योग के बारे में सबसे अच्छा व्यक्तव्य है कि जैसे भजन करते समय हमे भगवान् सुनता है योग द्वारा हम भगवान् को सुनते हैं। जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है ।
महर्षि पातंजलि ने पातंजलि योगदर्शन योग को आठ भागों में विभाजन किया है । सूत्र है-
यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार
धारणा ध्यान समाधयोङष्टावंगानि॥
यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार
धारणा ध्यान समाधयोङष्टावंगानि॥
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अर्थात-यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि योग के यह आठ अंग हैं ।
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
यह बहुत ही आवश्यक है की योग के शुरूआती दो चरणों को बहुत महत्त्वपूर्ण मानना चाहिए क्यूंकि इनके बाद के चरण स्वाभाविक ही होने लगते हैं या स्वाभाविक बन पड़ते हैं । यम और नियम के अंतर्गत पांच पांच व्रत आते हैं जिनका पालन करने के बाद ही व्यक्ति तीसरे चरण अथार्त आसन कि तरफ बढ़ सकता है।
यम के अंतर्गत आने वाले व्रत है
अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचय्यार्परिग्रहा यमाः। (2/30) अर्थात अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह पाँच यम है ।
1. अहिंसा- मन, वचन ओर कर्म के द्वारा किसी भी प्राणी को चोट या नुकसान ना पहुंचाना ।
2. सत्य- कभी भी झूठ नहीं बोलना ।
3. अस्तेय- किसी दूसरी वस्तु की इच्छा ना करना, चोरी ना करना ।
4. ब्रह्मचर्य- मन, वचन और कर्म के द्वारा किसी भी व्यक्ति को वासना भरी नजर से नहीं देखना और ना ही सोचना । ब्रह्म का अर्थ है परमात्मा में आचरण करना जीवन लक्ष में तन्मय हो जाना, सत्य की शोध में सब ओर चित्त हटाकर जुट पड़ना, ब्रह्म का ही आचरण है ।स्वाभाविक रूप से इन्द्रियों तथा उनके विषयों के प्रति उदासीन रहना ।
5. अपरिग्रह- संग्रह वृत्ति ना रखना,जरूरत से ज्यादा धन संपत्ति आदि का संग्रह न करना।
नियम के अंतर्गत आने वाले व्रत है:
शौचसंतोषतप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः
2/32
2/32
1. शौच- बाह्र और आभ्यंतर रूप से शुद्ध होना शौच के अंतर्गत आता है।
2. संतोष- अपनी स्थति में सदा संतुष्ट रहना।
3. तप- इच्छा के मुताबिक भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि के कष्टों को सहन करना।
4. स्वाध्याय- धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन।
5. ईश्वरप्रणिधान- भगवान में भक्ति तथा सभी कर्मों और फलों को भगवान् को अर्पण करना ।
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