Thursday, 7 July 2011

Pushp ki abhilasha

पुष्प की अभिलाषा
 
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ



चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ



चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ



चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ



मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक


मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।


- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)



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