राम का नाम सबसे पावन,राम हैं परमात्मा परमेश्वर
मंगलों के मंगल मूल हैं प्रभु चरणकमल अति सुन्दर
है ये राम कथा,है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
मंगलों के मंगल मूल हैं प्रभु चरणकमल अति सुन्दर
है ये राम कथा,है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
बैकुंठ भी जिसके आगे स्वयं श्रीराम को न सुहाते
ऐसी है अयोध्या उत्तर में सरयू जिसके किनारे
वहां चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ हुए महान
जिनके पावन घर अवतरित हुई चार संतान
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को
प्रगटे श्रीराम रानी कौशल्या के बालक बनने को
राम रंग में रंगे हुए सुमित्रा के लक्ष्मण
कैकेयी के थे भक्तमूर्ती भरत व शत्रुघन
श्रीराम के आते ही अयोध्या सुखों को सुख देने वाली हुई
सूर्य देव भी उत्सव यूँ देखने लगे चलने की प्रेरणा न हुई
शिव भगवान् काकभुशुंडी संग प्रभु आगमन में खो गए
अयोध्या की गली गली में राम नाम रटते वे सो गए
अघाते न थे वो देख प्रभु श्री राम की सुन्दरता
श्याम रंग के श्रीराम ऐसे,उपमा न दे सके उपमा
सुनाते रहें न ख़त्म हो है ये ऐसी कथा
है ये राम कथा है ये राम कथा जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
तरुनाई में आये अवध मुनिबर विश्वामित्र
माँगा श्री राम को हूँ असुरों से मैं खिन्न
चल दिए पिता की आज्ञा से मुनियों के दुःख हरने रघुनाथ
असुर मारीच व सुबाहु से निर्भय कर प्रभु ने किया मुनिओं को सनाथ
चले मुनिबर के कथनानुसार प्रभु जनकपुरी की ओर
राह में पाषाण बनी अहिल्या का उद्धार कर भेजा पतिलोक
जनकपुरी का कण कण माता जानकी के नाम में डूबा हुआ
प्रभु श्रीराम को वहां चरण रखते ही इस बात का आभास हुआ
गुरु आज्ञा से प्रभु भाई संग पुष्प हेतु गए थे फुलवारी
जनकसुता वहीँ सखियों संग गौरी पूजन को थीं आई
सखियों के दिखाने पर सिया जू ने प्रभु को एक झलक देखा
अनुज से प्रभु बोल उठे भ्राता इसके लिए धनुषयज्ञ हो रहा
शिव का महान धनुष उठाये न उठता किसी से
श्रीराम ने उठाके उसे तोड़ डाला बीच से
समाचार पाके दशरथ चले जनकपुर
आनंद न समाता था उनके उर
सीता श्री राम के मांडवी भरत जी के वाम भाग विराजित हुईं
उर्मिला लक्ष्मण से व श्रुतिकीर्ति शत्रुघन जी से ब्याही गयीं
बारम्बार आशीष देते जनक और सुनयना वर वधु को
रह रह कर पुत्रि विरह से पकड़ लेते वे अपने जी को
चले अवध दशरथ मन में सुमिरते प्रभु सुन्दरता
है ये राम कथा है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
समय बदला और बदला समय का रूप
रानी कैकेयी ने मांगे दो वर दो मुझको भूप
प्रथम राम वनवास पायें चौदह वर्ष को
दूसरा भरत हों अब राजा अवध को
सुनते ही राजा पृथ्वी पर गिर पड़ें
राम ने क्या बिगाड़ा तेरा कहने लगे
सुंदरी ! प्रिये मांग ले कोई दूसरा वर न भेज राम वन
मैं जी न पाऊंगा मेरे तो राम ही आधार हैं जीवन धन
राम आये सुमंत्र के बुलाने पर
देखा पिता गिरे हुए हैं धरती पर
वन की बात सुन कर भी प्रभु सम ही रहे
बोले पिताश्री इतनी सी बात पर क्यूँ व्याकुल हो रहे
चल दिए प्रभु माता जानकी और लक्ष्मण के संग वन
अवध अनाथ हो चुकी थी प्रभु ले चले सभी का मन
पुत्र वियोग में दशरथ ने त्याग डाला निज देह
आये भरत ननिहाल से बुलाये जब गुरुदेव
भाई के वन गमन की बात सुनकर भरत अचेत हो गए
और उसमे कारण खुद को मानकर मरणासन्न हो गए
उन्हें लगा उनके सारे पुण्य समाप्त हो गए
नहीं रहे उजाले जीवन में अन्धकार हो गए
भैया को मैंने वन भेजा है ऐसी पीड़ा उर में बैठ गयी
सवेरा होते ही राम को मनाने पूरी अवधपुरी चल दी
नंगे पाँव चलते हुए भी भरत संकोच में हैं भरे हुए
मुझ कुटिल का आना सुनकर कहीं भैया-भाभी कहीं और न चल दें
