माँ बाप की आँखों का तारा
छोटे भैया का बहन सहारा
बाबुल के आँगन में खेलती हुई
माँ के आँचल में नाक पोंछती हुई
ना उठा पाने पर भी भाई को गोद में लिए
चल देती है बहन कह चल भैया घूमे
बचपन में बहन नहीं जानती ये सवाल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
पढ़ाई लिखाई खुद भी करतीं भैया को भी पढ़ाती
जब परीक्षा आ जाए तो सारे पाठ सुनती
माँ की डांट सुनके भी हंसके गले लग जाती
भैया को डांट पड़े तो बहन नहीं सुन पाती
पिता के आते ही सारे काम काज छोड़ देती
थके पिता के लिए ले चाय पानी दौड़ पड़ती
बेटी के रहते जाने कैसे बीत जाते ढेरों साल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
बड़े होते ही माँ बेटी को बताने लगती
जाना है तुझे ससुराल गुण सिखाने लगती
माँ आपको और पापा को छोडके मैं नहीं जाऊँगी
आप भी नहीं रह पायेंगे मैं भी नहीं रह पाऊँगी
लेकिन लेके डोली जब आते हैं दुल्हे राजा
माँ अपने अंक में भर लेती हैं कहके बेटी ना जा
पिता अपने अश्रुओं को छुपा होता बेहाल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
जब कभी भी मायके का नाम सुनती
बेटी अपने ह्रदय में माँ-बाप का नाम सुनती
जब कभी कोई मायके से आ जाता है
दिन वोही होली दिवाली उसका हो जाता है
माँ से लिपटके रोती है जाने नहीं देती
ससुराल में हूँ ये सोचके आसूं बहने नहीं देती
आखिर भीग जाते हैं आँखें और गाल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
पिता के लिए बेटी हमेशा बिटिया ही रहती
दूर होके भी बेटी हाल चाल ले ही लेती
माँ कुछ भी बेटी के पसंद का बनाती उदास हो जाती
येही कहती अभी बिटिया होती तो साथ खाती
माता पिता को तो अपना कष्ट बताने की आदत नहीं रहती
लेकिन ससुराल में रहके भी बेटी बिन बताये जान जाती
दवाई की हिदायतों को माँ बाप नहीं पाते टाल
बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
beti her utaar chadhaaw ko samajhti hai ...
ReplyDeleteबहुत अच्चा ..बेटियों के मन का दर्द
ReplyDeleteबयां हो गया
क्या हो अगर यह प्रथा बदल जाए?
ReplyDeleteबेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल...
ReplyDeleteयह प्रश्न तो सदा मुखर रहता है मन में...!आपने शब्द दे दिए....
भावुक कर गयी रचना!
मार्मिक और सारगर्भित रचना.
ReplyDeleteMARMIK POST
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज की एक और अफसोसजनक प्रथा...काश ऐसा न होता...बेटी कहीं भी रहे पर उसका मन सदैव माता पिता के पास रहता है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteयही तो सांसारिक रीति-रिवाज हैं।
ReplyDeleteये संसार की रीत है और इसको निभाना तो पड़ता ही है ... श्रृष्टि के सामजस्य के लिए भी ऐसा करना होता है ...
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