सुमित अपने मजदूरी के काम से संतुष्ट था ।उसे इस बात की ख़ुशी थी की वो चोरी या किसी अपराध द्वारा पैसा नहीं कमा रहा और ना ही किसी का अहित करके ।
शाम को मजदूरी से लौटने के बाद वो अपने बच्चों के साथ दिन बिताता और उनमे भी वो अच्छे संस्कार डालता ।वो हमेशा अपने बच्चों को बताता की शान्ति,दया,प्रसन्नता,मानवता,अहिंसा,सहिष्णुता बहादुर व्यक्ति ही धारण करता है ।
वो उनमे परोपकार,जिजीविषा और कभी भी किसी का अहित न करने की प्रेरणा भरता था ।
उधर भानु को अपने व्यवसाय को अधिक से अधिक बढाने की जल्दी थी उसे याद नहीं रहता था की उसने आखिरी बार अपने बच्चों से कब बात की ।
पत्नी से भी वो येही कहता था की देखो तुम लोगों के लिए ही जोड़ रहा हूँ । भानु की शामें अधिकतर बड़े अफसरों के साथ किसी बार में या अपने ही घर पर जहाँ वो उनसे पैसे के लेनदेन की बात करता या फिर क्लब में बीतती थी । भानु ने अपने व्यवसाय को बहुत बढाया व उसके मुताबिक उसने सात पुश्तों के बराबर पैसा जोड़ लिया । लेकिन भानु ये कभी न सोच पाया की अपने बच्चों के सामने ही दूसरों को रिश्वत देना,घर में शराब पीना ये कहके की ये तो रईसों के ठाठ हैं,बच्चों की पढ़ाई का मतलब सिर्फ बड़े स्कूल को समझना जाने अनजाने कैसा संस्कार वो अपने बच्चों को दे रहा है ।
बहरहाल वक़्त ने पंख लगाये और फिर से घडी २५ साल आगे घूम गयी ।
इधर भानु ने पढ़ाई में कमज़ोर अपने बेटे अंकित को खूब पैसे लगा के बहार विदेश से पढाई कराई थी और इधर सुमित के लड़के महेंद्र ने प्रतिस्पर्द्धी परीक्षा में प्रदेश में बाज़ी मारी थी ।
भानु के लाख कहने पर की अपने ही व्यवसाय को बढाओ अंकित नहीं माना व नौकरी करने पर ही जोर दिया ।एक तो पिता से उसकी बनती नहीं थी दूसरा वो अपने पिता को नौकरी द्वारा ही अधिक से अधिक पैसे कमा के दिखाना चाहता था । उधर महेंद्र को अपनी पढ़ाई के आखिरी सत्र से ही बड़ी बड़ी कंपनियों के प्रस्ताव आने लगे ।
संयोगवश दोनों एक ही कंपनी में एक ही पद पर अलग अलग विभाग में नियुक्त हुए । बहुत बड़ा पद था व उसी तरह से उनकी आय ।
कंपनी ने बहुत ख्याल रखा था अपने उच्च अधिकारियों का दोनों को ही मकान व गाडी आदि सब मिले थे । एक तरफ अंकित को इन सबसे कुछ फर्क न पड़ा वहीँ महेंद्र अपने माता पिता को मिले नए घर में लाके,उन्हें हर तरह की ख़ुशी देके बहुत खुश था । अंकित के लिए कंपनी सिर्फ एक पैसे कमाने का माध्यम थी परन्तु महेंद्र के लिए कंपनी की बढोत्तरी प्राथमिकता थी ।
महेंद्र जहाँ नियत समय से १५ मिनट पहले ऑफिस पहुँचता वहीँ अंकित १५ मिनट बाद । महेंद्र जहाँ ऑफिस के काम के बाद भी काफी देर तक रहता व अपने अधिकारियों को कंपनी के लाभ के अधिक से अधिक
उपाय सुझाता रहता वहीँ अंकित ऑफिस से १५ मिनट पहले ही निकल पड़ता ।
अंकित और महेंद्र में बातचीत होना लाजिमी थी दोनों ही कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों में से थे । दोनों में ही परस्पर विरोधी स्वभाव होने पर भी ठीक दोस्ती थी क्यूंकि अपने सीधे सौम्य स्वभाव के कारण महेंद्र
शांत व धैर्य से बात सुनता वहीँ पैसे को ही प्राथमिकता पर रखे अंकित अधिकतर आवेश में ही रहता वह महेंद्र के ऐसे स्वभाव पर मन ही मन हँसता और उसे निरा मूर्ख ही समझता था,वह अधिकतर बातों ही बातों में
महेंद्र को कंपनी को चूना लगा के पैसा बनाने की तरफ इशारा करता लेकिन महेंद्र कुछ तो समझ न पाता और कुछ खुद भी हंसके टाल देता ।
