भावना ही भावना का संसार है संसार
मन में उपजी इच्छाओं का भार है संसार
अपने मन की कहता हर कोई सुनना चाहता
पर स्वयं से बात करने का ही सार है संसार
पर स्वयं से बात करने का ही सार है संसार
जीवन का हर लम्हा अनमोल सी सीख लिए
आदमी खिलौना है और कुम्हार है संसार
आदमी खिलौना है और कुम्हार है संसार
व्यर्थ हो जाता है वक़्त निरर्थक बहस से
वक़्त को अमूल्य समझें तो बहार है संसार
वक़्त को अमूल्य समझें तो बहार है संसार
नज़रिया ऐसा हो की कमी नहीं खूबी देखें
हर तरफ प्रेरणा देखने का त्यौहार है संसार
हर तरफ प्रेरणा देखने का त्यौहार है संसार
अनित्य है संसार नित्य है मगर आत्मा
आत्मा परमात्मा के इलावा बेकार है संसार
आत्मा परमात्मा के इलावा बेकार है संसार
जीवन की नाव की पतवार निश्चिन्तता है
सुख-दुःख से हमेशा ही पार है संसार
सुख-दुःख से हमेशा ही पार है संसार
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
आशा
bahut saral aur sunder.....
ReplyDeletesundar bhavpurn rachna...
ReplyDeleteआशा जी आपका भी बहुत आभार और रचना को सराहने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteमृदुला जी बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteगौतम जी रचना को पढने और सराहने के लिए आपका धन्यवाद
ReplyDeleteसंसार वह प्रसाद है - जो ईश्वर ने हमें दिया है - निज कर्म करने का स्थल, माध्यम | इसे नकार देना भी ठीक नहीं | यह हमारी कर्म भूमि भी है, कर्म फल की भूमि भी !! आवश्यक है कि इसे जस का तस स्वीकार किया जाये - उसके बिना इसके पार भी नहीं हुआ जा सकता !
ReplyDeleteShilpa ji, uchit aur uttam kaha hai aapne
ReplyDeleteDhanyawaad