Sunday, 18 September 2011

दरिया लच्छन साध का, क्या गिरही क्या भेख।

दरिया लच्छन साध का, क्या गिरही क्या भेख।
नि:कपटी निरसंक रहि, बाहर भीतर एक॥

कानों सुनी सो झूठ सब, ऑंखों देखी साँच।
दरिया देखे जानिए, यह कंचन यह काँच॥

पारस परसा जानिए, जो पलटै ऍंग-अंग।
अंग-अंग पलटै नहीं, तौ है झूठा संग॥

बड के बड लागै नहीं, बड के लागै बीज।
दरिया नान्हा होयकर, रामनाम गह चीज॥

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