Tuesday, 14 August 2012

सामाजिक चेतना 4 : आतंकवाद



आतंकवाद देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिए एक अभिशाप बन चुका है और इससे आम जनमानस कितना त्रस्त है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लग सकता है की आज देश का नागरिक जब टी.व् खोलता है तो न्यूज़ चैनल लगते समय उसे इस बात का हमेशा अंदेशा रहता है की कहीं उसके अपने ही या अन्य शहर में कोई विस्फोट न हुआ हो
आतंकवाद दो तरह का होता है एक जो देश से बाहर से देश में आता है और एक जो देश के अन्दर ही पनपता है

एक जिसमे आतंकवादी देश में बम फोड़ते हैं निर्दोष लोगों को जान से मार डालते हैं बाहरी आतंक का नाम देना चाहूँगा और एक जिसमे जनता के रक्षक ही जनता को दहशत देते हैं
कभी जात-पात के नाम पे कभी धर्म मज़हब के नाम पे राजनीति करके सैकड़ों हज़ारों लोगों को सिर्फ वोट बैंक के लिए आपस में ही लड़ा देते हैं

इसी तरह से और भी देश के अन्दर आतंक फैलाने वाली गतिविधियाँ जो देश के ही महत्वपूर्ण व ज़िम्मेदार लोगों द्वारा होती हैं अंदुरीनी आतंक कहलाता है जिसका एक और उदाहरण है नक्सलवाद
जनता के लिए दोनों ही तरह के आतंकवाद से उबरना आवश्यक है लेकिन इससे भी बढ़के जनता के लिए आवश्यक है भय से लड़ने के लिए आवाज़ उठाना न की भय को आतंक को दहशतगर्दी को जीवन का एक अंग समझ के स्वीकार कर लेना
इसका सूक्ष्म परिणाम ये भी होता है की जनता स्वयं भी इस आतंक में उलझ सी जाती है और जाने अनजाने भय को आतंक को बढाने लगती है बढ़ावा देने लगती है

आतंक को समाप्त तभी किया जा सकता है जब की आतंक से आतंकित न हुआ जाए इसलिए सूक्ष्म स्तर से ही आतंक को समाप्त करना चाहिए अथार्त मन को भय से मुक्त रखना चाहिए क्यूंकि एक भय मुक्त व्यक्ति कभी भी भय पूर्ण वातावरण का समर्थन नहीं करता


निश्चित तौर पर देश में बाहर से आने वाले आतंक को बहुत ही गंभीर रूप से लेना चाहिए और प्राथमिकता सबसे पहले इस बाहर से आने वाले आतंक के खात्मे की रहने चाहिए क्यूंकि ये देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा भी है लेकिन साथ ही साथ ये जान लेना चाहिए की बाहर से आने वाले आतंक का सफाया करने के लिए ये बहुत ज़रूरी है की देश के अन्दर का भी आतंक ख़त्म हो


ये उसी तरह से है की जैसे एक आदमी को बुखार और सर दर्द दोनों है लेकिन सिर्फ सर दर्द की दवाई लेने से उसका पूर्ण उपचार नहीं हो सकेगा पूर्ण उपचार के लिए आवश्यक है की वो साथ में बुखार की भी दवाई ले


निश्चित तौर से देश में बाहर से आने वाले आतंक की समाप्ति से जनता को फौरी तौर पे कुछ रहत मिलेगी लेकिन उसे असली राहत तभी मिलेगी जब देश में अन्दर से होने वाले आतंक भी ख़त्म होगा

ये बात अलग है की एकाएक दोनों ही ख़त्म नहीं होंगे इसलिए इनके लिए लम्बी और कारगर योजनाओं के साथ लगातार क्रियान्वन ज़रूरी है
आतंकवाद एक ऐसा रोग है जो कम होते होते ही ख़त्म होगा

देश में बाहर से होने वाला आतंक आज देश के लिए सर दर्द बना हुआ है और इसके लिए हालाँकि सरकारें कदम उठाती हैं लेकिन शायद वो उतना कारगर और पर्याप्त नहीं है


हम जानते हैं की देश  28 राज्य और 8 केंद्रशाषित प्रदेश हैं ।  

भारत बहुत समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। भारत के काश्मीर, नागालैंड, पंजाब, असम, बिहार आदि विशेषरूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं. 


जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं उनमें जम्मू-कश्मीर, मुंबई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और सात बहन राज्य (उत्तर पूर्व के सात राज्य) (स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में) शामिल हैं. 

2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित थे.] अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन का कहना था कि देश में 800 से अधिक आतंकवादी गुट सक्रिय हैं।

 

 कहीं देश के कई राज्यों में हुए आतंकवादी  के बारें में  पढ़ा उसका  उल्लेख करना चाहूँगा ।

प्रमुख आतंकवादी घटनाओं का कालक्रम

भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले का घटनाक्रम (उलटे क्रम में) इस प्रकार है-

मुम्बई, १३ जून, २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.

फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे. एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया.

मुंबई, 26 नवंबर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए. भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए. हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई.

असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।

इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।

मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।

मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।

नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।

नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।

अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।

बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।

जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।

रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।

अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।

हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल।

हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।

फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 66 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।

मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 30 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।

मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।

वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 20 लोगों की मौत।

अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 62 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।
पश्चिमी भारत
मुंबई

मुंबई ज्यादातर आतंकवादी संगठनों का सबसे पसंदीदा लक्ष्य रहा है, मुख्य रूप से कश्मीर की अलगाववादी ताकतों का. पिछले कुछ वर्षों में जिन हमलों की शृंखलाओं को अंजाम दिया गया उनमें जुलाई 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोट और बिल्कुल हाल में 26 नवम्बर 2008 को हुए अभूतपूर्व हमले शामिल हैं जहां दो मुख्य होटलों और दक्षिण मुंबई में स्थित एक इमारत पर कब्जा कर लिया गया था.

मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में शामिल हैं:

    12 मार्च 1993 - १९९३ बंबई का बमकांड
    6 दिसंबर 2002 - घाटकोपर में एक बस में बम विस्फोट कर 2 लोगों की हत्या
    27 जनवरी 2003 - विले पार्ले में एक साइकिल पर बम फटने से 1 व्यक्ति की मौत
    14 मार्च 2003 - मुलुंड में एक ट्रेन में बम फटने से 10 लोग मारे गये
    28 जुलाई 2003 - घाटकोपर में एक बस में बम विस्फोट कर 4 की हत्या
    25 अगस्त 2003 - झवेरी बाजार और गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास कारों में रखे दो बमों के फटने से 50 लोग मारे गये
    11 जुलाई 2006 - ट्रेनों में सात शृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में 209 की मौत हुई
    26 नवम्बर 2008 से 29 नवम्बर 2008 - २६ नवंबर २००८ मुंबई में श्रेणीबद्ध गोलीबारी


जम्मू-कश्मीर
 

जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद

जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह में अब तक दस हजार से अधिक लोगों की जानें गयी हैं.[तथ्य वांछित] कश्मीर में उग्रवाद विभिन्न रूपों में मौजूद है. वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए. 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई. 

 भारत द्वारा पाकिस्तान के इंटर इंटेलिजेंस सर्विसेज द्वारा जम्मू और कश्मीर में लड़ने के लिए मुज़ाहिद्दीन का समर्थन करने और प्रशिक्षण देने के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है. 

जम्मू और कश्मीर विधानसभा (भारतीय द्वारा नियंत्रित) में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां लगभग 3,400 ऐसे मामले थे जो लापता थे और संघर्ष के कारण यथा जुलाई 2009 तक 47000 लोग मारे गए. बहरहाल, पाकिस्तान और भारत के बीच शांति प्रक्रिया तेजी से बढ़ने के क्रम में राज्य में उग्रवाद से संबंधित मौतों की संख्या में थोड़ी कमी हुई है. 



नयी दिल्ली


भारत की राजधानी नयी दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को तीन विस्फोट किये गये जिसमें 60 से अधिक लोग मारे गए और कम से कम 200 अन्य लोग घायल हो गए. विस्फोटों में 2005 में भारत में विस्फोटों से घातक हमलों में मारे गये लोगों की संख्या सर्वाधिक रही.उसके बाद 13 सितम्बर 2008 को 5 बम विस्फोट किये गये.

भारतीय संसद पर हमला

१३ दिसंबर २००१ को आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया जिसमें ४५ मिनट तक गोलीबारी होती रही जिसमें ९ पुलिसकर्मी और संसद कर्मचारी मारे गए| सभी पांच आतंकवादी भी सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए और उनकी पहचान पाकिस्तानी नागरिकों के रूप में की गयी| हमला भारतीय समयानुसार सुबह ११:४० के आसपास हुआ जिसके कुछ ही मिनटों बाद संसद के दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया|

उत्तर प्रदेश
वाराणसी बम धमाके

वाराणसी में 7 मार्च 2006 को शृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए. रिपोर्ट के अनुसार इसमें पंद्रह लोग मारे गये और कम से कम 101 अन्य घायल हो गये. हमलों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि ये बम विस्फोट वाराणसी में इस घटना से पहले फरवरी 2006 में लश्कर- ए-तैय्यबा के एजेंट की गिरफ्तारी की जवाबी कार्रवाई के तौर पर किया गया.

5 अप्रैल 2006 को भारतीय पुलिस ने छह इस्लामी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया जिसमें एक मौलवी भी शामिल है, जिसने बम विस्फोट की योजना बनाने में मदद पहुंचायी. माना जाता है कि मौलवी बांग्लादेश में प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी गुट हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी का एक कमांडर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस से जुड़ा हुआ है.

पूर्वोत्तर भारत


पूर्वोत्तर भारत में 7 राज्य शामिल हैं (जिन्हें सात बहनों के नाम से भी जाना जाता है) आसाम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड. इन राज्यों और केन्द्र सरकार तथा इस राज्य के मूल निवासी आदिवासियों और भारत के अन्य भागों से यहां आये प्रवासी लोगों के बीच तनाव होते रहते हैं.

राज्यों ने नयी दिल्ली पर आरोप लगाया है कि वह उनसे सम्बंधित मुद्दों की अनदेखी कर रही है. इस भावना के कारण इन राज्यों के निवासियों में शासन में अपनी भागीदारी अधिक रखने की मांग उठने लगी है. मणिपुर और नगालैंड के बीच क्षेत्रीय विवाद विवाद कायम है.

पूर्वोत्तर, खासकर आसाम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों में विद्रोही गतिविधियों और क्षेत्रीय आंदोलनों में वृद्धि हुई है. इनमें से अधिकांश संगठनों ने स्वतंत्र राज्य का दर्जा या क्षेत्रीय स्वायत्तता और संप्रभुता में वृद्धि की मांग की है.

उत्तर पूर्वी क्षेत्र में तनाव खत्म करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर को उठाने के ठोस प्रयास कर रही हैं. हालांकि, आतंकवाद भारत के इस क्षेत्र में अब भी मौजूद है, जिसे बाहरी स्रोतों से समर्थन प्राप्त है.
नगालैंड

और शायद पहली बार सबसे महत्वपूर्ण उग्रवाद 1950 के दशक के में नगालैंड में प्रारम्भ में शुरू हुआ और उस पर अन्ततः 1980 के दशक की शुरूआत में दमन और सह-स्थापना के मिश्रण प्रयासों से काबू पा लिया गया. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड, इसाक मुइवा (NSCN-IM), ने एक स्वतंत्र नगालैंड की मांग है और इस क्षेत्र में भारतीय सेना के ठिकानों पर कई हमले किए. सरकारी अधिकारियों के अनुसार 1992 से 2000 के बीच 599 नागरिकों, 235 सुरक्षाबलों और 862 आतंकवादियों ने अपनी जान गंवाई है.

