कामना
प्रश्न : सुखभोग की इच्छा क्यूँ होती है ?
उत्तर : शरीर के साथ अपने सम्बन्ध मानने से अथार्त शरीर को मैं,मेरा और मेरे लिए मानने से ही सुख भोग की इच्छा होती है ।
प्र : हमारा दुःख मिट जाए -ये कामना करनी चाहिए या नहीं ?
उ : कोई भी कामना नहीं करनी चाहिए दुःख मिट जाय ये कामना करेंगे तो सुख का भोग होगा ।बंधन मिट जाए ये कामना करेंगे तो मुक्ति का भोग होगा जड़ता से सम्बन्ध विच्छेद भी अपने लिए नहीं हो नहीं तो सूक्ष्म अहम् रह जायेगा तात्पर्य है की हमे कुछ लेना ही नहीं है ।
साधक जितना ही भगवान् पर निर्भर होता है, उतना ही वह आगे बढ़ता चला जाता है । वह अपनी कोई इच्छा न रखे सब भगवान् पर छोड़ दे तो बड़ी विलक्षणता आ जाती है और समग्र की प्राप्ति हो जाती है।
प्र : भगवान् कल्पवृक्ष हैं और मनुष्यमात्र उसकी छाया में रहता है, फिर मनुष्य की सब इच्छाएं पूरी क्यूँ नहीं होती ?
उ : कल्पवृक्ष से तो जो मांगो वही देता है भले ही उसमे हमारा हित ना हो पर भगवान् वही देते हैं जिसमे हमारा हित हो ।लोग तो वह इच्छा करते हैं जिससे परिणाम में दुःख पाना पड़े इसलिए भगवान् सबकी सब इच्छा पूरी नहीं करते की बस इतना ही दुःख काफी है और दुःख क्यूँ चाहते हो कल्पवृक्ष और देवता तो दुकानदार के सामान हैं पर भगवान् पिता के सामान है ।
कर्त्तव्य - कर्म
प्र : कर्म का उयोग कहाँ है ?
उ : संसार से ऊँचा उठने के लिए निष्कामभाव से दूसरों के हित के लिए कर्म करने की आवशयकता है; क्यूंकि सकाम भाव अथार्त बदले में फल की इच्छा चाहने से ही मनुष्य संसार में फंसता है, तत्वप्राप्ति से दूर होता है
अतः राग की निवृत्ति के लिए कर्म करने का उपयोग है ।
प्र : कर्त्तव्य का पालन कठिन क्यूँ दीखता है ?
उ : कर्त्तव्य कहते ही उसे हैं जिसे किया जा सके और जिसे काना चाहिए जिसे नहीं कर सकते वह कर्त्तव्य नहीं होता अतः कर्त्तव्य का पालन सबसे सुगम है अकर्तव्य की आसक्ति के कारण ही कर्त्तव्य पालन कठिन दीखता है।
प्र : कर्त्तव्य अकर्तव्य में ज्ञान न होने में क्या कारण है ?
उ : पक्षपात,विषमता, ममता ,आसक्ति,अभिमान - इनके रहने से ही कर्त्तव्य -अकर्तव्य का स्पष्ट ज्ञान नहीं होता।
प्र :निष्कामभाव से भोजन करें तो तृप्तिरूप फल होगा ही, फिर निष्कामभाव से किए कर्म का फल नहीं होता - यह बात कैसे ?
उ : निष्कामभाव से किए कर्म भुने हुए बीज के समान हो जाते हैं । भुने हुए बीज खेती के काम तो नहीं आते पर खाने के काम तो आते ही हैं । अतः निष्कामभाव से किए कर्म का फल तो होता है पर वह बंधनकारक नहीं होता सकाम भाव से किया गया कर्म ही बंधनकरक होता है ।
प्र : क्रिया,कर्म उपासना और विवक - इन चारों में क्या फर्क है ?
उ : क्रिया फलजनक नहीं होती अथार्त किसी परिस्थति के साथ सम्बन्ध नहीं जोडती कर्म फलजनक होता है अथार्त सुखदायी -दुखदायी परिस्थति के साथ संबंद जोड़ता है उपासना भगवान् के साथ संबंद जोडती है विवेक जड़ता से संबंद विच्छेद करता है ।
कर्म और उपासना में जो क्रिया है वह कल्याण नहीं करती कर्म में निष्कामभाव कल्याण करता है और उपासना में भगवान् का सम्बन्ध कल्याण करता है ।
- 'प्रश्नोत्तरमणिमाला' पुस्तक से संकलित
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