प्रस्तुत लेख लिखने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य है की ब्लॉग जगत अपनी क्षमताओं को जाने उनकी समीक्षा करे,आंकलन करे व जिस तरह से सही दिशा में बढ़ रहा है उसी तरह से और भी अच्छी तरह बढे ।
हालाँकि मैं स्वयं ब्लॉग जगत का एक नियमित सदस्य नहीं हूँ परन्तु नेट से काफी दिनों से जुडा हूँ साथ ही ब्लॉग जगत में भी जाता रहता हूँ तो ब्लॉग जगत की खूबी खामियों से भी परिचित हूँ ।
मैं उन सभी ब्लॉगर दोस्तों का आभार करना चाहूँगा जो निरंतर ज्ञानवर्धक लेख द्वारा ज्ञान बांटते हैं मैं भले टिप्पड़ी न दे पाऊं परन्तु उनकी पोस्ट्स से ज्ञान अर्जत करता रहता हूँ ।
मेरा ये मानना है की किसी विषय पर लिखने के लिए व्यक्ति को उसका अनुभव हो ये आवश्यक नहीं,व्यक्ति स्वयं के अनुभव के साथ विवेक,निष्पक्षता व संवेदनशीलता को आधार बनाकर किसी भी विषय पर अपनी क्षमता से ज्यादा लिख सकता है अथवा अपनी राय व्यक्त कर सकता है ।
इसके साथ ही नए ब्लॉगर से व ऐसे ब्लॉगर जो ब्लॉग्गिंग से दूर हो गए से ये कहना चाहूँगा की स्वयं को जो अच्छा लगता है उसी गुण को बढाते हुए लिखें ।
ब्लॉग्गिंग की परिभाषा मेरे शब्दों में ये है की व्यक्ति स्वयं की सृजन क्षमता पहचाने उसे बढाए,साथ में समय समय पर अपनी समीक्षा करता रहे व अपने में विद्यमान गुणों का निरंतर संवर्धन करता रहे ।
अपनी कृति में मिली संतुष्टि अथवा अपने विचारों को निष्पक्ष भाव से रखने में ही व्यक्ति की असली संतुष्टि होती है और वस्तुतः इस तरह से ही प्रेरणा मिलती है ।
मेरा ये दृढ़ता से मानना है की पोस्ट्स में ज्यादा से ज्यादा टिप्पड़ी पोस्ट की गुणवत्ता का मापक नहीं ।
इन्टरनेट आज उद्योग,व्यापार,व्यवसाय से जुडी संस्थाओं के साथ सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं के कार्य हेतु अनिवार्य हो चुका है । इसके साथ साथ इन्टरनेट शुरू से ही विचारों के आदान प्रदान का एक सशक्त माध्यम रहा है चाहे वो विचार के रूप में हो अथवा सृजन क्षमता के रूप में अथवा जानकारी के रूप में ।
जिस तरह से विचारों का सही आदान प्रदान और साझापन इन्टरनेट अथवा ब्लॉग जगत की एक प्रमुख खूबी है उसी तरह से विचारों को ग़लत तरह से लेना अथवा ग़लत आदान-प्रदान अथवा ग़लतफहमी एक प्रमुख खामी है जिससे ना सिर्फ व्यक्ति अपनी सृजन क्षमता से गिरता है बल्कि अपने साथ के ही ब्लॉगर दोस्तों अथवा दोस्त को भी नकारात्मक करता है और इस तरह से एक नकारात्मक वातावरण के तहत और ऐसी सोच के तहत सृजन होने लगता है और ब्लॉगर जगत जितना एक दिशा में बढ़ा उतना ही घटा इस अवस्था में आ जाता है अथार्त जितनी गुणवत्ता बढ़ी उतनी ही गुणवत्ताहीनता भी ।
ब्लॉगर के गुणवत्ता प्रधान होते ही न सिर्फ उसका सृजन सकारात्मक दिशा में होने लगता है बल्कि ब्लॉग जगत में भी सकारात्मकता बढ़ने लगती है ।