14 जून 2001 को भारत सरकार और NSCN-IM के बीच एक संघर्ष-विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गये, जिसे नगालैंड में व्यापक स्वीकृति और समर्थन प्राप्त हुआ. नगा नेशनल काउंसिल-फेडरल (NNC-F) और नेशनल काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (NSCN-K) जैसे आतंकवादी संगठनों ने भी विकास का स्वागत किया.

कुछ पड़ोसी राज्यों, खासकर मणिपुर ने संघर्ष विराम पर गंभीर चिंता जतायी. उन्हें डर था कि कहीं NSCN अपने राज्य में आतंकवादी गतिविधियों को न जारी रखे और नयी दिल्ली से युद्धविराम समझौते को रद्द करते हुए और सैन्य कार्रवाई का नवीकरण न कर दे. संघर्ष-विराम के बावजूद NSCN ने अपने विद्रोह को जारी रखा[तथ्य वांछित].
असम

नगालैंड के बाद असम क्षेत्र का सबसे अधिक अस्थिर राज्य है. 1979 के प्रारम्भ में असम के स्थानीय लोगों ने मांग की कि उन अवैध आप्रवासियों को चिह्नित किया जाये और वापस भेज दिया जाये जो बांग्लादेश से असम आये थे. अखिल असम छात्र संघ के नेतृत्व में सत्याग्रह, बहिष्कार, धरना और गिरफ्तारी देकर अंहिसक ढंग से अपना आंदोलन शुरू किया गया.

जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे उन पर पुलिस कार्रवाई हुई. 1983 में एक चुनाव हुआ जिसका आंदोलन के नेताओं ने विरोध किया. चुनाव में व्यापक हिंसा हुई. आंदोलन अंतत: आंदोलन के नेताओं के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद समाप्त हुआ (जिसे असम समझौता कहते हैं) जो केन्द्र सरकार के साथ 15 अगस्त, 1985 को हुआ.

इस समझौते के प्रावधानों के अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति जिसने राज्य में अवैध रूप से जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच प्रवेश किया है उसे रहने की अनुमति है लेकिन दस साल बाद उसे बेदखल होना पड़ेगा, जबकि जिन लोगों ने 1971 के बाद राज्य में प्रवेश किया है उन्हें निष्कासन झेलना पड़ेगा. नवम्बर 1985 में भारतीय नागरिकता कानून में संशोधन कर चुनाव में मतदान के अधिकार को छोड़कर शेष सभी नागरिकता अधिकार 10 वर्ष के लिए उन लोगों को दिये गये जिन्होंने 1961 से 1971 के बीच असम में प्रवेश किया था.

नयी दिल्ली ने भी राज्य में बोडो को विशेष प्रशासन स्वायत्तता दी. हालांकि, बोडो समुदाय के लोगों ने एक अलग बोडोलैंड की मांग की जिसके कारण बंगालियों, बोडो और भारतीय सेना के बीच संघर्ष छिड़ गया परिणामस्वरूप सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गये.

कई संगठन हैं जो असम की स्वतंत्रता की वकालत कर रहे हैं. जिनमें से सबसे प्रमुख ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम) है. 1971 में स्थापित ULFA के दो मुख्य लक्ष्य हैं असम की स्वतंत्रता और समाजवादी सरकार की स्थापना.

ULFA ने 1971 में भारतीय सेना और असैनिकों को लक्ष्य करके क्षेत्र में कई आतंकवादी हमले किए हैं. इस समूह ने राजनैतिक विरोधियों की हत्या, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों पर हमले किये हैं, रेल पटरियों को उड़ाया है और अन्य बुनियादी सुविधाओं की स्थापनाओं पर हमले किये हैं. माना जाता है कि ULFA के नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN) , माओवादियों और नक्सलियों के साथ मजबूत संबंध हैं.

यह भी विश्वास किया जाता है वे अपने ज्यादातर अभियानों को भूटान राज्य से संचालित करते हैं. ULFA के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने 1986 में समूह को गैरकानूनी और असम को एक अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया. नयी दिल्ली के दबाव में भूटान ने अपने क्षेत्र से ULFA उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया.
 भारतीय सेना ने ULFA के भावी हमलों को विफल करने के उद्देश्य से कई सफल अभियान चलाया है लेकिन ULFA क्षेत्र में सक्रिय बना हुआ है. 2004 में ULFA ने असम में एक पब्लिक स्कूल को निशाना बनाया जिसमें 19 बच्चे और 5 वयस्क लोग मारे गए.

असम पूर्वोत्तर में एकमात्र राज्य है, जहां आतंकवाद अभी भी एक प्रमुख मुद्दा है. भारतीय सेना अन्य क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को खत्म करने में कामयाब हो गयी थी लेकिन आतंकवादियों से निपटने के लिए कथित रूप से कठोर तरीके का इस्तेमाल करने के लिए मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचना की गयी.

18 सितम्बर 2005 को एक सिपाही जिरीबाम, मणिपुर में मणिपुर-असम सीमा के निकट उल्फा के सदस्यों के हाथों मारा गया.
त्रिपुरा

त्रिपुरा में 1990 के दशक में आतंकवादी गतिविधियों में काफी उथल पुथल देखी गयी. नयी दिल्ली ने विद्रोहियों को अपने क्षेत्र से विद्रोही कार्यकलापों के संचालन के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के लिए बंगलादेश को दोषी ठहराया. त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के नियंत्रण के अधीन इस क्षेत्र में नयी दिल्ली, त्रिपुरा राज्य सरकार और परिषद के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता के बाद वृद्धि की गयी. सरकार ने उसके बाद आंदोलन पर नियंत्रण कर लिया है, हालांकि कुछ विद्रोही गुट अभी भी सक्रिय हैं.
मणिपुर

मणिपुर में आतंकवादियों ने एक संगठन स्थापित किया है जिसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी कहते हैं. उनका मुख्य लक्ष्य बर्मा की जनजातियों मेइती लोगों को एकजुट करना और स्वतंत्र राज्य मणिपुर की स्थापना करना है. हालांकि माना जाता है कि आंदोलन 1990 के दशक के मध्य में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा भीषण संघर्ष के बाद दबा दिया गया.

