इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
कितने वृक्ष बढ़ते देखे कितने पत्ते गिरते देखे
सावन कई सुहाने देखे और कई सावन बिन सावन देखे
कई भोर की अंगडाई कई अंधियारे घनेरे देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
हालातों के जंगल में हौसलों की डगर बनायीं
तिनके तिनके जोडके सुखों की थोड़ी छाँव पायी
जाल विपत्ति का बिछाए रहा बहेलिया कभी
जा जा कर अपने लोगों को फसते धीरे धीरे देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
रैन वक़्त की बीत रही रैन वक़्त की बता रही
कानों को हौले हौले नए वक़्त की आहट आ रही
जीवन जब तक तब तक होठों पे रहे मुस्कराहट
इसी जज्बे से ऐसे कितने जिंदादिली से जीते देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
कितने वृक्ष बढ़ते देखे कितने पत्ते गिरते देखे
सावन कई सुहाने देखे और कई सावन बिन सावन देखे
कई भोर की अंगडाई कई अंधियारे घनेरे देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
हालातों के जंगल में हौसलों की डगर बनायीं
तिनके तिनके जोडके सुखों की थोड़ी छाँव पायी
जाल विपत्ति का बिछाए रहा बहेलिया कभी
जा जा कर अपने लोगों को फसते धीरे धीरे देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
रैन वक़्त की बीत रही रैन वक़्त की बता रही
कानों को हौले हौले नए वक़्त की आहट आ रही
जीवन जब तक तब तक होठों पे रहे मुस्कराहट
इसी जज्बे से ऐसे कितने जिंदादिली से जीते देखे
इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे
वाह!
ReplyDeleteआपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक कल दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ
खूबसूरत एहसास लिये रचना ......
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें!