Saturday, 29 October 2011

मानवता

इंसानियत के मायने क्या से क्या हो गए
ईश्वर ने बनाया था इंसान सोचकर ये
इंसानियत बढ़ाएगा
अपने मन बुद्धि को इसी में लगाएगा
जगत को प्रभुमय जानेगा
अपने सद्गुणों से संसार चमकाएगा
लेकिन इंसान जड़ क्या चेतन का तिरस्कार करने लगा
वस्तुवादिता और वासना का ग़ुलाम बन बैठा
उसने ईश्वर के आस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा दिए
वे धर्म,मज़हब,जाति,क्षेत्र में बंटते चले गए
झूठ,घमंड,क्रोध दंभ को बढाने लगे

और सत्य,करुणा,अहिंसा को कायरता बताने लगे
भगवान् सब देखता रहा
मन ही मन बस ये बोला
मैंने इन्हें भगवान् बनने भेजा था
लेकिन ये पशुता को प्राप्त हो रहें
फिर उसने उन्हें भी देखा जो
सत्य के मार्ग से नहीं डिगे थे
भगवान् खुश हो गया
उसे अपना संसार सार्थक लगने लगा
आइये उस परम प्रभु की ख़ुशी में शामिल हो जाएँ
अंतःकरण को राग द्वेष से मुक्त कर प्रभु की ख़ुशी बढ़ाएं 


10 comments:

  1. बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...

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  2. sundar abhivyakti...

    ***punam***

    bas yun..hi..

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  3. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  4. मानव होने के अर्थ पर सोचने के लिये विवश करती हुई सुंदर अभिव्यक्ति.

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  5. क्या से क्या हो गया मनुष्य !
    चिंतनपरक कविता।

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  6. रचना के भाव बहुत अच्छे हैं।

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  7. हर युग में,चंद लोग ही सत्यमार्गी रहे हैं। यह दुनिया जितनी भी जीने लायक है,बस उन्हीं की बदौलत!

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