Tuesday, 4 October 2011

So kat janae peer paraii


सो कत जानै पीर पराई।
जाकै अंतरि दरदु न पाई।। टेक।।
सह की सार सुहागनी जानै। तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै।
तनु मनु देइ न अंतरु राखै। अवरा देखि न सुनै अभाखै।।१।।
दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी। जिनि नाह निरंतहि भगति न कीनी।
पुरसलात का पंथु दुहेला। संग न साथी गवनु इकेला।।२।।
दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ। बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ।
कहि रविदास सरनि प्रभु तेरी। जिय जानहु तिउ करु गति मेरी।।३।।

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