Friday 11 November, 2011

बेटियां


माँ बाप की आँखों का तारा
छोटे भैया का बहन सहारा
बाबुल के आँगन में खेलती हुई
माँ के आँचल में नाक पोंछती हुई
ना उठा पाने पर भी भाई को गोद में लिए
चल देती है बहन कह चल भैया घूमे

बचपन में बहन नहीं जानती ये सवाल


बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल


बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल
 
पढ़ाई लिखाई खुद भी करतीं भैया को भी पढ़ाती

जब परीक्षा आ जाए तो सारे पाठ सुनती
माँ की डांट सुनके भी हंसके गले लग जाती
भैया को डांट पड़े तो बहन नहीं सुन पाती
पिता के आते ही सारे काम काज छोड़ देती  

थके पिता के लिए ले चाय पानी दौड़ पड़ती 


बेटी के रहते जाने कैसे बीत जाते ढेरों साल

बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल


बड़े होते ही माँ बेटी को बताने लगती

जाना है तुझे ससुराल गुण सिखाने लगती
माँ आपको और पापा को छोडके मैं नहीं जाऊँगी
आप भी नहीं रह पायेंगे मैं भी नहीं रह पाऊँगी
लेकिन लेके डोली जब आते हैं दुल्हे राजा
माँ अपने अंक में भर लेती हैं कहके बेटी ना जा

पिता अपने अश्रुओं को छुपा होता बेहाल


बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल

जब कभी भी मायके का नाम सुनती

बेटी अपने ह्रदय में माँ-बाप का नाम सुनती
जब कभी कोई मायके से आ जाता है
दिन वोही होली दिवाली उसका हो जाता है
माँ से लिपटके रोती है जाने नहीं देती
ससुराल में हूँ ये सोचके आसूं बहने नहीं देती 

आखिर भीग जाते हैं आँखें और गाल


बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल



पिता के लिए बेटी हमेशा बिटिया ही रहती 

दूर होके भी बेटी  हाल चाल ले ही लेती
माँ कुछ भी बेटी के पसंद का बनाती उदास हो जाती 
येही कहती अभी बिटिया होती तो साथ खाती
माता पिता को तो अपना कष्ट बताने की आदत नहीं रहती
लेकिन ससुराल में रहके भी बेटी बिन बताये जान जाती

दवाई की हिदायतों को माँ बाप नहीं पाते टाल

बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल 

9 comments:

  1. बहुत अच्चा ..बेटियों के मन का दर्द
    बयां हो गया

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  2. क्या हो अगर यह प्रथा बदल जाए?

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  3. बेटियां क्यूँ चली जाती हैं ससुराल...
    यह प्रश्न तो सदा मुखर रहता है मन में...!आपने शब्द दे दिए....
    भावुक कर गयी रचना!

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  4. मार्मिक और सारगर्भित रचना.

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  5. पुरुष प्रधान समाज की एक और अफसोसजनक प्रथा...काश ऐसा न होता...बेटी कहीं भी रहे पर उसका मन सदैव माता पिता के पास रहता है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  6. यही तो सांसारिक रीति-रिवाज हैं।

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  7. ये संसार की रीत है और इसको निभाना तो पड़ता ही है ... श्रृष्टि के सामजस्य के लिए भी ऐसा करना होता है ...

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