता </span><span class="st">।</span><span class="st"> <br />
आध्यात्मिक ज्ञान का अभाव ही असली अभाव होता है और </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">
आध्यात्मिक ज्ञान</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> हासिल करना ही प्रत्येक व्यक्ति का एकमात्र कर्त्तव्य है</span><span class="st">। यदि ये कहा जाए की व्यक्ति का मात्र एक ही असली कार्य होता है,जीवन का </span>उद्देश्य होता है और वो है आत्म-ज्ञान,परमात्म ज्ञान तो बिलकुल सही होगा <span class="st">।<br />
साधारणतया व्यक्ति अपने चौबीस घंटों में शायद ही 5-10% समय निकाल पाता हो जीवन में कुछ नया जानने के लिए,उसमे भी </span>और भी कम प्रतिशत होता है विवेक ज्ञान को,आत्म-ज्ञान को जानने वालों का <span class="st">। यानी हम चौबीस घंटों में विवेक को </span>शायद
10 % ही महत्व दे पाते हैं और फिर समय का चक्र घूमता है तो हम देखते हैं
की बुढापे तक जब हमारा अधिकाँश समय निकल जाता है तो भी हम वोही रूटीन दोहरा
रहे होते हैं <span class="st">।<br />
यानी की अधिकांशतः लोग अपने जीवन का 10 % </span>ही विवेक ज्ञान में,उसके महत्व जानने में निकाल पाते हैं <span class="st">।<br />
यहाँ एक प्रश्न ये उठता है की क्या ये 10 % ज्ञान भी जो हमने हासिल किया
वो हमारे कुछ काम आया,क्या हमने उसका अनुसरण किया क्यूंकि यदि सही मायनों
में किया होता तो क्या जीवन के उत्तरार्ध तक हम अपने जीवन का 10% ही समय
विवेक ज्ञान को,आत्म-ज्ञान को देते रहते </span><span class="st">। निश्चित ही नहीं क्यूंकि जैसे ही हम अनुसरण आरम्भ करते हम 90% समय विवेक ज्ञान को 10 प्रतिशत व्यावहारिक जगत को देने लगते हैं </span><span class="st">।<br />
अथार्त 90% हम आत्मा को,परमात्मा को और 10% संसार को अथवा शरीर को महत्व देते </span><span class="st">।</span><span class="st"> </span><span class="st"></span><br /><span class="st">सच्चाई तो यही है की हमे 100 % आत्मा को और परमात्मा को
ही महत्व देना चाहिए क्यूंकि उसके अतिरिक्त जो भी हमे दिख रहा है ये नश्वर
जगत सब मिथ्या है </span></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
ये साधन मिले हुए हैं हमे साधना के लिए लेकिन हमने इनसे तादात्म्य स्थापित करके,इन्हें विषय सुख,और भोग विलास का हेतु मान लिया </span><span class="st">।</span><span class="st"> इसीलिए हम जाने अनजाने अविवेक को महत्त्व देने लगते हैं और विवेक की बात हम मानने के बाद भी मान नहीं पाते,अनुसरण नहीं कर पाते </span><span class="st">।<br />
क्या इस तरह से जीवन जीने को हम सही मान सकते हैं ?<br />
यानी अधिकांशतः लोगों का जीवन इस तरह होता है जैसे कोई बर्फ का टुकड़ा पाने के ऊपर हो </span><span class="st">।
हम अविवेक को मानकर ऐसा ही जीवन जीते हैं क्यूंकि बर्फ के टुकड़े का मात्र
10 % भाग ही पानी के ऊपर होता है और बाकी 90 % भाग पानी के भीतर </span><span class="st">।<br />
मतलब हम आम जीवन में 10 प्रतिशत ही विवेक से भरे होते हैं,हमारे अन्दर
विवेक ज्ञान होता है और बाकी 90 % हम अविवेक को,आसक्ति को दिए रहते हैं </span><span class="st">।</span><span class="st"> <br />
<br />
धन,मान,लोभ,लालच,क्रोध,काम,दंभ के गुलाम बने हुए हम असल में एक भिखारी की
ज़िन्दगी जीते हैं क्यूंकि सारी ज़िन्दगी हम सिर्फ कामना करते हैं </span><span class="st">।<br />
कुछ पा लिया तो उससे आगे कुछ पाने की कामना और हमे इस कुछ को प्राप्त कराने वाले साधन यही काम,क्रोध,दंभ,छल आदि होते हैं </span><span class="st">।
अपने आस-पास भिखारियों की भीड़ देखके हम ठिठकते नहीं,विवेक को महत्व नहीं
देते बल्कि और लगन से कामना को बढाते हैं और लगन से,जोश से हम भीख मांगते
हैं </span><span class="st">।</span><span class="st"> कुछ अच्छा हो जाने
पर पद,प्रतिष्ठा धन,मान रुपी भीख मिल जाने पर दूसरों के अनुमोदन पर उत्साह
पाकर हम और उत्साहित हो जाते हैं तथा और शक्ति से लगन से और बड़ी भीख
मांगने लगते हैं </span><span class="st">।</span><br /><span class="st">औरों को समझाना,राह दिखाना तो लगभग असंभव होता है क्यूंकि हमारा मन ये मानता ही नहीं की हम राह से भटके हुए हैं </span></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">। हमे लगता ही नहीं की हम कुछ ग़लत कर रहे हैं </span><span class="st">। </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"> </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">ऐसा हम क्यूँ करते हैं उसका उल्लेख पिछली पोस्ट में किया गया है जहाँ हम
देखते हैं की मनुष्य के अविवेक प्रधान होने में रज गुण उत्तरदायी होता है </span><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><br /><span class="st">हैरत की बात यही रहती है की व्यक्ति का विवेक इतना भी काम नहीं करता की ये सब कुछ साथ नहीं रहना है इस तथ्य को वो मान नहीं पाता </span></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
परिणामतः अपने जीवन में पद,प्रतिष्ठा,रिश्ते-नाते,दोस्त-यार,धन,संपत्ति को
ही समझने वाला मनुष्य,इन्ही में सुख मानता हुआ,सुख ढूंढता हुआ अपने जीवन के
आखिरी में भी भिखारी ही बना रहता है अथार्त इन्ही में आसक्त रहता है </span><span class="st">। हम इस मांगने से निकल नहीं पाते </span><span class="st">।<br />
यही नहीं फिर मृत्यु के बाद नया जन्म लेने पर भी अज्ञान नहीं हट पाता हम
फिर वोही दोहराते हैं,बिना सोचे समझे उसे ही दोहराए चले जाते हैं</span><span class="st">। परमात्मा के दिए हुए इस अद्भुत चोले शरीर से हम परमात्मा का ज्ञान तक नहीं कर पाते </span><span class="st">। हम परमात्मा का ज्ञान कराने वाले सरल ह्रदय लोगों की बातों का अपने जीवन में अनुसरण नहीं </span><span class="st"> कर पाते,कई बार तो विवेकपूर्वक सुन-समझ भी नहीं पाते </span><span class="st">। बस जीवन को मोह और अज्ञान वश ऐसे पकडे रहते हैं जैसे ये हमारे साथ हमेशा रहना है</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> बड़े से बड़े सुख से भी अंततः दुःख मिलता है जानकर भी आसक्ति नहीं छोड़ पाते,कामना के दास ही बने रहते हैं</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><br />
समाधि में जाने के बाद व्यक्ति को पता चलता है की उसकी आसक्ति की, चाहना की,कामना
की दौड़ निराधार थी </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> क्यूंकि उसका अपने स्वरुप से साक्षात्कार हो जाता है जो
पूर्ण है,नित्य है,सदैव तृप्त है,सम है,शांत है,निर्विकार है</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> उसका स्वरुप
स्वरूपतः ब्रह्म है और अपने आप से अपने आप में ही संतुष्ट है </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">
<br />
</span>परमात्मा को दो तरह से ही जाना जा सकता है <span class="st">। एक सांख्य के द्वारा </span>दूसरा योग के द्वारा <span class="st">। <br />
योग के बारें में तो इतनी पोस्ट्स से बात चल ही रही है लेकिन सांख्य के बारें में भी लगातार लिखा जा रहा है </span><span class="st">। <br />
अतः ये आवश्यक है की दोनों के अंतर को जान लिया जाए </span><span class="st">। </span><span class="st"><br />
सांख्य है सिर्फ जानना भर,परमात्मा का तत्व-ज्ञान द्वारा परमात्मा तक पहुंचना </span><span class="st">। </span><br /><span class="st">और योग है प्राणों को व्यवस्थित करके एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा परमात्मा तक पहुंचना </span></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
दोनों के द्वारा व्यक्ति परमेश्वर तक ही पहुँचता है </span><span class="st">।<br />
योग में भी हम आठ चरणों में आठवें चरण समाधि द्वारा उसी परमात्मा को प्राप्त करते हैं </span><span class="st">।</span><br />
सांख्य द्वारा विवेक से भर जाने से,ज्ञान द्वारा हम उसी परमात्मा तक पहुँचते हैं <span class="st">।<br />
<br />
संत ओशो जी कहते हैं सांख्य शुद्ध ज्ञान है </span><span class="st">। योग साधना है </span><span class="st">।<br />
सांख्य कहता है करना कुछ भी नहीं है,सिर्फ जानना है,योग कहता है-करना बहुत कुछ है और तभी जानना फलित होगा </span><span class="st">।<br />
ये दोनों ही सही हैं </span><span class="st">। ये निर्भर करेगा साधक पर </span><span class="st">।
अगर कोई साधक ज्ञान की अग्नि इतनी जलाने में समर्थ हो की उस अग्नि में
उसका अहंकार जल जाए,सिर्फ ज्ञान की अग्नि ही रह जाए,ज्ञाता न रहे,भीतर कोई
अहंकार का केंद्र न रह जाए,सिर्फ जानना मात्र रह जाए,बोध रह जाए,'अवेयरनेस'
रह जाए, तो कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है </span><span class="st">। जानने की अथार्त ज्ञान की इस अग्नि से ही सब कुछ हो जाएगा </span><span class="st">। जानने की स्थति को ही </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">बढ़ा</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st"> लेना काफी है </span><span class="st">। जानने में रोज़ रोज़ अग्रसर होते जाना काफी है </span><span class="st">। होश बढ़ जाए अथार्त जाग्रति आ जाए तो पर्याप्त है </span><span class="st">।<br />
<br />
पतंजलि जी ने योग के आठ अंग कहे हैं यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,ध्यान,धारणा और समाधि </span><span class="st">।जिसमे अंतिम तीन अंग </span><span class="st"> बहुत महत्वपूर्ण हैं और समाधि में जाके जब हम अहंकारशून्य हो जाते हैं </span><span class="st">हमारा होनापन,मैं-पन नहीं रहता हम परमात्मा को प्राप्त करते हैं </span><span class="st">। योग प्राण पर ही सारा काम करता है इसलिए योग की मौलिक प्रक्रिया है प्राणायाम </span><span class="st">।<br />
<br />
योग और सांख्य को संयुक्त मानकर चलना चाहिए दोनों को जारी रखना चाहिए
क्यूंकि इससे गहरे परिणाम होते हैं जल्दी होते हैं और शक्ति भी कम व्यय
होती है </span><span class="st">।<br />
अथार्त एक तरफ ध्यान रखना है की जागरण बढ़ता जाए और दूसरी तरफ ध्यान रखना है की ऊर्जा संगृहीत होती चली जाए </span><span class="st">। योग का प्रयोग करें और सांख्य का ध्यान रखें </span><span class="st">।</span><br /><span class="st"><br />
इसलिए शुरू से ही ध्यानयोग की इस श्रंखला में मैंने दोनों को समाहित किया
है जिससे और स्वाभाविक रूप से हम ध्यानयोग को समझ सकें उसका आनंद ले सकें </span></span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।परन्तु व्यक्ति अपने अनुसार केवल सांख्य अथवा केवल योग द्वारा भी अपनी साधना को कर सकता है,ध्यानयोग में आगे बढ़ सकता है </span><span class="st">।</span><span class="st"> <br />
<br />
