देश की व समाज की समस्याएं एक ही हैं यानी हमारे देश की जनता की समस्या ही
हमारे समाज की समस्या है लेकिन जो देश की
समस्याएँ हैं उनमे कुछ नितांत देश हित
से जुडी हुई हैं हालाँकि वो भी अपरोक्ष रूप से समाज की ही समस्याएं हैं ।
इन मुद्दों को,इन सामाजिक समस्याओं को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है इनके प्रति जागरूक होने से ही ये धीरे धीरे समाधान की तरफ अग्रसर होंगी ।
तो एक विभाग है मुद्दों का जो देश की अस्मिता,रक्षा से सम्बंधित है और एक विभाग है जो पूर्णतया सामाजिक मुद्दों पर आधारित है इन्हें समझना होगा और इन्हें ऐसे समझना होगा अथार्त इस दृष्टिकोणसे समझना होगा की इनके समाधान की तरफ भी बढ़ना होगा ।
इसके साथ साथ जिसके द्वारा इन मुद्दों का निदान होना है यानी सरकार उसकी दशा व दिशा भी समझनी होगी ।
यानी एक चार्ट बनके उभर रहा है या ये कहें की प्रारूप जिसमे हम देखेंगे की
देश के मुद्दे क्या हैं ?
सरकार की प्राथमिकता क्या है ?
विपक्ष व अन्य दलों की क्या सोच है?
सरकार की मुद्दों के प्रति क्या सोच है,कितनी गंभीरता है ?
अब इसके साथ साथ टाइम फैक्टर यानी समय चक्र को भी ध्यान में रखना है अथार्त ये रीविव ये समीक्षा एक निश्चित समय पर होनी आवश्यक है की
कौन कौन से मुद्दों में कितना सुधार आया है ?
कौन कौन से मुद्दे समाप्त हुए हैं?
कौन से नए मुद्दे और आ गए हैं ?
और इन मुद्दों को हल करने की दिशा में सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग का कितना व कैसे योगदान रहा ?
और क्या अच्छा हो सकता था ?वे क्या कारण रहें जिनकी वजह से मुद्दों में हीलाहवाली रही अथार्त वो समाधान को उपलब्ध नहीं हो पाए ?
इन मुद्दों को,इन सामाजिक समस्याओं को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है इनके प्रति जागरूक होने से ही ये धीरे धीरे समाधान की तरफ अग्रसर होंगी ।
तो एक विभाग है मुद्दों का जो देश की अस्मिता,रक्षा से सम्बंधित है और एक विभाग है जो पूर्णतया सामाजिक मुद्दों पर आधारित है इन्हें समझना होगा और इन्हें ऐसे समझना होगा अथार्त इस दृष्टिकोणसे समझना होगा की इनके समाधान की तरफ भी बढ़ना होगा ।
इसके साथ साथ जिसके द्वारा इन मुद्दों का निदान होना है यानी सरकार उसकी दशा व दिशा भी समझनी होगी ।
यानी एक चार्ट बनके उभर रहा है या ये कहें की प्रारूप जिसमे हम देखेंगे की
देश के मुद्दे क्या हैं ?
सरकार की प्राथमिकता क्या है ?
विपक्ष व अन्य दलों की क्या सोच है?
सरकार की मुद्दों के प्रति क्या सोच है,कितनी गंभीरता है ?
अब इसके साथ साथ टाइम फैक्टर यानी समय चक्र को भी ध्यान में रखना है अथार्त ये रीविव ये समीक्षा एक निश्चित समय पर होनी आवश्यक है की
कौन कौन से मुद्दों में कितना सुधार आया है ?
कौन कौन से मुद्दे समाप्त हुए हैं?
कौन से नए मुद्दे और आ गए हैं ?
और इन मुद्दों को हल करने की दिशा में सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग का कितना व कैसे योगदान रहा ?
और क्या अच्छा हो सकता था ?वे क्या कारण रहें जिनकी वजह से मुद्दों में हीलाहवाली रही अथार्त वो समाधान को उपलब्ध नहीं हो पाए ?
जिससे ये सुनिश्चित हो की मुद्दे समाधान की दिशा में ठीक जा रहे हैं ?
ये ऊपरी खाका खींचा है मैंने, बिलकुल ऊपरी जिसके आधार पर अब इस श्रृंखला को आगे बढ़ाऊंगा?
इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे हिसाब से सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग,समाज सुधारकों आदि जितने भी ऐसे कारक हैं
जिनकी वजह से ये मुद्दे हल हो सकते हैं उनमे भी सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि सबसे अधिक दायित्व व सामर्थ्य सरकार के पास ही होता है ।
आज देश की हालत क्या है ?