18 सितम्बर 2005 को छह अलगाववादी विद्रोहियों छुरछंदपुर जिले में झूमी रिवोल्यूशनरी आर्मी और झूमी क्रांतिकारी मोर्चा के बीच संघर्ष में मारे गए.

कंगली यावोल कन्ना लूप (KYKL) क्षेत्रीय संगठन के AK-56 राइफल्स से लैस विद्रोहियों ने 20 सितम्बर 2005 को मणिपुर की राजधानी इंफाल से 22 मील दूर दक्षिण पश्चिम के नारिआंग गांव में 14 भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया और मार डाला. भारत सरकार के एक प्रवक्ता के अनुसार "अज्ञात विद्रोहियों ने स्वचालित हथियारों से हमला कर सड़क पर गश्त कर रहे सेना के गोरखा राइफल्स के आठ जवानों को मौके पर ही मार डाला.
मिज़ोरम

मिजो नेशनल फ्रंट आजादी प्राप्त करने के लिए भारतीय सेना से 2 दशकों से अधिक अवधि से लड़ाई लड़ रहा है. अन्य पड़ोसी राज्यों की तरह यहां भी उग्रवाद पर सेना ने काबू पा लिया.
दक्षिण भारत
कर्नाटक

कर्नाटक ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थानों और भारत के आईटी हब (सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र), बेंगलुरू होने के बावजूद आतंकवाद से काफी कम प्रभावित है. हालांकि, पश्चिमी घाट में हाल में नक्सली गतिविधि बढ़ रही है. इसके अलावा कुछ हमले हुए हैं जिनमें 28 दिसम्बर 2005 को IISc पर हमला और बेंगलुरू में 26 जुलाई 2008 को हुए सीरियल बम विस्फोट प्रमुख हैं.
आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश आतंकवाद से प्रभावित कुछ दक्षिणी राज्यों में से एक है, हालांकि यह एक अलग तरह का और बहुत छोटे पैमाने पर है. आंध्र प्रदेश में आतंकवाद पीपुल्स वार ग्रुप या PWG की उपज है जो नक्सलाइट के नाम से जाना जाता है.

'PWG' भारत में दो दशक से अधिक अविध से सक्रिय है उसके ज्यादातर अभियान आंध्र प्रदेश के तेलंगाना में चलाये जाते हैं. यह दल उड़ीसा और बिहार में भी सक्रिय है. कश्मीरी आतंकवादियों और ULFA के विपरीत PWG एक माओवादी आतंकवादी संगठन है और साम्यवाद इसके प्राथमिक लक्ष्यों में से एक है.

चुनाव में व्यापक समर्थन पाने में नाकाम रहने के कारण वे अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं. समूह साम्यवाद के नाम पर भारतीय पुलिस, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अन्य प्रभावशाली संस्थानों को अपना निशाना बनाता है. PWG ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को अपना निशाना बनाया है, जिसमें आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या करने का प्रयास भी शामिल है.

कथित तौर पर इन सशस्त्र आतंकवादियों की संख्या 800 से 1000 है और इनका नेपाल के माओवादियों और श्रीलंका के LTTE (लिट्टे) के साथ घनिष्ठ संबंध माना जाता है. भारत सरकार के अनुसार औसतन 60 से अधिक नागरिक, 60 नक्सली विद्रोही और एक दर्जन पुलिसकर्मी हर साल PWG के नेतृत्व वाले उग्रवाद में मारे जाते हैं.इसके बड़े आतंकवादी हमलों में 25 अगस्त 2007 को हैदराबाद में हुआ हमला प्रमुख है.
तमिलनाडु

तमिलनाडु में LTTE लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने तक सक्रिय रहा. LTTE ने तमिलनाडु राज्य में वेलुपिल्लई प्रभाकरन, तमिलसेल्वन और ईलम के अन्य सदस्यों के नेतृत्व में कई वक्तव्य दिये.
तमिलनाडु को मुस्लिम कट्टरपंथी आतंकवादी द्वारा किये गये हमलों का भी सामना करना पड़ता है.

जैसा की मैंने  भी कहा आतंक को मिटाने के लिए सबसे आवश्यक है है कारगर रणनीति और उसका क्रियान्वन इसके  ही साथ इसे एकजुटता और प्राथमिकता से लेते हुए अनुशाषित तरह से चलना होगा  ।
इसमें दीर्घ प्रयास और सोच की ज़रूरत तो है ही साथ ही हमे भयमुक्त   वातावरण समाज में भी बनाना होगा ताकि जनता पूरी मानसिक दृढ़ता से इस गंभीर समस्या से लड़ सके ।

Sunday, 12 August 2012

सामाजिक चेतना 3 : भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार आज देश की सबसे बड़ी समस्या है और कई बड़ी समस्याएं जैसे आतंकवाद,मंहगाई,अशिक्षा,अपराध आदि में इसी भ्रष्टाचार का ही सबसे अधिक  योगदान है ।