</span><span class="st">संत ओशो बताते हैं की मन को हम इसलिए जोर से पकडे हैं क्यूंकि हमे डर है की अगर मन नहीं रहा तो हम नहीं रहेंगे </span><span class="st">। असल में हमने जाने-अनजाने मन को अपना होना समझ रखा है </span><span class="st">। उससे तादात्म्य कर लिया है </span><span class="st">। समझ लिया है की मैं मन हूँ </span><span class="st">। जब तक हम स्वयं को मन समझेंगे हम समस्त बीमारियों को पकड़े रहेंगे </span><span class="st">। जहाँ मन है वहां समस्याएं ही समस्याएं हैं,जैसे पेड़ों पर पत्ते लगते हैं वैसे ही मन में समस्याएं लगती हैं </span><span class="st">। समाधान मन में कभी उत्पन्न नहीं हो सकता क्यूंकि मन के तल पर समाधान कभी भी नहीं है,समाधान तो वहां है जहाँ मन खो जाता है </span><span class="st">।<br />
अतः एक तो ये समझना है दृढ रूप से की स्वरुप मन नहीं है बल्कि मन को जानने वाला है </span><span class="st">।<br />
और दूसरी बात ये की ध्यान है मन के पार जाना अथवा मन का शून्य हो जाना </span><span class="st">।<br />
सांस को व्यवस्थित पूरक (लेने में),कुम्भक(रोकने में ) रेचक (छोड़ने में ) द्वारा भी किया जा सकता है </span><span class="st">। <br />
</span>जिसका अनुपात 1:4:2 होता है <span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande',tahoma,verdana,arial,sans-serif; line-height: 18px;">।</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande',tahoma,verdana,arial,sans-serif; line-height: 18px;"> </span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><br />
यानी सांस को यदि हम पांच सेकण्ड लें तो बीस सेकण्ड रोकें और दस सेकण्ड में छोड़ें यानी 1:4:2 के हिसाब से 5:20:10 </span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span></span><span style="font-size: x-large;"><br /></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">
</span></span><br />
<br />
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">उसी तरह से यदि हम सांस को मात्र देख रहें हैं तो भी ध्यान को प्राप्त हो सकते हैं क्यूंकि इससे भी हमारा चित्त निरुद्ध होता है</span></span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-71674562917120151372012-06-04T15:33:00.001+05:302012-07-20T11:42:35.766+05:30ध्यानयोग 5<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;">
<span style="color: #134f5c;">ध्यान को करते समय व्यक्ति को चाहिए की अपनी रीढ़ की हड्डी,गर्दन और सर सीधा रखे अथार्त एक ही सीध में रखे ।</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
ध्यान के लिए बैठते समय सीधे ज़मीन पर न बैठे बल्कि लकड़ी या कम्बल या ऐसा
कोई कपडा आदि ले जिससे शरीर की ऊर्जा शरीर में ही रहे । ये जो भी हम बैठने के
लिए इस्तेमाल करते हैं ये एक प्रतिरोधात्मक उपकरण हैं ऊर्जा के स्खलित न
होने देने के ।</span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
इसके बाद नासिका के अग्रभाग पर द्रष्टि जमाके ध्यान करना चाहिए । नासिका के
अग्रभाग पर </span><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
द्रष्टि जमाके अथार्त अधखुली आखों से इसलिए कहा गया क्यूंकि इससे साधक निद्रावश न हो अथवा उसका मन
इधर उधर न विचरे । </span><br style="color: #134f5c;" /><br style="color: #134f5c;" /><span style="color: #134f5c;">
छठे अध्याय में भगवान् ध्यान के लिए ये ही निर्देश दे रहे हैं ।</span></span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">शुद्ध भूमि में, जिसके ऊपर क्रमशः
कुशा, मृगछाला और वस्त्र बिछे हैं, जो न बहुत ऊँचा है और न बहुत नीचा, ऐसे
अपने आसन को स्थिर स्थापन करके॥11॥
</span></div>
<div class="pdngT10" id="Div1" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों
की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के
लिए योग का अभ्यास करे॥12॥
</span>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div2" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"><br /><b><br />
</b>काया, सिर और गले को समान एवं अचल
धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर, अन्य
दिशाओं को न देखता हुआ॥13॥
</span>
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div5" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
<br /><br />
ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित,
भयरहित तथा भलीभाँति शांत अन्तःकरण वाला सावधान योगी मन को रोककर मुझमें
चित्तवाला और मेरे परायण होकर स्थित होए॥14॥
</span>
</div>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div5" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><br />
हम ध्यान के वक़्त कुछ भी ध्यान करे अथार्त स्वयं का स्वरुप,भगवान् का
चित्र या विग्रह या मात्र निर्विचार चेतना यानी विचारशून्यता में चलें जाए
हम भगवान् का ही ध्यान करते हैं ।<br /> </span></div>
<div class="pdngT10" id="Div5" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">इसीलिए भगवान् ने कहा है की योगी अपने चित्त को मुझमे लगाये ।<br /><br />
इसके साथ ही भगवान् ने आदर्श ध्यान हेतु पांच बातें और कही हैं </span>
<span style="font-size: x-large;">:<br /><br />
१. ब्रह्मचर्य का पालन करना </span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
२. भयरहित होना <br />
३.अंतःकरण का शांत होना <br />
४.मन का स्थिर होना <br />
व <br />
५.भगवान् के परायण होना <br /><br />
यहाँ मेरा मानना है सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है की हमारा मन शांत हो,स्थिर हो ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
क्यूंकि मन के स्थिर होने पर अंतःकरण भी शांत रहता है,भय भी नहीं उत्पन्न होता ।<br />
वैराग्य के इलावा मन के स्थिर होने पर ही सही अर्थों में व्यक्ति की
ब्रह्मचर्य में स्वाभाविक स्थिति होती है । शांत व स्थिर मन में श्रद्धा
अपने आप बढ़ने लगती है जिससे व्यक्ति ईश्वर के परायण हो जाता है ।<br /><br />
परन्तु प्रश्न यही आ जाता है की साधक अपने मन को स्थिर कैसे करे,शांत कैसे करे ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
मन को स्वाभाविक रूप से शांत करने की,स्थिर करने की कई विधियां अब तक बताई गयी हैं ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
जिसमे मुख्य हैं :</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
१. वैराग्य भाव के जाग्रत रहने से ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
२. चित्त के निरुद्ध हो जाने से ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
३. स्वरुप को मन,बुद्धि का प्रकाशक जानने से ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
४. स्वयं के स्वरुप में स्थित हो जाने से ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
५.स्वयं को मन के पार ले जाने से अथार्त निर्विचार चेतना में पहुचने से ।<br /><br />
परन्तु फिर भी कई बार व्यक्क्ति का मन शांत नहीं हो पाता । इसके पीछे भी
बहुत से कारण होते हैं जैसे साधक का संसार से राग न मिटना या साधक की अन्य
साधकों की अपेक्षा साधना(ध्यान) में दृढ़ स्थिति न हो पाना यहाँ तक की ईश्वर
है इसपर भी मन मस्तिष्क में संशय अत्यधिक रहना ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
इसी बात को महात्मा अर्जुन ने भगवान् से पूछा था जिसका मैंने पिछली पोस्ट में उल्लेख किया था ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः ।<br />
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> अर्जुन बोले- हे कृष्ण! तो फिर यह
मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाए हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर
पाप का आचरण करता है॥३६</span><span style="font-size: x-large;">॥
</span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span>
</div>
<div class="crimsumHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> श्रीभगवानुवाच </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।<br />
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> श्री भगवान बोले- रजोगुण से उत्पन्न
हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न
अघानेवाला और बड़ा पापी है। इसको ही तू इस विषय में वैरी जान॥३७</span><span style="font-size: x-large;">॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"><br />
</span></span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
अर्जुन का ये प्रश्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि हम स्वयं इस पर सोचे
की वाकई में व्यक्ति पर अच्छाई से ज्यादा बुराई का रंग आसानी से चढ़ता है ।<br />
हम जीवन में आसुरी
गुणों(काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,अहंकार,ईर्ष्या,दंभ,हिंसा,अशांति आदि ) में
बहुत जल्दी लिप्त हो जाते हैं दैवीय गुणों
(सहिष्णुता,शान्ति,अहिंसा,करुणा,दया,प्रेम,शम,दम,नियम आदि ) की अपेक्षा ।<br />
व्यक्ति संसार को भी सम देखने के बजाय गुण दोषमय ही देखता है और फिर इसी तरह से स्वयं के स्वरुप को भी ।<br />
इस तरह से वो अपने चारो तरफ कहीं राग कहीं द्वेष उत्पन्न कर लेता है
क्यूंकि ये राग द्वेष उसे लगता है उसके अंतःकरण में स्वाभाविक रूप से
विद्यमान हैं ।<br />
इस तरह से वो राग अथवा द्वेष से प्रेरित होकर ही कोई काम करता है । उसके मन
में स्वाभाविक ही शुद्ध विचार नहीं आ पाते हैं । उसे स्वाभाविक ही अज्ञान
अच्छा लगता है ।<br /><br />
इस पर भगवान् का उत्तर तकनीकी द्रष्टि से भी साधक की जिज्ञासा को,उसके अज्ञान को पूर्ण रूप से दूर करता है ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
भगवान् कहते हैं रजोगुण से उत्पन्न होने वाला ये काम ही क्रोध है यह भोगों
से कभी नहीं अघाता,हे अर्जुन ! तू इसे ही कारण जान चित्त की चंचलता के पीछे
।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
हम जानते हैं की सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण -ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं॥१४/५ ॥<br /><br />
इसमें सत्वगुण निर्मल रूप होने से प्रकाश करने वाला और विकार रहित होने से
ज्ञान में लगाता है ,रजोगुण रागरूप होने से कामना और आसक्ति में लगाता है
तथा तमोगुण अज्ञानरूप होने से अज्ञान और प्रमाद में ही लगाता है ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
यहाँ भगवान् ने रजोगुण को कारण बताया है काम (इच्छा) की उत्पत्ति का ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
और इसे ही यदि व्यक्ति नियंत्रण में कर ले तो आसानी से उसका मन शांत हो सकता है ।<br /><br />
