Monday, 10 October 2011

Satsang vaani 10

संसार 

उत्पत्ति  विनाशशील वस्तुओं के वश में न होना अथार्त उनका आश्रय न लेना ही मनुष्य की वास्तविक विजय है।
जब तक संसार - शरीर का आश्रय सर्वथा नहीं मिट जाता तब तक जीने का मोह,मरने का भय करने का राग और पाने का लालच - ये नहीं मिट सकते  ।

संसार के साथ मिलने से संसार का ज्ञान नहीं होता और परमात्मा से अलग रहने पर परमात्मा का ज्ञान नहीं होता - यह नियम है ।
जब तक संसार से संयोग बना रहता है तब तक भोग होता है योग नहीं । संसार के संयोग का मन से सर्वथा वियोग होने पर योग सिद्ध हो जाता है अथार्त परमात्मा  से अपने स्वतः सिद्ध नित्ययोग का अनुभव हो जाता है ।

शरीर संसार का निरंतर परिवर्तन हमे यह क्रियात्मक उपदेश दे रहा है की तुम्हारा सम्बन्ध अपरिवर्तनशील तत्त्व (परमात्मा) के साथ है, हमारे साथ नहीं 
हम शरीर को रखना चाहते हैं सुख आराम चाहते हैं अपने मन की बात पूरी करना चाहते हैं - यह सब असत का आश्रय है ।

संसार की सत्ता बाधक नहीं है प्रत्युत उसकी महत्ता का असर बाधक है महत्ता का असर होने से गुलामी आ जाती है ।



World 

the created and perishable things should not gain mastery over oneself (i.e.) not taking recourse to these, means man's real victory.

So long as dependence on the body and the world, does not totally vanish, till then the hope to live, the fear of death, the attachment for action and greed for receiving; these four are not eliminated.

By mixing with the world, the knowledge of the world is not attained. By remaining aloof from God, the knowledge of God is not achieved - this is principle.

So long there is a link with the world, till then there is enjoyment of pleasure (Bhoga), but not union (Yoga), by giving up worldly union from one's mind, always 'Yoga' is accomplished successfully, meaning that one feels the realisation of natural union with God.

We wish to keep our body, our happiness and comfort and fulfil our heart's desire - this is all a dependent on 'Asat'.

Continuous change in the body and the world, teaches us a practical lesson, that your link is with the unchangeable essence (God). It is not with the changeable.


The entity of the world, is not an impediment, but the effect of the importance given to it is, the impact of which might lead to slavery.





From the books  - 'Amrit-bindu' and 'The drops of nectar'.

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