यदि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आयें तो हम पायेंगे की हमारे आस पास के माहौल में भ्रस्टाचार इस प्रकार लिप्त है की शायद 24 घंटों में हम इसका सामना किसी न किसी रूप से करते ही रहते हैं
एक आम आदमी अपनी कार या बाइक से निकलता है तो हेलमेट लगाने के बावजूद उसे ये डर रहता है की कोई ट्रैफिक वाला उसे रोकके उगाही न करे ।     
एक आदमी राशन कार्ड लेके जाता है तो राशन वाले से उसे पर्याप्त सामान ही नहीं मिल पाता ।
एक आम आदमी अपने घर में बैठा रहता है तो भी उसे अराजक तत्वों द्वारा दिन दहाड़े लूटे जाने का भय रहता है ।
एक आम आदमी कई बार लूटे जाने पर जिस पुलिस के पास जाता है उसे मालूम ही नहीं रहता है की अपराधी से एक हिस्सा उन पुलिस वालों को भी मिलता है यानी उसके साथ जो चोरी हुई उसमे पुलिस की शय थी और एक तरह से पुलिस भी शामिल थी ।
एक आम आदमी जब अपने ऊपर किसी गुंडे द्वारा अत्याचार की रिपोर्ट लिखाने जब पुलिस स्टेशन जाता है तो कई बार तो उसे ही अपराधी जैसा सुलूक सहना पड़ता है या फिर उससे भी पैसे मांगे जाते हैं ।
एक आम आदमी जब पढ़ाई पूरी कर लेता है तो उसे पता चलता है की सरकार ने रोज़गार का कोई प्रबंध नहीं रखा है?
एक किसान फसल पैदा करके भी कई बार भूखा सो जाता है क्यूँ ?
एक आम आदमी जब मंहगाई बढती हुई देखता है तो वो किसके आगे अपना दुखड़ा रोये ?आज उसने दो वक़्त की जगह एक वक़्त खाना शुरू कर दिया लेकिन
क्या ये एक वक़्त का भोजन भी सरकार उससे छीन लेगी ?
क्या हमे मालूम है कई शहरों में एक आम आदमी को घर की कहना बनाने की गैस 45 दिन में मिलती है और कई बार तो उसे ब्लैक में खरीदनी पड़ती है ।
एक आम आदमी जब आचे नंबर पाके किसी नौकरी में इंटरवीव को जाता है तो भी योग्य होने के बावजूद वो नौकरी किसी ऐसे व्यक्ति को दे दी जाती है जिसने घूस खिलाया हो ।

इस तरह से और भी बारीकी से हम देखेंगे तो पता चलेगा की ये सिर्फ भ्रष्टाचार का मुद्दा ही इतना व्यापक है और आम आदमी इसमें जकड़ा हुआ है की जो बाकी मुद्दे अथार्त समस्याएं हैं जो की पिछली पोस्ट में लिखी गयीं थी उनके बीच में इस आम आदमी की क्या दशा है ।
ये आम आदमी को हम थोड़ी राहत भ्रष्टाचार को कम करके दे सकते हैं और इसके लिए अपने अपने क्षेत्र में हमे दिल से इमानदार रहना है,रहना होगा और  इमानदारी का आदर करना चाहिए क्यूंकि हम भी आम जनमानस का ही हिस्सा हैं ।

आईये अब चलते चलते थोडा बड़े लेवल के उस भ्रष्टाचार का भी अवलोकन कर लें जिसमे जो घोटाले का पैसा है वो उसी नीचे लेवल के आदमी का है जिसे हम आम आदमी कहते हैं ये जनता की ही खून पसीने की कमाई थी जिसे हडपा गया और जिसके कारण एक आम आदमी को इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है
कि वो दो जून के निवाले को तरस गया है ।
कहीं मैंने पढ़ा और मुझे ये बहुत ज़रूरी लगा तो शेयर कर रहा हूँ ।

आजादी के बाद से लेकर अब तक प्रमुख घोटोले-


- जीप घोटाला (1948) वी.के. कृष्णा मेनन (आजाद) भारत का पहला घोटाला।के सचिव फंसे)।
- मुद्रा मैस घोटाला (1956) टीटी कृष्णामाचारी व हरिदास मुद्रा (फिरोज गांधी ने किया खुला
- सायकल आयात इंपोर्टस घोटाला (1951) एस.ए. वेंकटरमन। (वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय सा] फंसे वित्त मंत्री)
- 1956 बीएचयू फंड घोटाला] आजाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला।
- तेजा लोन (1960)।
- कैंरों घोटाला (1963) प्रताप सिंह कैंरों (पंजाब)। (आजाद भारत में मुख्यमंत्री पद के दुरूपयोग का पहला मामला)।
- पटनायक घोटाला (1965) बीजू पटनायक।
- नागरवाला कांड (1971) इंदिरा गांधी (दिल्ली के पार्लियामेन्ट स्ट्रीट स्थित स्टेट बैंक शाखा मे लाखों रूपये मांगने का मामला इसमे इंदिरा गांधी का नाम भी उछला)।
- मारूति घोटाला (1974) इंदिरा गांधी संजय गांधी।
- कुओ आइल डील (1976) इंदिरा गांधी संजय गांधी (आईओसी ने ह्यंगकांग की फर्जी कम्पनी के साथ डील की] बड़े स्तर पर घूस का लेनदेन)।
- अंतुले ट्रस्ट (1981) एआर अंतुले।
- बोफोर्स घोटाला (1987) राजीव गांधी।
- एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987)।
- बिटुमेन घोटाला तांसी भूमि घेटाला सेंट किट्स घोटाला (1989) वी.पी. सिंह
पशुपालन मामला (1990)।
- अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम चुरहट लॉटरी स्कैम एयरबस स्कैंडल (1990)।
बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज घोटाला (1992) हर्षद मेहता।
-इंडियन बैंक घोटाला (1992)
सिक्योरिटी स्कैम (1992)
-जैन हवाला डायरी कांड (1993)
-हवाला कांड (1993) कई राजनीतिज्ञ
-चीनी आयात (1994)
-बैंगलोर-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर (1995)
जेएमएम सांसद घूसकांड (1995)
-जुता घोटाला (1995) जूता व्यापारियों ने फर्जी सोसायटी बनाकर सरकार को चूना लगाया।
-टेलीकॉम घोटाला (1996) सुखराम।
-चारा घोटाला (1996) लालू यादव।
-यूरिया घोटाला (1996) पीवी प्रभाकर राव।
-संचार घोटाला (1996) लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996)
-ताबूत घोटाला (1996)
-मैच फिक्सिंग (2000)
-यूटीआई घोटाला केतन पारेख कांड (2001)
-बराक मिसाइल डील] तहलका स्कैंडल (2001)
-होम ट्रेड घोटाला (2002)
-ताज गलियारा मामले (2003) मायावती
-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2003)
अब्दुल करीम तेलगी – स्टॉम्प घोटाला।
-तेल के लिए अनाज कार्यक्रम घोटाला (2005) ] नटवर सिंह
-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2008) सत्यम घोटाला (2008)
-मधुकोड़ा मामला (2008)
-स्पेक्ट्रम घोटाला (2009) द्रमुक परिवार।
-झारखंड डकैती] हवाला लेनदेन (2009) मधु कोड़ा।
-आदर्श सोसायटी मामला (2010)।
-कॉमनवेल्थ घोटाला (2010)।
-2जी स्पेक्ट्रम घोटाला। 
- विदेश में दबा लगभग 400 लाख करोड़ का काला धन 
-हसन अली – विदेशी बैंको में काला धन।
        -वर्तमान यूपीऐ सरकार द्वारा कम से कम 2 लाख करोड़ का कोयला घोटाला