इसका उपाय भी भगवान् चौदहवें अध्याय में बताते हैं :</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
हे अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण को
दबाकर रजोगुण, वैसे ही सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण होता है अर्थात
बढ़ता है॥10॥
</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
अथार्त यदि व्यक्ति अपने सत्वगुण को बढाए जो की रजोगुण और तमोगुण को
दबाकर(नियंत्रित करने से ) होता है तो व्यक्ति में सदैव ज्ञान की प्रधानता
रहेगी और वो इस तत्त्व को कभी नहीं भूलेगा की उसका स्वरुप सम
है,अविकारी(विकार रहित) है ,ये सृष्टि गुण-दोषमय होने के बावजूद भी सम ही
है,सबकुछ सम है और कहीं भी कुछ भी विकार युक्त नहीं है ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
इसी बात को भगवान् ने तीसरे अध्याय में भी अलग तरह से बताया है ऐसे भी समझा जा सकता है की </span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div2" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।<br />
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"><br />
भावार्थ <b>:</b> वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार
से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, तो भी जिसका अन्तःकरण अहंकार से
मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है॥27॥</span>
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div3" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।<br />
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥</span>
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> परन्तु हे महाबाहो! गुण विभाग और
कर्म विभाग (<b>त्रिगुणात्मक</b> माया के कार्यरूप पाँच महाभूत और मन, बुद्धि,
अहंकार तथा पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और शब्दादि पाँच
विषय- इन सबके समुदाय का नाम 'गुण विभाग' है और इनकी परस्पर की चेष्टाओं का
नाम 'कर्म विभाग' है।) के तत्व (उपर्युक्त 'गुण विभाग' और 'कर्म विभाग' से
आत्मा को पृथक अर्थात् निर्लेप जानना ही इनका तत्व जानना है।) को जानने
वाला ज्ञान योगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें
आसक्त नहीं होता। ॥28॥</span>
</div>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
अथार्त प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः (सभी कार्य प्रकृति के
गुणों द्वारा किए जाते है ) और गुणा गुणेषु वर्तन्त (गुण ही गुणों में बरत
रहे हैं ) ।<br />
यहाँ त्रिगुणात्मक माया से तात्पर्य सत्व,रज और तम गुणमयी माया से ही है अथार्त इन गुणों से ही है ।<br /><br />
यानी व्यक्ति का स्वरुप सत्व,</span><span style="font-size: x-large;">रज</span><span style="font-size: x-large;"> और तम इन तीनो से परे है अलग है वो
मायातीत है इसलिए ज्ञानी सत्वगुण को भी स्वयं का गुण नहीं मानता क्यूंकि
स्वयं अथार्त स्वरुप तो गुनातीत है । स्वरुप अथार्त आत्मा का वास्तविक
तत्त्व तो तुरीयातीत रहना है,ब्रह्ममय रहना है क्यूंकि स्वरुप ब्रह्म ही है
।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
इस बात को तत्त्व से जानते ही साधक का मन इन गुणों में नहीं आता ।उसमे भी
वो रजोगुण में कभी लिप्त नहीं होता क्यूंकि वो जानता है की रजोगुण उसे
कामनाओं में लगाएगा और कामनाओं का कोई अंत नहीं । साधक निश्चित रूप से
अधिकाधिक स्वयं को सत्वगुण में रमायेगा क्यूंकि सत्वगुण पर्याप्त ज्ञान
प्रदान करता है जिससे व्यक्ति को ध्यान में आसानी से जा सकता है और वहां
समाधि में स्थित होने पर वो सत्वगुण से भी अलग होप जाता है गुनातीत हो जाता
है ।</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div19" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।<br />
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"><br /><br />
सर्वव्यापी अनंत चेतन में एकीभाव से
स्थिति रूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सब में समभाव से देखने वाला योगी
आत्मा को सम्पूर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित
देखता है॥29॥</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div20" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।<br />
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥</span>
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"> जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके
आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ
वासुदेव के अन्तर्गत देखता है,
उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता॥30॥<br /><br />
छठे अध्याय में परमात्मा,परमेश्वर द्वारा कहे ये श्लोक ध्यान की उपलब्धि समाधि के लिए सार तत्व </span><span style="font-size: x-large;">हैं । कैसे ?</span>
<span style="font-size: x-large;"><br />
इस पर आगे लिखा जाएगा ।</span></div>
</div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-57548957571605108182012-06-01T14:09:00.001+05:302012-07-20T11:42:24.963+05:30ध्यानयोग 4<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #0b5394; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"> <span style="color: #134f5c;">ध्यान में सबसे आवश्यक यही है की मन बुद्धि पर नियंत्रण हो या ये भी कह
सकते हैं की ध्यान द्वारा मन बुद्धि पर नियंत्रण आसान होता है </span></span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
यहाँ ये समझना आवश्यक है की बिना वैराग्य जगाये अध्यात्म में व्यक्ति कुछ
हासिल नहीं कर सकता </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">। </span>मतलब यदि हम दिखावे के लिए नहीं स्वयं के लिए ध्यान या
अध्यात्म में जा रहे हैं तो ये बहुत ज़रूरी है की हमारे अंतःकरण में ये भाव
हो की शरीर-संसार क्षणभंगुर है,विनाशशील है,अनित्य है और आत्मा नित्य है
परमात्मा का अंश है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
संसार न पहले था न बाद में रहेगा और अभी ये हर क्षण घट रहा है नष्ट रहा है
और जीव (आत्मा) पहले भी था थी आगे भी रहेगा और इस समय भी ये अपने सतस्वरुप में
ही है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
इसलिए जीव जो की नित्य है,अविनाशी है उसे ये अनित्य और विनाशशील शरीर संसार
व इसमें होने वाले इससे होने वाले सम्बन्ध सुख नहीं पहुंचा सकते है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
और जीव को उसके लिए कुछ विशेष नहीं करना होता है उसका परमात्मा से सम्बन्ध स्वयंसिद्ध है उसे बस अपने अन्दर से संसार
की महत्ता हटानी है और परमात्मा की सत्ता सही मायने में स्वीकार करना है </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जीव को सुख परमात्मा से ही मिल सकता है और उसे पाने का माध्यम है अध्यात्म,ध्यान </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
इसलिए ध्यान को महज़ एक उत्सुकतापूर्ण हेतु अथवा जिज्ञासा के लिए नहीं समझना
चाहिए इसका अनुभव करना चाहिए और बहुत ध्यान से ध्यान को करने से ज्यादा
ज़रूरी है स्वाभाविक तरह से करे </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span> <br />
ध्यान का आनंद तब तक अधूरा है जब तक साधक के मन में प्रभु प्रेम न उत्पन्न हो </span><span style="color: #134f5c; font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"> ध्यान क्या है कैसे कर सकते हैं इस बात पर पिछली पोस्ट्स पर काफी लिखा गया और आगे भी लिखा जाएगा </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
ध्यान मन के पार जाना है,इन्द्रियातीत होना है, गुनातीत होना है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
हमें कई बार ये ही नहीं मालूम चल पाता की हम संसार में जो भी करते हैं सब
हम अपने मन की ही प्रेरणा से ही करते हैं और कई बार तो ये मान भी नहीं
पाते की मन से अलग भी एक जहाँ है जिसे अ मन अथार्त मन का न होना कहते हैं
</span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">। </span>ध्यान के साधक को इस जोन में पहुंचना होता है उसे अपने आप को अ मन की
अवस्था में लाना होता है जो की निश्चित ही विद्यमान है बस हमे उस तक पहुचना
है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
एक बार ध्यान में पहुँचते हैं तो हमे ऐसा आनंद होता है जो हमने सांसारिक
सुखों में कभी नहीं पाया लेकिन उससे भी बढ़कर ये वो स्थिति होती है जहाँ
साधक परमात्मा के काफ समीप होता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
हमारे आँख खोलते ही चारो तरफ हमे संसार दीखता है हम बिना कुछ सोचे समझे
उसमे कूद पड़ते हैं और कभी कभी तो पूरा जीवन लग जाता है हम अपना आस्तित्व
बस राग-द्वेष तक ही सीमित समझते हैं और इसी वजह से असली संसार से वंचित रह
जाते हैं क्यूंकि हमारा मन चाहे जितना भी शक्तिशाली हो परन्तु वो जो भी
सोचेगा मन से सोचेगा मायिक ही सोचेगा और ध्यान है अमायिक हो जाना इसलिए मन
कभी भी अमायिक जोन में नहीं पहुँच सकता इसलिए जैसा की पिछली पोस्ट में
उल्लेख किया गया है चित्त के अवरुद्ध हो जाने पर जब मन और बुद्धि निश्चेष्ट
हो जाते हैं साधक अ-मन में अथार्त अमायिक जोन में, स्थिति में, अवस्था में
प्रवेश कर जाता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जहाँ वो देख पाता है की जिन मन,बुद्धि द्वारा वो संचालित होता रहा वो सामने
निश्चेष्ट हैं,प्रकाश्य हैं</span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span> साधक को यथार्थतः स्वरुप का ज्ञान होने लगता है की उसका
स्वरुप ही मन,बुद्धि इन्द्रियों का प्रकाशक है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"> </span><br />
व्यक्ति संसार में रहते हुए जाग्रत,स्वप्न अथवा सुषुप्ति अवस्था में हो
सकता है और ये बात तो आसानी से समझ में आ सकती है की इन तीनो अवस्थाओं में
जीव ही रहता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जाग्रत में व्यक्ति जागा हुआ रहता है जिसपर थोड़ी देर में आते हैं,स्वप्न
में व्यक्ति सपने देखता है जो की स्वयंउसके ही जाग्रत-अवस्था में मन
द्वारा कल्पित वस्तुएं कल्पनाएँ होती हैं बहरहाल ये स्वप्न-अवस्था हो गयी </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
सुषुप्ति-अवस्था होती है स्वप्न रहित निद्रा इसमें व्यक्ति को होश नहीं
रहता लेकिन ध्यान द्वारा जीव चौथी अवस्था को प्राप्त करता है जिसे
तुरीयावस्था कहते हैं</span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span> यहाँ आँख बंद होने पर भी व्यक्ति होश में रहता है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जैसा पहले बताया गया की संसारी भाषा में जो हम जीव के जागने को जाग्रत अवस्था
कहते हैं उसमे भी असल में जीव सोया हुआ ही है क्यूंकि जैसे सुषुप्ति अवस्था
में उसकी इन्द्रियाँ सोयी हुई होती हैं वैसे ही जाग्रत अवस्थ में भी वो मन
बुद्धि के नियंत्रण में होने के कारण और उन्हें अपने वश में न कर सकने के
कारण उनके द्वारा संचालित होता है इसलिए इसे सही अर्थों में जागना नहीं कहा
जा सकता </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जबकि तुरीयावस्था में जब जीव ध्यान से समाधि में प्रवेश करता है तब भी उसका
होश बना रहता है वो जागा हुआ होता है क्यूंकि वो मन,बुद्धि को देख रहा
होता है उसकी मन बुद्धि स्वतः उसके नियंत्रण में होती हैं </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं की मनुष्य के तीन तरह के शरीर होते हैं जाग्रत
अवस्था में स्थूल (कर्मेन्द्रिय व ज्ञानेन्द्रिय सहित हाथ,पैर,मन,बुद्धि
सहित ) शरीर सहित स्वप्न में सूक्ष्म शरीर (मन,बुद्धि सहित ) और सुषुप्ति
में कारण शरीर (जहाँ जीव का अहम् यानी होनापन ही उसके साथ होता है ) </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"> </span><br />
ध्यान द्वारा जब जीव समाधि प्राप्त करता है वहां इन तीनो (स्थूल,सूक्ष्म व
कारण) शरीरों का लय हो जाता है और वही है तुरीयावस्था को प्राप्त होना जहाँ
अखंडानंद निहित है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
यानी हम रोज़ इन तीनो अवस्था से गुज़रते हैं हम किसी भी अवस्था में रहे
जाग्रत,स्वप्न अथवा सुषुप्ति में से ही किसी में रहते हैं लेकिन जीव की
असली अवस्था इन तीनो में से कोई नहीं है और वो है तुरीय अवस्था <br />
यही जीव की स्वरुप-अवस्था है </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<br /></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः ।<br />
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> अर्जुन बोले- हे कृष्ण! तो फिर यह
मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात् लगाए हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर
पाप का आचरण करता है॥36॥॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #134f5c;">
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span>
</div>
<div class="crimsumHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;"> श्रीभगवानुवाच </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
</span></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।<br />
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥
</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> श्री भगवान बोले- रजोगुण से उत्पन्न
हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न
अघानेवाला और बड़ा पापी है। इसको ही तू इस विषय में वैरी जान॥37</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;"><span class="st"> </span><br />
महात्मा अर्जुन के इस प्रश्न पर प्रभु द्वारा दिया गया उत्तर अत्यंत
सारगर्भित है और ध्यान के लिए अत्यंत उपयोगी कैसे है इसका अगली पोस्ट में
वर्णन किया जायेगा </span><span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-71264194357067572192012-05-07T13:34:00.000+05:302012-07-20T11:42:02.344+05:30ध्यानयोग 3<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान की कई विधि प्रचलित हैं और अपनी अपनी जगह सभी सार्थक हैं <span class="st">।</span></span><br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;">
चाहे हम विपस्स्यना विधि जो भगवान् बुद्ध ने दी उसकी बात करें अथवा
सुदर्शन क्रिया की या चाहे ओशो की ध्यान प्रणाली को समझें या फिर भगवद गीता
के गूढ़ सिद्धांतों को समझें </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span></span></div>
<span style="font-size: x-large;">
ये सभी सिर्फ तभी उपयोगी हैं जब हम इनको अनुभव में लायें और अनुभव में
कितना आ रहा है ये बहुत आसानी से हमारे व्यक्तित्व में,विचारों में,आचरण
में दिखने लगता है <span class="st">।</span><br />
बिना अनुभव में आये हुए ध्यान की बात सिर्फ ऐसी है जैसे हमने कोई किताब पढ़ ली लेकिन उसमे लिखी बातों को जीवन में नहीं उतारा <span class="st">।<br />
यदि ध्यान के बाद हमारे अन्दर स्वाभाविक शान्ति बढ़ रही है,एकांत हमे अच्छा
लग रहा है,क्षमा,दया,सहिष्णुता और अहिंसा(मन,कर्म व वचन द्वारा हिंसा न
करना) बढ़ रही है तो हमारा ध्यान बिलकुल ठीक दिशा में बढ़ रहा है </span><span class="st">।<br />
परन्तु यदि हम ध्यान में सोने लगते हैं,सर में दर्द होने लगता है अथवा
ध्यान में बैठकर इधर उधर सोचते रहते हैं तो ध्यान फलीभूत नहीं हुआ </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">अथवा हम इससे आगे बढे अथार्त मन एकाग्र होने लगा परन्तु
दैवीय गुण नहीं निखारें अथवा बढे या फिर असुरी गुण वैसे के वैसे ही रहे तो
मतलब <br />
हम ध्यान में नहीं पहुँच पा रहे हैं </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">ध्यान एक शुद्धि है एक रेचन है जिसमे हमारे अन्दर की अशुद्धियाँ हटती हैं जिसमे हम अपने आप से ही अपने विकार मिटाते हैं </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">कैसे?<br />
अपने अविनाशिस्वरूप के ज्ञान के द्वारा </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">अपने अविनाशिस्वरूप आत्मा में अपनी स्वाभाविक स्थिति के द्वारा </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">हमारे मन,बुद्धि को निर्मल करने का एक माध्यम है ध्यान और
यदि हमारे मन में विकार बने रहते हैं ज़रा भी कम नहीं होते,यदि हम ध्यान
में शान्ति नहीं महसूस कर रहे तो हमे तुरंत ऐसे ध्यान को रोक देना चाहिए
क्यूंकि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है,बहुत संभव है हम अपना दिमाग लगा रहे हों
कही हुई बात की जगह </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st"><br />
सीधी सी बात है जैसे घर का कचरा निकालते समय फैन बंद कर देते हैं उसी तरह
मन मस्तिष्क की गन्दगी साफ़ करने के लिए हम विचारशून्यता का आश्रय लेते हैं </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st">विचारशून्यता का कायम रहना ध्यान है और ध्यान की अनुपस्थिति मन है </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st"><br />
बहुत आवश्यक है की ध्यान के लिए बैठते समय हम अपने अन्दर के मन को,अपने
अंतःकरण को राग-द्वेष दोनों की तरफ बढ़ने से रोकें व सम होने का प्रयत्न
करें क्यूंकि आत्मा की प्रकृति समता ही है </span><span class="st">।<br />
<br />
ध्यान के लिए मेरा मानना है सबसे अधिक ज़रूरी है वैराग्य यानी हमे सिर्फ
इतना मानना है जो की हम जानते भी हैं की ये जीवन क्षणभंगुर है,इसमें चाहे
हम जितनी भी दक्षता से जो भी सांसारिक कार्य कर लें और नाम,धन,मान अर्जित
कर लें परन्तु वो हमारे कौड़ी भर भी काम नहीं आने वाले </span><span class="st">। हमारे काम तो सिर्फ आना है हमारी आत्मा जो की हमारा स्वरुप है और जिससे हम विमुख हुए बैठे हैं </span><span class="st"></span><span class="st">।<br />
ध्यान अपनी आत्मा के अथार्त अपने स्वरुप के सम्मुख होना है </span><span class="st"></span><span class="st">। <br />
सच्चाई तो ये है की ध्यान के इलावा गया हुआ हमारा सारा समय निश्चित ही
व्यर्थ हो जाना है क्यूंकि संकल्प विकल्प के द्वारा जो हम जीवन जीते हैं
उससे तो फल में अगले जन्म में भी हमे सुख अथवा दुःख ही मिलना </span><span class="st"></span><span class="st"><br />
है अथार्त संकल्प अथवा विकल्प ही मिलना है </span><span class="st"></span><span class="st">।
यही पूर्वजन्मों के संस्कार हमे आगे नहीं बढ़ने देते क्यूंकि ये स्वयं ही
अज्ञान हैं जो हमारे ज्ञान रुपी दर्पण के चारों तरफ जम गए हैं जिसमे जब
ज़रा सी गन्दगी सत्संग आदि से कम होती है हमे लगता है हमे थोडा ज्ञान मिला </span><span class="st"></span><span class="st">। परन्तु कुछ ही देर में जो थोड़ी सफाई हुई थी पुनः उसे हमने स्वयं ही राग-द्वेष द्वारा गन्दा कर दिया </span><span class="st"></span><span class="st">।
इस तरह से पुनः ज्ञान आच्छादित होने स रुक गया,पुनः हम अपने मन,बुद्धि के
वश में हो गए,पुनः हमे लगने लगा भला मन,बुद्धि से भी कुछ ऊपर होता है ?भला
जीवन में मन को नियंत्रि भी किया जा सकता है ? <br />
ध्यान से हम इस दर्पण को अच्छी तरह साफ़ कर सकते हैं और इतना साफ़ की हमे
स्वयं का स्वरुप दिखाई देने लगता है,तत्व-ज्ञान सुनाई पड़ने लगता है </span><span class="st">। </span>और
तब उल्टा होना शुरू हो जाता यानी हमारा यही मन जो सांसारिक सुखों को ही सब
कुछ समझता है ध्यानजनित आनंद पाकर,सुख पाकर ज्ञान रुपी दर्पण को स्वयं ही
साफ़ रखता है ,उसमे ज़रा भी अज्ञान रुपी धूल नहीं लगने देता <span class="st">। </span></span> <span style="font-size: x-large;"><br />
<span class="st"><br />
ध्यान का अनुभव एक बार हो जाने से दुबारा ध्यान में जाना कठिन नहीं होता </span><span class="st">।</span><br />
<span class="st"><br />
</span><span class="st"></span>असल में ध्यान तक पहुँचने की सीढ़ी जो मह्रिषी पतंजलि जी ने बतायी है उसे उन्होंने आष्टांग योग में समाहित किया है <span class="st">।<br />
ध्यान को सातवें स्थान पर व उसके बाद आठवें व अंतिम पायदान पर है समाधि </span><span class="st">।<br />
<br />
<br />
</span>यम <br />
नियम <br />
आसन <br />
प्राणायाम <br />
प्रत्याहार <br />
धारणा <br />
ध्यान <br />
समाधि <br /><br /><br />
यहाँ ध्यान के पहले भी <a href="http://poetry-kavita.blogspot.in/2011/10/blog-post_16.html" target="_blank">यम</a>(अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह ) और नियम(शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय व ईश्वरप्रणिधान ) आये हैं </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।</span><br />
जो इसी बात को इंगित करते हैं की ध्यान से पहले हमे अपने अंतःकरण को जितना
ज्यादा हो साफ़ कर लेना चाहिए हमे ये बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए की भले
हम हज़ारों लोगों को जानते हों लेकिन हमारे साथ सिर्फ हम ही रहते हैं हमारे
काम भी सिर्फ हम ही आ सकते हैं इसलिए अपने आप से अपने मित्र बनें अपने आप
से अपने शत्रु नहीं <span class="st">।</span><br /><br /><br /><br />
श्रीमद भगवद गीता में भगवान् ने छठे अध्याय में यही बात कही है :</span>
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
</div>
<div class="pdngT10" id="topics" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् ।<br />
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥</span>
