जीवन वो ही सार्थक जिसमे दिखावे का नाम नहीं
होता है आगाज़ दंभ में होता कभी अंजाम नहीं
रहगुज़र में गुज़र जाए जिंदगानी बहुत अच्छी है
ऊंचे महलों में मिले कैसे है जब वहां आराम नहीं
रब को देखना अगर चाहो तो देखो उसके बन्दों को
करो सलाम सबसे खुद के लिए चाहो एहतराम नहीं
नमाज़ अलग होने से काफिर नहीं हो जाता कोई
खुदा के बगैर पूरा हुआ हो ऐसा कोई कलाम नहीं
सुख दुःख ग़म ख़ुशी ये बादलों के मौसम हैं फ़क़त
इनसे ऊपर है आसमान जहाँ इनका कोई काम नहीं
ख़ुशी अपनी तलाशने लगता हैं जब औरों के ग़म में
बरकत है उसकी ज़िन्दगी होता कभी वो नाकाम नहीं
'प्रताप' बहादुर है तू जो नुमाया कर अपने ऐबों को
देख ज़हन में भी उभरे हरगिज़ कोई इलज़ाम नहीं
पवित्र भावना, सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपके इस प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 05-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
क्या बात है जी ! बहुत सारी ,बातें ,तत्थ्यों को एक साथ संजोने की प्रवीणता को और होली की बहुत -२ बधाईयाँ /
ReplyDeleteपर आज के वक्त में दिखावे के बिना कोई काम नहीं हैं
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं