Tuesday, 4 October 2011

Rang gayi pag pag dhanya dhara

रँग गई पग-पग धन्य धरा,
हुई जग जगमग मनोहरा ।

वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर,

तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर
खुली रूप - कलियों में पर भर
          स्तर स्तर सुपरिसरा ।

गूँज उठा पिक-पावन पंचम

खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम,
सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम
         वन श्री चारुतरा । 


- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

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