हमारे चिंतन का हम पर बहुत प्रभाव पड़ता है ये कह सकते हैं की हम आज जो भी हैं अपने चिंतन की वजह से और कल जो भी होंगे उसका आधार हमारा आज का चिंतन है ।
चिंतन सदैव एक ही दिशा में हो सकता है यदि हम खराब चिंतन कर रहे हैं तो इसका मतलब यही नहीं की हम स्वयं का कल खराब कर रहे हैं बल्कि इसका और गहरा अर्थ ये हुआ की हम अच्छे चिंतन से वंचित होते जा रहे हैं ।
अधिकांशतः हम सांसारिक चिंतन ही कर पाते हैं या ये कहें की सांसारिक चिंतन से ही फुर्सत नहीं मिलती फिर आध्यात्मिक चिंतन शब्द कौन सी बला है इससे सर्वथा हम महरूम ही रह जाते हैं चिंतन की तो बात ही नहीं उठ पाती ।
सांसारिक चिंतन में हम क्या सोचते हैं यदि हम इसको साफगोई से समझें और इमानदारी से माने तो हमे पता चलेगा हम अपना अहित ही सोचते हैं,अहित की करते हैं कभी जाने कभी अनजाने ।
मैंने इस श्रृंखला को इसलिए शुरू किया की अधिकतर हमे पता ही नहीं चल पाता की हम कितने अधिक अँधेरे में हो सकते हैं,कितनी ग़लत दिशा में हो सकते हैं इसका हमे अंदाजा तक नहीं मिल पाता,इसका हमे अंदाजा तक नहीं लग पाता ।
हम अभी कितने उजालें में हैं ये हमारे बीते हुए कल की सुबहों की ताजगी भरी सोचों पर निर्भर है ।
और हम जो दुखित होते हैं वो हमारे कल में सोची गयी ग़लत सोच की वजह से है ।
मेरी आम सोच पर ही ज्यादा लिखने की कोशिश रहेगी ।
कुछ अतिमहत्वपूर्ण प्रश्न हमारी सोच,हमारे नज़रिए के परिपेक्ष्य में -
क्या सोचते हैं हम ?
हमारे जीवन के उद्देश्यों का आधार क्या है ?
हमारी सोच का आधार क्या है ?
हम स्वतंत्रता पसंद हैं या परतंत्रता ?
एक एक शब्द को बहुत ध्यान से समझना होगा । एक एक शब्द पर बहुत ध्यान देना होगा और उससे ज्यादा इस बात पर की बात कितनी सच है और सही दिशा क्या है ? कैसे सही दिशा पायें ?
तो पहला प्रश्न की क्या सोचते हैं हम ?
यदि हमारी सोच का खाका खींचा जाए तो हम देखेंगे की हमारी सोच हमारे आस पास रहने वाले लोगों के अधीन हैं । ये कैसी सोच है ? ये ऐसी सोच है जिसे विचार जगत में आम सोच से देखा जाता है यानि अधिकतर लोग आस पास के लोगों,दोस्तों,रिश्ते-नातों के प्रति राग-द्वेष में ही अपने जीवन की असली शक्ति अथार्त विचार शक्ति निकाल देते हैं ।
ये राग-द्वेष क्या है? अथार्त कुछ लोगों के प्रति हम अच्छा भाव रखते हैं और कुछ के प्रति अच्छा नहीं तो पहला भाव राग और दूसरा द्वेष में आया । यानी हमारा दिन का अधिकतर ग्राफ इसी राग-द्वेष के ग्राफ में सिमट के रह जाता है और हम जान ही नहीं पाते की विचार के नक़्शे में जहाँ विचार की असली परिधि शुरू होती है हम अपने तथाकथित राग-द्वेष के ग्राफ को लेके कहीं किनारे उलटी दिशा में पड़े होते हैं,बढ़ रहे होते हैं ।
दूसरा प्रश्न
हमारे जीवन के उद्देश्यों का आधार क्या है ?
