Sunday, 9 September 2012

इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे

इन बूढी आँखों ने जाने कितने  नए सवेरे देखे
कितने वृक्ष बढ़ते देखे कितने पत्ते गिरते देखे
सावन कई सुहाने देखे और कई सावन बिन सावन देखे
कई भोर की अंगडाई कई अंधियारे घनेरे देखे

इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे


हालातों के जंगल में हौसलों की डगर बनायीं

तिनके तिनके जोडके सुखों की थोड़ी छाँव पायी
जाल विपत्ति का बिछाए रहा बहेलिया कभी
जा जा कर अपने लोगों को फसते धीरे धीरे देखे

इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे


रैन वक़्त की बीत रही रैन वक़्त की बता रही

कानों को हौले हौले नए वक़्त की आहट आ रही
जीवन जब तक तब तक होठों पे रहे मुस्कराहट
इसी जज्बे से ऐसे कितने जिंदादिली से जीते देखे

इन बूढी आँखों ने जाने कितने नए सवेरे देखे