Friday, 30 September 2011

मन में उपजी इच्छाओं का भार है संसार

भावना ही भावना का संसार है संसार
मन में उपजी इच्छाओं का भार है संसार 



अपने मन की कहता हर कोई सुनना चाहता
पर स्वयं से बात करने का ही सार है संसार



जीवन का हर लम्हा अनमोल सी सीख लिए
आदमी खिलौना है और कुम्हार है संसार



व्यर्थ हो जाता है वक़्त निरर्थक बहस से
वक़्त को अमूल्य समझें तो बहार है संसार



नज़रिया ऐसा हो की कमी नहीं खूबी देखें
हर तरफ प्रेरणा देखने का त्यौहार है संसार



अनित्य है संसार नित्य है मगर आत्मा
आत्मा परमात्मा के इलावा बेकार है संसार



जीवन की नाव की पतवार निश्चिन्तता है
सुख-दुःख से हमेशा ही पार है संसार

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
    आशा

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  2. sundar bhavpurn rachna...

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  3. आशा जी आपका भी बहुत आभार और रचना को सराहने के लिए धन्यवाद |

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  4. मृदुला जी बहुत शुक्रिया

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  5. गौतम जी रचना को पढने और सराहने के लिए आपका धन्यवाद

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  6. संसार वह प्रसाद है - जो ईश्वर ने हमें दिया है - निज कर्म करने का स्थल, माध्यम | इसे नकार देना भी ठीक नहीं | यह हमारी कर्म भूमि भी है, कर्म फल की भूमि भी !! आवश्यक है कि इसे जस का तस स्वीकार किया जाये - उसके बिना इसके पार भी नहीं हुआ जा सकता !

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  7. Shilpa ji, uchit aur uttam kaha hai aapne
    Dhanyawaad

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