एक समय की बात है पर्शिया के महान बादशाह ने अपने लिए एक विशेष रत्न जडित अंगूठी बनवाने की
सोची । अंगूठी के ऊपर वह कुछ ऐसे शब्दों की नक्काशी चाहता था, जो उसे तकलीफ के समय हमेशा राहत दे ।
उसने अपनी प्रजा में घोषणा करायी की जो व्यक्ति उसके लिए बुद्धिमत्ता के सर्वोत्तम शब्दों का सुझाव देगा उसे बड़ा इनाम दिया जाएगा । बहुत से लोग अपने - अपने सुझाव लेकर आये किन्तु बादशाह को कोई सुझाव पसंद ना आया ।
इतने में एक फ़कीर,एक संत महल में आया राजा ने अपना सवाल उस धर्मात्मा के सामने रखा इस पर संत ने जवाब दिया , हे राजन ! वे शब्द हैं 'यह भी गुज़र जाएगा।'
ये शब्द राजा के अंतर्मन में उतर गए और उसे ये बहुत ही सार्थक मालुम पड़े । उसने उन्हें अपनी अंगूठी पर खुदवा लिया । जब भी उसे कोई मुश्किल या उदासी आती वह बस, अपनी अंगूठी की तरफ देखकर वे शब्द पढता । तुरंत ही उसका ह्रदय हिम्मत और आस्था की भावना से भर जाता ।
- 'आत्मिक पोषण' पुस्तक से संकलित
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