मैं मानता हूँ की अच्छाई बुराई हमेशा से समाज में रही हैं,रहेंगी लेकिन मैं ये भी मानता हूँ की बुराई सिर्फ अच्छाई से ही दूर हो सकती है वस्तुतः व्यक्ति कभी कोई बुरा नहीं होता बुरी होती है सोच अतः बुराई को व्यक्तिगत रूप से नहीं देखना चाहिए जिस वक़्त व्यक्ति में बुरी सोच घटने लगती है अच्छाई बढ़ने लगती है और कालान्तर में सिर्फ अच्छाई रह जाती है ।
आज ब्लॉग जगत बहुत बड़ा नहीं खासकर हिंदी ब्लॉग जगत अतः आपस में सौहार्दपूर्ण तरह से रहते हुए हमे इसे बढ़ाना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए की जितने ब्लॉग किसी महीने में नए बने उतने से दुगुना लोगों द्वारा डिलीट कर दिए गए अथवा ब्लोग्गर्स ने लिखना बंद कर दिया अथवा लिखने में रूचि कम कर दी ।
ब्लॉग्गिंग जगत से यदि हमे लिखने का प्लेटफ़ॉर्म मिला है तो क्या ब्लॉग्गिंग जगत में सकारात्मक योगदान के प्रति हमे संवेदनशील नहीं होना चाहिए क्यूंकि इसमें भी तो आखिर हम अपनी सृजनक्षमता ही बेहतर करेंगे ।
ब्लॉग्गिंग जगत से यदि हमे लिखने का प्लेटफ़ॉर्म मिला है तो क्या ब्लॉग्गिंग जगत में सकारात्मक योगदान के प्रति हमे संवेदनशील नहीं होना चाहिए क्यूंकि इसमें भी तो आखिर हम अपनी सृजनक्षमता ही बेहतर करेंगे ।
कुछ विचारणीय प्रश्न :
क्या हम अपनी ब्लॉग्गिंग से खुश हैं
क्या हमे लगता है की हम अपनी सृजन क्षमता बढ़ा पा रहे हैं ?
क्या हमे लगता है की हम सकारात्मक रूप से सृजन करते हैं ?
क्या हमे लगता है की हम स्वयं की सृजन क्षमता के लिए निष्पक्ष हैं ?
हम दूसरों के विचारों अथवा पोस्ट्स में खूबी ज्यादा देखते हैं या खामी ?
क्या हम किसी ग़लतफहमी के होने पर संवाद करते हैं ?
हम साथी ब्लोग्गेर्स में ग़लत फहमियाँ दूर करते हैं या उन्हें और बढाते हैं ?
कहीं अपने ब्लॉग्गिंग को सिर्फ अपने व्यक्तिगत संदेशों का ही माध्यम तो नहीं बनाया हुआ है ?
क्या निरंतर नकारात्मक सृजन के चलते पाठकों से भी अन्याय करते हैं हम ?
क्या हम और ब्लोग्गेर्स मित्रों को टिप्पड़ी सिर्फ इसलिए देते हैं की वो भी हमारे ब्लॉग पर टिप्पड़ी दें ?
क्या ज्यादा से ज्यादा टिप्पड़ी पाने के लिए हम लेखन करते हैं ?
क्या हमे मालूम है नकारात्मक सृजन करके हम स्वयं का भी समय खराब करते हैं ?
क्या हम ज्ञानवर्धक ब्लोग्स को प्रधानता देते हैं ?
क्या हम किसी गुणवत्ताहीन पोस्ट को गुणवत्तापरक पोस्ट पर सिर्फ इसलिए तरजीह दे देते हैं क्यूंकि वो हमारे मित्र ब्लॉगर द्वारा बनायी गयी है ?
क्या हमने अलग अलग नामों से अपने अलग अलग ब्लॉग बनाये हुए हैं ?
क्या ऐसा करके हम अपने ही ब्लॉगर मित्रों को धोखा नहीं दे रहे हैं ?
क्या हम अपने ब्लॉग व ब्लॉग जगत में दिए योगदान से संतुष्ट हैं ?
क्या आज से १० साल बाद हमसे हमारी आज की ब्लॉग्गिंग पर पूछा जाए तो हम इसे उचित ठहराएंगे?
हम दूसरों के सृजन को उसके व्यक्तित्व से तोलते हैं अथवा शब्दों (सृजन) से ?
