Friday, 4 November 2011

ईश्वर भी लड़का लड़की में भेद-भाव नहीं रखता


क्या कुसूर था मेरा
जो मैं दुनिया भी न देख पायी
मम्मी मैं तुमसे पूछती हूँ
क्या बता सकती हो
पापा आप को याद है
कैसे सुहाने नाम आपने रखे थे
मम्मी के साथ मिलके
मेरे और भैया दोनों के
कितने सपनो में खो गए थे
आप दोनों
जानते हैं मैं उस वक़्त हंस रही थी


जब आप और मम्मी
मीठी मीठी लड़ाई कर रहे थे
आप कहते पहले लड़का
और मम्मी कहती क्या पता
और मैं सोच रहती थी
अरे अभी तो मैं आ रही हूँ
आते ही आप दोनों को
ख़ुशी से निरुत्तर कर दुंगी
और फिर भैया को भी ले आउंगी
लेकिन मुझे नहीं मालूम था
जो आप माँ को कह रहे थे
'देखो पहले लड़का ही आना चाहिए'

 
नहीं जानती थी मैं 
आप मेरे आने से पहले मुझसे
ऐसी नफरत करेंगे
दुनिया में ही नहीं आने देंगे
मम्मी तुम दुखी न हो
मुझे भी दुःख होता है
पर माँ तुम चाहती तो मैं
जन्म ले सकती थी
तब तुमने ऐसा क्यूँ नहीं चाहा
माँ तुम्हे याद है
मैं जब पेट में थी
तुम प्यार से मुझे छूती थी
माँ मुझे तुम्हारा स्पर्श
बहुत प्यारा लगता था
मैं सोचती थी एक दिन
इन्ही हाथों में झूला झूलूँगी
माँ आपने पापा ने ऐसा क्यूँ किया
लड़की हूँ इसलिए पैदा नहीं किया
मम्मी आपने मुझे इतने दिन पेट में रखा
मेरे साथ कितनी सारी बातें की 

मेरे लिए वो ख़ुशी भी कम नहीं
मम्मी बातें मैं भी आपके साथ करती थी
आप सुन नहीं पाती थी
जब पापा आपको तैयार होने को कहते
मैं झूम जाती थी घूमने की सोच के
रातों को आप दोनों की प्यारी प्यारी लोरियां
माँ मैं कैसे भूल जाऊं वो थपकियाँ
मुझे लगता था बाहर की दुनिया
कितनी अच्छी प्रेम से सराबोर है
मैं जल्दी से जल्दी
दुनिया में आना चाहती थी
मुझे क्या मालूम था ये दुनिया
मुझे नहीं चाहती थी
माँ मैं दहल गयी थी उस दिन
जब सुना की पापा मुझे मारना चाहते
मर तो मैं उसी वक़्त गयी थी
जीने की इच्छा जो नहीं रह गयी थी
मैं खुद भी इस निर्दयी,क्रूर समाज
को नहीं देखना चाहती थी
मैं खुद भी बनावट और पशुत्व
प्राप्त नहीं करना चाहती थी
माँ वैसे पशु भी ऐसा कहाँ करते हैं
बच्चों में भेदभाव कहाँ रखते हैं
एक तरह से धन्यवाद तुम्हारा माँ
मुझे ऐसे जगत में ना आने देने का
माँ तुम भी तो नारी हो और फिर भी
तुमने मेरी ज़िन्दगी मुझसे छीन ली
माँ-पापा जीवन तो परमात्मा देता है
फिर आप लोगों ने मुझे मृत्यु क्यूँ दे दी
खैर माँ मैं जा रही हूँ
आपको ख़ुशी मिले येही प्राथना है
मैं न आ सकी मेरा भैया आये येही दुआ है
माँ मैंने तो भैया के साथ जाने कितने
सोचे रखे थे खेल जो हमे थे खेलने
माँ पापा हो सके तो एक वायदा करो
जो भैया की जगह बहन आई
तो उसे आने देना
अपने उपवन को महकाने देना
अपने जीवन की फुलवारी में खेलने देना
उसकी तोतली बोली में दुनिया की बनावट भुला देना
मैं समझूंगी मैं ही दुबारा दुनिया में आ गयी
माँ पापा बोलो आप ऐसा करोगे ना
कभी भी लड़के लड़की में भेद नहीं करोगे ना 
नारी के बिना इस सृष्टि  का आस्तित्व नहीं होता
ईश्वर भी लड़का लड़की में भेद-भाव नहीं रखता 




11 comments:

  1. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...कब समाज की सोच बदलेगी...

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  2. मार्मिक ...सच है ईश्वर भेद नहीं करता तो हम कौन हैं ....

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  3. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति!

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  4. आपका ब्लॉग भी बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक लगा । अभिव्यक्ति भी मन को छू गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद . ।

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  5. तभी तो वक़्त आने पर ईश्वर इस भेदभाव का हिसाब करते हैं ...

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  6. आह्वान करते. संवेदनशील कविता.... बहुत गंभीर विषय पर एक सशक्त अभिव्यक्ति...धन्यवाद...

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  7. bahut achche vishay par likha hai jaagruk karti rachna kaash sabhi yesa samjhe.

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  8. मार्मिक कविता।
    ईश्वर भी लड़का लड़की में भेद नहीं करता।
    सार्थक और मननीय संदेश।

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  9. soch mein parivartan laane ki zaroorat hai....kab aayega parivartan ??
    shaayad kabhi nahin kyun ki ye samaaj aise hi chala aa raha hai..aur aise hi chalega...kuchh log iske liye aavaz uthayenge..bas keval aavaz...!! haan, apvaad hamesha hote rahe hain ..hote rahnge....sabko ek tarazoo mein nahin rakha ja sakta hai...!! is prayas se agar 4 logon ki soch mein bhi fark padta hai to samjhiye ki jeevan safal hua..!!

    ***punam***
    bas yun hi

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