रमेश आज फिर ऑफिस के लिए देर हो रहा था ।
रात देर तक ऑफिस के काम ही निपटाता रहा और इस समय उसे सिर्फ ऑफिस जल्स से जल्द पहुँचने की देरी थी ।
तभी माँ ने कहा- बेटा !
रमेश - माँ ! कल गाडी बनवाने लगा था आज दवाई ले आऊंगा ।
माँ- अच्छा बेटा ।
तभी उसकी पत्नी सविता ने आकर उसे एक बड़ा थैला पकडाया ।
सुनो जी सर्दी आ गयी है इसे लानडरी में देते आना और हाँ आज राहुल के स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है तो मैं चली जाउंगी। आप ऐसा करना की जेवेलर के यहाँ से जो हार पड़ा है लेते आइयेगा ।
सविता को शायद इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता था की वो रमेश को माँ की दवाई के बारें में भी कह दे या कदाचित सविता अधिकतर रमेश को उसकी माँ के सामने ऐसे ही अपने काम बताती थी ।
उसका अहम् पुष्ट होता था और वो अपनी सास को ये दिखा देती थी की रमेश पहले उसका काम करेगा और घर की मालकिन सास नहीं बहू है इसलिए घर भी सविता के अनुसार ही चलेगा । रमेश की माँ तो इसे भी बहू की नादानी समझती थी ।
शाम होते होते रमेश के पास सविता के तीन फ़ोन आ चुके थे और तीनो अलग अलग कामों के ।
रमेश घर पहुँचने वाला था लेकिन उसे लग रहा था की वो कुछ भूल रहा है ।
जैसे ही घर के आँगन में कदम रखा की माँ को देखा और उसे याद आ गया की वो दवाई फिर से भूल चूका था ।
रमेश सीधे माँ के कमरे में गया और दवाई की पोटली देखने लगा।
माँ - बेटा क्या हुआ ।
रमेश -माँ इसमें देखो वो दवाई थोड़ी बची हो तो काम चला लो ,कल ले आऊंगा ।
माँ - कोई बात नहीं बेटा,कल ले आना ।
रमेश की पिता को गुज़रे कुछ ही महीने हुए थे उनके रहते हुए रमेश को कभी माँ की इस तरह सुध नहीं लेनी पड़ी । पिता स्वयं ही अपना व माँ का ख्याल रखते थे ।
उनके बाद रमेश पर ही ये ज़िम्मेदारी आ गयी थे जिससे अभ्यस्त होने में शायद उसे कुछ वक़्त की दरकार थी।
बहरहाल रमेश ने बड़े ही आत्मविश्वासी ढंग से माँ को आश्वस्त किया की कल वो दवाई ज़रूर ले आएगा ।
रमेश को भी इस बात का भान था की माँ की दमा की दवाई घर में ना होने पर रात बिरात तबियत खराब होने पर बहुत मुश्किल सामने आ सकती है ।
अगले दिन रमेश का ऑफिस बहुत सजा हुआ था उसके यहाँ कंपनी के सबसे बड़े अधिकारी आये थे ।
शाम देर तक मीटिंग्स चलती रहीं लेकिन उस बीच भी बीवी के कामों की फेहरिस्त एस मेस द्वारा फ़ोन पर पहुँच रही थे जिनमे से सन्डे को अभी से सिनेमा की टिकटें खरीदना भी था ।
खैर शाम को घर पहुंचा तो बीवी गेट पर ही प्रतीक्षारत थी आते ही रमेश का हाथ पकड़कर बड़े ही मनोहारी ढंग से कमरे की तरफ ले जाने लगी और उससे पूछने भी लगी -
क्यूँ जी टिकटें ले आये हो न ।
रमेश - हाँ, लेकिन आज बड़ा स्पेशल ट्रीटमेंट दे रही हो ।
बीवी - हां,अभी बताती हूँ चलिए चाय पानी कर लीजिये आज आपके पसंद का खाना बना है ।
तभी रमेश ने माँ के कमरे की तरफ देखा तो बीवी का हाथ छुड़ाके समझा के की अभी आता हूँ माँ के पास जाने लगा ।
रमेश अपने रुमाल से अपने चेहरे के पसीने को पोछते हुए पहुंचा।
माँ अभी सात बजे हैं मैं नौ बजे तक तुम्हारी दवाई ले आऊंगा।
माँ- कोई बात नहीं बेटा कल ला देना ।
रमेश जाने लगा तो माँ बोली - बेटा,कुछ देर रुक जा फिर चले जाना ।
रमेश जाने लगा तो माँ बोली - बेटा,कुछ देर रुक जा फिर चले जाना ।
माँ उठी और एक कटोरी में कुछ निकाल के ले आई।
रमेश- अरे वाह गाज़र का हलुवा वो भी तेरे हाथ का माँ, क्या बात है ।
तभी रमेश ने माँ की आखों में देखा और उसे कुछ याद आया ।
माँ ये तो तुम ख़ास मेरे जन्मदिन पर ही बनाती हो ।
माँ- हाँ बेटा वोही दिन तो है आज ।
रमेश की आखें भीग चुकी थी ।
तभी पत्नी सविता की आवाज़ आई- ऐजी,चाय ठंडी हो रही है ।रमेश बड़े आत्मविश्वास से बोला- सविता,खाना भी यहीं ले आना।
chaliye halwe kee mithaas ne maa kee mithaas bata di aur zindagi mithi ho gai...
ReplyDeleteमाँ का प्यार भी मिला होता है उसकी बनायीं चीज़ों में....
ReplyDeleteसुंदर सन्देश देती कहानी,उत्तम पोस्ट ,अच्छी लगी ,
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है,
डॉ॰ मोनिका शर्मा has left a new comment on your post "माँ":
ReplyDeleteमाँ का प्यार भी मिला होता है उसकी बनायीं चीज़ों में....