Friday, 20 April 2012

मानसिक ऊर्जा सकारात्मक चिंतन से स्वस्थ व सदुपयोगी रहती है

हम यदि गौर करें तो पायेंगे की असल में हमारे सोच के मानक क्या हैं अथवा हमारी सोच के आधार क्या हैं ?
क्या हम प्रेरित होते हैं ?
हमारी प्रेरणा के आधार क्या हैं ?
क्या हम कुछ ऐसा करते हैं की जिससे दूसरे हमसे प्रेरणा ले सकें ?
क्या हम दूसरों से प्रेरणा लेते हैं ?
हम सकारात्मक तत्व में ज्यादा रूचि लेते हैं या नकारात्मक तत्व अथार्त बात में ?
हमे जीवन का उजला पक्ष अच्छा लगता है या धुंधला अथार्त हम ज़िन्दगी को सकारात्मक लेते हैं या नकारात्मक ?
हम दूसरों में खूबियाँ अधिक देखते हैं या खामियां ?
हम स्वयं में खूबियाँ अधिक देखते हैं या खामियां ?
क्या हम भावुक हैं ?
क्या हमे मालूम हैं की भावुक होना व्यक्तित्व का मज़बूत पक्ष होता है ?
हम अपनी भावुकता का सदुपयोग करते हैं या दुरूपयोग ?
क्या हमे मालूम है की विषम परिस्थति खासकर मानसिक में उबरने का अनुपात हमारा कैसा है ? 
हम दूसरों को सहारा देते हैं या दूसरों में सहारा ढूंढते हैं ?
क्या हम दूसरों की मुक्त भाव से प्रशंसा कर पाने में आगे रहते हैं ?
क्या हम दूसरों की मुक्त भाव से निंदा करने में आगे रहते हैं ?
क्या हम सहज ढंग से किसी अच्छी बात को अच्छी बात भी नहीं कह पाते ?
क्या हम जैसा दूसरों से अपने प्रति व्यवहार चाहते हैं वैसा दूसरों के साथ करते हैं ?
क्या हम निष्पक्ष रूप से अपना आंकलन करते हैं ?
क्या हमने निष्पक्ष भाव से आंकलन करने वाले अपने मानक रखे हैं?

  
ये प्रश्न अपने आप में उत्तर लिए हुए हैं और इससे बड़ी आसानी से हम अपनी विचारधारा के बारें में जान सकते हैं। हमे ये मालुम चल जाता है की हम नकारात्मक हैं या सकारात्मक अथवा मिश्रण व हमे और सकारात्मक होने के लिए और क्या करना होगा जिसमे मेरा मानना है सबसे अधिक है स्वस्थ चिंतन और क्रियान्वन 
अधिकतर हम प्रेरणादायी चीज़ों से प्रेरणा लेने के बजाय उस चीज़ अथवा बात पर ध्यान देते हैं जो नकारात्मक होती है अथार्त जो बात हमे अच्छी लगी उससे ज्यादा हमे वो बात प्रभावित करती है जिसने हमे उदविग्न अथवा दुखित किया
सत्संग में भी मुझे अधिकतर ऐसे लोग मिलते हैं जो अपनी वैचारिक ऊर्जा का सही उपयोग न कर पाने की वजह से दुखित होते हैं व निदान चाहते हैं परन्तु स्वयं का आंकलन कर वो स्वयं ही सहज हो उठते हैं व उन्हें पता चल जाता है की असली समस्या हमारे सोचने के ढंग में होती है
व्यक्ति को ये कभी नहीं भूलना चाहिए की असल में उसकी मानसिक ताकत अपनी समस्या के कारणों अथवा सकारात्मक चिंतन पर पर निकल रही है अथवा सिर्फ समस्या पर 
हमे इसका भान होना चाहिए की हम जीवन में सकारात्मक रूप से सोचते हुए बढ़ रहे हैं या नकारात्मक रूप से

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