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> अपने द्वारा अपना संसार-समुद्र से
उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना
मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ॥5॥</span>
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div1" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।<br />
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ॥</span>
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> जिस जीवात्मा द्वारा मन और
इन्द्रियों सहित शरीर जीता हुआ है, उस जीवात्मा का तो वह आप ही मित्र है और
जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है, उसके लिए वह
आप ही शत्रु के सदृश शत्रुता में बर्तता है॥6॥<br /><br /><br />
बहरहाल अष्टांग योग में आये इतने चरणों को देखके ध्यान दुष्कर नहीं लगना
चाहिए क्यूंकि जैसे वो क्रिया में लिखे हैं अथार्त ध्यान तक पहुँचने के
पहले कई चरण हैं वैसे ही वो समझने में भी हैं </span>
<span style="font-size: x-large;"><span class="st">।<br />
यानी इन्हें हमे समझना मात्र ही है क्यूंकि वैसे भी ये आस्तित्व द्वारा
स्वयं ही हमसे हो जाते हैं जब शुद्ध भावना से हम ध्यान के लिए जाते हैं </span><span class="st">।</span></span></div>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
ध्यान को जितना कठिन हम समझेंगे ये उतना कठिन लगेगा और जितना इसे स्वरुप की स्वाभाविक स्थिति मानेंगे ये उतना ही आसान लगेगा <span class="st">।</span></span></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-51974393235500266562012-05-04T16:56:00.002+05:302012-07-20T11:41:37.765+05:30ध्यानयोग 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;">स्वयं का स्वरुप आत्मा जानने के बाद साधक सर्वप्रथम तो ये जान जाता है की
मन,बुद्धि आत्मा के अधीन हैं </span><span style="font-size: x-large;">।इसलिए वो उनकी सत्ता से अधीर नहीं होता वरन
मनन करता हुआ आत्मा में रमण करने का प्रयत्न करता है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
इस स्थिति के लिए धीरे धीरे अभ्यास द्वारा पहले मन को एकाग्र करना होता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
बहुधा हम ध्यान का अर्थ मात्र एकाग्रता लगा लेते हैं जबकि ऐसा कदापि नहीं
है एकाग्रता तो ध्यान तक पहुँचने की प्रक्रिया मात्र में है </span><span style="font-size: x-large;">। <br />
मन के एकाग्र करने के उपरान्त साधक ध्यान में पहुँच जाता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ फिर प्रश्न आता है की मन एकाग्र कैसे हो ?<br />
ऐसा प्रश्न अधिकतर उन साधकों के मन में आता है जिन्होंने अपने स्वरुप के महत्व को नहीं स्वीकारा </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
बहरहाल ऐसा होने पर इसे दूसरी तरह से समझें </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
बुद्धि निर्णय (संकल्प ) करती है और मन विकल्प प्रस्तुत करता है
उदहारणस्वरुप बुद्धि ने सोचा भूख लगी है तुरंत ही मन ने कई तरह के व्यंजन
सामने उपस्थित कर दिए </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
बुद्धि ने निर्णय किया मुझे लिखना है मन ने तुरंत ही विकल्प प्रस्तुत कर दी
ये लिखना है,इस पर लिखना है,कलम से लिखना है पेंसिल से लिखना है इत्यादि </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ यदि बुद्धि शांत हो जाए तो निश्चित मानिए मन शांत हो जाएगा क्यूंकि मन बुद्धि से ही संचालित होता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
अतः जैसे ही हम चेतन तत्त्व को आत्मा को प्रधानता देते हैं और चूँकि बुद्धि
जड़ है उसका कार्यक्षेत्र भी जड़ है और बुद्धि स्वयं आत्मा द्वारा ही
संचालित होती है तो बुद्धि शांत रहती है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
बुद्धि के शांत होने पर मन भी शांत रहता है और संकल्प विकल्प नहीं उठते ऐसी
अवस्था में चित्त निरुद्ध हो जाता है और साधक स्वतः ध्यान में प्रवेश कर
जाता है </span><span style="font-size: x-large;">। यही बात ऐसे भी समझ सकते हैं की जिन्होंने आत्मा में स्वरुप को लगा दिया तो स्वाभाविक ही उनका चित्त निरुद्ध हो जाता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ कोई विचार नहीं है यहाँ वो स्वयं उपस्थित है और स्वयं से ही बात कर रहा है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
परन्तु बात जो असली बात है की साधक स्वयं से बात कर सके वो तो काफी अभ्यास के बाद संभव है परन्तु अभी वो
स्वस्वरूप के साक्षात्कार के प्रारभिक चरण में प्रवेश कर गया इसमें कोई
अतिशयोक्ति नहीं </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
साधक को ध्यान में कुछ भी नहीं करना है बस विचार का भी विचार नहीं होना चाहिए </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ ये ध्यान देने की बात है की विचार का भी विचार न करना स्वयं में एक
विचार है परन्तु विचार का भी विचार न होना स्थिति है और यही ध्यान है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ फिर एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न आ सकता है की निर्विचार होने के बारें में
हमे पता तो चलता ही है तो क्या वो बुद्धि के द्वारा नहीं है ?<br />
ऐसा होता है अतिसूक्ष्म शुद्ध बुद्धि द्वारा परन्तु मात्र आभास ही मिल सकता है,वास्तव में बुद्धि वहां तक पहुँचती नहीं </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
स्वयं का अविनाशीस्वरूप तीनो गुणों (सत्व,रज,तम ) से अतीत है अथार्तगुणातीत है इसलिए बुद्धि ग्राह्र होने पर भी वो बुद्धि से बिलकुल अतीत है </span><span style="font-size: x-large;">। इसमें परमात्मा की कृपा ही देखनी चाहिए </span><span style="font-size: x-large;">। </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">श्रीमद भगवद्गीता में छठे अध्याय के इन श्लोकों में भगवान् साधक से यही बता रहे हैं : </span></div>
<div style="color: #134f5c;">
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div class="pdngT10" id="Div8" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते ।<br />
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> अत्यन्त वश में किया हुआ चित्त जिस
काल में परमात्मा में ही भलीभाँति स्थित हो जाता है, उस काल में सम्पूर्ण
भोगों से स्पृहारहित पुरुष योगयुक्त है, ऐसा कहा जाता है॥18॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div9" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
यथा दीपो निवातस्थो नेंगते सोपमा स्मृता ।<br />
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित
दीपक चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्मा के ध्यान में लगे हुए योगी
के जीते हुए चित्त की कही गई है॥19॥
</span></div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div10" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया ।<br />
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त जिस
अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध
हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात करता हुआ सच्चिदानन्दघन
परमात्मा में ही सन्तुष्ट रहता है॥20॥
</span></div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div11" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् ।<br />
वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> इन्द्रियों से अतीत, केवल शुद्ध हुई
सूक्ष्म बुद्धि द्वारा ग्रहण करने योग्य जो अनन्त आनन्द है, उसको जिस
अवस्था में अनुभव करता है, और जिस अवस्था में स्थित यह योगी परमात्मा के
स्वरूप से विचलित होता ही नहीं॥21॥
</span></div>
</div>
<div style="color: #134f5c;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-75232837878017974882012-05-02T15:45:00.002+05:302012-07-20T11:41:02.062+05:30ध्यानयोग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #073763;">
<span style="font-size: x-large;"></span><br />
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">ध्यान सही मायने में किसे कहते हैं ध्यान क्या है इसे समझना अत्यंत आवश्यक है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
हम खासकर जिन्होंने ध्यान का आनंद नहीं लिए ये नहीं जानते की जीवन तब तक
अधूरा है या ये कहें की निरर्थक है जब तक हम ध्यान में नहीं डूबते </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
आज के समय में जब आदमी मशीन सा हो गया है,जब व्यक्ति की प्राथमिकता सिर्फ उत्पत्ति -विनाशशील वस्तुओं की उपलब्धि ही है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"> आदमी के पास व्यस्तता के इलावा समय नहीं है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
आदमी की स्थिति ऐसी है जैसे कोई बस में या ट्रेन में चढ़ा हो और उसे बैठने
के लिए कहा जाए और वो ये कहे की नहीं बहुत जल्दी में हूँ बैठ नहीं सकता </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
कहने का तात्पर्य ये है की व्यक्ति को जितना अपने प्रति अपने समय के प्रति
अपने समय के सदुपयोग के प्रति सजग होना चाहिए उतना ही वो असजग है बल्कि ये
कह सकते हैं की उसे ये बातें निराधार लगती हैं या फ़िज़ूल लगती हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
इसके इलावा एक ऐसा भी वर्ग है जो ध्यान को अहमियत तो देता है लेकिन उसे
किताबी ढंग से समझने का प्रयत्न करता है या आधे अधूरे ज्ञान से ही काम चला
लेता है यानी उसने ध्यान मात्र नाम के लिए किया है </span><span style="font-size: x-large;">।ऐसा
कई कारणों से हो सकता है जैसे अधैर्य,सही मार्गदर्शन न मिलना, ध्यान कोई
बहुत बड़ा काम लगने लगना,ध्यान में मन न लगना,पूर्ण समय न देना आदि </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"> <br />
ऐसे कई लोग हैं जो ध्यान की अहमियत को जानते हैं वो जानते हैं की ध्यान एक धैर्य पूर्वक की जाने वाली विधि है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
ऐसे लोग प्रायः ध्यान का आनंद अथार्त आत्मिक आनंद उठाने में सफल होते हैं
और वो हमेशा चाहेंगे की और लोग भी जाने की ईश्वर ने उन्हें कितनी शक्ति दी
हुई है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
ध्यान क्या है ?<br />
ध्यान कैसे किया जाए ?<br />
मन,बुद्धि को नियंत्रित कैसे किया जाए ?<br />
ध्यान के क्या फायदे हैं ?<br />
ध्यान क्यूँ किया जाए ?<br /><br /><br />
इन सबका उत्तर यही है की मन,बुद्धि से अतीत होना ही ध्यान है,अपनी सहजावस्था को प्राप्त करना ध्यान है </span>
<span style="font-size: x-large;">।<br />