यहाँ ये बात गौर तलब है कि इनमे से कई कि अभी तक जांच ही नहीं शुरू हुई,कई में साक्ष्य का अभाव बताके मामले को लटका दिया गया है और कई में  दोषी पाए जाने पर भी उन्हें दण्डित तक नहीं किया गया है ।

Thursday, 9 August 2012

सामाजिक चेतना 2

आजकल देश में टीम अन्ना और बाबा रामदेव जी द्वारा उठाये गए मुद्दों से ज्यादा इन दोनों  शक्सियत  और इनके  विरोधभासों पर  बात  हो  रही  है । 
मुझे इस बात में कोई सार नज़र नहीं आता की मुद्दों से ज्यादा हम मुद्दे उठाने वालों पर ही बात प्रारंभ कर दें ।
ऐसा क्यूँ किया जाता है ?
कौन लोग ऐसा करते हैं ?
आखिर सरकार या अन्य राजनीतिक पार्टियाँ देश को अपने कार्यकाल का १० प्रतिशत भी क्यूँ नहीं दे पातीं ?
आखिर मुद्दों पर ध्यान देने से मीडिया भी क्यूँ बचता है ?

इन सब बातों में हमारे अथार्त जनता के पड़ने का मतलब यही हुआ की हम भी मुद्दों से भटक रहे हैं ।


जन लोकपाल और काला धन दोनों ही मुद्दों पर सरकार को न सिर्फ सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए बल्कि देश की जनता की आवाज़ को आदर देते हुए व्यापक ज़रूरी कदम भी उठाने चाहिए।


निश्चित रूप से उपरोक्त दो मुद्दे सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों में से है क्यूंकि ये ऐसी समस्याएं हैं जिनसे आज जनमानस सबसे अधिक त्रस्त है ।

लेकिन इसके साथ साथ ये भी बहुत महत्वपूर्ण है की बाकी समस्यायों को भी हम ध्यान में रखें ।

आज जो गंभीर समस्याएं देश के सामने खड़ी हैं वो विभिन्न प्रकार की हैं व उनके भी अलग अलग विभाग हैं । मोटे तौर पर वे समस्याएं हैं 


भ्रष्टाचार

घोटालेबाजी
सरकार द्वारा
भ्रष्टाचार की जांच न कराना
आतंकवाद
मंहगाई
अशिक्षा
बेरोज़गारी
गरीबी
लघु उद्योगों का पतन
बाल-मजदूरी

वैश्यावृत्ति
गुंडा-गर्दी
भुकमरी 
तानाशाही
बाढ़
सूखा
नक्सलवाद
जातिवाद
क्षेत्रवाद
नस्लवाद
चोरी/डकैती

बलात्कार
क़त्ल
अपहरण
हिंसा
धर्मवाद 

जनसँख्या 
प्रवासी समस्या 
नकली नोट 
भाषा की समस्या (राष्ट्रीय भाषा की उपेक्षा व अंग्रेजी का आधिपत्य) 
पर्यावरण की समस्याएं
भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था
चुनाव सम्बन्धी समस्याएं (मत पहचान पत्र आदि )
जनता में डर व्याप्त होना
जनता तक सरकारी योजानाओं की जानकारी न पहुंचना
संसद द्वारा ज़रूरी मुद्दों पर चर्चा न किया जाना
संसद द्वारा ज़रूरी विधेयक/बिल पारित न करना
नेताओं का जनता की तरफ संवेदनशील रुख न होना
मीडिया का भी व्यापारीकरण होना
सरकार द्वारा मीडिया के काम में दखल
मीडिया द्वारा अपना कार्य सही तरह से न निभाना

ये ऐसे मुद्दे हैं जिनसे आज देश व समाज चौतरफा घिरा हुआ है और इनसे निपटने का कोई सार्थक कदम सरकार द्वारा नहीं उठाया गया है ।

इनमे से कई समस्याएं इस सरकार से भी पहले से हैं यानी बीसों सालों से लेकिन ये मुद्दे ऐसे ही बने हुए हैं । इसमें सबसे बड़ा कारण देश की जनता में जागरूकता और एकजुटता की कमी मुझे लगती है जिसके कारण भ्रष्ट लोग सत्ता पाते हैं व मनमानी करते हैं । 

Saturday, 4 August 2012

सामाजिक चेतना

देश की व समाज की समस्याएं एक ही हैं यानी हमारे देश की जनता की समस्या ही हमारे समाज की समस्या है लेकिन जो देश की समस्याएँ हैं  उनमे कुछ नितांत देश हित से जुडी हुई हैं हालाँकि वो भी अपरोक्ष रूप से समाज की ही समस्याएं हैं
इन मुद्दों को,इन सामाजिक समस्याओं को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है इनके प्रति जागरूक होने से ही ये धीरे धीरे समाधान की तरफ अग्रसर होंगी

