इंसानियत के मायने क्या से क्या हो गए
ईश्वर ने बनाया था इंसान सोचकर ये
इंसानियत बढ़ाएगा
अपने मन बुद्धि को इसी में लगाएगा
जगत को प्रभुमय जानेगा
अपने सद्गुणों से संसार चमकाएगा
लेकिन इंसान जड़ क्या चेतन का तिरस्कार करने लगा
वस्तुवादिता और वासना का ग़ुलाम बन बैठा
उसने ईश्वर के आस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा दिए
वे धर्म,मज़हब,जाति,क्षेत्र में बंटते चले गए
झूठ,घमंड,क्रोध दंभ को बढाने लगे
मन ही मन बस ये बोला
मैंने इन्हें भगवान् बनने भेजा था
लेकिन ये पशुता को प्राप्त हो रहें
फिर उसने उन्हें भी देखा जो
सत्य के मार्ग से नहीं डिगे थे
भगवान् खुश हो गया
उसे अपना संसार सार्थक लगने लगा
आइये उस परम प्रभु की ख़ुशी में शामिल हो जाएँ
अंतःकरण को राग द्वेष से मुक्त कर प्रभु की ख़ुशी बढ़ाएं
ईश्वर ने बनाया था इंसान सोचकर ये
इंसानियत बढ़ाएगा
अपने मन बुद्धि को इसी में लगाएगा
जगत को प्रभुमय जानेगा
अपने सद्गुणों से संसार चमकाएगा
लेकिन इंसान जड़ क्या चेतन का तिरस्कार करने लगा
वस्तुवादिता और वासना का ग़ुलाम बन बैठा
उसने ईश्वर के आस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा दिए
वे धर्म,मज़हब,जाति,क्षेत्र में बंटते चले गए
झूठ,घमंड,क्रोध दंभ को बढाने लगे
और सत्य,करुणा,अहिंसा को कायरता बताने लगे
भगवान् सब देखता रहा मन ही मन बस ये बोला
मैंने इन्हें भगवान् बनने भेजा था
लेकिन ये पशुता को प्राप्त हो रहें
फिर उसने उन्हें भी देखा जो
सत्य के मार्ग से नहीं डिगे थे
भगवान् खुश हो गया
उसे अपना संसार सार्थक लगने लगा
आइये उस परम प्रभु की ख़ुशी में शामिल हो जाएँ
अंतःकरण को राग द्वेष से मुक्त कर प्रभु की ख़ुशी बढ़ाएं
बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesundar abhivyakti...
ReplyDelete***punam***
bas yun..hi..
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमानव होने के अर्थ पर सोचने के लिये विवश करती हुई सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteSUPERB POST
ReplyDeleteक्या से क्या हो गया मनुष्य !
ReplyDeleteचिंतनपरक कविता।
bahut achchhi prastuti
ReplyDeletesundar rachna .
ReplyDeleteरचना के भाव बहुत अच्छे हैं।
ReplyDeleteहर युग में,चंद लोग ही सत्यमार्गी रहे हैं। यह दुनिया जितनी भी जीने लायक है,बस उन्हीं की बदौलत!
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