जीवन में ध्यान से बढ़कर कुछ नहीं है क्यूंकि इसी से हमारे अंतकरण के विकार दूर होते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #134f5c; text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;">
शरीर में ज़रा सी भी गन्दगी लगती है तो हम तुरंत नहाते हैं क्यूँ ? क्यूंकि हम जानते हैं की </span><span style="font-size: x-large;">गन्दगी</span><span style="font-size: x-large;"> लगी है </span><span style="font-size: x-large;">। लेकिन यदि हमे मालूम हो की गन्दगी लगी है फिर भी हम उसे साफ़ न करे तो ?</span></div>
<div style="color: #134f5c;">
<span style="font-size: x-large;">
शरीर की गन्दगी से ज्यादा नुकसान अंतःकरण की गन्दगी पहुंचाती है, हमारे मन की </span><span style="font-size: x-large;">गन्दगी</span><span style="font-size: x-large;"> पहुचाती है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><br />
<span style="font-size: x-large;">यदि हम अपने अंतःकरण के विकारों को देख लें तो घबरा जायेंगे की हम में कितनी गन्दगी है और हम फिर भी हटाने के बजाय बढाए जा रहे हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span><br />
<span style="font-size: x-large;">
<br />
</span><span style="font-size: x-large;">ध्यान के द्वारा हम अपने को अन्दर से शुद्ध करते हैं,मानसिक रूप से शुद्ध करते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;">
बिना सही ध्यान के व्यक्ति का जीवन एक माचिस की डिब्बी के समान निकल जाता
है जिसमे तीलियाँ थी अथार्त शक्ति थी लेकिन वो कभी जलायीं नहीं गयीं यानी
शक्ति का उपयोग ही नहीं किया गया या किया जा सका </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br />
ध्यान के द्वारा हम समाधि तक पहुँचते हैं जो हमारी आत्म स्थिति है, जिसके
बाद हम असंभव से बस में दिखने वाले अपने मन,बुद्धि इन्द्रियों को न सिर्फ
संयमित कर लेते हैं बल्कि पूर्णतया नियंत्रित भी कर सकते हैं </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br /><br />
ध्यान पर बहुत से महापुरुषों ने बहुत कुछ बोला है उन्हें पढने की,मनन करने की परम आवशयकता है </span>
<span style="font-size: x-large;">।<br />
प्रायः सबने एक जैसी ही बात बोली है </span><span style="font-size: x-large;">श्रीमद भगवतगीता में बहुत अच्छे से ध्यानयोग पर लिखा है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
संत कबीर दास जी ने भी ध्यान पर बोला है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
संत विनोबा जी ने,संत ओशो जी ने भी ध्यान पर बहुत बोला है </span><span style="font-size: x-large;">। जगतगुरु कृपालु जी ने भी ध्यान को सरलता से समझाया है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: x-large;">साधक संजीवनी में परम श्रध्येय स्वामी रामसुख दास जी ने भी बहुत अच्छे से समझाया है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
<span style="font-size: x-large;">
इन सभी ने और भी बहुत से परम आदरणीय लोगों ने लोगों के आत्म-सुख हितार्थ ध्यान पर बोला है,ध्यान के रहस्यों को खोला है </span><span style="font-size: x-large;">।व्यक्ति को आत्म साक्षात्कार के सम्मुख किया है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
<br />
मेरा मानना है यहाँ पर एक ब्रेक लिया जाया यानी हम ध्यान को थोड़े देर के
लिए छोड़ दें और उसके भी पहले के चरण पर चलें,इससे परिणाम और चमत्कारिक
होंगे </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;">यानी हम अपने
आप को थोडा जाने खासकर ये की हमारे अन्दर की ऊर्जा जो अक्सर इन्द्रिय और
उनके विषयों में अथार्त भोग विलास में लगती है वो अधोगमन को प्राप्त होती
है या ऊर्ध्वगमन को </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यहाँ मैं ओशो जी द्वारा कही कुछ बातें उद्धत करना चाहूँगा </span><span style="font-size: x-large;">जिससे व्यक्ति आसानी से अपने अन्दर की ऊर्जा को सही दिशा दे सकता है उसका सदुपयोग कर सकता है-<b>मूलबंध ब्रह्मचर्य उपलब्धि की सरलतम विधि </b> ।<br />
<br />
</span><span style="font-size: x-large;"><b>मूलबंध ब्रह्मचर्य उपलब्धि की सरलतम विधि<br />
</b><br />
जीवन ऊर्जा है शक्ति है लेकिन साधारणतया तुम्हारी जीवन ऊर्जा नीचे की ओर
प्रवाहित हो रही है इसलिए तुम्हारी जीवन ऊर्जा अंततः काम,क्रोध अथवा लोभ से
सनी वासना बन जाती है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
कामवासना अथवा भोग-विलास में खींचे रहना निम्तम चक्र है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"> तुम्हारी ऊर्जा नीचे गिर रही है और सारी ऊर्जा धीरे धीरे केंद्र पर इकट्ठी हो जाती है </span><span style="font-size: x-large;">। इसलिए तुम्हारी सारी शक्ति </span><span style="font-size: x-large;">कामवासना बन जाती है </span><span style="font-size: x-large;">अंततः व्यर्थ हो जाती है ।<br />
वह जो मूलाधारचक्र है - जहाँ से काम-ऊर्जा बनती है उसे बाँध लेना है उसे सिकोड़ लेना है </span><span style="font-size: x-large;">।इसलिए पतंजलि जी ने हठयोग में बहुत सी प्रक्रियाएं खोजी हैं 'मूल' को बाँधने की </span><span style="font-size: x-large;">। मूल अगर बांध जाए तो ऊर्जा अपने आप ऊपर उठने लगती है क्यूंकि नीचे के द्वार बंद हो जाता है अवरुद्ध हो जाता है </span><span style="font-size: x-large;">।</span><span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;">जब भी तुम्हारे मन में कामवासना(काम,क्रोध,लोभ) उठे तो शांत होकर बैठ जाओ और जोर से श्वास को बाहर फेंको - उच्श्वास </span><span style="font-size: x-large;">। भीतर मत लो श्वास को क्यूंकि जैसे ही तुम भीतर गहरी श्वास लेते हो,श्वास काम ऊर्जा को नीचे की तरफ धकाती है </span><span style="font-size: x-large;">। तो जब तुम्हे कामवासना पकडे,तब एक्झेल करो बाहर फेंको श्वास को </span><span style="font-size: x-large;">। नाभि को भीतर खींचो,पेट को अन्दर लो और श्वास को बाहर फेंको,जितना फ़ेंक सको </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
जब सारी श्वास बाहर फिंक जाती है तो तुम्हार पेट और नाभि वैक्यूम हो जाता है,शुन्य हो जाता है </span><span style="font-size: x-large;">। ध्यान दो की जहाँ कहीं भी शुन्यता हो जाती है वहीँ आस-पास की ऊर्जा शून्य की तरफ प्रवाहित होने लगती है </span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;">। शून्य खींचता है, क्यूंकि प्रकृति शून्य को बर्दाश्त नहीं करती शून्य को भरती है </span><span style="font-size: x-large;">। तुम्हारी नाभि के पास शून्य हो जाए, तो मूलाधार से ऊर्जा तत्क्षण नाभि की तरफ उठ जाती है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
और तुम्हे बड़ा रस मिलेगा जब पहली बार अनुभव करोगे </span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;"> </span><span style="font-size: x-large;">तुम पाओगे तुम्हारा सारा तन-मन गहन स्वास्थ्य से भर गया </span><span style="font-size: x-large;">। उर्जा का रूपांतरण शुरू हुआ </span><span style="font-size: x-large;">। तुम ज्यादा शक्तिशाली,सौमनस्यपूर्ण,उत्फुल्ल,सक्रिय और विश्रामपूर्ण मालूम पड़ोगे </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
इसलिए जो लोग मूलाधार से शक्ति को सक्रिय कर लेते हैं उनकी नींद कम हो जाती
है ज़रूरत ही नहीं रह जाती है वे थोड़े घंटे सोकर उतने ही ताज़ा हो जाते हैं
</span><span style="font-size: x-large;">।<br />
उर्जा का ऊर्ध्वगमन बड़ा अनूठा अनुभव है और पहला अनुभव होता है मूलाधार से जब उर्जा का नाभि की तरफ संक्रमण होता है</span><span style="font-size: x-large;">।<br />
यह मूलबंध की सहजतम प्रक्रिया है की तुम श्वास को बाहर फ़ेंक दो नाभि शून्य
हो जायेगी उर्जा उठेगी नाभि की तरफ - मूलाधार का द्वार अपने आप बंद हो
जायेगा </span><span style="font-size: x-large;">। वह द्वार खुलता है उर्जा के धक्के से </span><span style="font-size: x-large;">। जब उर्जा मूलाधार में नहीं रह जाती,वह धक्का नहीं पड़ता,द्वार बंद हो जाता है </span><span style="font-size: x-large;">।इसे कभी भी कहीं भी कर सकते हो </span><span style="font-size: x-large;">। रोजाना दस-पंद्रह मिनट करने पर ही कुछ ही </span><span style="font-size: x-large;">दिनों में परिणाम दिखने लगेगा और कुछ ही महीनो में पाओगे कामवासना तिरोहित हो गयी ; काम उर्जा रह गयी,वासना तिरोहित हो गयी </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
<br />
</span><span style="font-size: x-large;"><br />पुनः ध्यान पर आते हैं ओशो बताते हैं की ध्यान क्या है </span>
<span style="font-size: x-large;">।<br />
</span><span style="font-size: x-large;">निर्विचार चेतना है ध्यान </span><span style="font-size: x-large;">। और निरविचारणा के लिए विचारों के प्रति जागना ही विधि है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
विचारों का सतत प्रवाह है मन,साधारणतया इसी प्रवाह के प्रति मूर्छित होना अजाग्रत होना हमारी स्थिति है </span><span style="font-size: x-large;">। इस मूर्छा से पैदा होता है तादात्म्य </span><span style="font-size: x-large;">। मैं मन ही मालूम होने लगता हूँ </span><span style="font-size: x-large;">। जागें और विचारों को देखें </span><span style="font-size: x-large;">। विचारों से स्वयं का तादात्म्य टूटना ही ध्यान है क्यूंकि इसी से निर्विचार चेतना का जन्म होता है </span><span style="font-size: x-large;">। ऐसे ही जैसे आसमान से बदल हट जाएँ तो आसमान दिखाई पड़ता है </span><span style="font-size: x-large;">। विचारों में रिक्त चित्ताकाश ही स्वयं की मौलिक स्थिति है </span><span style="font-size: x-large;">। </span><span style="font-size: x-large;">वही </span><span style="font-size: x-large;"> समाधि है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
ध्यान है विधि </span><span style="font-size: x-large;">। समाधि है उपलब्धि </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
लेकिन ध्यान के सम्बन्ध में सोचें मत </span><span style="font-size: x-large;">। ध्यान के सम्बन्ध में विचारना भी विचार ही है </span><span style="font-size: x-large;">। इसलिए ध्यान करते समय ध्यान को करें अथार्त निर्विचार हो जाएँ उसे सोचे मत </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
