माया में परमात्मा की लुभाया है प्राणी
अज्ञान में जीवन बिता रहा है प्राणी
सत्संग से ही मिटता है आत्मिक अन्धकार
बिना सत्संग सब कुछ करता है प्राणी
सबकुछ तो मिला है परमेश्वर से मगर
परमेश्वर को ही नहीं भजता है प्राणी
मान,दंभ,अहम् का दास बना हुआ
खुद को अमर समझता है प्राणी
प्रेम है परमात्मा को संतों से
उनसे ही द्वेष रखता है प्राणी
न लिया नाम प्रभु का फिर वाणी किस काम की
न जपा प्रभु को फिर ये उंगलियाँ किस काम की
न देखा ईश्वरमय ये जगत तो आँखें किस काम की
न सोचा प्रभु की करुना फिर मन-बुद्धि किस काम की
न रखा प्रभु को ह्रदय में फिर भावनाएं किस काम की
न महसूस किया उसे साँसों में फिर ये डोर किस काम की
कैसा वो सुख जो मात्र संसार की आसक्ति में मिले
कैसा वो जीवन जिसमे ईश्वर की भक्ति न खिले
कैसी वो कविता जिसमे प्रभु का गुणगान न हो
कैसी वो कलम जिसकी सियाही से गुणगान न हो
प्रभु ने सभी को सबकुछ दे रखा है
हर तरफ करुना बरसा रखा है
राम,कृष्ण,शिव के नामों से
भवसागर से पार लगा रखा है
ये प्रभु की अपार कृपा है जो
उसने हरेक पर कृपा रखा है
दे दो हे परमेश्वर मुझ कुबुद्धि को थोड़ी सी भक्ति
कर पाऊं तुम्हारा गान इतनी दे दो मुझे शक्ति
भोले भाले प्यारे प्यारे श्याम जी हैं श्याम जी
जग के पालनहार प्यारे राम जी है राम जी
माता यशोदा के दुलारे जगतपिता हैं नंदनंदन
फिर भी मधुर लीलाओं से महकाते रहे व्रज के नंदन
पूतना को मारा तो कालिय नाग पर कृपा करी
माँ ने मुंह में जगत देखा जब आपने मिटटी खायी
अपने भक्तों पर कृपा हेतु की माखन चोरी
सखाओं के साथ मिलके आपने मटकी फोरी
भक्तों के प्यारे,भक्ति के धाम हैं श्याम जी
भोले भाले प्यारे प्यारे श्याम जी हैं श्याम जी
ब्रह्मा जी भी चकित हो बैठे आपकी लीला पर
गोवर्धन उठाया आपने चेता इन्द्र जो था बेखबर
ग्वाल-बालों संग खेले खूब राम बलराम जी
भोले भाले प्यारे प्यारे श्याम जी हैं श्याम जी
आपकी कृपा स्वरुप थी रास लीला भी
गीता भी बंसी की अद्भुत अमृतमय है तान सी
भोले भाले प्यारे प्यारे श्याम जी हैं श्याम जी
भोले भाले प्यारे प्यारे श्याम जी हैं श्याम जी
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