तो एक विभाग है मुद्दों का जो देश की अस्मिता,रक्षा से सम्बंधित है और एक विभाग है जो पूर्णतया सामाजिक मुद्दों पर आधारित है इन्हें समझना होगा और इन्हें ऐसे समझना होगा अथार्त इस दृष्टिकोणसे समझना होगा की इनके समाधान की तरफ भी बढ़ना होगा


इसके साथ साथ जिसके द्वारा इन मुद्दों का निदान होना है यानी सरकार उसकी दशा व दिशा भी समझनी होगी


यानी एक चार्ट बनके उभर रहा है या ये कहें की प्रारूप जिसमे हम देखेंगे की


देश के मुद्दे क्या हैं ?
सरकार की प्राथमिकता क्या है ?
विपक्ष व अन्य दलों की क्या सोच है?
सरकार की मुद्दों के प्रति क्या सोच है,कितनी गंभीरता है ?

अब इसके साथ साथ टाइम फैक्टर यानी समय चक्र को भी ध्यान में रखना है अथार्त ये रीविव ये समीक्षा एक निश्चित समय पर होनी आवश्यक है की

कौन कौन से मुद्दों में कितना सुधार आया है ?
कौन कौन से मुद्दे समाप्त हुए हैं?
कौन से नए मुद्दे और आ गए हैं ?
और इन मुद्दों को हल करने की दिशा में सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग का कितना व कैसे योगदान रहा ?
और क्या अच्छा हो सकता था ?वे क्या कारण रहें जिनकी वजह से मुद्दों में हीलाहवाली रही अथार्त वो समाधान को उपलब्ध नहीं हो पाए ?

 
जिससे ये सुनिश्चित हो की मुद्दे समाधान की दिशा में ठीक जा रहे हैं ?



ये ऊपरी खाका खींचा है मैंने, बिलकुल ऊपरी जिसके आधार पर अब इस श्रृंखला को आगे बढ़ाऊंगा?


इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे हिसाब से सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग,समाज सुधारकों आदि जितने भी ऐसे कारक हैं

जिनकी वजह से ये मुद्दे हल हो सकते हैं उनमे भी सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि सबसे अधिक दायित्व व सामर्थ्य सरकार के पास ही होता है


आज देश की हालत क्या है ?

सरकार कैसे चल रही है ?
सरकार की प्राथमिकता क्या दिखाई दे रही है ?
अपने सत्ता काल में सरकार ने मुद्दों को हल करने के लिए क्या भूमिका निभायी या मुद्दे किस दशा में रहे ?

ये सारी बातें आम जनता से छुपी नही हैं क्यूंकि जैसा की कल सेवानिवृत जनरल वी के सिंह ने कहा की देश में 1975 जैसे हालात हो गए हैं और जैसे उस समय जयप्रकाश जी ने मुहीम चलाई थी वैसे ही आन्दोलन,आक्रोश,चेतना,धैर्य व सूझबूझ व उससे भी ऊपर आपसी एकता की आवश्यकता है इस भ्रष्ट तंत्र से देश को बचाने के लिए


यानी मुद्दों से बड़ा मुद्दा जो इस समय देश के सामने है वो है मुद्दों को और बिगड़ने से बचाना वो भी उनसे जिन्हें इन्हें सुलझाना था


यानी रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं और ये तस्वीर है इस समय की


परन्तु इसके साथ एक सवाल और जुड़ा हुआ है और वो ये की इस सत्तारूढ़ दल के बाद जो भी सत्ता में आएगा उससे भी हमे बहुत अपेक्षा नहीं कर सकते या यूँ कहे की वो भी ऐसे ही निकलें तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए क्यूंकि पिछले 60 सालों से यानी आज़ादी के बाद से हम देख रहे हैं की देश की समस्याएं कितनी बढ़ी और कितनी घटीं

ऐसी स्थिति में आम नागरिक मायूस होता है और उसे ये लगता है की वो जिसे भी वोट देगा वो ही गद्दार निकलेगा,चोर निकलेगा,समाज के मुद्दों का तो जैसे कचरे के डिब्बे में कूड़ा डाला जाता है वैसा ही हाल होगा

ऐसी स्थिति में टीम अन्ना या ऐसे लोग जो साफ़ छवि वाले हैं इनका राजनीति में आने की घोषणा करना एक बहुत ही स्वस्थ सन्देश है न सिर्फ देश के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी

क्यूंकि इनके आने से निस्संदेह राजनीति में जो गन्दगी है कम होगी और बाकी दलों के नेता कुछ तो जनता का भला करने का सोचेंगे

लेकिन मुझे हंसी आती है ऐसे लोगों और नेताओं पर जो टीम अन्ना के मैदान में आने पर उनका मनोबल तोड़ने में लग गए हैं

इनका तो समझ में आता है क्यूंकि इनका हित नहीं होने वाला अच्छे लोगों के राजनीति में आने से परन्तु आश्चर्य और दुखद ऐसे लोगों की बातें सुनकर होता है जो बुद्धिजीवी वर्ग,मीडिया वर्ग से व समाज सुधारक वर्ग से हैं और वे भी टीम अन्ना को हतोत्साहित करने में लग गए


निस्संदेह ये लोग नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं और देश को सबसे ज्यादा खतरा भ्रष्ट नेताओं के साथ
ऐसे ही लोगों से है
इन गद्दारों की वजह से ही देश आज़ाद होके भी गुलाम की तरह है ये आस्तीन में छुपे हुए वो सांप हैं जिन्हें सिर्फ धन,बल,सम्पदा व सामर्थ्य से मतलब है क्यूंकि इसके अलावा इन्हें किसी बात से मतलब नहीं होता