सबकुछ ठीक चल रहा था महेंद्र जहाँ अपनी तनख्वाह को बहुत पर्याप्त मानता था वहीँ उससे कहीं ज्यादा पैसा अंकित रिश्वत लेके रोज़ बनाता था फिर भी असंतुष्ट रहता था ।
लेकिन दिक्कत तब आई जब महेंद्र का भी अंकित के विभाग में स्थानान्तरण हो गया ।
एक बहुत बड़े व्यवसायी से बड़ी रकम ले चुके अंकित को मालूम न था की उस व्यवसायी का माल महेंद्र द्वारा गुणवत्ता में ठीक न होने की वजह से रोक दिया जायेगा ।
अंकित ने अनुनय विनय से महेंद्र को मनाना चाहा लेकिन महेंद्र अपने फैसले पर अडिग था, वो इतना बड़ा धोखा अपनी कंपनी के साथ नहीं कर सकता था ।
उस व्यवसायी ने भी महेंद्र को रिश्वत देने का प्रयत्न किया लेकिन महेंद्र न माना ।
उस व्यवसायी का आर्डर रद्द कर दिया गया आखिर अंकित को लिए गए पैसे वापस देने पड़े और उसने उसी वक़्त से महेंद्र को दुश्मन मान लिया ।
अब अंकित के निशाने पर महेंद्र रहने लगा उसने उच्च अधिकारियों के साथ मिलके सबसे पहले तो उसका ऐसे विभाग में स्थानान्तरण कराया जहाँ से उनकी काली कमाई को ग्रहण न लगे ।
इसके बाद महेंद्र पर झूठे आरोप लगवाए व अधीनस्थ लोगों को भी मिलाके आरोप साबित भी कर दिए ।
महेंद्र नौकरी से निकाल दिया गया ।
उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की कैसे अपने सत्यप्रिय पिता से झूठ बोले,वो ये नहीं सोच पाता की कैसे अपने पिता को बताये की उनकी सिखाई इमानदारी के बदले में उसे ये मिला है ।
इतना ही नहीं अंकित ने महेंद्र दूसरी जगह भी आसानी से नौकरी न कर पाए इसलिए सभी समान बड़ी कंपनी में सर्कुलर भिजवाया था जिसमे महेंद्र की बेईमानी का बखान था ।
परन्तु सत्य परेशान हो सकता है कभी भी हार नहीं सकता । आखिर महेंद्र को फिर से अपने पदानुरूप नौकरी मिली और वो फिर से प्रगति करने लगा ।
लेकिन विधि ने जैसे कुछ और ही लिखा था ।
इधर बेतहाशा पैसे कमाने के बाद बड़ा घोटाला करके अंकित ने नौकरी छोड़ दी व अपने व्यवसाय पर ध्यान देने लगा । उसने जिस प्रमुख अधिकारी के साथ मिलके काली कामायी करी थी उसे भी अपने व्यवसाय में साझेदार बनाया। शुरू में तो सब ठीक थे लेकिन कुछ ही साल में उसे लगने लगा की उसकी कंपनी घाटे में चल रही है लेकिन जब तक वो समझ पाता कंपनी के अधिकतर शेयर का मालिक उसका साझेदार हो चुका था और उसने अंकित को जालसाजी करके कंपनी से बाहर कर दिया ।
अंकित की पूरी कमाई उसके इसी व्यवसाय में लगी थी और अब वो सड़क पर आ चुका था । पिता से अपना व्यवसाय खोलते ही वो अलग हो चुका था इसलिए उनके पास किस मुंह से जाता ।
उसके अन्दर ये भाव आ गया था की उसने जिस तरह से धोखे से पैसे बनाये थे वे वैसे ही चले गए । उसे ये लगने लगा था की उसके पिता ने भी अगर उसे अच्छे संस्कार दी होते तो वो कम से कम ऐसे हाल पर न होता ।
कुछ महीने गुज़र गए और अंकित फिर से किसी नौकरी करने की सोच के निकला लेकिन उसके किए हुए घोटालों का सच सामने आ चुका था अतः कहीं भी उसे काम न मिलता ।
इसी तरह कई जगह से नाउम्मीद होके वो एक और कंपनी में साक्षातकार हेतु गया ।
वहां अपनी बारी आने पर जिस शख्स को उसने सामने देखा वो महेंद्र था । महेंद्र अब तक अच्छा काम करते हुए उस कंपनी के निदेशक पद पर पहुँच चुका था ।
महेंद्र को देखके वो बिना कुछ बोले शर्मिंदगी से वापस लौटने लगा की तभी महेंद्र ने उसे रोका ।
महेंद्र सब समझ चुका था और उसने कुछ भी देर में उसे उसी कंपनी में उसके पदानुरूप पद देकर नौकरी पर रख लिया ।
कहानी कुछ प्रश्न सामने रखती है :
१. क्या बच्चों के संस्कार का उन पर पूरी उम्र असर रहता है ?