हमारे जीवन के उद्देश्य कई बार तो तो जो बचपन से ही हमारे मन में भर दिया जाता है वोही बनने हम निकल पड़ते हैं या फिर यदि सयाने होने पर हमे चुनना होता है तो हम अधिकतर दूसरे को देखके या दूसरों को देखके ही बनाते हैं ।
तीसरा प्रश्न
हमारी सोच का आधार क्या है ?
इसका उत्तर हम आम जनता के लिए आम सोच ही पायेंगे यानि जैसा सोच का आधार (संस्कार रूप में ) हमे मिला है थोड़ा हम उसे बढाते हैं और थोडा हम अपने को होशियार समझके अपनी समझ से उसी होशियार दुनिया से लेते हैं जिसकी सोच आम है । इसे समझना होगा ये प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है,सबसे महत्त्वपूर्ण है ।
एक चुटकुला सुनिए :
एक आदमी दूसरे से : क्यूँ भाई सुना है तुमने बड़ी आलीशान कार खरीदी है ?
दूसरा : हाँ यार ! खरीदी तो है क्या करता बगल वाले ने खरीदी तो मुझे भी खरीदना पड़ा ? बड़ा अकड़ रहा था खरीद के !!
पहला आदमी : अरे चलो ठीक है भाई अब मिठाई विठाई तो कुछ खिलाओ ।
दूसरा : खिलाऊंगा यार, अभी कुछ पैसे देना पेट्रोल भराना है ।
हम दिखावे में ज़िन्दगी बिता रहे हैं और इस तरह से बिता रहे हैं की दिखावा ही हमे ज़िन्दगी लगने लगता है ।
हम दिखावे को ही ज़िन्दगी मानने लगते हैं ।
चौथा प्रश्न
हम स्वतंत्रता पसंद हैं या परतंत्रता ?
ये प्रश्न हमारे विचारों के अन्तःरूप को प्रकट करता है । हम कितने कायर हैं,बुजदिल हैं अथवा बहादुर है ये हमारे दूसरों को सम्मान देने और अपमान देने पर निर्भर करता है । एक कायर सोच का सदैव दूसरे को डराने में यकीन होगा और बहादुर सोच वाला दूसरे को बढाने में विश्वास रखेगा ।
चोर को सब चोर ही नज़र आयेंगे,जेल के कैदी ही दिखाई पड़ेंगे और जो चोरी नहीं करता वो सबको अपने जैसा ही देखेगा । हमारी सोच की संकीड़ता या विस्तारता ही रिफ्लेक्ट करती है की हम दूसरों को बढ़ते हुए देखना पसंद करते हैं या ये हमसे सहा नहीं जाता । हम अन्दर कितने अधिक सुख से भरे हैं या विषाद से ये इस बात से पता चलता है की हम समाज में क्या दे रहे हैं । हम कितने सकारात्मक और नकारात्मक है ये हमारे स्वयं के आस पास के माहौल में स्वयं के किये बर्ताव से ही पता चलता है । आम सोच स्वतंत्रता पसंद है या परतंत्रता तो इसमें कोई दो राय नहीं की परतंत्रता पसंद है । क्यूंकि बड़े स्तर से देखें हम तो पाएंगे की पिछले 5000 सालों में 25000 युद्ध हो चुके हैं ये बात कैसी सोच का प्रतिनिधित्व करने वाले समाज को बताती है । आज भी लगभग सभी देश परमाणु बमों से स्वयं को सुसज्जित करना चाहते हैं और शान्ति पर बात करने वाले कितने देश हैं उनके बारें में हम कहाँ सुन पाते हैं ।
क्या हमने कभी सोचा है की काल तत्व से अथार्त समय से कोई नहीं जीत सका । क्या हमने सोचा है की जहाँ हम अभी इमारतें देखते हैं कोई लाख साल पहले वहां खंडहर व पहाड़ थे और फिर वोही होंगे परन्तु फिर भी हम ऐसे जीते हैं जैसे हमारी मृत्यु होगी ही नहीं तभी तो हम बेफिक्र होके ग़लत दिशा में सोचते हैं और ज़िन्दगी से कुछ नहीं सीखते हैं,आध्यात्मिक ज्ञान को महत्व नहीं देते ।