भ्रष्ट नेताओं को बार बार जितवाने में ऐसे ही दूषित व गद्दार सोच वालों का सबसे बड़ा योगदान होता है


इसके साथ- साथ मैं ये भी कहूँगा की अच्छे लोगों के राजनीति में आने से एक बड़ा वर्ग खासकर देश का युवा वर्ग जो वोट
डालने नही जाता अब जाएगा

एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है
इलेक्शन कार्ड यानी मत पहचान पत्र का

मेरा मानना है ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए चुनावों से पहले की


1. सभी मत का अधिकार रखने वाले लोगों के पास मत पहचान पत्र हो
2.  और जब वे मत देने जाएँ तो लिस्ट में उनका नाम हो                                           

Thursday, 2 August 2012

बेशरम सरकार - संवेदनहीनता,नपुंसकता या नंगापन


टीम अन्ना के अनशन का आँठवा दिन और सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं


ये कैसी सरकार जो एक तरफ इतने डर में है की राज्यों की बिजली ही कटवा दे रही है और एक तरफ
 इतनी संवेदनशीलता नहीं जुटा पा रही है की देश हित के लिए अनशन पर बैठने वाले लोगों को सम्मान दे सके उनका हालचाल ले सके उनसे संवाद स्थापित कर सके


ये देश की बदकिस्मती है की ऐसी सरकार देश ने पायी है जो पकडे गए आतंकवादियों को तो सुरक्षा प्रदान करती है और रामलीला मैदान पर सो रहे निहत्थे लोगों  पर पुलिस बल का प्रयोग करवाती है

ये कैसी सरकार है जो घोटाले पर घोटाले कर रही है और घोटाले करने वाले मंत्रियों को और बड़े पद दे रही है

सत्ता विपक्ष भी मूक बने हुई है

मीडिया अनशन की खबर दिखाए न दिखाए इसी विचार में है

पत्रकारिता भी सवालों के घेरे में हैं और सिर्फ इस अनशन से ही नहीं बहुत दिनों से क्यूंकि चाहे हम टीवी पर देखें या अखबार पढ़ें कहीं भी कोई खबर जल्दी ऐसी नहीं दिखाई पड़ती जो तथ्यों  को दिखाने के साथ उनका सही आंकलन करे परिणाम की राह दिखाए

उससे भी बड़े दुःख की बात ये है की अधिकांशतः पत्रकारिता ग़लत तथ्यों,व्यर्थ मुद्दों और निरर्थक तर्कों तक सिमट के रह गयी है क्यूंकि सच्चाई से ज्यादा प्राथमिकता यहाँ भी धन,मान,बल,सामर्थ्य ही हो गया है शायद

आज न्यूज़ टीवी चैनेल्स जैसे जनता के साथ भद्दा मज़ाक करते हैं क्यूंकि ये खुद तो कारपोरेट हाउस द्वारा संचालित होते  है,सरकार से डरे रहते
हैं
बस एक व्यवसाय की भांति समाचार दिखाते हैं,चर्चा करते हैं  इनका रुझान टी आर पी पर ज्यादा होता है और खबर बस इस तरह बताएँगे,दिखाएँगे जिससे इनकी दाल रोटी पर संकट न आये


खैर दोषी तो सरकार ही है क्यूंकि भ्रष्टाचार वहीँ सबसे ज्यादा हो रहा है और इसीलिए न तो सरकार भ्रष्टाचार के किसी आन्दोलन में दिलचस्पी लेती है न ही मीडिया को पूरी तरह स्वतंत्र से अपना काम करने देती है



परन्तु  ऐसा  कब तक चलेगा ?
क्या भारत सरकार स्वयं भी गुलाम या गुलामी पसंद हो चुकी  है ?
क्या सरकार सिर्फ घोटाले करने के लिए ही रह गयी है?
क्या लोकतंत्र बहाल रखने में सरकार स्वयं ही एक रुकावट बन जाती है?
क्या देश के झंडे के प्रति नेताओं में सम्मान नहीं रह गया ?
क्या देश हित में बात करना भी एक गुनाह सा हो गया है ?
क्या समाज हित में बात करने वालों को प्रताड़ना और सजा मिलनी चाहिए ?
क्या राजनीति का मतलब सिर्फ पैसे बनाना रह गया है ?
क्या ऐसे नेताओं के अन्दर भगवान् का भी खौफ ख़त्म हो गया है ?
क्या सरकार ये नहीं मानती की वो जनता की वजह से है और जनता के प्रति जवाबदेह है ?
क्या इस तरह से किसी बड़े आन्दोलन को रोकके सरकार लोकतंत्र का हित कर रही है ?
क्या समाज में नैतिक मूल्यों के पतन के प्रति सरकार भी ज़िम्मेदार नहीं है ?
क्या राजनीति में साफ़ सुथरे व्यक्तित्व को हरगिज़ नहीं आना चाहिए ?
क्या  जनलोकपाल के आने से भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं कसेगी ?
क्या कोई मंत्री ऐसा हुआ है जो अपने पूरे घोटाले की रकम या काला धन अपने जीवन में उपयोग कर पाया ?
क्या समाज को देश व समाज के हित से जुड़े आंदोलनों में बढ़ चढ़ के भाग नहीं लेना चाहिए ?
  क्या एक इनकम टैक्स जोइंट कमिश्नर(अरविन्द केजरीवाल) अपने पद से इस्तीफा देके समाज सुधार आन्दोलन पैसे के लिए करने उतरेगा ?
क्या  ऐसे देशभक्तों के प्रति देश व समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?
क्या देश व समाज सुधार आन्दोलन से पूरा देश साथ नहीं आता ?
क्या ऐसे आन्दोलन में भी राजनीति होनी चाहिए ?
क्या ऐसे आन्दोलन के नाकाम होने से लोकतंत्र के ऊपर प्रश्नचिन्ह नहीं लगता ?