मन का काम है सोना और सोचना </span><span style="font-size: x-large;">। जागने में उसकी मृत्यु है और ध्यान है जागना </span><span style="font-size: x-large;">। इसलिए मन कहता है - चलो,ध्यान के सम्बन्ध में ही सोचें </span><span style="font-size: x-large;">। यह उसकी आत्मरक्षा का अंतिम उपाय है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
इससे सावधान रहना है </span><span style="font-size: x-large;">। सोचने की जगह देखने पर बल देना है,साक्षी रहना है </span><span style="font-size: x-large;">। विचार नहीं दर्शन - बस यही मूलभूत सूत्र है </span><span style="font-size: x-large;">। दर्शन बढ़ता है तो विचार छीण होते हैं </span><span style="font-size: x-large;">। <br />
साक्षी जागता है, तो स्वप्न विलीन होता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
ध्यान आता है तो मन जाता है,मन है द्वार संसार का </span><span style="font-size: x-large;">। ध्यान है द्वार आत्म साक्षात्कार का,मोक्ष का,स्वस्वरूप का </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
<br />
यहाँ मैं एक बात पर जोर देना चाहूँगा और वो है मन,बुद्धि का हमारे नियंत्रण में होना </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
<br />
बहुधा ध्यान के समय यही दिक्कत सभी को आती है की ध्यान कैसे
करें,विचारशून्य कैसे हों जब हमारा मन ही शांत नहीं हो पा रहा अथार्त हमारा
मन हमे तटस्थ नहीं होने दे रहा </span><span style="font-size: x-large;">।
ऐसी स्थिति में ये जान लें जैसे की पिछली पोस्ट में भी उल्लेख है की हमारा
स्वरुप मन,बुद्धि नहीं आत्मा है और आत्मा ही प्रकाशक है
मन,बुद्धि,इन्द्रियाँ </span><span style="font-size: x-large;">आदि प्रकाश्य हैं </span><span style="font-size: x-large;">। आत्मा की सत्ता से ही मन,बुद्धि काम करते हैं इसलिए अपने स्वरुप को अथार्त आत्मा को हमे इनसे ऊपर इनसे शक्तिशाली समझना </span><span style="font-size: x-large;">चाहिए </span><span style="font-size: x-large;">क्यूंकि वास्तविकता भी यही है ।</span><span style="font-size: x-large;">आत्मा चेतन है मन,बुद्धि इन्द्रियां शरीर जड़ है ये सिर्फ आत्मा के कारण ही चेतनामय लगता है </span><span style="font-size: x-large;">।<br />
<br />
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान् ने बताया है की मन को नियंत्रित करके मन की इच्छाओं को भी नियंत्रित किया जा सकता है : <br />
<br />
</span>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div7" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।<br />
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"><br />
भावार्थ <b>:</b> इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी
श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं। इन इन्द्रियों से पर मन है, मन से भी
पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त पर है वह आत्मा है॥३/४२॥</span>
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div8" style="color: #134f5c;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।<br />
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;"><br />
भावार्थ <b>:</b> इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात
सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को
वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल अथार्त वश में कर ॥३/४३॥</span><br />
<br />
<span style="font-size: x-large;">व्यक्ति जब अपने स्वरुप(आत्मा) में स्थित हो जाता है वही ध्यान है </span><span style="font-size: x-large;">।</span></div>
</div>
</div>
</div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9035245632311694535.post-81961099745411037422012-04-29T17:19:00.002+05:302012-05-02T13:56:56.698+05:30विवेक के द्वारा ही अध्यात्म बढ़ता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;"></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
</div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;">यदि हम सोचें की आज से दस साल पहले क्या हमारे साथ समस्या अथवा चिंता नहीं थी ? ज़रूर थी लेकिन क्या वो आज है ? निश्चित ही नहीं है </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">। परन्तु क्या आज समस्या अथवा चिंता दूसरे रूप में नहीं है ? निश्चित ही है </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">क्या आज से दस साल बाद ये समस्या ये चिंता हमारे पास नहीं रहेगी? निश्चित ही </span><span style="color: #0b5394;">नहीं रहेगी </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">लेकिन हम अपनी मानसिक ऊर्जा को इसी में लगाए रखते हैं और जीवन तत्त्व को अथार्त तत्वज्ञान को प्राप्त ही नहीं कर पाते </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।फिर तत्वज्ञ बने रहना अथवा दूसरों को तत्व ज्ञान की तरफ उन्मुख करना तो अलग ही बात है </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span><span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;"></span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">हम इस बात को जानके भी अनजान बने रहते हैं और बस निरंतर इसी तरह से एक बाद एक नयी चिंताओं में उलझे रहते हैं या स्वयं को उलझाए रखते हैं </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">। हम ये जान ही नहीं पाते की हमारा जीवन हमे क्यूँ मिला है ?</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">हम ये मान ही नहीं पाते की जीवन में नित्य कुछ भी नहीं खासकर हमारे उद्देश्य से सम्बंधित (धन,मान,संपत्ति) </span><span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">। ये सबकुछ </span><span style="color: #0b5394;">हमारे साथ नहीं रह पायेगा या हम इन सारी </span><span style="color: #0b5394;">चीज़ों के साथ नहीं रह पायेंगे यहाँ तक हम इस प्रश्न का अर्थ ही नहीं समझ पाते </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">। व्यक्ति स्वयं को और संसार को एक जैसा ही समझता है और अपनी इसी ग़लत बुद्धिमानी के चलते निरंतर दुखित होता है </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">। हम देखते हैं कई बड़े बुज़ुर्ग हमारे घर के ही या आस पास के हमारे सामने ही चले गए हमने क्या किया चार दिन रोये और फिर बाकी जो जीवन में संसार में हमारा बचा हुआ हमे लगा उसे दोनों हाथ से कस के पकड़ लिया की नहीं अब बाकी कुछ नहीं जाने देंगे लेकिन समय आया और फिर अनित्य(शरीर,संसार) हमारे </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">सामने चला गया लेकिन फिर हम वोही करते हैं </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">आखिर हम अपना विवेक जगा क्यूँ नहीं </span><span style="color: #0b5394;">पाते ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">यदि हमारा विवेक थोडा सा जाग्रत हो जाता है तो हम उस पर </span><span style="color: #0b5394;">कायम क्यूँ नहीं रह पाते ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">यदि हमे भूले से कोई ज्ञान दे जाता है तो भी क्यूँ हम उस पर भी संदेह करने लगते हैं ?</span></span></div>
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"><br /></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"> </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"> </span><br />
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">बहुधा हम अपने आप को दिलासा देते हैं की ये सब बहुत मुश्किल है अथवा तो ये तो भगवान् की माया है </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">हम कोई साधू महात्मा नहीं है जो दिन भर भगवान् का नाम जपते रहें</span> <span style="color: #0b5394;">और इस तरह संसार को छोड़े रहें व माया से बचे रहें </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">नहीं ऐसी बात नहीं है, ऐसी बात कदापि नहीं है क्यूंकि ये सच नहीं है </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">। व्यक्ति अपना सामान्य जीवन जीते हुए भी इश्वर प्राप्ति कर सकता है </span><span style="color: black; font-size: x-large;"></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">तो फिर सच क्या है ? सच ये है की हममे </span><span style="color: #0b5394;">अज्ञान इतनी अन्दर तक </span><span style="color: #0b5394;">पैठा है जिसका हम अंदाजा तक नहीं लगा सकते </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;"> यदि हम</span> <span style="color: #0b5394;">गंभीरता से सोचे तो हममे से अधिकतर ये पायेंगे की वाकई </span><span style="color: #0b5394;">हम एक दिखावे की ज़िन्दगी से ज्यादा नहीं जी रहे </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">जहाँ औरों के मुताबिक उन्हें अच्छा लगे इस मुताबिक हमे जीना पड़ता है ।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">यदि गंभीरता से हम </span><span style="color: #0b5394;">सोचें तो पायेंगे की राग-द्वेष में बंधकर कितना ज्यादा हमने अपने आपको अथार्त </span><span style="color: #0b5394;">अपनी ज़िन्दगी</span> <span style="color: #0b5394;">को दूसरों के हाथ में सौंप रखा है अथार्त हम अपना जीवन अपने हिसाब से अथवा अपने जीवन के हिसाब से नहीं जीते बल्कि लोगों के साथ राग(प्रेम,दोस्ती,रिश्तेदारी) में </span><span style="color: #0b5394;"></span><span style="color: #0b5394;">अथवा द्वेष(शत्रुता,</span><span style="color: #0b5394;">प्रतिद्वंदिता,साजिश,नफरत,भेदभाव</span><span style="color: #0b5394;">) </span><span style="color: #0b5394;">के हिसाब से जीते हैं </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">यदि हम </span><span style="color: #0b5394;">सच्चाई से अपने आप से पूछे और ये हमारे लिए ही अत्यंत आवश्यक है क्यूंकि अज्ञान </span><span style="color: #0b5394;">इसी तरह से जाता </span><span style="color: #0b5394;">है और एक बार अज्ञान शुन्यता पर पहुँचता है की ज्ञान </span><span style="color: #0b5394;">स्वयं व्याप्त होने लगता है तो अपने आप से पूछे की क्या हम अपनी आत्मा को भी </span><span style="color: #0b5394;">अनसुना </span><span style="color: #0b5394;"> नहीं करते?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