२. क्या महेंद्र के खिलाफ अंकित का प्रतिशोध की भावना रखना ठीक था ?
३. क्या अंकित अब दुबारा धोखा नहीं करेगा ?
४. क्या अंकित के ह्रदय में प्रयाश्चित की भावना उपजेगी ?
५. क्या महेंद्र ने अंकित को दुबारा मौका देके ग़लत किया ?
६. क्या अंकित ने जो ग़लत किया वो भानु द्वारा दी गए संस्कार थे ?
७. क्या ये सत्य है की सत्य परेशान हो सकता है हार नहीं सकता ?
८. क्या हम सबके अन्दर ये दो चरित्र अंकित और महेंद्र या सुमित और भानु हमेशा रहते हैं ?
९.क्या बुराई को अच्छाई से ही दूर किया जा सकता है ?
संस्कार आजीवन साथ रहते हैं और हमारे कर्मों को नियत करते हैं...!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...संस्कार जीवन में बहुत महत्व रखते हैं. सत्य और ईमानदारी की अंतिम जीत अवश्य होती है..
ReplyDeleteप्रश्न बहुत से हैं
ReplyDeleteएक का जवाब हां होना चाहिए।
nice story
ReplyDeletewhat we learn in childhood stays with us but bad habits can be controlled or change at any age
bahut badhiyaa
ReplyDeleteहाँ ....संस्कारों की पैठ जीवन में बहुत गहरे तक होती है ...... और जीवन भर साथ रहती है.....
ReplyDeleteमनुष्य का मूल व्यक्तित्व सामान्यतः नहीं बदलता ..सभी डाकू वाल्मिकी से ऋषि वाल्मिकी कहाँ बनते हैं !
ReplyDeleteसत्य,संस्कार पर सुंदर कहानी.संस्कार से ही स्वभाव बनता है.स्वभाव कभी नहीं बदलता.
ReplyDeleteसंस्कार और स्वभाव बचपन से ही जुड़े होते हैं ... महेंद्र सत्य की मूर्ति है .. तो उसने एक अवसर दिया है अंकित को सुधरने का ... लेकिन सुधार होगा या नहीं यह कहना तो मुश्किल है ...आज के समय में तो कहीं महेंद्र ने फिर से तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मार ली ?
ReplyDeleteकहानी में जहाँ आपने लिखा है सत्य हार नहीं सकता ...वहाँ शायद महेंद्र का नाम आना था .. आपने अंकित लिखा हुआ है .
संगीता जी बताने हेतु धन्यवाद,ठीक कर लिया है।
ReplyDeleteअक्सर संस्कार हमारे साथ होते हैं पर परिस्थितियाँ कभी-कभी उन्हें डिगा भी देती हैं...
ReplyDeleteप्रश्न बहुत से कर डाले हैं आपने.परन्तु कुछ बातें हैं कि संस्कार आजीवन रहते हैं बशर्ते उन्हें ग्रहण किया जाये.दूसरा स्वभाव कभी नहीं बदलता.ये पश्चाताप और पल भर में सुधारना फिल्मो में होता है हकिक़त में नहीं.बहुत मुमकिन है महेंद्र फिर धोखा खाए.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! शानदार एवं सार्थक प्रस्तुती!
ReplyDeleteबोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाए ?
ReplyDeleteसंगीता जी की बात से सहमत।
ReplyDeleteसादर
कहानी यदि लघु कथा होती तो भी इतनी ही प्रभावशाली होती ।
ReplyDeleteबचपन में मिले संस्कार तो निश्चित ही जीवन भर काम आते हैं और कायम भी रहते हैं । कहते हैं बच्चे कोरे कागज़ जैसे होते हैं , उनपर जैसा चाहो रंग भर सकते हो ।
लेकिन गलत सोच वाले व्यक्ति को सुधारना बड़ा मुश्किल होता है । चोर चोरी से जाए , पर हेरा फेरी से न जाए । पापी को उसके पाप की सजा ज़रूर मिलती है , भले ही देर से ही सही ।
महेंद्र का अंकित को अवसर देना वाद विवाद का विषय हो सकता है ।