Saturday, 15 October 2011

श्रीराम उपदेश (Lord Rama's teachings)



उत्तरकाण्ड (Uttarkaand)





संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई॥
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता॥3॥





(भरत जी श्रीराम जी से )-हे शरणागत का पालन करने वाले! संत और असंत के भेद अलग-अलग करके मुझको समझाकर कहिए। (श्री रामजी ने कहा-) हे भाई! संतों के लक्षण (गुण) असंख्य हैं, जो वेद और पुराणों में प्रसिद्ध हैं॥3॥



Bharat ji asked ShriRaam ji - O protector of the suppliant, tell me clearly and severally the distinguishing traits of the good(saints) and the wicked. (ShriRaam ji said)- Hear, brother, the characteristics of saints, which as told in the Vedas and Puranas are innumerable.'

संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी॥
काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई॥4॥



संत और असंतों की करनी ऐसी है जैसे कुल्हाड़ी और चंदन का आचरण होता है। हे भाई! सुनो, कुल्हाड़ी चंदन को काटती है (क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है), किंतु चंदन अपने स्वभाववश अपना गुण देकर उसे (काटने वाली कुल्हाड़ी को) सुगंध से सुवासित कर देता है॥4॥



The conduct of saints and the wicked is analogous to that of sandalwood and the axe. Brother : the axe cuts down a sandal-tree, while the latter in its turn perfumes the axe by imparting its virtue (fragrance) to it.
दोहा : 
ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड।
अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड॥37॥
इसी गुण के कारण चंदन देवताओं के सिरों पर चढ़ता है और जगत्‌ का प्रिय हो रहा है और कुल्हाड़ी के मुख को यह दंड मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते हैं॥37॥


For this reason sandalwood (in the form of paste) finds its way to the head of gods (their images) and is loved by the world so much; while the axe has its steel edge heated in the fire and beaten with a hammer as punishment.



चौपाई :

बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर॥
सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥1॥


संत विषयों में लंपट (लिप्त) नहीं होते, शील और सद्गुणों की खान होते हैं, उन्हें पराया दुःख देखकर दुःख और सुख देखकर सुख होता है। वे (सबमें, सर्वत्र, सब समय) समता रखते हैं, उनके मन कोई उनका शत्रु नहीं है। वे मद से रहित और वैराग्यवान्‌ होते हैं तथा लोभ, क्रोध, हर्ष और भय का त्याग किए हुए रहते हैं॥1॥


Saints as a rule have no hankering for the pleasures of sense and are the very mines of amiability and other virtues. They grieve to see others in distress and rejoice at the sight of others joy. They are even-minded and look upon none as their enemy.
Free from vanity and passion, they are conquerers of greed, anger, joy and fear.


कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया॥
सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी॥2॥


उनका चित्त बड़ा कोमल होता है। वे दीनों पर दया करते हैं तथा मन, वचन और कर्म से मेरी निष्कपट (विशुद्ध) भक्ति करते हैं। सबको सम्मान देते हैं, पर स्वयं मानरहित होते हैं। हे भरत! वे प्राणी (संतजन) मेरे प्राणों के समान हैं॥2॥


Tender of heart and compassionate to the distressed, they cherish guileless devotion to Me in thought, word and deed; and giving honour to all, they are modest themselves. Such souls, Bharata, are dear to Me as life.



बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन॥
सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री॥3॥


उनको कोई कामना नहीं होती। वे मेरे नाम के परायण होते है। शांति, वैराग्य, विनय और प्रसन्नता के घर होते हैं। उनमें शीलता, सरलता, सबके प्रति मित्र भाव और ब्रह्म निष्ठों के चरणों में प्रीति होती है, जो धर्मों को उत्पन्न करने वाली है॥3॥ 


Having no interested motive of their own they are devoted to My Name and are abodes of tranquillity, dispassion, humility and good humour. Again, know him for all time, dear brother, a genuine saint,whose heart is a home of all such noble qualities as placidity, guilelessness, friendliness and devotion to
the feet of the Brahmanas, which is the fountain of all virtues.


ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर॥
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं। परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं॥4॥


हे तात! ये सब लक्षण जिसके हृदय में बसते हों, उसको सदा सच्चा संत जानना। जो शम (मन के निग्रह), दम (इंद्रियों के निग्रह), नियम और नीति से कभी विचलित नहीं होते और मुख से कभी कठोर वचन नहीं बोलते,॥4॥ 


They never swerve from the control of their mind and senses, religious observances and correct behaviour and never utter a harsh word.Bharata these are qualities of true saints.



दोहा :
निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज।
ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज॥38॥


जिन्हें निंदा और स्तुति (बड़ाई) दोनों समान हैं और मेरे चरणकमलों में जिनकी ममता है, वे गुणों के धाम और सुख की राशि संतजन मुझे प्राणों के समान प्रिय हैं॥38॥ 



They who regard both obloquy and praise alike and  who claim My lotus feet as their only possession such saintly souls are dear to Me as life and are veritable abodes of noble qualities and embodiments of bliss.

2 comments:

  1. aaj pahli baar aapke blog per aana hua.aap mere blog per aaye aur hausla afjayee ki is ke liye shriday dhanyawad...aapke blog per aaker badi prasannata hui...duniya ke tamam kamon me uljhe rhate hain ham ..ramcharitmanas jaise granthon ke bishaya me jaankari milti hai ..samay satsang me gujra hya pratit hota hai..sabse acchi baat hai ki aap english translation bhi karte hain...shabd kosh ke khanjane me briddhi ka satat labh bhi milega .sadar badhayee

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  2. Aashutosh ji aapka bahut abhaar.
    Thanks for reading the post and for nice remarks.

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