माघ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-2068, मंगलवार
विक्रमी संवत 2068 श्री कृष्ण संवत 5236 राष्ट्रीय शाके 1933
सभी पढने वालों और मित्रों का आभार जो निरंतर कम होती पोस्ट्स को भी पढने के लिए आते रहते हैं और इस तरह से ब्लॉग के साथ बने हुए हैं और फिर से विशेषाभार ऐसे ब्लॉगर मित्रों को जिनके ब्लॉग पर मेरे न पधारने पर भी वे इसे ग़लत नहीं लेते और फिर भी उत्साह से सकारात्मकता से की गयी पोस्ट्स को पढ़ते हैं । उन मित्रों का भी शुक्रिया जो मेहनत व लगन से किया गयी अपनी उत्कृष्ट पोस्ट्स का सन्देश दे देते हैं जिसके कारण ज्ञान में बढ़ोत्तरी हो जाती है ।
सभी को फिर से साधुवाद ।
मैं अपने सभी ब्लॉगर मित्रों और नेट मित्रों को कई बार मैं बता चूका हूँ की मैं नेट पर कम ही आता हूँ इसलिए इसे अन्यथा न लें साथ ही सभी दोस्त जो भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से बने हैं उनका आभार करना चाहूँगा ।
अभी तक मेरी नेट की प्रक्रियाएं मेरे इसी ब्लॉग द्वारा ही होती रही हैं ।
दोस्तों आप सोच रहे होंगे की इस पोस्ट को लिखने का प्रयोजन क्या है तो उसे मैं बताना चाहता हूँ की इस तरह से मैं अपने तमाम मित्रों व पाठकों का धन्यवाद करना चाहता हूँ और ये भी बताना चाहता हूँ की यदि कोई प्रश्न खासकर आध्यात्मिक या सामाजिक या फिर व्यक्तिगत भी है और अनिर्णय की स्थति में हैं तो अपने इस मित्र की राय भी ले सकते हैं यदि चाहें तो । पहले कुछ काव्य की साइट्स पर भी मैं जाता था जहाँ जाना संभव नहीं है क्यूंकि मैं ब्लॉग पर ही कम से कम आ पाता हूँ । दोस्तों नेट पर भी कम से कम आने का सिर्फ एक कारण है की
स्वाभाविक रूप से ही मैं थोडा अंतर्मुखी प्रवृत्ति का था और अब तो इस सिद्धांत को मानने लगा हूँ की विश्व का भला जितना एक कर्मयोगी करता है उतना ही सांख्ययोगी भी इसलिए जितना कम हो उतना दुनिया से लगाव रखता हूँ परन्तु चूँकि ब्लॉग पर लिखता आ रहा हूँ और मेरे सर्वाधिक प्रिय विषय अध्यात्म पर ही ये ब्लॉग आधारित है तो आता रहता हूँ साथ ही किसी न किसी रूप में थोडा बहुत ही सही रचनात्मकता पर योगदान देने का प्रयत्न करता रहता हूँ ।
दोस्तों नेट की दुनिया में आदमी जितनी जल्दी बातों को सकारात्मक रूप से समझता है नकारात्मक रूप से भी ले सकता है,साथ ही कई बार हमारे दोस्त सोचते हैं की फला मित्र नाराज़ तो नहीं या हमे ग़लत तो नहीं समझता
इसलिए मैं अपनी तरफ से ये कहना आवश्यक समझता हूँ की मैं किसी से भी नाराज़ नहीं हूँ और ऐसा सोचने वाले मित्रों से भी आग्रह यही करूँगा की जीवन तत्त्व को समझें ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा है,प्रत्येक प्राणी को उसके समय का सदुपयोग करना चाहिए जो की आत्म चिंतन से ही होता है । अपने सभी दोस्तों का मैं बहुत आभारी हूँ जिन्होंने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया । मैं कैसे अध्यात्म की तरफ उन्मुख होता चला गया ये मैं स्वयं ही नहीं जानता परन्तु कदाचित जीवन लक्ष्य विधाता द्वारा येही था मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझता हूँ जो मेरे जैसे संसारी को थोडा आध्यात्मिक ज्ञान मिला और मिल रहा है । मैं अपने दोस्तों से और पढ़नेवालों से भी क्षमा चाहता हूँ की पहले की तरह नेट पर नहीं आ पाता या कविता नहीं लिखता । मुझे विश्वास है आप दोस्त इसे समझेंगे व इस पथ पर भी मेरा साथ देंगे व अपना भी आत्मिक कल्याण करेंगे ।
मैं स्पष्ट कहने में विश्वास रखता हूँ और इसलिए अपनी सोच प्रकट करी ।
मैंने ऐसा इसलिए भी लिखा क्यूंकि मैं पोस्ट्स को लिखते वक़्त भले ही वो किसी भी विषय पर अध्यात्म,कविता,आलेख आदि पर हो ये ही प्रयास करता हूँ की वो व्यक्तिगत या वैक्तिक रूप से न लिखी जाएँ न ही पढ़ी जाएँ क्यूंकि उससे हमारी सोच का दायरा भी सिमित होता है साथ ही उसमे विकार आने की संभावना बनी रहती है क्यूंकि व्यक्ति के विचारों से स्वतंत्रता अथवा उन्मुक्तता का भाव स्थिर नहीं रह पाता और इस तरह से लेखक ह्रदय या कवि ह्रदय सही मायनों में संतुष्ट नहीं होता ।
रामचरितमानस में आया है
कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
कीर्ति, कविता(लेखादि) और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी की तरह सबका हित करने वाली हो ।
पुनः सभी मित्रों का आभार ।
सतत लेखन की शुभकामनायें...... आपकी पोस्ट्स बहुत कुछ सिखाती समझाती हैं...आभार
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