</div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">क्या हम अपने शास्त्रों,वेदों में पूरी निष्ठा रखते हैं ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">क्या ये सच नहीं है की हम भगवान् में </span><span style="color: #0b5394;">ही पूरी निष्ठां नहीं रखते तभी तो धार्मिक ग्रन्थ नहीं पढ़ते,तभी तो धार्मिक चिंतन नहीं नहीं करते </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">क्या हमे ये मालूम है की जिस तरह कपड़ा गन्दा हो जाने के बाद साफ़ करने पर ही साफ़ होता </span><span style="color: #0b5394;">है उसी तरह हमारी </span><span style="color: #0b5394;">आत्मा भी सत्संग से ही और निखरती है और जितना ज्यादा हम इससे ज्यादा अपने मन,बुद्धि को अहमियत देंगे अथार्त संसार को अहमियत देंगे उतना ही हमारी आत्मा प्रकाशमय होने से रुकेगी व परिणामतः हम उतना ही अज्ञान में चलते चले जायेंगे </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"> <span style="color: #0b5394;">क्या जितना ज्यादा हम </span><span style="color: #0b5394;">स्वयं को नास्तिक करने में लगाते</span> <span style="color: #0b5394;">हैं अथार्त भगवत वचन में,भगवत आस्तित्व में भगवत कृपा में भगवत भजन में संदेह करने में लगाते हैं उतना ही आस्तिक होने में और इन सबमे रस लेने </span><span style="color: #0b5394;">लगाते हैं ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">यदि नहीं लगा पाते तो</span> <span style="color: #0b5394;">क्या हम जानते हैं </span><span style="color: #0b5394;">की ऐसा हमारी आत्मा के कम बलवान होने के कारण ही होता है ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">क्या हमे मालूम है हम जितना ज्यादा अपने आत्म स्वरुप को महत्व देंगे उतना ही आत्मा हमारी शक्तिशाली होती है ?</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">जितना हम अपने मन के वश में होते हैं हमारी </span><span style="color: #0b5394;">आत्म-शक्ति छीन सी होती </span><span style="color: #0b5394;"></span><span style="color: #0b5394;"></span><span style="color: #0b5394;">है और जितना हमारा मन हमारे नियंत्रण में होता है हमारी आत्म शक्ति उतना जाग्रत रहती है </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">अतः हमे सबसे पहले ये जानना और मानना आवश्यक है </span><span style="color: #0b5394;">की भगवान् की अनुभूति के लिए हमारे सांसारिक और आध्यात्मिक सिद्धांत एक होने चाहिए और उसके लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी मैं समझता हूँ जो है वो है <b>संसार में हमारी आसक्ति का कम होना अथार्त हमे संसार का ज्ञान होना</b> </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">दूसरा </span><b style="color: #0b5394;">ज्ञान</b><span style="color: #0b5394;"> का महत्व </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">तीसरा <b></b><b>हमारे अन्दर </b><b>श्रद्धा होनी चाहिए</b> </span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span><span style="color: black; font-size: x-large;"></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">और चौथी और महत्त्वपूर्ण बात की </span><b><span style="color: #0b5394;">व्यक्ति का मन उसके नियंत्रण में होना चाहिए न की व्यक्ति </span></b><span style="color: #0b5394;"><b>अपने मन के </b>और उसमे उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की इच्छाओं के बस में हो </span><span style="color: #0b5394;"></span><span style="color: #0b5394;"> </span></span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">।</span><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">हम स्वयं परमात्मा परमेश्वर के शब्दों को भी देखें तो </span><span style="color: #0b5394;">भगवद्गीता में उन्होंने विभिन्न स्थानों पर यही कहा है </span><span style="color: #0b5394;"></span><span style="color: #0b5394;"> :</span></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: #0b5394; font-size: x-large;">१. </span><span style="color: black; font-size: x-large;"><b><span style="color: #0b5394;">संसार में हमारी आसक्ति का कम होना अथार्त हमे संसार का ज्ञान होना</span></b></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
</div>
<div class="pdngT10" id="Div10" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते ।<br />
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> जो ये इन्द्रिय तथा विषयों के संयोग
से उत्पन्न होने वाले सब भोग हैं, यद्यपि विषयी पुरुषों को सुखरूप भासते
हैं, तो भी दुःख के ही हेतु हैं और आदि-अन्तवाले अर्थात अनित्य हैं। इसलिए
हे अर्जुन! बुद्धिमान विवेकी पुरुष उनमें नहीं रमता ॥ ५/२२ ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">२. <b>ज्ञान का महत्व </b></span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<div class="pdngT10" id="Div5">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ।<br />
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> क्योंकि हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित
अग्नि ईंधनों को भस्ममय कर देता है, वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि सम्पूर्ण
कर्मों को भस्ममय कर देता है॥ ४/३७ ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div6">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।<br />
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र
करने वाला निःसंदेह कुछ भी नहीं है। उस ज्ञान को कितने ही काल से कर्मयोग
द्वारा शुद्धान्तःकरण हुआ मनुष्य अपने-आप ही आत्मा में पा लेता है॥ ४/३८ ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">३. <b>श्रद्धा </b></span></div>
</div>
</div>
</div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"> </span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div class="pdngT10" id="Div7" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः ।<br />
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> जितेन्द्रिय, साधनपरायण और
श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह
बिना विलम्ब के- तत्काल ही भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता
है॥४/३९ ॥
</span></div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div8" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">अज्ञश्चश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।<br />
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> विवेकहीन और श्रद्धारहित संशययुक्त
मनुष्य परमार्थ से अवश्य भ्रष्ट हो जाता है। ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिए न
यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है॥४/४० ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
</div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><span style="color: #0b5394;">४. </span><b style="color: #0b5394;">मन पर नियंत्रण </b> </span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="pdngT10" id="Div6" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।<br />
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त
इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का
चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है॥३/६ ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
</div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;">
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।<br />
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 marronHead" style="color: #0b5394;">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10" style="color: #0b5394;">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> श्री भगवान बोले- हे महाबाहो!
निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है। परन्तु हे कुंतीपुत्र
अर्जुन! यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है॥६/३५॥
</span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<span style="color: black; font-size: x-large;"><br /></span></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div style="color: #0b5394;">
<br /></div>
<div class="pdngT10" id="Div6" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">
अथ चित्तं समाधातुं न शक्रोषि मयि स्थिरम् ।<br />
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> यदि तू मन को मुझमें अचल स्थापन करने
के लिए समर्थ नहीं है, तो हे अर्जुन! अभ्यासरूप (भगवान के नाम और गुणों का
श्रवण, कीर्तन, मनन तथा श्वास द्वारा जप और भगवत्प्राप्तिविषयक शास्त्रों
का पठन-पाठन इत्यादि चेष्टाएँ भगवत्प्राप्ति के लिए बारंबार करने का नाम
'अभ्यास' है) योग द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर॥१२/९ ॥
</span></div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div7" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;">अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।<br />
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥ </span></div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">
भावार्थ <b>:</b> यदि तू उपर्युक्त अभ्यास में भी
असमर्थ है, तो केवल मेरे लिए कर्म करने के ही परायण (स्वार्थ को त्यागकर
तथा परमेश्वर को ही परम आश्रय और परम गति समझकर, निष्काम प्रेमभाव से
सती-शिरोमणि, पतिव्रता स्त्री की भाँति मन, वाणी और शरीर द्वारा परमेश्वर
के ही लिए यज्ञ, दान और तपादि सम्पूर्ण कर्तव्यकर्मों के करने का नाम
'भगवदर्थ कर्म करने के परायण होना' है) हो जा। इस प्रकार मेरे निमित्त
कर्मों को करता हुआ भी मेरी प्राप्ति रूप सिद्धि को ही प्राप्त होगा॥१२/१०॥
</span></div>
</div>
<div class="pdngT10" id="Div8" style="color: #0b5394;">
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
</div>
<div class="pdngT10 marronHead">
<span style="font-size: x-large;"> अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः ।<br />
सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान् ॥
</span></div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
</div>
<div class="pdngT10 pdngB10">
<span style="font-size: x-large;">भावार्थ <b>:</b> यदि मेरी प्राप्ति रूप योग के आश्रित
होकर उपर्युक्त साधन को करने में भी तू असमर्थ है, तो मन-बुद्धि आदि पर
विजय प्राप्त करने वाला होकर सब कर्मों के फल का त्याग (गीता अध्याय 9
श्लोक 27 में विस्तार देखना चाहिए) कर॥१२/११ ॥
</span></div>
</div>
<span style="color: #0b5394; font-size: small;"><span style="color: #0b5394; font-size: x-large;"> </span> </span></div>Humanhttp://www.blogger.com/profile/04182968551926537802noreply@blogger.com1