सरकार कैसे चल रही है ?
सरकार की प्राथमिकता क्या दिखाई दे रही है ?
अपने सत्ता काल में सरकार ने मुद्दों को हल करने के लिए क्या भूमिका निभायी या मुद्दे किस दशा में रहे ?
ये सारी बातें आम जनता से छुपी नही हैं क्यूंकि जैसा की कल सेवानिवृत जनरल वी के सिंह ने कहा की देश में 1975 जैसे हालात हो गए हैं और जैसे उस समय जयप्रकाश जी ने मुहीम चलाई थी वैसे ही आन्दोलन,आक्रोश,चेतना,धैर्य व सूझबूझ व उससे भी ऊपर आपसी एकता की आवश्यकता है इस भ्रष्ट तंत्र से देश को बचाने के लिए ।
यानी मुद्दों से बड़ा मुद्दा जो इस समय देश के सामने है वो है मुद्दों को और बिगड़ने से बचाना वो भी उनसे जिन्हें इन्हें सुलझाना था ।
यानी रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं और ये तस्वीर है इस समय की ।
परन्तु इसके साथ एक सवाल और जुड़ा हुआ है और वो ये की इस सत्तारूढ़ दल के बाद जो भी सत्ता में आएगा उससे भी हमे बहुत अपेक्षा नहीं कर सकते या यूँ कहे की वो भी ऐसे ही निकलें तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए क्यूंकि पिछले 60 सालों से यानी आज़ादी के बाद से हम देख रहे हैं की देश की समस्याएं कितनी बढ़ी और कितनी घटीं ।
ऐसी स्थिति में आम नागरिक मायूस होता है और उसे ये लगता है की वो जिसे भी वोट देगा वो ही गद्दार निकलेगा,चोर निकलेगा,समाज के मुद्दों का तो जैसे कचरे के डिब्बे में कूड़ा डाला जाता है वैसा ही हाल होगा ।
ऐसी स्थिति में टीम अन्ना या ऐसे लोग जो साफ़ छवि वाले हैं इनका राजनीति में आने की घोषणा करना एक बहुत ही स्वस्थ सन्देश है न सिर्फ देश के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी ।
क्यूंकि इनके आने से निस्संदेह राजनीति में जो गन्दगी है कम होगी और बाकी दलों के नेता कुछ तो जनता का भला करने का सोचेंगे ।
लेकिन मुझे हंसी आती है ऐसे लोगों और नेताओं पर जो टीम अन्ना के मैदान में आने पर उनका मनोबल तोड़ने में लग गए हैं ।
इनका तो समझ में आता है क्यूंकि इनका हित नहीं होने वाला अच्छे लोगों के राजनीति में आने से परन्तु आश्चर्य और दुखद ऐसे लोगों की बातें सुनकर होता है जो बुद्धिजीवी वर्ग,मीडिया वर्ग से व समाज सुधारक वर्ग से हैं और वे भी टीम अन्ना को हतोत्साहित करने में लग गए ।
निस्संदेह ये लोग नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं और देश को सबसे ज्यादा खतरा भ्रष्ट नेताओं के साथ ऐसे ही लोगों से है ।
इन गद्दारों की वजह से ही देश आज़ाद होके भी गुलाम की तरह है ये आस्तीन में छुपे हुए वो सांप हैं जिन्हें सिर्फ धन,बल,सम्पदा व सामर्थ्य से मतलब है क्यूंकि इसके अलावा इन्हें किसी बात से मतलब नहीं होता ।
भ्रष्ट नेताओं को बार बार जितवाने में ऐसे ही दूषित व गद्दार सोच वालों का सबसे बड़ा योगदान होता है ।
इसके साथ- साथ मैं ये भी कहूँगा की अच्छे लोगों के राजनीति में आने से एक बड़ा वर्ग खासकर देश का युवा वर्ग जो वोट डालने नही जाता अब जाएगा ।
एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है इलेक्शन कार्ड यानी मत पहचान पत्र का ।
मेरा मानना है ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए चुनावों से पहले की
1. सभी मत का अधिकार रखने वाले लोगों के पास मत पहचान पत्र हो ।
ये ऊपरी खाका खींचा है मैंने, बिलकुल ऊपरी जिसके आधार पर अब इस श्रृंखला को आगे बढ़ाऊंगा?
इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मेरे हिसाब से सरकार,समाज,मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग,समाज सुधारकों आदि जितने भी ऐसे कारक हैं
जिनकी वजह से ये मुद्दे हल हो सकते हैं उनमे भी सरकार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि सबसे अधिक दायित्व व सामर्थ्य सरकार के पास ही होता है ।
आज देश की हालत क्या है ?
सरकार कैसे चल रही है ?
सरकार की प्राथमिकता क्या दिखाई दे रही है ?
अपने सत्ता काल में सरकार ने मुद्दों को हल करने के लिए क्या भूमिका निभायी या मुद्दे किस दशा में रहे ?
ये सारी बातें आम जनता से छुपी नही हैं क्यूंकि जैसा की कल सेवानिवृत जनरल वी के सिंह ने कहा की देश में 1975 जैसे हालात हो गए हैं और जैसे उस समय जयप्रकाश जी ने मुहीम चलाई थी वैसे ही आन्दोलन,आक्रोश,चेतना,धैर्य व सूझबूझ व उससे भी ऊपर आपसी एकता की आवश्यकता है इस भ्रष्ट तंत्र से देश को बचाने के लिए ।
यानी मुद्दों से बड़ा मुद्दा जो इस समय देश के सामने है वो है मुद्दों को और बिगड़ने से बचाना वो भी उनसे जिन्हें इन्हें सुलझाना था ।
यानी रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं और ये तस्वीर है इस समय की ।
परन्तु इसके साथ एक सवाल और जुड़ा हुआ है और वो ये की इस सत्तारूढ़ दल के बाद जो भी सत्ता में आएगा उससे भी हमे बहुत अपेक्षा नहीं कर सकते या यूँ कहे की वो भी ऐसे ही निकलें तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए क्यूंकि पिछले 60 सालों से यानी आज़ादी के बाद से हम देख रहे हैं की देश की समस्याएं कितनी बढ़ी और कितनी घटीं ।
ऐसी स्थिति में आम नागरिक मायूस होता है और उसे ये लगता है की वो जिसे भी वोट देगा वो ही गद्दार निकलेगा,चोर निकलेगा,समाज के मुद्दों का तो जैसे कचरे के डिब्बे में कूड़ा डाला जाता है वैसा ही हाल होगा ।
ऐसी स्थिति में टीम अन्ना या ऐसे लोग जो साफ़ छवि वाले हैं इनका राजनीति में आने की घोषणा करना एक बहुत ही स्वस्थ सन्देश है न सिर्फ देश के लिए बल्कि लोकतंत्र के लिए भी ।
क्यूंकि इनके आने से निस्संदेह राजनीति में जो गन्दगी है कम होगी और बाकी दलों के नेता कुछ तो जनता का भला करने का सोचेंगे ।
लेकिन मुझे हंसी आती है ऐसे लोगों और नेताओं पर जो टीम अन्ना के मैदान में आने पर उनका मनोबल तोड़ने में लग गए हैं ।
इनका तो समझ में आता है क्यूंकि इनका हित नहीं होने वाला अच्छे लोगों के राजनीति में आने से परन्तु आश्चर्य और दुखद ऐसे लोगों की बातें सुनकर होता है जो बुद्धिजीवी वर्ग,मीडिया वर्ग से व समाज सुधारक वर्ग से हैं और वे भी टीम अन्ना को हतोत्साहित करने में लग गए ।
निस्संदेह ये लोग नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं और देश को सबसे ज्यादा खतरा भ्रष्ट नेताओं के साथ ऐसे ही लोगों से है ।
इन गद्दारों की वजह से ही देश आज़ाद होके भी गुलाम की तरह है ये आस्तीन में छुपे हुए वो सांप हैं जिन्हें सिर्फ धन,बल,सम्पदा व सामर्थ्य से मतलब है क्यूंकि इसके अलावा इन्हें किसी बात से मतलब नहीं होता ।
भ्रष्ट नेताओं को बार बार जितवाने में ऐसे ही दूषित व गद्दार सोच वालों का सबसे बड़ा योगदान होता है ।
इसके साथ- साथ मैं ये भी कहूँगा की अच्छे लोगों के राजनीति में आने से एक बड़ा वर्ग खासकर देश का युवा वर्ग जो वोट डालने नही जाता अब जाएगा ।
एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है इलेक्शन कार्ड यानी मत पहचान पत्र का ।
मेरा मानना है ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए चुनावों से पहले की
1. सभी मत का अधिकार रखने वाले लोगों के पास मत पहचान पत्र हो ।
2. और जब वे मत देने जाएँ तो लिस्ट में उनका नाम हो ।
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