Sunday, 4 September 2011

Aao,apne man ko toawen

आओ, अपने मन को टोवें!
व्यर्थ देह के सँग मन की भी
निर्धनता का बोझ न ढोवें।

जाति पाँतियों में बहु बट कर

सामाजिक जीवन संकट वर,
स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के
पथ में हम मत काँटे बोवें!

उजड़ गया घर द्वार अचानक

रहा भाग्य का खेल भयानक
बीत गयी जो बीत गयी, हम
उसके लिये नहीं अब रोवें!

परिवर्तन ही जग का जीवन

यहाँ विकास ह्रास संग विघटन,
हम हों अपनें भाग्य विधाता
यों मन का धीरज मत खोवें!

साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम

नवयुग जीवन का रच उपक्रम,
नव आशा से नव आस्था से
नए भविष्यत स्वप्न सजोवें!

नया क्षितिज अब खुलता मन में

नवोन्मेष जन-भू जीवन में,
राग द्वेष के, प्रकृति विकृति के
युग युग के घावों को धोवें!




- सुमित्रानंदन पंत

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