मेरे तो उनके सिवा कोई और सहारा नहीं है
आँखों में ऐसे हैं आसूं की किनारा नहीं है
मेरे कारण प्रभु नंगे पाँव चलके गए
भरत ऐसे चले जैसे अंगारों पे चलते गए
प्रभु भक्तवत्सल हैं अपनी कृपा ज़रूर करेंगे
माता जानकी की ओर देखके मुझे स्नेह ही करेंगे
भैया मुझे बचपन से ही प्रेम करते आये हैं
मेरे हारने पर भी खेल में मुझे जिताते आते हैं
प्रभु से मिलके भरत के हो गए सब दुःख दूर
चले पुनः अवध को चरण-पादुका के रस में चूर
करुनामय प्रभु श्रीराम की अमर है गुन-गाथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
चित्रकूट में रहके प्रभु चल दिए दंडक वन को
ताड़का त्रसित हो,गयी रावण को जगाने को
ले चला रावण धोखे से माता सीता को हरण करके लंका
उधर मारकर मारीच प्रभु राम, देख लक्ष्मण को हुए ससंका
सीता विरह में श्रीराम अत्यंत व्याकुल हो उठे
प्रभु लीला द्वारा कामी,वैरागी का अंतर बताने लगे
भेंट हुई प्रभु की हनुमान से जिन्होंने सुग्रीव से मिलवाया
बाली को दंड देकर कर प्रभु ने सुग्रीव को कपिराज बनाया
चले सब वानर माता सीता की खोज में इधर-उधर
समुद्र लांघ हनुमान पहुंचे लंका की धरा पर
प्रभु की अंगूठी माता को देके उन्होंने उनके दुःख हर लिए
प्रभु सदैव कृपा करते रहें जानकी जी ने उन्हें ये वरदान दिए
रावण के सामने पहुंचकर भक्त ने भगवान् की महिमा गायी
काल प्रेरित रावण को मगर हनुमान की बात न समझ आयी
भाई विभीषण ने भी राम की शरण में जाने की नीति सुनाई
अंत में स्वयं विभीषण चल दिए जब अहंकारी ने नीति ठुकराई
क्रोध,दंभ व अभिमान का पुतला रावण मूढ़ मति को प्राप्त था
उस दुष्ट,दुराचारी ने हनुमान की पूंछ जलाने का आदेश किया
लंका को जलाकर हनुमान जी ने माँ से चूड़ामणि प्राप्त किया
जाकर श्रीराम के पास उन्होंने उसे प्रभु को समर्पित किया
देखते ही प्रभु की बड़ी बड़ी आँखें सजल हो आयीं
ये देखते ही वानर भालुओं की पलकें भीग आयीं
प्रभु धीरज धरकर हनुमान को खूब आशीष देने लगे
हनुमान जी बार बार प्रभु के चरणों में गिरने लगे
फिर प्रभु ने सबके साथ लंका की तरफ प्रस्थान किया
समुन्द्र ने तब उन्हें सेतु बनाने का उपाय बताया
पाप,विकार मिटाने वाली है ये ऐसी सुधा
है ये राम कथा है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
लंका में पहुंचकर भीषण संग्राम हुआ
होना था जैसा अंजाम वैसा अंजाम हुआ
प्रभु श्रीराम के हाथों मरकर दुष्ट रावण का उद्धार हुआ
सभी देवताओं का ह्रदय तब जाके त्रास से मुक्त हुआ
माता सीता संग प्रभु श्रीराम भाई लक्ष्मण,हनुमानादी संग
चले पुष्पक विमान पर था उनका पहले भाई से मिलने का मन
भरत से मिलके प्रभु ने माताओं को शीश नवाया
माता कैकेयी संकोंच न करें प्रभु ने उन्हें मनाया
श्रीराम के राजा बनते ही आ गया राम-राज्य
घर घर में होने लगे उत्सव के ही दिन व रात
राम राज्य क्या है ये हमे प्रभु श्रीराम ने बताया है
कैसे जीवन जिया जाए प्रभु ने स्वयं जी के सिखाया है
प्रभु कहते हैं अवध और लंका हमारे ह्रदय में भी हैं
ज़रा विचारो राम और रावण हम सबके मन में भी हैं
स्वयं को आत्मा समझ हम जब विकारों से हीन होने लगेंगे
तब अपने ह्रदय में हम अयोध्या का निर्माण कर सकेंगे
जब अध्यात्म व जीवन के सिद्धांत हमारे अलग नहीं एक होंगे
हम अपने अन्दर के राम से फिर निश्चय ही मिल सकेंगे
जीवन अनमोल है उसे प्रभु सेवा में बिता
दूसरों का हित ही असली हित ह्रदय में बसा
काम,क्रोध,लोभ से ऐ प्राणी खुद को छुटकारा दिला
भक्ति जगाती,भक्ति की ओर बढ़ाती है राम कथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
जनम जनम की मिटती जिससे व्यथा
है ये राम कथा है ये राम कथा
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