ये प्रश्न स्वयं में ही उत्तर लिए हुए हैं ।
इन्टरनेट अथवा ब्लॉग जगत दोनों में मेरा मानना है व्यक्ति शब्दों को ही पढता है और पढने वाला अपने मन-मस्तिष्क से ही उसके अर्थ निकालता है। जब तक उसने सही अर्थ निकाला तब तक तो संवाद अथवा बातचीत की ज़रूरत नहीं परन्तु ग़लत अर्थ निकालने लेने पर व्यक्ति लिखने वाले से बिने पूछे उसके प्रति एक मिथ्या धारणा बनाने लगता है और इस तरह से स्वयं ही नकारात्मक हो जाता है ।बहुधा होता ये होता है लिखने में कोई टैक्स तो लगता नहीं तो दूसरा व्यक्ति सही होते हुए भी सामने वाले को ग़लत करते देख स्वयं भी अपरिपक्व व नकारात्मक हो जाता है और इस तरह से ये सिलसिला चलने लगता है फिर इसमें एक दुसरे के गुट के लोग भी सम्मिलित हो जाते हैं फिर ये और ग़लत रूप अख्तियार कर लेता है और अनवरत ऐसा चलने लगता है ।
इस तरह से जहाँ हम एक संभावित मित्र को खो देते हैं वहीँ हम अपने मित्रों का भी ग़लत उपयोग करते हैं ।
बल्कि ये तब और दुखित होता है जब मित्र ही आपस में ग़लतफहमी रख लें और इस तरह से अपने अपने मित्रों का गुट बना लें और मित्रता को ही भूलने लगें ।
बल्कि ये तब और दुखित होता है जब मित्र ही आपस में ग़लतफहमी रख लें और इस तरह से अपने अपने मित्रों का गुट बना लें और मित्रता को ही भूलने लगें ।
परन्तु संवेदनशीलता का आधार परिपक्वता भी है अतः समझदार व्यक्ति पहली बात तो वो किसी बात को ग़लत नहीं लेता । यदि उसे ऐसा लगता भी है तो वो संवाद करके इसे सुलझा लेता है परन्तु कुछ भी हो वो स्वयं को नकारात्मक नहीं होने देता ?
मेरा मानना है यदि हम निम्नलिखित बातों को महत्व देता हैं तो हम न सिर्फ अपनी सृजन क्षमता बढ़ा रहे हैं बल्कि ब्लॉग जगत की सकारात्मकता में भी उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं ।
अपने जितने भी ब्लॉग हमने बनाए हैं सभी अपने ब्लॉग में साथ रखे हैं ।
हमने अलग अलग नामों से अलग अलग ब्लॉग नहीं बनाए हैं ।
हमने टिप्पड़ी को गुणवत्ता का आधार नहीं माना है ।
हम निष्पक्ष रूप से अपने विचार टिप्पड़ी में भी व्यक्त करते हैं ।
अपनी सृजन क्षमता का इस्तेमाल अपने ज्ञान बढाने में लगाते हैं ना की उसे व्यक्तिगत रूप देके दूसरों पर
दोषारोपण करने में अथवा दूसरों को कष्ट देने में ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 13-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सारी बातें और प्रश्न विचारणीय हैं...... आपकी बात से पूर्ण सहमति है की ब्लॉग्गिंग में सकारात्मक सृजन हो ,
ReplyDeleteबहुत ईमानदारी से अपने विचार प्रस्तुत किये हैं आपने |
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि मनुष्य को कोइ भी काम करते समय साफ मन और पूरी निष्ठा के सबूत देना चाहिय |
ब्लोगिंग का प्लेटफार्म तो सबसे अच्छा माध्यम है अपने विचार रखने का |फिर व्यक्तिगत आरोपों से क्या लाभ |
आशा
Aapki baato'n se puri tarah sehmat hoo'n bhai...
ReplyDeleteहम सब के लिए एक सार्थक पोस्ट ...
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें !
aapka aatm chintan sabko aaina dikhata hai...bahut hi sadhe sabdon me behad prernamayee bichaar..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteबड़ी सुंदर विवेचना कर डाली.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
प्रताप जी - विचारणीय प्रश्न हैं आपके |
ReplyDeleteक्या आप निरामिष ब्लॉग पर गए हैं कभी ? मुझे लगता है की आपको पसंद आएगा (अक्सर मैं आपको राकेश भैया के मनसा वाचा कर्मणा ब्लॉग पर ही देखती हूँ आपके लेखन और टिप्पणियों से ऐसा लगा ) - एक बार ज़रूर देखिएगा | http://niraamish.blogspot.in/