Wednesday, 5 October 2011

जी भर कर रो लेने दे दातार मुझे


जी  भर  कर   रो  लेने  दे  दातार  मुझे 
हे  परमेश्वर  कर  स्वीकार   मुझे

मैं   पापी  ,कुबुद्धि  ,कुटिल  ,कुचाली 
माया  में  भटकता  रहा  मैं  कुविचारी 
तुझे   ना  ध्याया , न  मन  से  सुमिरन  किया 
जीवन  में  तेरे  सिवा  प्रभु  सबकुछ  किया

अपने  चरणों  में  प्रेम  दे  कर  पार  मुझे 
जी  भर  कर  रो  लेने  दे  दातार  मुझे


मायिक  जगत  के  मायिक  बन्धनों  में  पड़ा  रहा
एक  दिन  क्या  प्रभु  सालों  तुझे  ना  याद  किया
मेरा अभाग्य  जो  इतने  साल  जीवन  के  चले  गए 
मेरा  सौभाग्य  जो  परमात्मा  मुझे  मिल  गए

हे  गुनातीत, भक्ति  दो  अपनी  अपरम्पार  मुझे
जी  भर  कर  रो  लेने  दे  दातार  मुझे




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