Thursday, 15 December 2011

हे परमेश्वर तेरे एक अंश में करोड़ों ब्रह्माण्ड बसते हैं




राम परमात्मा परमेश्वर राम ब्रह्मा विष्णु महेश के भी ईश्वर
राम जगत के पालनहार राम ही तो समस्त जगत के ईश्वर


जीवन गुज़रता रहा प्रभु संसारी बन के 
लोगों से राग द्वेष रखते मोह माया में बंधते 

कभी मान कभी धन को ही का उद्देश्य बनाता रहा 
कभी दोस्तों में घिरके दोस्ती को ही सब कुछ समझता रहा

नहीं जाना पाता मैं जीवन का अनमोल तत्त्व मेरे मालिक 
हे दीन दयालु,अकारण कृपा करने वाले तू सबका मालिक

अब राम नाम का रस मुझ पर छा भी जाने दे 
मुझ पापी कुविचारी पर अपनी करुणा बरसा दे

संसार को ही प्रधान समझके इसी में सुख ढूंढता रहा 
हे परमपिता तूने बख्शी ज़िन्दगी मैं तुझसे ही दूर रहा 

तुम ही हो असली शाश्वत अनंत सुख के स्थान 
और मैं मन बुद्धि के आनंद को ही देता रहा मान

हे प्रभु जीव तुझे भूल के कैसे जीव कहला सकते हैं
हे परमेश्वर तेरे एक अंश में करोड़ों ब्रह्माण्ड बसते हैं


प्रभु मैं कहाँ कीचड कहाँ आप आसमानों के आसमान 
मैं संसार में आसक्त कहाँ आपका पतित पावन नाम 


प्रभु मायिक संसार व अमायिक भी तुम्हारे ही रूप हैं

हे परमेश्वर तेरे एक अंश में करोड़ों ब्रह्माण्ड बसते हैं


राम नाम के बारें में मैं मूर्ख भला क्या कह सकता हूँ 
राम रुपी सागर के सामने तो मैं एक बूँद भी नहीं हूँ 

पर हे करुनानिधान हे जीवन के सार,हे भगत सुख दायक 
अपनी भक्ति का प्रसाद दे के तुम बना लेते हो अपने लायक 

हे परमात्मा,जगत तुम्हारी ही त्रिगुणी माया से घिरा है 
अज्ञानवश होके जीव अपने स्वरुप को भूल जाता है  

तुम्हारी माया का निस्तार सिवाय तुम्हारे नहीं हो सकता है
जोग जप तप नहीं तुम्हे तो तुम्हारी कृपा से पाया जाता है


हे जगतगुरु वेदों को नमस्कार जिन्होंने तुम्हारा गुणगान किया है 
गीता रामायण उपनिषद में तुम्हारी महिमा का ही गान हुआ है 

हे प्रनतपालक सत्संग,संतों का साथ ये जीव येही चाहता है 
हे परमेश्वर तेरे एक अंश में करोड़ों ब्रह्माण्ड बसते हैं

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